—भगवान रै दरबार में सगळा बरोबर। उणरै उठै तो जैड़ो अगरवाळ वैड़ो मेघवाळ। कोई ऊंच-नीच नीं। नीठ गांव री पुण्याई जागी है अर तूं बीच में रोड़ो क्यूं बणै?... संसार में काम किणी रा रुक्या कोनी। तूं फिकर मत कर, कीड़ी नै कण अर हाथी नै मण देवणवाळो बो है। मिनख री कीं खिमता नीं है। चाम चाली जावणी है अर गांव रह जावणो है। बावळा, इसा मौका लारै भज्योड़ा हुवै उणरै हाथै आवै। सरपंच लाधू नै समझावै हो। छेकड़ बघार लगावण रै मिस सरपंच उणरी हेटै लुळ्योड़ी ढूण नै ऊपर लोळी। बो संकै रै भार सूं दबग्यो। इतरा मोटा मिनख अर उणरा इण भांत थोरा-नोरा करै। नीच जात रा इण कदर नेवरा करै, इणसूं इधकी बात फेर कांई हुय सकै। मिनख तो भींटीजण रै भौ सूं उणरी छीयां सूं दूर नाठै।

—आव, पीपळ रा गट्टा माथै बैठां! सरपंच उणरो बाहुड़ो झाल’र घणै लाड अर मनवार सागै गट्टै माथै बैठण रो कह्यो। बो चुपचाप बैठग्यो। सांम्है देख्यो लो लाग्यो कै गांव रा सगळा मिनख उणरै मूंढै कानी देख रह्या है। आज बो पीपळ रा गट्टा माथै बैठतां इण बात नै भूलग्यो कै जूता पैर्‌यां उण माथै बैठण रो उणनै समाजू अधिकार नीं है। खैर, बो तो भूलग्यो पण सामाजिक अधिकार देवणिया आज आंख्यां मींच’र कियां बैठग्या? सरपंच उणरै सागै गट्टा माथै बैठग्यो।

—हांऽ, तो अबै बता तूं कांई सोच्यो?

उण आपरी धूण ही उणसूं सवाई नीची घाल ली। बो निरणै नीं कर सक्यो कै कांई कैवै? अर कांई नीं कैवै? उणनै चुपचाप देख’र सरपंच फेरूं उणरो कांधो पंपोळ्यो-खैर, जावण दै सगळी बातां। थारी हाल उमर कांई है। थारो जलम तो म्हनै काल-परसूं री-सी बात लखावै। अठै बैठ्या मिनखां में सगळां सूं पुखता मगनीरामजी है।

पीपळ रा गट्टा रै कनै बैठ्योड़ा सगळा मिनखां री घांटक्यां हाली अर सगळां री आंख्यां मगनीरामजी रै घोळै खत में उळझगी। सगळां नै आपरै कानी झांकता देख’र कम सुणणवाळा मगनीरामजी बगना-सा हुयग्या। सरपंच जोर सूं पूछ्यो-काका, कितरा बरसां में हुयग्या? पण मगनीरामजी नै कीं ठाह नीं पड़ी कै सरपंच कांई पूछै है। कनै बैठ्यै मोट्यार सागण बात कान कनै मूंढो ले जाय’र जोर सूं कही तो सावळ समझ में आई। उणा बोखै मूंढै सूं मुळकतां कह्यो—भाई, उमर-फुमर री तो कीं ठाह कोनी पण इतरो जाणू कै खांधिया बापड़ा लारै-लारै दौड़ै है अर म्हैं आगै-आगै भाजूं हूं।

सगळा हसण लाग्या। सरपंच अर लाधूराम हंस्या बिना नीं रह सक्या। हंसी थम्यां पछै सरपंच खंखार परो कह्यो-इयां है रे भाई लाधू, आपांरै गांव में मगनी काका सूं बूढो कोई कोनी। आंनै सौगन देय’र पूछलो जे इण गांव में कदैई कोई साधु-महात्मा च्यार-छह महीना जम’र रह्यो हुवै तो। अै तो नीलकंठ गिरीजी है कै जिणा आपरी पुण्याई सूं इण गांव नै पवित्र कर्‌यो है। तूं जाणै है कै बळद ब्यावणो गांव है।

