“बूबना री जोड़ रो वर कठै हेरुं?”

सिंध समंदर रा नबाव भवर ने घणो सोच छोटी बेटी बूबना रे वर हेरवा रो। बूबना रुप रो भंडार! गुणां रो दरियाव! बूबना चालै जठीने अंधारा में उजाळो व्हेतो जावै। हंसै तो यूं लागै जाणै फेफ रा फूल खिर रिया है, फिरै जदी लागै जांणै कंकू रा पगल्या मंडता जाय रिया असी एडियां री राती राती झांई पड़ै। बूबना बोलती जद छाळ मारता हिरण वीणां रे भरोसै पाछा फिर न्हाळवा लाग जाता। वीरा डील में सूं भींणी भींणी सुगन्ध आबो करै।

स्यांणा समझणां बादसा ने कह्यो, “बूबना पूरी पदमणी है, अस्त्री में जतरा लक्षण व्हेणां चावै सगळा में है, पूरा ही बत्तीस लक्षण।”

नबाब रो बेटी पै लाड़ घणो, “चावै जो व्हो देस हेरुं परदेस हेरुं पण बूबना री जोड़ रो वर लावूं।”

ठावा आदमियां ने बुलाया बूबना री तसबीर दे, हुंकम दीधो, “देस जावो परदेस जावो। एक एक रजवाड़ो देखलो। बूबना री जोड़ रो वर हेरो। बूबना पूरी पदमणी है, वर ही पूरो छैल व्हेणो चावै। मन माफक वर नीं मिलै जतरै थां पाछा अठै मत आवजो।”

खरचो खातो देय विदा कीधा। देस देसान्तर फिरता फिरता थटा-भखर जाय पूगा। वठा रा बादसा मृगतमायची री बेन रा बेटा जलाल ने देखनै राजी व्हेग्या। आखी दुनियां में फिर आया पण अस्यो जवान सुलखणो कठै ही नजर नीं आयो। बूबना री जोड़ में जंचै तो यो।

जलाल ने खानगी में ले जाय बूबना री तसवीर बताई। जलाल तो तसवीर देखतां ही लट्टू व्हेग्यो। मन में बैठगी। जलाल ने लाग्यो जांणै भगवान बूबना ने वीरे सारु हीज घड़ी है। तसवीर लेय लीधी।

भला मिनख ही राजी राजी नबाब कनें गिया, “हुकम मुजब आपरे मन रे माफक वर तै कर आया हां। जलाल ने भगवान जांणै बूबना वास्ते हीज सिरज्यो व्हैं। आखी पिरथी पै म्हां फिर आया पण अस्यो जोधो जुवान म्हारी नजर में नीं आयो। गोडां गोडां तक तो हाथ पूगै, एक बिलांत लांबी गाबड़, पूरो पांच हाथ डीगो, चाले तो धरती धूजै। मूंछां भूंवारा सूं अड़ै। देख्यां भूख भागै। ससतर विद्या में परवीण। राजवी में जो सातू वसतुवां री परीक्षा व्हेणी चावै वां सगळां रो जांणकार। तरवारां रो पारखी, एक एक रा लोह री किसम न्यारी न्यारी बताय दे। संगीत विद्या रो पूरो जाणकार, छत्तीसूं राग रागणी रो समझण्यो, आपरे कनें टाळयोड़ा कळावत राखे। घोड़ां री जात रो चाल रो पूरो ग्यान। रतनां रो पारखी, नवरतनां रो न्यारो न्यारो भेद अर मोल बताय दे। कविता रा मरम ने समझण्यो, कवियां ने लाख लाख री रीझां करै। चितर कळा रो प्रेमी। इत्तर रो घणो पारखी, आप खुद इत्तर री भाटी कढ़ावै वीं इत्तर री खसबोई छानी हीज नीं रे। पांचसौ पांवडा दूरा सूं खबर पड़ जावै के जलाल आय रियो है। बैठण रा माळिया ने भीमसेनी कपूर मिलाय केसर सूं पोताय राख्यो है। म्हांने तो जलाल जस्यो वर कठै ही ओर दीख्यो नीं।”

काछ द्रढा कर बरसणां, मन चंगा मुंह मिट्ठ।

रण सूरा जग वल्लभा, सो हम विरला दिठ्ठ॥

ये सगळा गुण जलाल में म्हांने दीख्या।”

नबाब रो मन राजी व्हेग्यो। भला मिनखां जलाल री तसबीर काढ नबाब रे नजर कीधी। घणो राजी व्हीयो। बूबना कनें जलाल री तसबीर भेजी। बूबना तो मगन व्हेगी। वा मानगी वींने विधाता जलाल सारुं हीज बणाई है। तसबीर ने पेटी में काठी कर मेल दीधी।

नबाब हरख्यो लगो। काजी ने वींज वगत बुलाय थटाभखर रवाना कीधो, “बूबना रा सगपण रा नारेळ जलाल ने जाय झैलावो। बड़ी बेटी मूमना री सगाई लारै री लारै आछी जगा देख कर आवो।”

काजी थटाभखर आयो। बादसा मृगतमायची ने जलाल रा सगपण री अरज कराई। मृगतमायची बूबना री तसबीर देखी तो वींरो मन हाथ बारै निकळग्यो।

“काजीजी, बूबना का नारेळ तो हमकूं झेलावो।”

काजी सोच में पड़यो या आछी व्हीं। यो बूढो खांपो, मूंडा में दांत एक नीं, कबर में पग लटकाय राख्या, बूबना सूं परणणो चावै। काजी सलाम कर अरज कीधी, “आलीजापनां रा हुकम सूं इनकारी नीं पण बूबना पूरी पदमणी है, जलाल सा’ब पूरा छैल है। यां री दोवां री जोड़ी बराबर री है। स्यांणां लोगां री राय सूं सारा लक्षण मिलाय यां रे नारेळ भेज्ये है।’

“हम कोण से छैल नहीं हैं?”

