—मां, रोटी....। पगां रै लूमतो राजू बोल्यो—म्हनै भूख लाग मेली है मां! सोना बींरै सूखै मूंढै कानी देख्यो। रोटी रो सलीको बींरा खेत, बींरी बा चवदै किलो दूध देवणवाळी गाय, भूरती बकरी, मुड़योड़ा सींगांवाळी भैंस, धोळियो बळद बींरी आंख्या में फिरै लाग्या। दोरी हुयोड़ी रोटी माथै बींरी आंखो सोच टिकग्यो। भरपूर फसल, भर्‌योड़ो खळो, नाज रै बोझ सूं दबती गाडी बींरी आंख्यां मांयकर निसरबा लागी। चाणचूकै खुड्डी कानी खुड़को हुयो। बींरो ध्यान टूट्यो। उण लांबी सांस लीवी। राजू नै लेय’र खुड्डी कानी गई परी।

महानगर रै लांबै-लांबै हाथां ने आछी तरियां दिखावतो उपनगर-मालवीय नगर। ईं नुंवै नगर मांय उबासी लेवता कतार में ऊभा हाउसिंग बोर्ड रा बण्योड़ा मकान— धूळ सूं ऊभा कर्‌योड़ा, धोळप सूं चमकायोड़ा। बीचोबीच कठै-कठै कच्चा टापरा है जिकां रो इतिहास आं मकानां तळै दब मेल्यो है। इण बस्ती रै बीच में माटी रो छोटो-सो घर है। सिर पर जिणरै घास-फूस है। डील उघाड़ो है। इण जूनै घर माथै ऊभा रूंख छाती दे राखी है। फळसै कनै खेजड़ी है। अेक आधी पड़्योड़ी उदास झूंपड़ी है। झूंपड़ी कनै खुड्डी अर टैणा री नेक टपरी है। सोना आं इज छान-झूंपड़ां माथै छाती दियां बैठी है।

खुड्डी में सासू अर देवर रैवै। अठै सासू-बहू दोनूं खाणो बणावै। टैणा री टपरी मांय पांच जीव जी लुकावै—

सोना, उणरो धणी अर तीन टाबर। कनै इज बींरै जेठ-जेठाणी रा छान—झूंपड़ा है।

सोना रोटी बणा लीनी। डोकरी चून ओसणै ही। कनै जीवाराम बैठ्यो है। डोकरी नै देख गहरी संवेदना में भर बो बोल्यो—दो रोटी डोकरी मां नै पो’र दे देवो तो के हाथ बस जावै? सोना कीं नीं बोली। जीवाराम री निजरां लोह री परात में चून बोसणती डोकरी पर टिकगी। कोई साठ सूं ऊपर उमर... दो-दो बेटा-बहुवां... अर बुढापो बींरी आंख्यां सांम्है लैण में ऊभा हा। डोकरी ऊकडू हुई चून पर जोर दे-दे बींनैं नरम करबा में लाग मेली ही, अर जीवाराम री निजरां मुकरता संबंधां नै ओळखै ही। सोना रोट्यां नै थाळी मांय मेल टपरी कानी गई परी।

बा डोकरी रै बिचलोड़ै बेटै री बहू ही। जीवाराम इण बस्ती में हाउसिंग बोर्ड रै मकानां में आयोड़ो बांरी बिरादरी रो हो। बो खुड़ी में बैठ्यो हो। बींरै कनै डोकरी रो छोटो-ई-छोटो बेटो ग्यारसियो बैठ्यो कापी में स्कूल रो काम करै हो। बो ग्यारसियै कानी निजरां फेरी अर बूझ्यो—कुणसी क्लास में पढै?

ग्यारसिये री उमर कोई तेरह-चवदै साल री हुयगी ही। फीकै चेहरै सूं लागतो कै बाळपणो दोरप में निसरै है। जीवाराम फेरूं डोकरी कानी निजरां फेरी अर बुझ्यो—खरचो कियां चलावै डोकरी मां?

—रामजी चलावै बेटा!

रामजी पर जीवाराम नै विश्वास नीं हुयो। बो फेरूं बोल्यो— कियां?

—आथण रा आय’र औ...। ग्यारसियै कानी हाथ करती बा बोली-साग-सब्जी बेचै।

—कित्ताक पइसा बच जावै?

इतरै में सोना पाछी आयगी। बोली— इयांई दिन-तोड़ी करां, बचै के! कोई दो-च्यार रिपिया, पण के करां।

—दो-च्यार रिपियां में काम चाल जावै?

—चालै तो कोनी पण चलाणो पड़ै। डोकरी बोली। सोना कैवै ही—म्हांरो कोई जीणै में जीणो है।

दो-च्यार रिपिया ई, बस! बो मन-ई-मन बोल्यो अर बोलबालो हुयग्यो।

आज बो दिनूगै-दिनूगै सोना रै काम सूं आयो हो। उणरी पाड़ोसण बींनै तंग करै ही। जद जीवाराम री बहू दिनूगै दूध लेवण नै आई तो बा उणनै कह्यो हो— राम, पिल्ली रै पापा नै जरूर भेजज्यो...

