गांव में फगत अेक बस आवै। बाकी आवण-जावण रो कोई साधन कोनी। दिनूंगै जे बस चूकग्या तो पछै मौज करो। गई पूरा चौबीस घंटां री। इण कारण अमूमन लोग पाव आधो घंटो बेगा संधै अर बस स्टैंड माथै जायनै बैठ जावै। पछै कच्चै रूट सूं आवती बस नै आंख्यां फाड़-फाड़नै मेह रै ज्यूं उडीकता रैवै। दूर सूं सांकड़ा सेरिया में जद धूड़ रा गैतूळ उड़ता निंगै आवै तद लोग समझ जावै के बस आयरी है। सगळा सावचेत होयनै ऊभ जावै। बस में चढणो कोई मामूली बात कोनी। ओलंपिक री कुश्ती जीतणी है। जितरा मुसाफर बस में होवै, उणसूं बेसी ऊपर अर च्यारूंमेर लटकता लाधै। इण सगळां सूं बाथौड़ा करनै बस में घुसणो घणै पराक्रम रो काम है। अेक पग टेकनै अेक हाथ सूं हत्थो पकड़्यां लटकता मुसाफर नै कोलबंस सूं कम कियां गिण सकां? अेक दिन री नीं पण तीसूं तारीख रोजीना री हालत है।

इण वास्तै प्रोफेसर प्रवीण कुमार आपरी डोकरी मा नै अेक दिन पैलीज चेताय दियो “मा कालै बेगौ संभणो है। बस में गिड़दी घणी आवै। वेळा कियां तो बस में जगै मिळणी दोरी है। इण वास्तै थारै पंखेरुआं नै चुग्गो, तुळसी नै पाणी अर ठाकुरजी री सेवा पूजा सगळा काम टैमसर फुरती सूं निवेड़ लीजै। जे बस चूकग्या तो पाछी दूजै दिन मिळसी अर म्हारै छुट्टी फगत अेक दिन री’ज बाकी रही है।”

“सै निवड़ जासी रे बेटा!” डोकरी अणमणै भाव सूं कह्यो अर अेक ऊंडी निसासा नांख’र खरी मीट सूं दरवाजै कानी देखण लागी।

प्रवीण कुमार डोकरी मा री मानसिकता नै अच्छी तरियां समझै। घर-गांव छोड़नै शहर में जावणो उणरै वास्तै माथै रो घाव, पण अबै दूजो कोई रस्तो तो नीं। प्रोफेसर लारला बीस बरसां सूं शहर में नौकरी करै। लुगाई टाबर सागै रैवै। कारण टाबर सगळा स्कूल-कॉलेजां में पढै। पण डोकरी अेकली गांव में रैवै। उण आखी उमर गांव में बिताय दी इण वास्तै शहर री जिंदगी उणनै रास नीं आवै। बेटा-बहू घणा इज लारै पड़ै तो च्यार दिन टाबरां कनै रैय आवै पण छेवट गांव आयां नेहचो होवै। शहर में फ्लेट री जिंदगी उणनै कैद रै उनमान लखावै। हर वखत दरवाजा बंद करनै दड़बै में बैठा रैवो। कियां होय सकै? आखी उमर खुलै आभै रै नीचै आजादी सूं विचरण कियोड़ै प्राणी रो इण वातावरण में जीव अमूझण सो लागै। उठै कठै वा गांव वाळी बात-बंतळावण, उठक-बैठक, कथा-वारता, भजन-भाव अर भाई-सैण सूं मेळ मुलाकात। थोड़ाक दिन होवै के इण कैदखाने में डोकरी रो जीव तो जाणै अमूंझण लागै अर छेवट बेटै नै कैवणो पड़ै- “प्रवीण, म्हनै तो अबै गांव पूगाय दे रे दीकरा! म्हारो अठै मन नीं लागै।”