“हजूर तो घणा आछा है पण उमर कुछ ज्यादा व्हेवा सूं...”

“नहीं, बूबना रे साथ हम सादी करेंगे।”

काजी हैरान व्हे कह्यो, “बड़ी बैन मूमना रे साथै आपरो ब्याव करदां, बूबना रे लारै जलाल सा’ब रो।’

बादसा नीं मान्यो। काजी ने वठारा वजीरां घणो ऊंचो नीचो समझायो मोटो बादसा है आड़ी वगत फोज फांटा, हर तरै सूं थारै फायदो है। काजी ने लाळच दे देवाय राजी कर लीधो।

बूबना रो नारेळ बादसा ने झेलायो, मूमना रो जलाल ने झेलायो। सावा थिरप काजी चाल्यो।

जलाल ने घणो दुख व्हीयो पण मामा ने कांई कैवै। दूजां लारै कैवायो पण मान्यो नीं।

जान चढ़ी, जलाल वींद बण्यो। बादसा तो आपरा खांडा ने भेज्यो। एक हाथी पै वींद जलाल, दूजा हाथी पै बादसा रो खांडो। जान पूगी, हरख बधावणां व्हेवा लाग्या। काजी जाण्यो अबै तो कैवणो ही पड़ेला। छिपायां काम नीं चालै। नबाब ने कह्यो, “मूमना” ने जलाल परणेला बूबना रो ब्याव बादसा लारै करणो तै व्हीयो है।

नबाब ने घणी रीस आई, “नालायक गजब कर दीधी।” काजी ने जूता सूं ठोकायो। घर खोस लीधो, काळो मूंडो कर गधा पै चढ़ाय गाम बारै कढ़ायो।

काजी कजिया चुकावतो, पड़ियो कजिया मांहि।

बूबना ने खबर लागी जांणै माथै बजर पड़यो। माथो फोड़ लीधो। मन में निस्वै लीधो परणवा रो दसतूर यां रो मन व्है जीं रे लारै करो म्हें तो जलाल ने पति धार लीधो, वो म्हारे सात सात भव रो भरतार, म्हूं वींरी स्त्री। दासी नेत्रबांधी ने कह्यो, “थूं जा जलाल साब ने कैव बूबना थांरी है अर थांरी हीज रैवैला। वांरो खांडो मांग लाजो पैलां वांरा खांडा रे साथै फेरा खाय लूं।”

बूबना तो जलाल रा खांडा ने मंगाय फेरा खाय लीधा।

अबै जलाल चंवरी में आयो। नबाब घणा दुख सूं बादसा रा खांडा कनें बूबना ने ऊभी कीधी। जलाल कनें मूमना ने लाया। जलाल, बूबना ने चंवरी में आवती देखी जांणै पाबासर री हंसणी आय री व्है। धीरै धीरै पगल्या भरती बूबना यूं आयरी जांणै सिंगळ दीप री हथणी आय री। केळ री कांबरी नांई वा झोला खाती री। वीं चींतालंकी बूबना ने देख जलाल माथो ठोक्यो “अहियो भाग अल्लाह”।

परण घरै आया। बूबना घणी दुखी, मोटा बादसा री बेगम व्हेगी पण मांयलो जीव सोरो नीं। बूबना रे न्यारा मे’ल, न्यारी डयोढ़ी, सब ठाठ बाट पण कुछ व्हेतां थकां ही जांणै कांई नीं। मन अमूझ्यां बूबना बैठी रै। बादसा रे आगै ही घणी बेगमां, रावळो भरयो। बूबना री बारी, बारा मीनां में एक दांण आई। बादसा आयो, बूबना चतुराई सूं टाळ दीधो। बूबना रा मन में जलाल बस रियो। मिलवा रो ओसर नीं। मन मारयां, काळजो दबायां दिन काटै।

जलो ही मन में घणों उदास रैवै, मूमना सूं बात करै, बतळावै पण जीव उड़‌यो उड़यो रैवे। मन में वो ही घणो दुखी, भाग ने दोस दे। बूबना रा झरोखा नीचे ही सिणगार चौकी, मोटा मोटा उमराव वठै चौकी पै बैठा रैवै, वातां करै, चौपड़ां खेलै, सांझ पड़यां आपरै घरां जावै। जलाल ही परभाते उदास व्हीयां वी चौकी पै आय बैठै, मोको देख ऊपर री जाळी साम्हो झांके कठै ही बूबना रो झांको ही पड़ जावै। सांझ पड़यां सगळा ही परा जावै जदी वो ही निसासा न्हांकतो दूहा बोलतो, परो जावै, बूबना रा दीदार ही किसमत में नी लिख्या।

लोचन प्यासे दीद के, निरखें नित की नित।

दरसण ही पावै नहीं, मिलवै कहीं मित्त॥

बूबना रा एक झांका सारुं जलाल तरसतो हैं। एक दिन बूबना, नेत्रबांधी ने पूछयो “जलाल सा’ब ने देख्या ही नीं, वै कदै ही अठीने अवै ही नीं है कांई?’

