खड़कै सूं अंदाज लागै हो कै गाड़ी इण बगत सौ सूं बेसी स्पीड सूं चालै ही। जनरल डब्बै री ऊपरली सीट पर बेग रो सिराणो बणा‘र सूत्यै अखिल रै मन री गाड़ी तो उणसूं कीं बेसी उंतावळी भाजै ही। रेलगाड़ी तो अेक दिस में चालै पण मन री गाड़ी रो तो कोई ठौड़-ठिकाणो कोनी। कदी सौ पांवडा आगै तो कदी दो सौ लारै। कद कठै कित्ती ताळ अटक जावै, कीं ठाह कोनी पडै़। बियां तो गाड़ी रो घणो खड़को हुवै ऊपर सूं सवारियां रो रोळो-रप्पो न्यारो। कीं कोनी सुणीजै। भीड़ रो छैड़ो कोनी। आडै दिन हुवो चावै तीज-तिंवार। कदी देखल्यो। गाड़ियां में मिनख मावै कोनी। चार उतरै, चवदै चढै। छुट्टियां में हाल औरूं माड़ा हुय जावै। अमूमन लाम्बी दिसावरी करणियां आगूंच सीट बुक करवा‘र जातरा करै। जनरल डब्बै में पेस पड़णी ओखी। कोई पग चींथ देवै का कोई सामान माथै हाथ फेर देवै। चोर तो तक्या बैठ्या रैवै। अखिल रिजरवेसन री सोची पण गूंजै में हाथ घाल्यो तद पग पाछा पड़ग्या। भाड़ै में आधो-आध रो फरक हो। बण मन में करी। रात-रात री तो बात है। दिन में तो सै बियां बैठ्या रैवै। अेक रात अर अेक दिन रो तो आंतरो है गांव सूं सूरत रो। बण छाती करड़ी करी अर साधारण टिकट लेय‘र डब्बै में बड़ग्यो। जोग सूं ऊपरली सीट ताबै आगी। बण बेग सिराणै राख‘र कमर सीधी कर ली। गाड़ी रै हलकै सूं नींद बड़ी सोरी आवै। बो सदां जातरा में सोवणै रा ठाठ लिया करै। पण आज नींद लोवै-लवास कोनी। अखिल आंख्यां मींच‘र केई ताळ पसवाड़ा फोर्‌या पण नींद कोनी आई। छेकड़ धाप‘र बो ओजूं डायरी रा पानां फिरोळण लागग्यो। मंदै च्यानणै में जको पानो खुल्यो उण माथै अेक-सवा बरस जूनी तारीख मंड्योड़ी ही। अै बै दिन हो जद अखिल कॉलेज री गैलरी में ऊभो क्रांति रा सपनां देख्या करतो। सहीद-अे-आजम भगतसिंघ उणरा आइडीअल। उणरै कमरै में कैदी भेस में भगतसिंघ रो अेक पोस्टर लागेड़ो हो जको फगत भींत माथै नीं, उणरै अंतस में मौजूद हो। कुलदीप नैयर री पोथी ‘भगतसिंह-क्रांति में एक प्रयोग’ बण दसूं बार बांच लीवी। अजै जद-कद बो उणरा पानां फिरोळतो रैवै। भगतसिंघ री लिख्योड़ी केई ओळ्यां उणरै कंठै हुयगी जकी बो जद-कद दुसरावतो रैवतो। भगतसिंघ रै सहादत दिवस माथै कॉलेज में छात्र संघ कांनी सूं अेक सभा राखीजी। सभा में खास वक्ता रै रूप में बोलतां बण कैयो- ‘भगतसिंघ कदी मर कोनी सकै। क्रांतिकारी तो अमर हुवै। डील रूप में नीं रैयां बो भाव रूप में जीवै।’ बात कोई पोथी में बांच‘र नीं आपरै अनुभव सूं कैयी। उणनैं केई बार लागतो कै भगतसिंघ उणरै भीतर बसै। बसै कोनी, लाय लगा राखी है उणरै काळजै में। दिन हुवो चावै रात। भगतसिंघ रा हरफ उणरै अंतस गूंजबो करै। सांची तो है कै भगतसिंघ बावळो कर राख्यो है उणनैं। जद बो आपरै ओळै-दोळै जोर-जुलम री बानगी देखै-सुणै तो उणरो रूं-रूं जगण लाग जावै। भीतर बैठ्यो भगतसिंघ उणनैं मजबूर कर देवै अर बो अन्याव साम्हीं पग रोप लेवै। कॉलेज में फीस बधा दी तो बण विरोध रो झण्डो चक लियो। लाइब्रेरी सूं दो सूं बेसी पोथ्यां नीं देवण रो नेम बणायो तो बो छोरां सागै अेस.डी.अेम. तांई जा पूग्यो। इण बाण सूं उणरै घरवाळा तांई नित ओळमा पूगै पण बो डटै कोनी। रोज कोई कोई नवो मोरचो मांड लेवै।