पण डोकरी रै शरीर में गाढ हो जितरै तो कोई बात नीं ही। वा आपरो धाको मजै सूं धिकावती अर बेटो आपरै लुगाई-टाबरां सागै मजै सूं बारै रैवतो। पण दिन दिन डोकरी रा हाला थाकण लाग्या तो बेटा नै चिंता रैवण लागी। दिन आयां देवळ डिगै रै मुताबिक सदीव निरोग रैवण वाळी डोकरी अबै साजी-मांदी रैवण लागी अर आंख्यां री रोशनी मंद पड़ण लागी तो बेटै उणनै आपरै सागै लिजावण री हर करी। डोकरी मन में समझगी के अबै दूजो कोई उपाव कोनीं।

पण ज्यूं-ज्यूं घर छोडण रा दिन नैड़ा आवण लाग्या डोकरी रो मन उदास रैवण लाग्यो। उणनै मन में पक्की जंचगी कै अेकर घर छोड्यां पछै वा इण घर री पेढी पाछी नीं चढैला। इण गांव रा झाड़का पाछा नीं देखैला। उणरी निजरां सामी गांव रा कई डोकरा मिनख आपरा बेटा-बहूवां सागै देस दिसावर गया तो पाछा गांव आवण सारू तरसता रैयग्या। कई तो उठै प्राण त्यागनै असैंधा भूतां में भिळग्या। डोकरी नै पक्की जंचगी के उणरी पण सागण हालत होवणी है।

मा नै निस्कारा नांखती देख’र बेटो विचार में पड़ग्यो। शहर में मा रो मन लागै नीं अर गांव में अबै इणनै अेकली छोड़ीजै नीं। इतरा दिन तो खैर आपरै पंड री छांटी काढ लेवती इण वास्तै कोई दैंण-दुआळ नीं हो। पण अबै इणनै अठै किणरै भरोसै छोडणी? कालै कोई ओछी-वत्ती होयगी तो दुनिया माजनै में धूड़ घालसी के लो सा कमाऊ अर भणिया-गुणिया बेटा! छेहली उमर में खुद री मा नै कोनीं संभाळ सक्या।

फेर दुनिया पड़ो खाडै में, खुद रो मन कियां पतीजै? लारलै महीनै इणनै कीं दिन ताव-तप आयो तो बतावै के दो दिन भूखी तिरसी’ज पड़ी रही। आड़ोसी-पाड़ोसी सगळा इणरै वास्तै जीव काढै पण घर रा मिनख री होड कियां कर सकै?

डोकरी नैं विचार में पड़ी देख’र उणै कह्यो- “मा!”

“कांई बेटा?” डोकरी जाणै ऊंडै कुवै सूं बोली।

“थूं इतरी विचार में कियां पड़गी?”

“कीं कोनों, यूं रे बेटा।”

“थूं सोचती होसी के प्रवीण म्हनै सदीव रै वास्तै गांव छुड़ाय रह्यो है।”

“नारे ना, बात कोनी।”

“तो कांई बात है मा?”

“म्हैं सोचूं के वखत रै सागै कितरो बदळाव आयग्यो।”

“कियां मा?”

“कियां कांई गांवड़ा में परंपरा सूं सगळा कुटुंब भेळा रैवता पण अबै इण अर्थ तंत्र रा चक्कर में सगळाई कण-कण रा होयग्या। माईत कठैई तो औळाद कठैई। अेक भाई कठैई तो दूजो कठैई।”

“पैली सगळां रै खेती रो धंधो हो मा, इण वास्तै पीढियां लग अेकण ठायै सै भेळा रैवता। पण अबै धंधेवाड़ी अर नौकरियां रै कारण अेकण ठायै भेळो रैवणो संभव कोनीं।”

“आ तो म्हैं कैवू रे बेटा के कुटुंब री अपणायत सै खतम हुयगी। नणद, भौजाई रो मूंढो देखण सारू तरस जावै अर पोता-पोती दादा-दादी सूं अणजाण रैय जावै। कोई अेक दूजै रा सुख-दुख में काम नीं आय सकै। कुटुंब तो अंगांई बिखरग्या।”

