झगड़ो अर भेंट बधावै जितणी बधै।

अर्थ झगड़ा और भेंट इन्हें चाहे जितना बढ़ाया जा सकता है।

स्रोत
  • पोथी : राजस्थानी कहावतें ,
  • संपादक : कन्हैयालाल सहल ,
  • प्रकाशक : राजस्थानी साहित्य संस्थान ,
  • संस्करण : द्वितीय संस्करण