नेत्रबांधी बोली, “वे तो आखो दिन नीचै सिणगार चौकी पै रैवै, आंपणां झरोखा साम्हा मूंडो कीधा बैठा है, आवतां जावतां निसासा भरता दूहा कैबो करै। सगळा उमरावां सूं पै’लां आवै, सगळां सूं पछै जावै।’

बृबना रा काळजा पै जांणै करोत चालगी। नैणां में आंसू आयग्या। क्यूं नीं म्हं जलाल सूं मिलूं। म्हारो पति है, मन अर वचन सूं अंगीकार करयोड़ा करम सूं ही है, पै’लां ब्याव म्हें वीरा खांडा सूं कीधो। मृगतमायची सूं म्हारो लेगो देणो ही कांई। यूं पकड़ लाय घर में बैठाय देवा सूं कोई पति पत्नी थोड़ा ही व्हे जावै। जलो म्हारो, म्हूं जला री। म्हांने मिलवा सूं रोकण्यो कुण? नेत्रबांधी ने कह्यो, “थूं जा जलाल सूं मिल वांने अठैला।”

नेत्रबांधी नीचै उतरी, मोको देख जला ने पूछयो, “जलाल सा’ब, आप उदास उदास रैवो, निसासा न्हांको। अठै आवो जदी तो आगै देखो, जावा लागो जदी पाछै झांकता जावो। आपरा मन में दुख कांई है?’ चावो कांई हो?

जलाल बोल्यो, “कांई चावां अर कांई नीं चावां जो कुण सुणै म्हारी। म्हांको मन तो रात दिन सैणां में लागयो रै।”

की चवां कीं चवां, कवण सुणंदा कत्थ।

मनड़ो चावै रातदिन, सैणां हंदो सत्थ॥

नेत्रबांधी धीरेक कह्यो, आज रात रा थे बाग में आवजो, लेवा ने म्हें आवांला।

जलो झट आपरे में’लां जाय सनान संपाड़ो कर पोसाक कीधी। इतर में तो यूं गरक रैवतो ही हो और ही इत्तर लगायो। कद घड़ी रात पड़ै, एक एक पल बरस ज्यूं लाग री। अंधारो पड़तां ही अकलो चाल्यो, यूं लाग रियो जांणै पग धरती पें नीं पड़ रिया, पांखड़ा आय गिया व्है। तनामनां नाम रो जलाल रो मितर जो हमेसा साथै रो साथै रै, वीं अर फूलमद खवास देख्यो, यूं तो जलाल कदे ही अकेला कठै ही नीं जावै, आज राजी व्हेता, मुळकता, अकेला कठै जाय रिया है, यांरा पग ठिकाणै नीं पड़ रिया है। बूबना रो वैम आयो जदी तनांमनां जावतां जलाल ने कह्यो, “जावो जो चोखा पण सोच समझ पग दीजो। घर में हांण, जग में हांसी व्हे जसी जगां मत जावजो।”

जलाल ने अबखी लागी, पाछो बोल्यो नीं। बाग में जाय, चमेली री, जूही री गैरी झाड़यां में छिप बैठग्यो।

नेत्राबांधी चार दूसरी लुगायां ने ले फूल लावा रे मिस बाग में चाली। ड्योढ़ी रो डोढयो बूबना रे डायजै आयोड़ो। आंख्यां रो आंधो पण हिया री आंख्यां खुली लगी। सूझतां सूं चोगणी सूझ राखै। पग वाजतां ही डोढ़यो पूछयो, “कुण, नेत्रवांधी?”

नेत्र बांधी हूंकारो भरयो।

“अबार वेळा कठै जाय री है?”

“बादसा में’लां पधारे जो सेज बिछावा ने फूल लेवा जाय री हूँ।’

“ला, म्हारा हाथ पै हाथ मेलती जावो।”

कोई मरद रावळा में परो नीं जावै ज्यूं हाथ लगाय डोढयो पारख कर लेतो। पांचूं ही लुगायां, डोढ़या रा हाथ मेलती बाग में आई।

झटपट मोटा छाबड़ा में जलाल ने बैठाय, ऊपरे फूल न्हांक, माथै छाबड़ो मेल ले चाली।

पांचू ही जण्यां डोढ़या रा हाथ पै हाथ मेल्या। डोढ़यो बोल्यो, “ठेरो, छाबड़ा में कोरा फूलां रो बोझो नीं। फूलां रा बोझ सूं पग अस्या घम घम नीं वाजै। छाबड़ो उतार, मांयने कींने बैठाय राख्यो है?”

नेत्रबांधी बोली, “आंख्यां तो फूटी है पण हियो ही फुटग्यो है कांई?”