सगळा जणा हंस्या। लाथूराम मुळक्यो।

—म्हनै सावळ याद है कै जे कोई साधु अठै जम’र रैवण री कोशिश करतो तो भाई लोग उणरै लारै गिंडक लगाय’र तगड़ देवता। साधु-महात्मा आंरे खातर हंसी-मसकरी री चीज रही। पण लखदाद है नीलकंठ गिरीजी नै जिणा इसै नुगरै गांव में पूरा बारै बरस टिक’र तपस्या पूरी करी।

सगळां री निजर उण ठौड़ कानी लागगी जठै नीम हेटै चीलकंठ गिरीजी आंख्यां मींच’र ध्यान मगन हुयोड़ा बैठा हा। उणारी कुटिया माथै नुंवी धजावां फरूकै ही।

सरपंच देख्यो कै अबै उणनै घणी भूमिका नीं बांध’र आपरी बात खतम कर देवणी चाइजै।

—देख रे भाई लाधू! थनै अठै बुलावण रो अेकमात्र मकसद है कै भगवान री कृपा सूं अबै इण गांव री पुण्याई जागणवाळी है। बाबो नीलकंठ गिरीजी इण गांव नै जगत चावो करणी चावै। बै अठै जीवत समाधि लेसी।

लाधूराम रै समझ में बात नीं आवै ही कै बाबै री समाधि सूं उणरो कांई लेवणो-देवणो है? बो चितबंगो हुयोड़ो कदैई सरपंच रै मूंढै कानी तो कदैई सांम्है बैठ्या लोगां कानी अर कदैई बाबै री कुटिया कानी देखै हो।

उणै संकता थकां पूछ्यो-बाबोजी समाधि लेवै तो म्हनै कांई अेतराज है? म्हैं इण काम में रोड़ो कठै बणू?

—अरे भाई, कीं अड़कांस है जद तो थनै बुलायो है। सगळो गांव थारै मूंढै कानी क्यूं देखै... थारा नेवरा क्यूं करैं? म्हैं थनै कह्यो नीं कै संसार में काम किणी रा रुकै कोनी। तो असल में पुन्न रो मौको थारै हाथ आयो है। इणमें क्यूं चूकै है? फगत दस बीघां रो खेतड़ो है इणमें तूं कांई निपजा लेवै है? वाजबी पइसा जिका हुसी बै थनै मिल जासी।

लाधू आपरै खेत में बावै रै समाधि लेवण री बात पैली सुण लीवी ही। उण सगळां नै कह दियो कै बो आपरो खेत इण काम सारू देवण नै तैयार नीं है। खेत भलांई नैनो हुवै तो कोई हुयो; गांव रै कनै अर अेन सड़क माथै हुवण सूं मौकै रो हो।

—पण म्हारै कनै तो जमीन रो फगत इतरो टुकड़ो है। म्हैं उणनै कियां देय सकूं?

लाधू री बात सरपंच बिचाळै काट नांखी।

—तूं उणरी फिकर क्यूं करैं? थारै वास्तै कोई दूजी जमीन रो जुगाड़ कर देसां। तूं तो बस हां-ना रो उथळो देय दै।... थनै थारा वाजवी दाम मिल जासी अर गांव रो काम बण जासी। थनै पुन्न मिलसी जिको न्यारो। भोळा आदमी कोई अेक जणै रो काम तो है कोनी जिको तूं जीव नैनो करै। तो आखी बस्ती रै पुण्याई रो सवाल है।

लाधू मेघवाळ जाणै आपरी कावड़ में हो उणसूं बेसी सांवकीजग्यो। बावै नीलकंठ गिरी जबरी मनस्या दरसाई। समाधि लेवणी अर बा उणरै खेत में।

लाधू रै बात समझ में कोनी आई कै बाबो उणरै खेत में समाधि क्यूं लेवणी चावै। उणरै खेत सूं लागतो सरपंच रो खेत है जिको उणसूं पांच गुणो मोटो है। लाधू सूं रहीज्यो कोनी। छेवट उण कह्यो— थांरो खेत भी तो म्हारी सींवाजोड़ है। बाबै नै उठै समाधि क्यूं नीं दिराय दो?

