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झळकणै सूं सोनू कोनी होय
लोक परंपरा
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झळकणै
सूं
सोनू
कोनी
होय।
अर्थ
-
झलकने
वाली
वस्तु
ही
सोना
नहीं
होती।
स्रोत
पोथी
: राजस्थानी कहावतें
,
संपादक
: कन्हैयालाल सहल
,
प्रकाशक
: राजस्थानी साहित्य संस्थान
,
संस्करण
: द्वितीय संस्करण