डायरी रो पानो कद पळटीजग्यो ठाह नीं पड़्यो। इण पानै माथै अेक चितराम मंड्योड़ो हो घर रो। घर, हां घर जिसो घर। बीसेक पांवडा लाम्बी बाखळ पछै अेक पक्को कमरो अर बरामदो। बिचाळै खल्ुलो आंगण जिणरै डावै पासै लोह रै टीणां वाळी रसोई। जीवणै पासै कच्ची साळ। साळ ऊपर माळियो भळै। आंगणै में अेक आळो हो जिण में देवता रो थान हो। बो मनां-गनां तो भगतसिंघ दांई नास्तिक हो पण मा दोवूं बगत नेम सूं धूप-बत्ती करती। रोज सिंझ्यां उणरी बैन घर रै आगै जळ री कार देवती। घर रो डोळ बतावै हो कै केई बरसां सूं उणरै रंग-रोगन कोनी हुयो। भींतां रो पलस्तर झड़ण लागग्यो तो आंगणो जगै-जगै सूं फूटग्यो।

घर में ही मा। असल में मा सूं घर घर हो। भाकपाटै सूं लेय‘र रात नैं मोड़ै तांई बा घर नैं संवारण में लागी रैवती। सरदी हुवै चावै गरमी, घर रो खोरसो निवड़तो कोनी। तीन टाबरां री गवाड़ी सांभणो मा सारू इत्तो ओखो कोनी हो जित्तो बडेर सांभणो। न्यारा हुयां पछै दादो-दादी जित्तै जीया, मा सागै रैया। इयां तो दादी रै मा जैड़ी तीन बहुवां औरूं ही पण बै मा सूं पतीजता। मा दादै अर दादी रो पूरो काण-कायदो राखती। बडेरां नै रोटी सूं जरूरी हुवै मान-मनवार। बात मा सावळ समझती। तंगी थकां मा तीज-तिंवार चारूं नणदां सारू धोती-कबजै रो जुगाड़ बिठा लेवती तो माइतां रो काळजो ठरणो लाजमी हो। कड़ूंबै में इण रो जस जीसा नैं मिलतो पण बां नैं अैड़ी बातां सूं राई भर मतळब कोनी हो। अवस ही कै बां मा नैं अैड़ी रीतां निभावण सूं कदी बरजी कोनी।

अबै बात जीसा री। जीसा रै व्यक्तित्व नैं अखिल अजै कोनी समझ सक्यो। बै अेक घड़ी में दो न्यारी न्यारी बांता में अैड़ो वौवार करता कै मगज घूम जावतो। जीसा कदी टिक‘र काम कोनी कर्‌यो। कमाई सूं जे बां री कूंत करी जावै तो बै नाकाम मान्या जावैला। बां केई धंधा फोर लिया। कदी नौकरी तो कदी दुकानदारी। कदी दलाली तो कदी ठेकेदारी। मिंदर-देवरा अर पूजा-पाठ बां नैं कदी कोनी सद्या। पांती में करजो मिल्यो तो बां बडेर रो भार लेवण में अेक पल संको नीं कर्‌या। भाइयां नैं बां कदी होठ रो फटकारो कोनी दियो। बीं नैं चेतै कोनी कै कदी बां मां नैं सुगन री कोई धोती ल्या‘र दी हुवै। मा बतावै कै बालपणै में बो रो-रो‘र आधा हुय जावतो पण मजाल है कै बां कदी गोदी में लेय‘र रमायो हुवै। मा अेक हाथ सूं उणनैं राखती अर दूजै सूं साग-रोटी बणावती। सै सूं छोटकी बाई हुयां पछै बां रो नेम अवस तूट्यो है। उणनैं आंगळी झाल‘र बै गवाड़ में लेय जावै अर कुरकुरा-चाकलेट दिरावै। ऑइल मिल में काम करतां बां नैं आथण घूंट री बाण पड़गी पण पीय‘र कदी ऊत-फेल बकतां कणीं कोनी देख्या। बां नैं रीस तो आय जावती पण मा सागै ऊंचै सुर में लड़ता कोनी सुण्या। बै अमूमन कम बोलै अर आपरी धुन में रैवै। घर री फिकर मा रै जिम्मै ही। मांदगी सूं मिल री मुनीमी छूटगी तद बां घर रै बारलै पासै ही पान-बीड़ी रो खोखो लगा लियो।