—अरे बावळा! काम कोई मिनख चाह्यां थोड़ो हुवै। भगवान रो आदेश बाबै नै जिण ठौड़ रो हुयो है, उणनै आपां कियां बदळ सकां? म्हारै खेत में समाधि लेवण रो आदेश हुवतो तो पछै इतरै मिनखां सांम्है थारी क्यूं गरज करता गैला!

गांव राम है। उणरै सांम्है लाधू कियां नटतो? उणनै नीं चावतां थकां हूंकारो भरणो पड़्यो।

गांव घणो मोटो कोनी। फगत ढाई-तीन सौ घरां री बस्ती। पण हाई वे रोड माथै आयोड़ो अर शहर सूं फगत पन्द्रह किलोमीटर आंतरै। इण कारण गांव में बिजली-पाणी रो तोड़ो कोनी।

बाबै नीलकंठ गिरी घणै बाजां-गाजां अर धूम-घड़ाकै सागै समाधि लेय लीवी। सरपंच रै दबदबै सूं पुलिस थाणो कीं नीं कर सक्यो। गांव में मेळो मचग्यो। लोग लाधू री पीठ थपथपावता रह्या-वाह भाई लाधू, वाह! थारो तो जलम सुधरग्यो। तूं भव-भव सूं तिरग्यो। थारी जमीन माथै जुगां-जुगां तांई अलेखूं लोगों रा माथा झुकती।

पण लाधू गतागम में पज्योड़ो कीं पड़ूतर नीं देवै।

समाधि में बिराज्यां पैली बाबै च्यारूंमेर ऊभी भीड़ नै कह्यो हो—सुणो रे लोगां! कोई रोग-दोग हुवै का सांप-परडोटियो काट जावै तो समाधि रै कनै ऊभा इण नीमड़ै रा पत्ता खवाय दीजो। सै ठीक हुय जासी।

अेन सड़क माथै अर बस स्टैंड कनै लाधू रै खेत में भीड़ रो थट्ट लागग्यो। मिनख मावै आथ नीं। सड़क माथै हुय’र जावणवाळी सवार्‌यां आपरी गाडी ढाबै अर बाबै नै घोक’र आगै जावै। बाबै पूनम रै दिन मंगळवार नै समाधि लीवी। अबै पूनम अर आयै मंगळवार उठै सांतरो मेळो भरीजै। दूर-दूर तांई बाबै रा परचा चावा हुयग्या। हर संकट में लोग बाबै नै धोक देवण नै आवै। देखतां-देखतां काची समाधि माथै पक्को मंदिर बणग्यो। गांव रा पंच-सरपंच अर कनलै शहर रा कीं मौजीज मिनखां मिल’र अेक समाधि कमेटी बणाय लीवी।

रोजीना इकांतरै जद कदैई समाधि री दान-पेटी खुलै जणा नोटां सूं भरी लाधै। सरपंच रो काको समाधि रो पुजारी बणग्यो। अबै तो समाधि रो च्यारूंमेर दुकानां बणगी। उणामें बावै री फोटूवां, पूजा रो सामान अर बाबै रै परचां री पोथ्यां मिलण लागगी।

कनलै शहर रै अेक दानी सेठ समाधि रै कनै अेक धरमसाळ बणवाय दी। धरमसाळ रै अड़ोअड़ अेक-दो होटलां खुलगी।

