रुकमणी री पगथळी नै पाछणै सूं टांच' र सिरदारै सींगड़ी बीं रे ऊपर चढ़ाई अर सींगड़ी रै दूजै पासै नै मूंडै मांय घाल'र बोबै री आंट सूं चूसण लाग्यो। पाछणे बरी ताजादम झरींटां रै बंट खून माथै खिंचाव पड्यो। रुकमणी पगथळी मांय हुंवती पीड़ सूं सिसकारी भरी, तो सिरदारै बीं नै थ्यावस बंधावतै कैयो, “गंदो पाणी है माई! चार सींगड़ी में खींच के सणफ की बीमारी जड़ सै खोदैगो। कह 'र आपरी झोळी सूं दूसरी सींगड़ी ढूंढतै सिरदारै जियां बात नै फेरूं बधाई, “मेरी मानो तो माई, पीडियों पर छह-छह जोंकें और चढवालो। काळो खून निकस जावैगो, तो समझियो जैसे सणफ कभी चली ही नीं थी।
सिरदारै री बात सुण र रुकमणी बोली, “ना भाई ना। जोंका सूं तो मनै घणी सूग आवै, मेरै तो आं रै नाम सूं ई धड़धड़ी छूट जा। पींडी पर चढ़ावो, तो सगळै डील में रीळ चालण लाग ज्यावै।
“ओ तो तेरो बहम है, माई! तूं किसी अनाड़ी सै चढ़वाई होगी जोंक। मेरे पास बो जोहड़-तालाब मैं पकड़ी हुई जोंक नहीं है। बाहर से मंगवायोड़ा जिनावर है - अली। आदमी से बीं ज्यादा समझदार। साफ खून कूं मूं नीं डालेंगी, गंदे की बूंद नीं छोड़ेंगी अेक। पिंडली कूं पकड़ेगी तो चींटी के काटे जित्ती पीर नीं होगी। बस, थोड़ा बदन कूं यूं लगेगा जैसे कीड़ा रेंग रिया हो।
“के हिसाब सूं लगावै, भिया? रुकमणी बूझ्यो, तो जोकां मांय बीं री दिलचस्पी ओळखतै सिरदारै सहानुभूति जताई, “बीमार आदमी सै काहे का मोलभाव माई! मेरे पास अंग्रेजी डाक्टरण वाली लूट-खसोट तो है नंई। आठ आना जोंक के हिसाब सैं लूंगो। दो-आने कम दे देगी तो यहां कौन ज्वाले ने शाह होवणो है। कह र सिरदारो रुकमणी री दूजी पगथळी टांचण दूक्यो।
'आठ-अना तो घणा है, भिया। बारा जोकां रा हुया छह रिपिया अर फेर सींगियां रा दो न्यारा। आ तो बळी सणफ नीं हुई, गठिया रो बाव हुग्यो।
'दूसरों की बीमारी कूं पीने वाला जिनावर है, माई! तेरी सणफें पीकर पके शहतूत सी गिर जाएगी- अपने आप जित्ता इनसे कमाता हूं उससे बेसी तो इनकी देखभाल में लग जावै। सिरदारो कीं सोचतो सो फेरूं बोल्यो, सस्ता काम तो यो है माई, कि किसी ठग्गू कूचिये से पिंडली टंचवाकर बंदूक का तेल भरवा लेती। सात-दिन के लिए तो सणफे खतम, पर आठवें दिन जब चलेंगी, तो काळी-पीळी आंधी आवेगी।
थोड़ी थम 'र सिरदारो रुकमणी नै समझांवतो सो फेरूं बोल्यो, “वो चीज बीमारी को दबाती है माई और यह बीमारी को खाती है। फर्क बस इत्ता ही है। आगे जैसे तुम्हें जंचे। गाहक के साथ कोई जोर-जबरदस्ती तो है नई।