दो छोटी बैनां घर रो च्यानणो है। मोटी निरमा बारहवीं में भणै तो छोटकी गुंजन नवीं में। दोनूं अेक-दूजै री पक्की भायली। दोवां री बातां निवड़ै कोनी। मेहंदी, सिलाई, कढ़ाई, गाणो, नाचणो, रसोई, सै कामां में सिरै। मा रै सागै सारै दिन लागी रैवै। असल में तो बां री रुणक है घर में।

कच्चो-पक्को जैड़ो हो, घर हो उणरो। उणरै सपनां रो सागड़दी। इण में बसतो उणरो जीव।

पण घर में रैयां तो सरै कोनी। ओळूं-डायरी रो पानो पळटणो पड़सी। घर सूं बारै निकळणो पड़सी। बो निकळ्यो। जियां सगळा मोट्यार निकळै। उणरी उमर रा बीजा छोरां डिगरी पछै अेम.अे. रै नांव माथै कॉलेज में जम्या रैया पण उणनैं घर रो हेलो सुणनो पड़्यो। घर तो भळै डांग कोनी लगावतो पण काया तो भाड़ो मांगै। मा अेकली कित्ताक दिन राखती टेवकी। तीन टाबरां री भणाई, रासन, बिजळी, पाणी, दवाई, स्सौ कीं तो चाइजै घर में। कतरणी लगावै तो कठै? जीसा रै पव्वै टाळ फालतू रो खरचो किसो कोनी। मूंघीवाड़ो तो लंक लेग्यो। साल में पचासूं तो बान भरावणी पड़ै। खोखै भरोसै बिजळी-पाणी अर दूध रो बिल को चूकै नीं। कमाई रो बीजो कोई साझन कोनी। छोर्‌यां रो जाम। अैढ़ा साम्हीं दीसै। चिंता सूं मा सूकती जावै। बो जाणतो कै अबै उण माथै है सगळै घर री निजरां। पण उणरी निजरां तो आभै में क्रांति रो सूरज सोधै ही। बरामदै में लकड़ी रै किवाड़ां वाळी अेक आलमारी ही जिण में उणरी निजू लाइब्रेरी ही। पोथ्यां बाचणो जुनून हो उणरो। लारलै बरसां में बण पचासूं पोथ्यां बांच लीवी जिणमें मार्क्स अर गांधी सूं लेय‘र लोहिया रो साहित्य सामल हो। भगतसिंघ रा दस्तावेज तो सोध-सोध‘र बांच्या है बण। आं पोथ्यां में बांच्योड़ी बातां उणरै काळजै गूंजती रैवती अर जद-कद बो भायलां भेळो बां नैं दुसरावतो रैवतो। जद बो लिखण सारू कलम सांभतो तो सबद खीरा दांई आग उगळता। कोई सभा में मौको मिल जावतो तो माइक माथै सागीड़ा बट काढ़ लेवतो। भासण माथै ताळियां उणरै खातर विटामिन रो काम करती। पण बो बोलण सारू कोनी बोलतो। अै बातां उणरै हियै सूं निकळती।