डोढया ने आई रीस, “रांड, मारी जावेला। म्हंने ही झूटो कर री है। उतार छाबड़ो बता म्हंने।”

जलाल जांण्यो काम बिगड़यो। आखिर बूबना रा पीयर रो है। लिहाज तो राखेला हीज, झट छाबड़ा बारै निकळ बोल्यो, “साबास, पैरादार व्हे तो अस्यो। थारी हुस्यारी पै मन राजी व्हेग्यो। आज आज माफ करदो।”

आंधो पैरा वाळो बोल्यो, “जलाल सा’ब ये गैला अणूंता है। ये रस्ता छोड़ दो।’ जलाल माथो हिलाय धीरेक बोल्यो, “सिर दीधो बूबना सट्टे।”

“थें मरोला अर म्हंने मरावोला। अबखी तो घणी ही लाग री है पण बूबना रे लारे आयोड़ो हूं। बूबना रो मुलायजो नीं टूटै। आज आज तो जावो पण आज पछै पग दीधो तो खैर नीं।”

जलाल बूबना ने देखी, बूबना जला ने देख्यो। सुध भूलग्या, आपा में नीं रिया। सपना में देखता जो सागैसाग कनें ऊभा। बूबना ने लाग्यो जांणैं तीनूं लोक री संपदा वीं रा कनें आयगी। जलाल जांण्यो मिनख जमारो सारथक व्हेग्यो, अबै मरयां रो ही धोखो नीं।

बूबना तो जला रे में’दी ज्यं रचगी काजळ ज्यं घळगी। दध में पाणी ज्यं मिलगी। वांने खबर ही नीं कठीने आंथे। तीन दिन व्हेग्या। नेत्रबांधी पूरी निगै राखै के कीने पतो नीं लाग जावै पण कदे ही छिपायां छिपी है ये वातां?

इश्क मुश्क खांसी, खुश्क, खैर खून मदपान।

लाख जतन करो तो ही असी वातां नीं छिपै। दूजी बेगमां ने वैम पड़ग्यो। जला री गळती रात में खांसी सुण वां जाय बादसा ने कह्यो,

“जलो तो बूबना रा मे’लां में है।’

बादसा नीं मान्यो। सोक्यां कह्यो “आप अचाणचक रा पधार देखलो है के नीं।”

वादसा ने रीस अणाय, सिखाय नै बेगमां भेज्यो। बूबना रा मे’लां में आय तो रियो पण मन में मृगतमायची रे पसतावो, “सांचै ही बूबना है जला रे लायक, म्हें परण खोटो काम कीधो।”

बादसा ने आता देख नेत्रबांधी भागी। कूणा में फूलां रो ढेर हो जीं में झट जला ने छिपाय दीधो ऊपरै घणां सारा फूल न्हाक दीधा।

बूबना उठ बादसा सूं मुजरो कीधो।

अबै बादसा बोलै तो कांई नीं। चारुंकानी चमक्योड़ा हिरण ज्यूं देखै। वठै तो कांई नीं, बूबना रो ढोल्यो अर कूणां में फूलां रो ढिगलो। जलाल फूलां रा ढिगला में दब्योड़ो घबरावै, सांस आगती आयरी जो सांस रे लारै फूल हाल रिया। या देख नेत्रबांधी जांणी जलो डरप रियो है जो हीमत देवावा ने बोली, “भंवरो कंवळ कळी में फंस तो गियो पण कायर कांप रियो है। अरे डरप मत, जीवतो रियो तो कंवळ वन रो आणंद लीजै, मर गियो तो ही कांई फिकर! व्हाली जगां ही तो मरेला।”

भमरा कळी लपेटियो, कायर कंपै कांह।

जा जीत्यो तो जुग समो, मुवो तो मोटी ठांह॥

दूहो सुणतां ही मृगतमायची पूछयो, “यो दूहो थें कीं ने सुणायो?”

बूबना झट बात संभाळी, “हजरत, म्हारा कंवळ रा बीड़ में भंवरो आय बैठयो, रात ने कळी में बंद व्हेग्यो, जीं ने केय री है।”

“जा, वीं ने छुड़ाय आ।”

बादसा री संका मिटगी, कांई नीं देख्यो जो पाछो आपरे मे’लां चाल्यो, “म्हारो बेटो जलालियो अस्यो नीं, ये बेगमां, सळियां वीं ने मरावणो चावै।”

जलाल बूबना रा मे’लां में हीज। घणां दिन व्हेग्या। तनांमनां मित्तर, फूलमद

खवास, गखड़ो ढाढ़ी जांणै के जलो कठै है। घणां दिन व्हेग्या तो यां रा तन में संका, कठै ही जलो मारयों गियो है। मूमना पुछावै जलाल सा’ब कठै? ये वीने अठीली झूठी सांची कैय समझाय दे पण मन में घणां उदास। एक दिन बादसा तनांमनां ने पूछयो, “जलाल कठै है? अतरा दिन व्हेग्या देख्यो नीं।”

वात जमाय पाछी अरज कीधी, “आप जस्या मामा है, जला ने कांई सोच। नादान ओस्था है मे’लां में खावै पीवै आणंद करै।’

बादसा राजी व्हीयो, “म्हारो बेटो जलालियो घणो सोकीन है, बादसा रा सच्चा फरजन है।”

घणो ही इत्तर, चोवो, कपूर, केसर कस्तूरी जला सारुं बगसी।

यूं करतां बारा मींना व्हेग्या।

“सज्जण संग रहंतड़ा, बरस भयो इक मास”

खबर नीं पड़ी यां दिनां ने निकळतां, जले बूबना सूं सीख मांगी। रेसम री डोर सूं झरोखा नीचे जलो उतरयो। जलो ज्यूं आवै ज्यूं सुगंध री घोर बंधती आय री। तनांमनां कह्यो, जलो जीवै, वींरा लगायोड़ा इतर री सुगंध है। सुगंध रे धोरे धोरे वे चाल्या। जलो आवतो दीख्यो, आंख्यां लाल व्हेय री है, लपेटा रा पेच अटपटा बंध्या है, अमल में छक्यो लगो है। पग पाधरा नीं पड़ रिया है।