तीन-च्यार बरसां पैली तो अठै लोगां रा खेत हा। बै अठै मोकळो धान अर सब्जी उगावता अर मजै सूं गुजरान चलावता। पण अबै बरबादी!

अेक दिन शहर ऊफण पड़्यो। समंदर री दांई बहा लेयग्यो—खेत, खळा अर रिजक-रोटी! खेतां पर खड़्या हुयग्या मकान-ई-मकान! हळ भर खळा दबग्या आंरै तळै। दूर-दूर तांई खेतां रो नांव-निसाण कोनी। हळसोतियै री बात कठै? जठै हरियाळी रमती उठै अबै सूना आबहीण ढूंढा। धरती रा हिमायती उजड़ग्या। किरसाण साफ, जमीन साफ!

इण उपनगर में जठै लोगां रा छान- झूंपड़ा है, बांनै भी उठै सुं हटावण खातर कोरट में जी तोड़ कोशिश चालै है। जठै नीं जाणै कित्ताई बरसां सूं अै लोग बस्योड़ा है उठै बांनै अबै रैवण नीं दियो जावैला। जठै आंरा पुरखा आपरै गाढै पसेवै सूं हेमाणी मेली बा अबै नाश हुवैला। सरकार, शहर अर अै लोग! आपरा घरां नै बचावण सारू अै लोग मुआवजो हाथां में लियां कोरट रा चक्कर लगाय रह्या है। पण कियां बचावैला अै आपरा घूरसाळा? अर ऊपर सूं अठै आवण वाळा पढ़्या-लिख्या लोग आंनै सतावै, लूण बुरकावै।

सोना आपटी टाबरी से अस्तित्व बचाणै रा जतन करै। उणरै देवर नै गरीबी मूंढै में घाल्यां बैठी है। बींरो बस कोनी चालैं। जेठ भी गरीबी सूं जूझ रह्यो है। सासू कळपै। ग्यारसिया खातर बा जीवै जिण सारू भी पाड़ोस में आई ठकराणी कैवै—बारै काढ। खा जावूंली। मेरी भैंस रै लाठी मारी। ग्याभ गिरग्यो। कित्ताक दिन मांयनै राखसी। बींरा छोरा लाठी लियां फिरै। ग्यारसियो आयोड़ी भैंस नै चिनेक घेर दीनी ही। दे ली हुवैला। पण राड़ रै कोई हाथ-पग थोड़ा इज हुवै। डरा’र राखणै री कोशिश। पाड़ोसी कोई बोलै कोनी। हां में हां करण सारू बींरी जात रो अेक बींरै डोळ रो घर। राड़-गोधम। डोकरी नै लारला दिन याद आय जावता। बींरी आंख्यां भर आवती। कदै तो बा सोचती, इण बरबादी सूं बच’र कठैई चली जावै।

अेक दिन घरां रै मूंढांगै सूं एक गंडक भौं-भौं कर गयो परो। आथण रा बाबू (सोना रो धणी) आयो तो बा बोली—हाउसिंग बोर्डवाळो बो नोल्यो (जे. ई. एन. नवल) आयो हो। कैवै हो—अै झोंपड़ी-झांपड़ी उठा लीजो, नहीं जणा काल म्हैं नंखवा देवूंला।

भूखो हुसी बापड़ो। टुकड़ो नांख देती। कोरट में भी तो देवां हां। मुआवजो आं तांई मिल्यो है। उण निसकारो नांख्यो। बाबू रो मन कियां करै लागो। बो कैवै हो—के दिन है, राजू री मां! बापू अठै बैठ’र चिलम पीवता।...मां कनै बैठ’र कलेवो घालती। आपां पाणत करता अर मां रो हेलो आवतो—अरे आज्याबो! पैलां कलेवो करल्यो।... अर आज? घेलै रै आदमी री सुणणी, कोरट रा चक्कर लगाणा, मार्‌या-मार्‌या मुंह लटकायां मजूरी खातर फिरणो...। कहतां-कहतां बाबू रो गळो भरीजग्यो। रूंधेड़ै गलै सूं बो बोल्यो—कियांई लागै...पण के हुवै।

फळसै माथै ऊभी खेजड़ी हवा रै जरा-सैक लहरकै सूं हाल उठती। सोना रो सुभाव इसो हो। सदा ठीमर अर चुप रैवणवाळी रै अबै कदै कीं कदै कीं री चरचा सूं बेचैनी रैवती। जिण घर माथै बा छाती दियां बैठी ही बो फगत ढांचो इज हो पण सोना रो बो सरग हो, महल हो, स्सो कीं हो बींरो।

डोकरी इण माटी रै घर रै जरा-सीक आंच नीं आवण देती। बींरै परिवार री छीयां ही। बींरी खुद री जागा ही। हाउसिंग बोर्डवाळा आवता तो बा बांनै सुणा देवती—थांनै चाय-पाणी रा पइसा चाइजै तो सीधा-सीधा मांग लिया करो। मकान खिंडाणै री तो दूर, थे इणरै हाथ नीं लगाय सको। राज हार रह्यो है इणसूं...। बै डोकरी रै मूंढै नै देखबा लाग जावता।

आज पेशी ही। बाबू आय’र याद दिराई तो डोकरी बोली—बाबू देख, भगवान भी ठालो बैठ्यो आपणै के रोग लगायो है। बेमाता रा भी आखर खुटग्या बेटा इणी वास्तै। अेक हाथ सूं आंख पूंछ’र बा बोली—जमीं तो माता ही बेटा। बींरै जावतां आखो सहारो खुटग्यो। मुसीबतां रा डूंगर आय’र ऊभा हुयग्या। कैवतां-कैवतां डोकरी री आंख्यां फेरूं गीली हुयगी। आंख्यां पूंछ’र बा बोली-तूं जा!