ठीक है भिया, तूं जंच र लगादे चार-चार जोंक। सींगियां सौ छह रिपिया दे देस्यूं। गरीब रो हक राख'र तो हूं बी राजी कोनी। कह'र रुकमणी आपरै घाघरै री लावण पींडियां तांई सरका लिंधी। जोकां चिपा र सिरदारै आप री रीति सींगड्यां झोळी मांय घाती अर बीड़ी सिलगा 'र रुकमणी सूं मुखातिब हुयो, “माई, तेरे पैरों में खून रह नीं गया है। गंदा पांणी निकसा है। यूं तो खैर अपणे खावै ही क्या है, आजकल सफेद खात की सब्जियां और विलायती खात का नाज। पहले के टेम में घर पर आलू का साग बनता था, तो पड़ोसियों को पता लग जाता था कै आलू छोंके है। आजकाल तो भिण्डी खाओ या टिण्डी, स्वाद तो नमक-मिर्च का ही आना। कैंवतै- कैवतै सिरदारै रुकमणी री पींडियां सूं जोक उतारी अर अंगूठे अर आंगळी रै बीचाळै दे' र निचोड़ण दूक्यो। खून री पतळी पिचकारी आंगणै ऊपर मंडगी। कुलड़ियै में जोकां घात र बीं रुकमणी रा दियोड़ा छह रिपिया आपरी बंडी री गोज मांय घात्या। झोळी लाठी मांय घात र खूवै ऊपर टिकाई अर जोकां रो कुलड़ियों उठावतो रुकमणी नै बोल्यो, “अच्छा चलता हूं, माई। मालिक पै भरोसा रखना, भली करैगो।
चूंतरै सूं उतर 'र, गळी में आ'र बीं आपरो सागी हेलो फेरू पाड्यो, “कोऽऽऽ सींगी लवा, जोंका लवा। आज बीं री भेळी छह रिपियां री ध्याड़ी बण्योड़ी ही। बीं री बंडी री जेब मांय जियां कोई सिगतै आरणै छाणै रो निवाच हो। थम थम र बीं रो हाथ गोजी ऊपर जावै हो अर ज्यूं आपूं-आप मूंडै सूं हेलो नीसरै हो, कोऽऽइ सींगी लवा, जोंका लवा।
गळी-गळी इयां ई हेला पाड़तो बो ढाई-कोस रो मारग बींत 'र सिंज्या जणा डेरै पूग्यो, तो सेर गींवा रो आटो, आध सेर गुड़ अर चाय पत्ती बी साथै ई लेग्यो हो। टापरै में बड़ताई सगळां सूं पैली बीं री निजर रावतै ऊपर पड़ी, बो खाटी छा में बाजरी रो आटो घोळ'र राबड़ी तांई खाटो ओलै हो। रोट्यां रा टिक्कड़ बो सेक चुक्यो हो। चूल्है कनै बेठ्यो केसरो खीरां री आंच ऊपर हळदी-तेल री लूपरी बणावे हो। मां एक टूट्योड़ी सी मांचली ऊपर अकेखानी सूती ही। वो रावतै सूं बोल्यो छह रुपियों का माल-मत्ता लाया हूं। आटा चाडी में रख दे और गुड़ कुंज्जे में, इल्ली उल्ली, मच्छर मकड़ी से बचाकर। मेरी टांग रह गई है ग्यारह घंटे की फेरी में। एक लम्बी उबासी ले' र सिरदारो मां सूं बोल्यो -रावता क्या कुछ बना लाया आज?