पण भासणां अर ताळियां सूं जूण कोनी कढै, इण बात रो ठाह अखिल नैं डायरी रो पानो फोरतां पड़ग्यो। केई बातां किताबां में चोखी लागै। जीयाजूण री जमीन इत्ती खुड़दड़ी है कै पगथळी में छाला पड़ जावै पण भळै मारग कोनी लाधै। उणरै भासण अर लेखनी नैं ओळख‘र अेक-दो नेता आपरी राजनीति चमकावणै सारू उणनैं बरतणो चायो। बां रा कळाप बण बेगा ओळख लिया। इण बिचाळै जीसा बीमार पड़ग्या। अेल्कोहल सूं बां रै डील में सत तो बियां माड़ो हो, बच्योड़ी कसर गुरदै री खराबी सूं पूरी हुयगी। सरकारू अस्पताळ में पांच दिनां तांई पड़्यां रैयां पण कोई सुणवाई कोनी हुई। रीस में बो डाक्टर सूं जा भिड़्यो पण कीं नीं बंट्यो। सेवट मजबूरी में बां नैं डायलिसिस सारू निजू अस्पताळ लेय‘र जावणो पड़्यो। निजू अस्पताळां में मरीज सूं पैली उणरो गूंजो संभाळीजै। खंनै हुवै चावै करजो करीजै, बीमारी में तो बंदोबस्त करणो पड़ै। जद बाकी सगळी जगैं सूं उत्तर मिलग्यो तद मा आपरै पीरलां सूं ब्याज माथै रीपिया उठाया। तीन दिन भरती राख्यां पछै डाक्टर जीसा नैं छुट्टी तो दे दीवी पण नित चाळीस रिपिया री दवाई रो खरचो बांध दियो। महीणै रै महीणै जांच भळै करावणी बताई। जीसा री मांदगी सूं घर री हालत औरूं बिगड़गी। मा अळोच में आधी रैयगी। इयां कींकर पार पड़सी। मा माचो झाल लियो तो रोट्यां रो फोड़ो हुय जासी। इण चिंता सूं उणरै होठां माथै फेफी आयगी।

गाड़ी रै हलकै सूं अगलो पानो खुलग्यो। इण पानै माथै अेक स्केच मंड्योड़ो हो। बण सावळ तकायो तो आडी-टेढी लीकां सूं अेक गुलाबी रंग रो उणियारो निजरां साम्हीं आग्यो। इणरै सागै अेक फिलम-सी चाल पड़ी।

‘थूं सांचाणी जा रैयो है दिसावर?’

‘हां, जावणो तो पड़सी। मजबूरी है।’

‘मजबूरी कैड़ी?’

‘म्हारै घर री हालत तो थूं जाणै है। अबै मा कद तांई धिकासी धाको। भार म्हनैं सांभणो पड़सी।’

‘अठै कोई काम कोनी मिल सकै?’

‘मिल तो सकै पण पगार सावळ कोनी मिलै।’

‘भळै कोसीस तो करीज सकै।’

‘म्हैं तीन महीणां में दसूं ठौड़ गयो हूं काम सारू। बटा इंटरव्यू तो आईअेअेस दांई लेवै पण पगार वाळी बगत मूंडै में मूंग घाल लेवै।’

‘म्हैं बात करूं म्हारै मामोजी सूं। बै सरपंच रा बेली है..।’

‘कोई फायदो कोनी। म्हैं परख लिया सै नैं। चोर है सगळा। घर भरणै में लाग्योड़ा है आपरो।’

‘पाछो कद आसी?’

‘पैलां जाऊं तो सरी। काम सावळ जच जावै। आवणो-जावणो तो चालसी ई।’

‘म्हारै बाबत कांई सोच्यो है?’

‘थूं सदीव म्हारै सागै रैसी। म्हैं घर रो जाचो जचा लेवूं फेर आगै री विध बिठांसू।’

‘म्हैं उडीक करसूं...।’

इणसूं आगै बोल कोनी निसर्‌या। कंठ रुंधग्या। सबद गळगळा हुयग्या। बो अणमनो हुय‘र ऊभो हुयग्यो। बिना बोल्यां। काळजै री चुगली आंख्यां कर देवै। पण अेक क्रांतिकारी री आंख्यां में आंसू ओपै कोनी। भगतसिंघ तो फांसी रै बगत कोनी रोयो। मा री आंख्यां में आंसू देख‘र मिलणै रो बगत पूरो हुवण सूं पैलां पाछो बैरक में बड़ग्यो।

गाड़ी स्यात पटर्‌यां बदळी ही जिणसूं बोहळा हलका लागै हा। बण आंख्यां मींच‘र गमछो मूंडै माथै रेड़ लियो। उण नैं डर हो कै कोई उणरी सीली आंख्यां नीं देख लेवै।

स्रोत
  • सिरजक : मदन गोपाल लढ़ा ,
  • प्रकाशक : कहाणीकार री टाळवीं कहाणियां सूं
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