झूठ बिना झगड़ो नहीं,

धूळ बिना धड़ो नहीं।

अर्थ - दोनों ही अगर सच्चे हों तो झगड़ा किसी बात का? दो में एक झूठा होता है, तभी झगड़ा होता है। तराजू में तोलने के लिए जो धड़ा करते हैं, उसमें रेत से धड़ा करने में सब से ठीक रहता है।

स्रोत
  • पोथी : राजस्थानी कहावतें ,
  • संपादक : कन्हैयालाल सहल ,
  • प्रकाशक : राजस्थानी साहित्य संस्थान ,
  • संस्करण : द्वितीय संस्करण