मां रा होठ कीं कैवण नै हाल्या तो सरी, पण बात मूंडै सूं नीं नीसरी बा मांची ऊपर कूणियां टिका र कियांई बैठी हुई अर निसासू-सी सिरदारै रो मूंडो जोवण लागी, रावते की बहू ने भादर का चूड़ा पै 'न लिया, आज। मां आ ओळी नीठ पूरी करी अर खांसी मायं उळझगी।
कुएं में पड़े गींदोड़ी और ऊपर सै रावता, मेरा मन तो उसी दिन कट गया था, जिस दिन वो घर छोड़ के निकली थी। छिनेक चुप रह र सिरदारो फेर ऊफण्यो-”अब तेरे कूं बी क्या कहूं मां ! पैंतालीस बरस का तो मैं हो लिया। मेरा आगा-पीछा तो कुछ किया नहीं तैने। ले-देकर एक औरत रावते के पीछे लगाई बी, तो उसने जाकर ढाढियों का चूड़ा पै न लिया। ऊपर सै ये चगीद असा कि काम में मट्ठा और खाने कूं पट्ठा। सिरदारो रावतै कानी मुड्यो तो मां बोली, “किस कुएं में पड़े रावता? सवेरे से सांझ तक गला फाड़ता, भटकता आया है पर कौन गोदने गुदवाता है, आजकल। वो टेम रैया नीं, जब औरतें हाथों पर अपने मर्दों के नाम और मर्द जांघों पर मोद गुदवाते थे। आजकल की लड़कियां तो बिंधाने के डर से सूने नाक और बूचे कान चंवरी पर बैठती हैं वे भला गोदने गुदवाएंगी? घणी बोलण सूं मां खांसी मांय उळझी, तो खांसती-खांसती दोलड़ी हुगी, बहत्तर बरस की तो मैं हो गई पर न नाती न पोता। मैं किस कुएं में गिरूं, किसके जी कूं रोऊं?
सिरदारै कनै कै जणा रैयो, तो बो रोटियां वाळै छाबड़ियै मुड्यो। सांस सुळझा'र मां फेरूं कैवण लागी, रावता आज केसरे कूं सिरकारी अस्पताल ले गया था। बड़ी बीमारी का टूमर बताया है, डॉक्टर ने। हल्दी - तेल की लोपरी से ठीक नीं होने का चीरा-फाड़ी होगी और लम्बी दबाई चलैगी। अबेर कर दी तो... मां थमी तो सिरदारै रै झुंझळ ऊपड़ी तो दुनियां खाली हो जायेगी। 'थूक मुंह से मां रो काळजो कांप्यो, “सुभ-सुभ बोल सिरदारे, तेरा छोटा बीरा है। तेरा जूठा दूध पिया है बिसने।
सिरकारी दवाखाने जायगो, तो कोई सिरकारी बीमारी ही निकसेगी। वैसे बड़ी कहो या छोटी, बंदगांठ उठी है। लोपरी से पक जायेगी तो नीले धागे से बींधकर ऊपर बांध देंगे। सरकारी डॉक्टर पास जाने की अपनी औकात का है? फिर मेरा ठेरा चार सौ बीसी का धंधा। सूखी खेलरी जैसे लोगों के गात रह गये हैं। गंडासा मार दो तो खून की बूंद नीं निकसे। खाली सींगी में मूं से पानी भरता हूं और गंदे पानी के माफक निकालता हूं तो रुपिया- अधेली मिल जावै, बाकी रावते की आमदनी तेरे से छुपी नीं है।
“कल सवेरे ही मैं अपनी मसीन बेच दूंगो। रावतो अेक नेहचै रै साथै बोल्यो। मसीन बेचेगा? सिरदारो, केसरी अर वां री मां इचरज दरसांवता-सा साथै ई बोल्या। “वो मसीन, जिसे तैने अपने हाथों से सजाया-संवारा था? मां कैयो अर कह 'र खांसी मांय उळझगी।
“जिसकी चाबी निकाल के बिजळी सैल डालकर तैने अटोमेटिक बनाया था? सिरदारै बूझ्यो।
ठाकुर जी की मूर्ति की तरै जिसकी साफ-सफाई तूं रोज करे था, भाया। सगळां सूं छोटो केसरो बोल्यो।