ये हाल देख तनांमनां बोल्यो, “आक रो दांतण नीं करणो, सांप रो मांस नीं खावणो। जला, जठै जीव रो विणास व्हेतो व्है वठी ने पग नीं देवणो।”

अक्कां दांतण कीजिये, सांपां खाइये मांस।

जला जेथ जाइये, जेथ जीवड़ा विणास॥

जला ने वींरी बात सुवाई नीं, सीख आछी नीं लागी। जलै जुबाब नीं दीधो, बोल्यो नीं।

गखड़ै ढाढ़ी देख्यो, सीख वगत में आछी थोड़ी लागै। अबार तो बूबना रो मोह रुंम-रुंम में रम रियो है। जला ने सुवावतो दूहो बोल्यो,

“आकास में बेलड़ी है जीरे लाखीणां फळ लाग रिया है। जलाल, थारा सिवाय यां फळां ने चाखण्यो ही कुण?”

अंबर लग्गी बेलड़ी, तिण फळ लग्गा लाल।

तो विण किण ही चक्खिया, हो गहाणी जलाल॥

जलाल बोल्यो, “वाह, वाह, कांई बात कहीं है।”

पूंगी पै काळो नाग झूमै ज्यूं जलाल दूहा पै झूम गियो। गखड़ो दूजो दूहो बोल्यो,

सो मण तो केसर उडी, सो दस उडी गुलाल।

बूबन हंदा महल में, रात्यूं रम्यो जलाल॥

जलाल आपरै गळा रो कांटलो खोल ढाढ़ी रे गळा में न्हांक दीधो।

तनांमनां देख्यो, यो मामलो तो हाथां बारै जाय रियो है। समझावणो तो आंपणो फरज है। चिड़तो थको बोल्यो, “जलालिया, गेलै गैलै चाल। आकास में फूलड़ा लाग रिया है जो थारे हाथै किस तरै लागै?”

चलियो जा जलालिया, सैणां हंदे सत्थ।

अंबर लग्गे फूलड़ा, तो किम आवे हत्थ॥

जलाल गाबड़ मरोड़तै कह्यो, “भगवान देवै जदी ऊंचा ही नीचा व्हे जावै। अणव्हेती, व्हेती व्हे जावै। वायरा सूं उड़या सेमर रा फूल री नांई अपणै आप धर में आय पड़ै।”

तनांमनां जांण्यो, मानेगा नीं तो रा जीव ने खतरो है, कदे ही मारयो जावैला। वीं जोर देने कह्यो, “कान खोलनै म्हारी वात सुणले। ग्रह दसा पूछने रातड़ियां रमवा पधार जो।”

जला कन्नां देय कर, सुण अम्ह बत्तड़ियांह।

डक्कण वातां बूझ के, रमजो रत्तड़ियांह॥

फिरतो ही जलो जुबाब दीधो, “माथा पै कफन बांधने फिरै ज्यां सूं देवता ही डरपै। अठै तो जीव हथेळी पै लीधां फिरां हां सोच कींरो है?”

तनांमनां जाणग्यो, “या मानवा ने नीं। लाख कैवो चीकणा हांडा पै छांटो लागवा ने नीं।”

जलो रोजीना रात ने बूबना सूं मिलै। सट्ट करै पट्ट करै पण जावै। रंगभीनी बूबना ने नीं देखै जतरै जला ने जक नीं, जोड़ी रा जलाल ने नीं देखें जतरै बूबना जक नीं। सात सात पैरा लागै, ड्योढ़ी रे सात सात ताळा लागै, सोकड़ल्यां ताका झांका करै के जलाल ने पकड़ा। मोत साम्ही ऊभी हंसै पण जो धार ले वीं ने मोत रो कांई डर? रोक सक्यो है अस्या प्रेमी ने आज तांई? जलो जावतो रुकै नीं, जावै अर जरुर जावै।

मृगतमायची ने लोगां कह्यो के एक रात ये दो ही जणां दूरा नीं है।

मृगतमायची बोल्यो, “दूरा नीं किस तरै रै, आज म्हारे साथै जला ने सिकार मे ले जावूंला। देखां रात ने किस तरै आवै?”

जला ने ले सिकार चाल्यो, रात पड़गी, आछो आंबा रो पेड़ देख, वीरे नीचै बिछायत कर बादसा सूतो, आपरे कनें जलाल ने सुवायो। आंबा री डाळ रे घोड़ा बांध दीधा।

चांदणी रात छिटक री, आंबा रा मोड़ री भीनी भीनी सुगंध आय री, मधरो मधरो पवन चाल रियो, चांदणी रात में तळाव रो ऊजळो पाणी अस्यो लाग रियो जांणै दूध रो कटोरो भरयो व्है। मंझरात, झींगर बोल रिया, सियाळयां री “हूकी हूकी” व्हेय री। कोचरी रैय रैय नै बोलती लगी माथा पै उडती निकळ जावै। झांय झांय रात कर री।

मृगतमायची ने नींद आयगी, सब साथ वाळा सोयग्या, जला री आंख्यां में नींद गीं, वींरो मन बूबना में “वा गुललंजा म्हारी वाट देख री व्हैला। मिलवा रो वगत टळग्यो, वीं मानेतण रुसणों कर राख्यो व्हैला। डाबरनैणी बूबना रा नैणां में आंसू भर रिया व्हैला, कांई सोच री व्हैला। वा तनक मिजाजण नाराज व्है री व्हैला, मन में ओळंबा देय री व्हैला। नाजकड़ी घबराय री व्हैला, बिछाणां पै पड़ी तड़फ री व्हैला। काजळ रेखी बूबना रोय री व्हैला। वीं मीठा बोली ने भरोसो है म्हारै प्रेम पै, जरुर वाट देख री व्हैला, नेत्रबांधी रे हाथ में रेसम डोर दे गोखड़ा में ऊभी कर राखी व्हैला।”