बाबू सूं उठीज्यो कोनी। डोकरी बोली—इयां के कायरी लावै! म्हनै तो छपनो याद है। जीवता रैसी नर तो और बणासी घर। मेहनत आपणा प्राण है, बेटा!

सजळ आंख्यां पूंछ’र बाबू गयो परो। बींरै जावतां दुरगा आयगी। बाबू बींनै सदांई मीणी मासी कैवतो अर टाबरिया दादी मां। किणी नै ठाह नीं पड़तो कै आंरी दो जात है। आवतां बा बोली—दाखी, कांई कर है?

बैठी हूं बाई, जा!

अबै तो बैठणो-ई-बैठणो है। खेत में तो कींरै जावां। दुरगा कह्यो। डोकरी बोली—खेत री तो बात दूर बाई, अबै तो टापरां री मंड मेली है। आज बाबू पेशी पर गयो है।

—म्हारै भी बै गया है, भाण! राम जाणै अठै रैवणो हुसी कै नीं। लांबी सांस लेय’र बा बोली—अबै तो राम है, कै राज है। फेरूं लांबी सांस लीनी अर बात बदळती थकी कह्यो—सण्यो है, ठकराणी सोना रै लारै पड़ मेली है।

—आदमी रै लारै पड़बा सूं कांई हुवै है, भांण! आपणै तो राम लारै पड़ मेल्यो है।

कांई कैवै है बा?

—कैवै है, हथकड़ी पैरावूंली। मारसूं। म्हारै आदम्यां सूं हाथ-पग तुड़ावूंली।

—इयां आपणै हाथां में के चूड़ी है? खा जावां! आज म्हैं हरदेवा नै कैवूंली। बो रांड री भैंस खोल लेय जावैलो। पछै रैसी बांस, बाजसी बंसरी। जे कान्या होर नै कह दियो तो बो रांड नै समूळी नै उठाय लेय जावैलो!

—आपणो कांई लेवै है बाई! बक-बक कर आपूं आप रह जासी।

—नहीं भांण! गोलै रो गुरु जूतो हुवै।

बै बातां करती रही।

भूखा मरता कांई करता! खेतीखड़ां नै मजूरी री आदत पड़ी। ज्यूं-ज्यूं बस्ती बसी, बस्तीवाळां रा दिन फिर्‌या। समझदार लोग नुंवा रुजगार सोध लिया। डोकरी रा बेटा दिनूगै-सिंझ्या दूध बेच लेवता। बीच में सब्जी लेय आवता। बा दही बिलोवती तो लोग छाछ कोनी छोडता। झटदेणी पइसा बंट जावता। बै पुराणी बातां भूलबा लागग्या। पण अचाणचक अेक दिन बां माथै गाज पड़गी। रोवती बिलखती सोना अर बींरी जेठाणी सामान भेळो करै ही। चौक राज रा अफसरां अर सिपाहियां सूं भर मेल्यो हो। अबै बै कठै जावैला? सगळां रै सांम्है सवाल।

डोकरी नै गहरी झाळ उठी। बा बोली— म्हारी जमीं लेय’र थे म्हांनै बरवाद कर दिया। अजै कोनी धाप्या? अबै थे म्हारो घर घोसबा नै आया हो। के मांगो हो म्हारै कन्नै? के लियो है म्हैं थांसूं? थारी सरकार सूं? घर छोड’र म्हैं रुळता फिरां? म्हारै सुसरोजी रो घर है। म्हैं इण में परणी आई अर अबै आडी जावूंली।

बा सोट उठा’र लाई अर बोली—जावो हो कै नीं?

सगळां री निजरां डोकरी माथै लागगी। सै हेफ लियां देखै हा। जीवाराम रै दिमाग में समंदर हबोळां आयग्यो। लहरां उछळ-उछळ किनारा काटण लागी। बो कैवै हो—मां शहर रै किनारै रैवणो अर समंदर रै किनारै रैवणो दोनूं इकसार है।...

इतरै में राज रा सिपाही डोकरी रै हाथ सूं लाठी खोस लीनी।

स्रोत
  • पोथी : उकरास ,
  • सिरजक : बी. एल. माळी ‘अशांत’ ,
  • संपादक : सांवर दइया ,
  • प्रकाशक : राजस्थानी भाषा साहित्य एवं संस्कृति अकादमी ,
  • संस्करण : प्रथम संस्करण
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