हां उसी कूं और ये जो मेरे पांव में पांच भरी चांदी का कड़ा है, इस कूं बी कल बेच दूंगो मैं। लेकिन क्यों? सिरदारै झळ-बळ'र बूझ्यो।
मैंन्ने खूबीराम से बात करल्ली है। डेढ सौ रुपियो में वो पच्चीस-थाली, कटोरी गिलास का सेट देगा। मैं अपना धंधा बदलूंगो। रावतो बोल्यो, “पुराने कपड़े-लत्तों के बदले बासन बेचूंगो। गोल डिग्गी ऊपर पुरानी धोतियां तीन-तीन रुपियों में हंस-हंस लेते हैं। फटे पूरे और छींछरे चीथड़े बचनां ले लेगी। इस काम में रोजाना छह-सात की आमदनी है। पंछी वाले पंडत ने बी इसमें मुझे कमाई को जोग बतायो है।
पर पै ले केसरे कूं बचाना जरूरी है। थोड़ा थम 'र रावतो जियां कोई अभूण झेरै सूं बोल्यो, मांय को बी मारा हुआ संखिया कब तक देते रहेंगे?सांस की बीमारी बिना दवा-दारू के टिकेगी नई।
सिरदारो केसरै री बदगांठ ऊपर लूपरी बांधण लाग्यो। मां जस्तै रै कचोळै मांय धर्योड़ै टिकड़ां अनै घटणी सूं जूझै ही। रावतो आपरी जिग्यां- हो जियांई बैठ्यो हो- थिर, गोळ डिगी अनै चिळकणै बासणां री दुनियां मांय गुम।
सोवण सूं पै 'लां मां नै कई बारी खांसी रो दोरो पड्यो, पण बीं आपरै सांपरत दुख नै ई ओळमां दीनां, केसरे की बीमारी और रावते की बहू मुझे लेकर जावेंगे।
राम के घर का बुलावा आ गया है। सिरदारै नै गहरी नींद आयगी ही। रावतो चटाई ऊपर बैठ्यो हो-गुमसुम केसरै री कुनार थम - थम र सुणै ही। टापरै री मिनखमार सुन्नाड़ जियां सोक्यां नै निगळ्यां जावै ही।
खिणखियां खिणण री मसीन उठा र मुंह अंधारै ई रावतो टापरै सूं नीसरग्यो तो सगळां सूं पैली भर्यो घड़ो लियां आवती सावतरी रा दरसण हुया। रावतै सूण सामण लिया। बीं री सारी योजनावां जियां गड्डमड्ड हुवण लागगी ही। कणांई बीं नै चिलकतै बासणां ऊपर खूबीराम रो उणियारो मंडतो दीसै हो, तो कणांई पूरे लीतरां वाळी गोळ अनै कैरी आंख्यां वाळी बचनों रा घड़ै सा गाल। कणांई मां अनै केसरै री बीमारी ऊपर री पूरी कमाई लाग जांवती तो बगतो ई बो उदास हू ज्यावै हो। चाणचक बीं रै डावै हाथ खेजड़ै ऊपर कोचरी कुरळाई, तो वीं रै विचारां रो तांतो टूट्यो। बीं नै सिरदारै री याद आई। बो सोचण ढूक्यो-बड़ो भाई सिर ऊपर हुवै तो क्यांरी चिंता अर क्यांरो फिकर कित्तो सहारो है सिरदारै रो घर में बीं सोच्यो... अर सगळां विचार झाड़ दिन्धा।
चांदी रा कड़ा अनै खिणणियां री मसीन रै नाप-तौल, मोल-भाव अनै हिसाब किताब मांय खासा टेम लागगी ही। पूरा एक सौ सत्तावन रिपिया ले'र जणां बो बारै नीसर्यो तो दिन दोपार हो। खूबीराम री दुकान जावण सूं पै 'लां बीं आपरै टापरै जावणौ ठीक समझ्यो। पै 'लां केसरै री बंदगांठ रो इलाज, माय री दुवाई, फेर बच्योड़ी रकम रा भांडा-बरतण।