झिलती जोड़ रा जला री आंख्यां आगै तसबीर सी मंडगी जांणै वा झाला देणी झाला दे दे वीं ने बुलाय री है।

जला ने दूहो याद आयग्यो, पैदल तो पांच कोस दूरो व्है नै आंपणी सायधण सूं जाय नीं मिलै। घोड़ा रो असवार दसकोस री दूरी पै न्यारो रात काढ़ले तो बस जांण जावो कै तो लुगाई कुभारजा है कै मिनख नाजोगो है।

पंच कोसां प्यादो रहे, दस कोसां असवार।

कै तो नार कुभारजा, कै रांडुल्यो भरतार॥

यो दूहो याद आवतां ही जलाल तो सूतो लगी उछळ नै ऊभो व्हेग्यो।

चित्राम री पूतळी बूबना जसी तो मारुणी! म्हूं वीं पै पिराण निछरावळ करण्यो!! अतरा नजीक रैतां थका रात न्यारी कटै?

आंबा री डाळ रे बादसा रो अरबी घोड़ो बंध्यो हीज हो। घण हेताळू जलो तो झट चढ़यो, रानां नीचै घोड़ो व्है पछे घर कस्यो दूरो? घोड़ा री रास ने थोड़ी ऊंची लेतां ही परबत पार।

यूं क्यूं मन में जांणजै, घोड़ां थी घर दूर।

टुक ऊंचै रासां लिये, तो आवै परबत चूर॥

अरबी घोड़ा री रास खेंची, घोड़ो उड़यो। जलाल रा इतर री लपट दूरां सूं आई, बूबना बोली, “नेत्रबांधी, छींको नीचे उतार, जलालो बिलालो आयग्यो।”

छींका में बैठाय जला ने ऊपरै लीधो। बूबना ने लाग्यो अंधारा घर में उजाळो व्हेग्यो। जलो घड़ी दोय बातचीत कर पाछो घोड़ो दपटायो।

घोड़ा रे मूंडै झाग आयग्या, फुरणा बोलवा लागग्या, पसीनां सूं झगाबोळ व्हेग्यो। पाछो आय घोड़ा ने डाळी दीधो, आप सागी जगां बादसा रे कनें सोयग्यो। मृगतमायची जाग्यो आपरा घोड़ा ने संभाळै तो पसीना सूं तर, काछां में पसीनों टपक रियो, धूळा सूं भरियो लगो। मृगतमायची ने वैम पड़यो। पूछयो, “म्हारो घोड़ो लागै जांणे चाल नै आयो व्है।”

जलो झट बोल्यो, “बादसा सलामत, म्हारा घोड़ा ने ही देखावो, यूं ही लाग रियो है। खुरो कीधां बिनां परभाते घोड़ा यूं ही लागै। काले कस्या आपां घोडां ने थोड़ा दोड़ाया? अरबी घोड़ो, अमीर जीव, घणां दिनां पछै ठांण सू खुल्यो।”

मृगतमायची ने वेम तो पूरो व्हीयो पण मन ने समझाय लीधो जलो कैवै जो ठीक है।

खलक री हलक कुण पकड़ै? जला बूबना री चरचा चालवा लागी। मृगतमा-यची ने आपरी गलती पै पछतावो ही घणो नै यांरा पै रीस ही घणी। जला ने अठा सूं दूरो करदूं या सोच जला ने बुलाय, गिरवर गढ़ री चढ़ाई रो बीड़ो झेलायो। हुकम दीधो, “जोइयां रे साथै झगड़ो चाल रियो जो थां जांणो ही हो, मोटा मोटा उमराव भेज्या पण जोइया ताबे नीं व्हीया, अठा सूं जावा वाळा कै तो मारया गया कै भागनै पाछा आया। थां जावो गिरवरगढ़ ने ताबे करो।”

जलाल बीड़ो झेल्यो, फोज री त्यारी कीधी। हथियार संभाळया। नाळां, घुड़नाळां, गजाळां, रामचंगियो जुजरबा, तोपां लारै लीधी। घोड़ां रे पाखर घाली। जिरह बख्तर पैर, टोप लगाय, जलो सिलहपोस व्हे बादसा सूं मुजरो कर कूंच कीधो। मोरत सजाय दो कोस दूरा डेरा दीधा।

बूबना नेत्रबांधी ने कह्यो, “जलाल सा’ब भारी मूंम पै जाय रिया है। पाछा कुण जांणी कदी आवै। आपां चालां वारे डेरां, एक नजर तो देख आवां। जलाल कदे ही दूरा नीं रैता, दस कोस व्हेता तो आय मिलता। आज घणां ही दो कोस दूरा है पण जंग रा मैदान कूंच करयोड़ा पाछा किस तरै फिरै। नेत्रबांधी, हमेसा वे आय आपां सूं मिलता, आज आपां चालां लसकरिया सूं मिल आवां।’

छींका सूं नीची उतर बूबना नेत्रबांधी ने साथ ले चाली। नेत्रबांधी आगै जाय जला ने खबर दीधी।

“जला रे म्हें तो राज रा डेरा निरखण आई रे जलाल”