लाधू गतागम में पज्योड़ो हो। उणनै समझ में नीं आवै हो कै बो कांई करैं? माथै चौमासो आयो। सगळा आप-आपरा खेतां में करसण करसी। पण उणरो आपरो खेत तो सुक्यारथ री भेंट चढ़ग्यो। बो खेत री कीमत लेवणी चावै हो पण न्यात-जातवाळां उणनै बरज दियो। बांरो विचार हो कै इणसूं पूरी न्यात रो भूंडो लागसी।

लाधू सरपंच नै दूजी जमीन दिरावण सारू निरी गरज करी पण अबै तो उण कान गिनारो कर लियो।

छेवट कायो हुय’र अेक दिन उण सरपंच रो बाहुड़ो झाल लियो-सरपंच सा’ब! म्हनै कठैई दूजी जमीन दिरावो, नीं जणा अेक काम और कर सको आप।

सरपंच नै जमीन दिरावणावाळी बात तो समझ में आयगी पण दूजो काम दिमाग में नीं बैठो। उण पूछ्यो-दूजो फेर कांई काम है? पइसा तो तूं लेवण री ना दियोड़ी है...।

—पइसा म्हारै नीं चाइजै...।

—तो पछै कांई चाइजै?

—म्हनै समाधि रै अड़ोअड़ अेक दुकान दिराय दो। इणसूं म्हारो गुजारो चाल जासी।

सरपंच नै उणरी इण बात माथै घणो अचंभो हुयो। नीच जात हुय’र समाधि रै अड़ोअड़ दुकान करसी? कठैई इणरो दिमाग तो खराब नीं हुयग्यो? पण सरपंच गाढ राख्यो।

—देख रे बावळा, म्हनै दुकान देवण में कोई अेतराज कोनी पण दुकान देखण रा रूळ घणा करड़ा है।

—म्हारै तो खेत साव मुफत में दियोड़ो है। रूळ तो आप चावो जियां कर सको।

पण म्हारै अेकला रै हाय री बात कोनी अबै। समाधि री कमेटी बण्योड़ी है। नियम मुजब हरअेक दुकान रो सालीणो भाड़ो छह हजार रिपिया है। दस हजार रिपिया अेडवांस न्यारा देवणा पड़ै। थनै पोसावै तो देख लै। थारै वास्तै कीं रियायत कर सकां।

—आपरै भाणजां अर धरमसाळ वाळा सेठजी नै तो आप च्यार-च्यार दुकानां अेकण सागै दीवी है।

—ले, तूं तो टीका करण लागग्यो। पण म्हारै अठै कोई रिश्तेदारी कोनी। सुण, भाणेज आपरा खेत समाधि रै नांव मंडाया है अर सेठजी नै धरमसाळ चिणायां पैली कौल कर्‌याड़ो हो। कच्चो काम म्हारै कोनी हुवै...। इत्तो कह परो सरपंच तो टुर बहीर हुयो।

लाधू रै समझ में नीं बैठी कै बो कांई करै। अचाणचक उणरै दिमाग में अेक बात ऊकली। उण दौड़’र सरपंच रो बाहुड़ो झाल्यो अर कह्यो—सुणलो सरपंच सा’ब! कान खोल’र सुणलो। म्हैं थांरै खेत में समाधि लेवूंला। पण पूनम नै नीं, कालै अमावस नै ई। दोवड़ी समाधि सूं गांव री पुण्याई घणी बधैला।

सरपंच झटको देय’र हाथ छुडावतो बोल्यो—इयांकली बावळी बातां नीं करणी। धूड़ में दब’र मरणै में कीं सार कोनी! थोड़ो नठाव राख.... थारै सै ठीक करसां।

स्रोत
  • पोथी : उकरास ,
  • सिरजक : चेतन स्वामी ,
  • संपादक : सांवर दइया ,
  • प्रकाशक : राजस्थानी भाषा साहित्य एवं संस्कृति अकादमी ,
  • संस्करण : प्रथम संस्करण
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