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साइट: परिचय
संस्थापक: परिचय
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टाटी कै घर नै फेरतां के बार लागै
लोक परंपरा
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टाटी
कै
घर
नै
फेरतां
के
बार
लागै?
अर्थ
-
छप्पर
के
घर
के
द्वार
को
घुमाने
में
क्या
देर
लगाती
है?
स्रोत
पोथी
: राजस्थानी कहावतें
,
संपादक
: कन्हैयालाल सहल
,
प्रकाशक
: राजस्थानी साहित्य संस्थान
,
संस्करण
: द्वितीय संस्करण