जलो तो आणंद सूं उछळग्यो। बधाई में गळा री माळा उतार नेत्र-बांधी ने देय दीधी। बूबना रो अस्यो नेह जला री छाती भरगी, हीमत देख आंजस सूं आंख्यां चमकगी।

दो घड़ी बातचीत कर बूबना सीख मांगी पग आगै देतां पाछा पड़ै। अमरत पीवतां ही कदे तृप्ति व्है? नीट नीठ डेरा बारै नीकळी। गळ-गळी व्हे बोली,

सज्जन फळजो फूलजो, बड़ जिम विसतरजोह।

मासे बरसे जो मिलो, तो इण ही रंग रहजोह॥

जलाल भारी फोज ले गिरवरगढ़ पूग्यो, खबर लगाई गढ़ में सामान घणो, अन्न भरयो, पाणी रो टोटो नीं, जोहिया चाळीस हजार भेळा व्हीयोड़ा। बारा बरस घेरो लाग्यो रै तो वांने सोच नीं। जलाल फोज रो हमलो करै तो जोहियां रो गढ़ बांको, मोरचा अस्या जम्योड़ा के हमलो करवा वाला पग एक आगो नीं दे सकै। जलाल तरकीब सूं काम लीधो। आपरा ठावा मिनख ने जोहियां कनें भेज्यो। वीं जाय जोहियां ने कह्यो, “जलाल सा’ब था सूं झगड़ो करणो चावै नीं। बादसा भेज्या है, कांई करै आवणो पड़यो। वठै नीं अठै बैठया हां। थां म्हारी कानी रो कांई सोच करो मती।’

जोहियां रा आदमी आयनै देख्यो तो जला रा डेरा में हमला री कोई त्यारी नीं दीखी। जोहियां ने ही भरोसो आयग्यो। बूबना री वात वां पे’लां ही सुण राखी ही और ही निस्वै व्हेग्यो कि जलाल ने वठा सूं टाळवा ने अठै भेज राख्यो है।

जलाल तो जोहियां रे अठै आवणो जावणो बढ़ायो। कैवतो रैवै, “हुकम है जो पड़या हां अठै।”

यूं करतां करतां जेठ मींनो आयग्यो। असाढ आयो, धमकनै बरस्यो। जोहिय सोची, बाजरी बाणी चावै। यूं गढ़ में छाना मानां बैठयां कांई फायदो। हमलो तो व्हेय नीं रियो है। चार हजार घोड़ा आदमी तो गढ़ में रिया, बाकी रा खेतां में बाजरी बावा ने परा गिया। जलाल जोहियां री पूरी खबर राखै।

वीं एक दिन अचाणक आपरी सारी फोज ने थटाभखर पाछा जावा रो हुकम दीधो, “बादसा रो हुकम आयग्यो है पाछा बुलाया है।”

कूंच रो नगारो बजाय पांच कोस दूरा जाय डेरो दीधो। गढ़ रा जोहियां जाण्यां, धणां, राजी व्हीया, गढ़ रा दरवाजा खोल दीधा, आप आप रे हल्ले लाग्या। जोहियां ने बिखरवा देय, जलो आपरी पूरी फोज ने सजाय एकदम रात में गढ़ पै हमलो बोल दीधो, खटण जोहिया ने मार लीधो, गढ़ पै कब्जो कर लीधो। जलाल री आंण फिरगी। थटाभखर कासीद दोड़ायो। मृगतमायची घणों राजी व्हीयो, जला ने वठा रो-पूरो जाबतो कर फोज पाछी लावा रो हुकम भेज्यो।

दूसरी बेगमां मृगतमायची रा कान भरवा लागी, “जलो आवतां ही पे’लां बूबना कनें जावेला, आप सूं मुजरो करवाने पछै हाजर व्हैला, वीरे घरै पछै जावेला, बूबना सूं मिलवा ने पे’लां जावेला।

मृगतमायची ने पूरी संका, जलाल बूबना, सूं मिल नीं सके वास्ते तळाव में मे’ल हो जीं में बूबना ने भेज दीधी। मे’ल रे पूरा पैरा रो इन्तजाम कर दीधो।

बूबना मन में कह्यो, “कोई परबन्ध म्हंने जलाल सूं मिलवा ने नीं रोक सके। यो तळाव रो पाणी अर ये पैरावाळा कांई है जो लोह रा पींजरा में म्हनें घाल दो, छुरयां री वाड़ करदो, म्हारो माथो काटलो पण जला बिना म्हूं नीं रैवूं।”

कर लोह हंदा पींजरा, कर छुरियां दी बाड़।

जला बिन हूं ना रहूं, भावे गरदन मार॥

तळाव री पाळ पै पैरावाळा बैठाय दीधा। बूबना पाणी रे बीचै मे’लां में भेज दीधी है। पैरा रो पूरो परबन्ध कर राख्यो। जलो कह्यो, म्हंनै पैरा चौकी बूबना सूं मिलवा ने रोक देला? और तो और जमराज ने पैरा पै ऊभा करदे तो बूबना सूं मिल्यां बिना नीं रैवूं।

जलो घोड़ो दपटातो, दो घड़ी रात रा तळाव पै आयो देखै तो पैरा लाग रिया। जलो घोड़ा सूं उतर पैरावाळा कनें सूधो गियो।

“हवलदारजी, दो घड़ी बूबना सूं मिल आवा री इजाजत दो।”

“जलाल सा’ब, माफ करो, हुकम नीं।’