सूरज री चिलचिलाती तावड़ी अनै गोजी मांय पीसां रै निवाच सूं बीं नै आपरी चाल री तेजी अनै रस्तै री लम्बाई रो ध्यान ई नीं रैयो। सिर ऊपर बरतणां रो टोकरो हुवैला अर कांख मांय पुराणे गाबां री गंठड़ी, भांडे ले लो बरतन-भांडे। नई, बीं सोच्यो- इण पुकार में न तो वा लय है और न वो संगीत, जो सिरदारै री-कोई सींगी लवा, जोकां लवा में है। हेलै सारू बीं नै आपरै भाई सूं सलासूत करणी हुवैली। सोचतो- विचारतो बो टापरै पूग्यो। टापरै आगे पांच-सात आदमियां नै भेळा देख'र बीं रा पग पाछा पड्या फळसै बड़तांई बीं री निजर केसरै ऊपर पड़ी। उघाड़े डील वो भद्दर हुयोड़ो बैठ्यो हो। वीं री पतली-लम्बी मूंछां री जिग्यां अब फकत सफाचट होठ हा। मां री मांची एक कांनी मूंदी पड़ी ही। आंगणै उतरायोड़ी मां रै पगाणै सिरदारो बैठ्यो हो, सिर मुंडायोड़ो, उदास रावतो ओ सौ दरसाव देख र खड्यो रहग्यो। केसरो उठ्यो, उठ'र रावतै रै बांथ भरली अर बुबकारो मार र कूकण लागग्यो। “भाय, माय नई रयी रै...माय हमें छोड़ कर चली गयी रे, माऽऽय... '
रावतो तो जियां सून्नो ई हो। हरख-दुख, रोवा- कूकी बीं नै कीं नई आवड्यो। सिरदारो बियूं रो बियूं बैठ्यो हो- थिर गळी रै एक बुजरग रावतै रो खूंवो पकड़'र हलायो- कर बेटा, सबर से काम ले। जाणा तो सबी कूं है। कोई आगे, कोई पीछे। कहर बीं रावतै नै नाई रै आगे पाटड़ै ऊपर बिठा दियो। माटी भखै जिनावरां। डूबतै सै कंठा दूजै कह्यो।
बहत्तर साल की लम्बी उमिर भोग ली। तीन-तीन बेटों का सुख, भरा-पूरा परिवार छोड़के गई है। अणची। रोने-धोने वाळी बात नहीं। सैं ग्यारस के दिन सरीर छोड़ा है। सीधा बैकुंठ में वास मिलेगा, तकदीर वाळी थी। पूरब जलम के अच्छे करम थे, भैया त्यागा तो घड़ी भर में सरीर त्याग दिया। बच्चों कूं तकलीफ नीं दी कदै - रत्तीभर।
बातें छोड़ो, ले चलने की तैयारी करो। बैकूंठी निकालो भजन गाते हुए और पीछे करो बढ़िया मौसर, जिससे लोगूं कूं बी पता चले कि तीन-तीन खाते कमाते बेटों की मां मरी है।
रावतै रौ सिर मुंडग्यो तो एक मिनख बीं नै खूंवां पकड़ 'र उठायो, मौसरभोज और किरिया-करम के वास्ते हमारे पास यो ही कुछ है, ताऊ। कह 'र रावतै एक सौ सत्तावन रिपिया बूढै रै हस्तु कर दिया। रिपिया नै गोजी में घात 'र बूढ़ो बोल्यो, “आखरी दरसन करले, बेटा। कह र वीं कफन रो पल्लो ऊंचायो- अर अणची रो मूं उघाड़ दियो। अणची रो उणियारो बदळग्यो हो। आंख्यां फाट्योड़ी अर मुंह खुल्लो हो। देख 'र रावतो डरग्यो। पाछो सिरक र वी सिरदारै रै बाथ भर लिन्धी, भाय, माय साल दो साल और जीती रह जाती रे...माय केसरे कूं खा गई...माय का खुला मूं केसरे कूं बुलाता है, भाय।
सिरदारो गळगळो हुग्यो। रावतै रै घुंघरियांळै बाळां री जिग्यां सिर ऊपर हाथ फेरतां जियां बीं रै कांटा सा गड्या बण रावतै रै बांथ भर र छाती सूं चेप लिन्धो, रो मत भाय। मर्द के बच्चे रोया नई करते मर्द के आंसू अकास कूं जावै अर घर मसाण हो जावै। कह र सिरदारो बूबड़ी मार र रोवण दूक्यो। कड़ियल जुबान सिरदारै नै इयूं फफक-फफक 'र रोंवतो देख'र रावतै नै इयूं लाग्यो, ज्यूं अब बो पूरी तरियां अनाथ हुग्यो हुवै।