गुवाड में अर पछै पगार में कुजरबो खूंटो आखै गांव री आंख्यां में रेत रै रावड़ियै री तरियां रड़कतो हो, पण किण रो मकदूर कै इण खूंटै नैं कोई उपाड़ अळगो राळै। गांव में एक आदमी इसो हो जिको जे धार लेवतो तो इण खूंटै नैं उपाड़’र कड़खै बगाय सकै हो, पण निजोरी री तो बात ही कै बो आदमी आसाम कानी मुसाफरी माथै गयोड़ो हो। उण नैं दो बरस हुवण नैं लाग्या है अर आं दो बरसां में डांगी बेजोगतो खूंटो गांव री गुवाड़ में रोप राळ्यो।

डांगी रै जद खूंडकी भैंस ही जणां बो उण नैं इण खूंटै सूं पेंखड्तो हो।

डांगी रै देखादेखी बीजै लोगां भी आप-आपरा खूंटा गुवाड़ में रोपणा चाया, पण डांगी आपरै खूंटै रै बरोबर किणी नैं खूंटो रोपण दियो कोनी। जे किणी ‘च्यार लाठी चौधरी, पांच लाठी पंच’रै बैम में खूंटो रोपणो तेवड़्यो तो डांगी उण नैं खूंडकी भैंस आळो पोठो घात’र अैड़ो घसड़कायो कै उण रो खूंटो रोपणो तो कड़खै, जे कठै उण रो डोको रोप्योड़ो हो बो भी उण उपाड़ ओळांतरै नाख्यो।

डांगी रो खूंटो उपाड़नै री बात तो दूर रैयी कोई आपरो खूंटो गुवाड़ में को रोप सक्यो नीं! गांव में अैड़ै संजोरै आदम्या री कमी को ही नीं कै कोई इण खूंटै नैं उपाड परियां नीं नांख सकै! पण खाली डील रै हांगै सूं तो सगळा काम को निठै नीं। कईं दूसरो जोर भी तो कनैं हुवणो चाईजै। कईं बारलो अर कई मांयलो जोर! जिको पण किणी कनैं कांटै तोल्योड़ो होवै कोनी अर उण बिना तो खूंटो उपड़तो हो अर ना रोपीजतो हो।

डांगी जिकै दिन खूंटो रोप्यो हो, आखै गांव में डांगी अर उण रै इण खूंटै रो जिकरो हो। डांगी रै घर में भी उण दिन तेल-सो तळीज्यो, पण बात हाथां-बाथां को रैयी नीं। अठीनैं गुवाड़ में खूंटो रोपण सारू खड़‌को उपड़‌तो हो अर उठीनैं डांगी रै आंगण में खाडो पड़तो हो। गांव कानाबाती करै हो अर डांगी रो बाप रोळा। बाप कैवै हो, म्हारो जमारो बिगड़ग्यो, धोळा भांडीजग्या। डांगी री मा च्यार-च्यार चोसरा नांखै ही। उण री जोड़ायत आपरो ओढणियो मूंधो नांख लियो हो। डांगी रै बाप रै मन में रह-रह विचार घिरोळा मारता हा कै “घर में पीतळी-सी बाजरी है, समैं सारू धार है अर बावण नैं खेत है। मोकळो गुवाड़ो है अर गुवाड़ै लारै बाड़ो है। हाथ फोर्‌यो फुरै है इसो सरतर है। गुवाड़ में खूंटो रुपसी अर घर आळा खूंटा खुलसी।”

गांव में इण बात री बात चल खड़ी रैयी ही कै आवतो-जावतो कोई आखड़’र पड़सी। रात-बिरात किणी रा दांत टूटसी। खूंटो खोटो।

पण कैवणो अर सोचणो बेअरथो गयो। मा-बाप तो बूढा राड़ हुयग्या अर गांव आळां रो के! हाथी लारै इयां कुत्ता भूंस्या करै। सोच’र डांगी किणी नैं धार्‌या नईं। डांगी खूंटो रोप’र रैयो।

एक दिन इण खूंटाळी जगां पंचायती आळो भैंसो अर रावळियो भैंसो आपस में जुट पड़्या। पैलां तो रावळियै भैंसै हुड़ी दी जणां पंचायती आळो भैंसो खूंटै में पेटसुवाणी जावतो पड़्यो, कई भां में पेट चीरीजग्यो, पण पाछो खार खाय’र रावळियै भैंसे सूं अैड़ी भचभेड़ी खाई कै रावळियो भैंसो च्यारूं पगां सूं ऊंचो हुय’र देय खूंटै रै मांय। इण ताण पड़नैं सूं रावळियै भैंसै री लारली दोय पांसळ्यां भांजगी।

बात-बात पर बात आयगी अर दो जणा ‘फोट स्याबास’ देवता गुवाड़ में बैठ्या आपस में जुट पड़्या। लोगां बीच में पड़’र दोनां नै देय टिप्पो’र न्यारा कर्‌या। एक जणो खा टिप्पो’र खूंटै रै मांय जावतो पड़्यो। खूंटै में पड़्नै सूं बापड़ै रा दांत गिटीजग्या। लोग ‘रै रै’ करता रैयग्या। इण पछै गुवाड़ में हथाई हुवणी बंद हुयगी। क्यूं कै नीं जाणै कुण कणां खूंटै सूं जाय टकरावै।

सामलै घर रो छोरो, जुवान मोट्यार, छायां कानी देख’र चालै। ऊभै कांधै घर चर्‌योड़ो। मल्ल जिसो लागै पण बारली हवा सूं ओटै रैयोड़ो। जोर सूं धोयोड़ो जाय खूंटै सूं खस्यो। लोगां समझायो पण धार धारी नईं। दूसरै दिन छोरै री मा आपरै पळींडै में पाणी पीवै ही इतरै में एक जणै ओछळती भींतळी अूपरांकर हाथ काढ’र कैयो-ल्यो चिट्ठी!

चिट्ठी रो नांव सुणतां छोरै री मा माथै जाणै बजराक पड़ग्यो हुवै। बा “चिट्ठी! चिट्ठी।” करती रैगी अर चिट्ठी देवण आळो आपरो मारग लियो।

पढेसरी चिट्ठी बांची। छोरै रो बाप तीन दिन हुया समाईजग्यो। छोरै आपरै मूंडै री राख उतारी, न्यात भेळी हुई।

लोगां अगूणै पासै खे उडती देखी। लोगां रा मूंडा काळा पड़ग्या, थाणैदार छोरै नैं अर न्यात पंचां नैं पूछतो हो कै साची-साची कैवो लाडू कठै लको’र राख्या है। छोरो बिरगरायोड़ो सो बोल्यो, “बाप री सोगन, आं चावळां रै दाणां रो जुगाड़ मुसकल सूं बैठ्यो है।”

छोरो मचकाईजतो हो। इतरै में उण रो बाप थाणैदार सामैं कैवै हो, ‘बापजी छोरो म्हारो है, छोड़ दिरावो। थाणैदार री बेंत पर डांगी उण रै सामैं हो। काल री बात अर आज रो दिन। डांगी रो खूंटो साव खुलग्यो हो पण नूंवा खूंटा गुवाड़-गुवाड़ अर गळी-गळी में रोपीज्योड़ा हा।

स्रोत
  • पोथी : आज रा कहाणीकार ,
  • सिरजक : सूर्यशंकर पारी ,
  • संपादक : रावत सारस्वत ,
  • प्रकाशक : राजस्थान भासा प्रचार सभा ,
  • संस्करण : प्रथम संस्करण
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