जलो बोल्यो, “बूबना सूं मिल्या बिना म्हूं नी रैवं। चाहे जो व्हीजो। म्हैं म्हारो जीव पिराण बीं सारुं अरपण कर दीधो। जावा दो तो दो घड़ी हंस वात कर लूं नी तो उठो, तरवार उठावो। मरग्यो तो ही अमर व्हे जावूंला। करो फैसलो एक वात रो।”

पैरावाळा देख्यो, जलाल रो हेत तो घणो गाढो। बादसा बूबना ने जबरदस्ती परणी, परण्यां पछै एक रात ही नीं दीधी। बूबना जलाल पै जीव दै, जलो बूबना पै पिराण दे। जलाल कै तो जायनै मिलेला कै पिराण दे देला। आपां अस्या गाढ़ा हेत वाळां रे बीचे पड़ पराछत क्यूं लां। जलो आखर बादसा रो भाणेज है, री मां बैठी है। जलाल ने मारां तो साम्ही आंपां पै आफत आय जावै तो कीने खबर।

पैरा वाळा जलाल ने रोक्यो नीं। जलो तो हो ज्यूं पाणी में कूद पड़यो। मगर मच्छ पाणी में सरड़ाटा ले ज्यूं बूबना रा में’लां साम्हो तिरयो।

बूबना तो नेण बिछायां बैठी हीज ही, जला रा इत्तर री लपट वायरा रे लारै आई। बूबना, फड़फड़ाई, फोजां रो मांझी जलो आयो, बूबना जाणती जला ने, जलो आवेला अर जरुर आवेला। यो पाणी कांई है, वासदी रो तळाव भरयो व्है तो वो नीं रुकै। नाव त्यार कराय राखी, जला ने लावा लेजावा सारुं। नेत्रबांधी ने कह्यो, “झट नाव खोल” नाव ले जला रे साम्ही चाली।

तळाव मोटो, आधै आवतां आवतां जलो थाकग्यो, सांस भरग्यो, जांणी डूब्या। अतराक में तो नाव ले बूबना आयगी। हाथ पकड़ नाव में चढ़ाय ले चाली।

जला अर बूबना रो हेत दिन दिन और ही गाढो व्हेतो जावै। ज्यूं मिले ज्यूं बत्तो बढ़ै। एक दूजा में अतरा रंग गिया के एक रंग व्हेग्या, एक जीव व्हेग्या। कोई तागत नीं जो वां ने मिलवा सूं रोक सकै।

सोक्यां ने खटे नीं, बादसा आगै चुगली करती है। अठीने वठीने चरचा ही चालै।

मृगतमायची घणों विचार में, “जलो मरजावै तो पापो कटै।”

एक दो तरकीबां कीधी पण भगवान ने राखणो जो जलो मरयो नीं। एक जणैं एकांत में बादसा ने सल्ला दीधी, जलाल ने मारवा रो उपाय म्हूं बतावूं। धणो सोरो। कीं रे ही माथै दोस नीं आवै अपणै आप मर जावै। यां रे दोवां रे ही हेत घणो, एक बिना दूजो नीं रै। म्हूं बतावूं ज्यूं करो।”

दूजै ही दिन मृगतमायची जला ने ले सूर रीं सिकार चाल्यो। बादसा तोत रच एक आदमी ने भेज्यो, वीं रोवतै लगै सहर में जाय खबर दीधी, सूर री सिकार करतां जलाल सा’ब मारया गिरा। घायल सूर दांतळी सूं चीर दीधा।

सारा दरबार में रोवा कूटो मचग्यो। कफन री त्यारी करवा लाग्या। बूबना सुण्यो, जलो मरग्यो। अणचीत्यों आकास सूं बजर पड़यो। जलो मरग्यो नै बूबना जीवती रैवै? जला बिना बूबना कठै? “हाय जला” कैवतां बूबना रो पिराण उडग्यो। हरम में हाहाकार व्हैग्यो।

आदमी दोड़या, सिकार में जाय बादसा ने कह्यो “वठे जलाल सा’ब रे फोत व्हेवा री खबर आई। खबर सुणतां ही बेगम सा’ब खत्म व्हेग्या।”

जलो कनें ऊभो, सुणी बूबना मरगी, “म्हारे मरवा री खबर सुणतां ही बूबना मरगी। यो प्रेम!”

जलो तड़ाछ खाव नीचै पड़यो, “बूबना, थूं परी गी म्हूं अठै कांई करूं?” ये अक्खर निकळतां निकळतां जला रो सांस निकळग्यो।

दुनियां कहयो प्रेमी व्है तो अस्या व्है। सांचा प्रेमी हा। दरसण करवा ने सहर भेळो व्हेग्यो। वांने भूंडा कैवा वाळा वांरा भगत व्हेग्या।

मृगतमायची अबै समझ्यो वांरा प्रेम ने अर आंपणी गलती ने। बादसा हुकम दीधो, “ये सांचा प्रेमी ने एक साथै दफणावो।”

बूबना अर जला ने एक कबर में दफणाया। बादसा फूल चढ़ाय वांरी कबर पै माथो टेक खुदा सूं माफी मांगी, “परवर दिगार, म्हें जलाल अर बूबना रे बीचै आय गुनाह कीधो, माफ कर।”

स्रोत
  • पोथी : माझंल रात ,
  • सिरजक : रानी लक्ष्मीकुमारी चुण्डावत ,
  • प्रकाशक : राजस्थानी ग्रन्थागार, जोधपुर ,
  • संस्करण : दसवां संस्करण
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