“अबै इणरो तो कांई इलाज होवै मा? अेकण ठायै बैठ्यां पेट भराई होवै कोनीं इण वास्तै घर तो छोड़णो पड़ै।”

“आपणै गांव में तीन सौ घरां री बस्ती है। पैली सगळाई खेती करता। लारली पीढी बारै जावण लागी। पण परिवार सगळा गांव में रैवता। घर घर गायां-भैस्यां रो धपटमो धीणो-धापो रैवतो। सोरा सुखी परिवार हा। तो टाबरपण में सै थारै निजरां देख्योड़ो है। पछै लोग कुटुम्ब समेत बारै जावण लाग्या। आज आधा घर ताळा लाग्योड़ा सूना पड़्या है जिणां में कबूतर गटरगूं करै अर आधां में बूढा-ठाडा मिनख बैठा है जिको कियां करनै उमर रा दिन ओछा करै।”

“बात तो थारी साची है मा।”

“अर अबै तो सगळा घरां रो हाल है। जिको टाबर पढ लिख ले वो मोटो हुयां गांव छोड़ दे। म्हनै लागै के गांव धीरै-धीरै उजड़ जासी अर शहरों में मानखो कीड़ियां रै ज्यूं किलबिलावण लाग जासी। जिणां में कीं विद्या, बुद्धि, हिम्मत अर कणूंका है वे गांव छोड़ छोड़नै जाय रह्या है, पछै लारै तो फगत भींगार रैय जासी।”

प्रवीणकुमार सोचण लाग्यो के मा अणपढ होवता थकांई हरेक बात नै कितरी गेहराई सूं सोचै। वास्तव में गांव आज उजड़ रह्या है अर शहर बस रह्या है। अेक विश्वव्यापी समस्या है। इणरै सागै मोटै दुख री बात के गांवां रो आदू अर जम्यो-जमायो मूळ ढांचो बिखर रह्यो है अर उणरी ठौड़ नुवै अर सुधार रै नाम जिको कीं आय रह्यो है वो सै उधार लियोड़ो अर अपरोको सो लखावै। इण हिसाब सूं तो गांवई संस्कृति रा मूळ तत्व थोड़ा बरसां में खतम हुय जासी। परिवारां रो आपसी मेळ मिळाप अर संप भूतकाळ री चीज बण जासी। फगत मियां-बीबी अर आपरा टाबर परिवार की परिभाषा में रैय जासी। इणरो भावी पीढी माथै घणो माड़ो असर पड़सी। वा आपरी परंपरा अर संस्कृति सूं सफा अजाण रैयनै आपरी जड़ां सूं कट जासी। उणरी आपरी निजू ‘आईडेनटिटी’ अंगाई खतम हुय जासी। माईत अठै बसै है तो बेटो जाणै कठै जायनै डेरा करसी? मा कैवै ज्यूं गांव अर परिवार दोनूं बरबाद हुय जासी। ओछी राजनीति अर तथाकथित सुधार गांवड़ां रै परम्परागत ढांचै नै अंगाई बिखेर नांखसी तो बिखराव अर व्यक्तिवादी भावना परिवार नाम री चीज नै बरबाद कर देसी। आज परिस्थिति बणगी है के जिको थोड़ो घणा भावनाशील मिनख मन सूं गांव में रैवणी चावै, वां रै रैवणो हाथ कोनी अर जिणांनै अठै सूं कोई भावनात्मक लगाव कोनीं वे अठै मजबूरन बैठा है। वां रै वास्तै ‘जीवो क्यूं के मौत कोनों आवै’ वाळी हालत है।

मा-बेटा दोनूं आमी-सामी बैठा विचार सागर में गोता लगावै हा। घर में सफा सून

बापरयोड़ी ही। छेवट डोकरी मून तोड़ी— “प्रवीण, म्हारी आंख्यां रै इलाज में कितरौक वखत लाग जासी रे बेटा?”

“मा थारै अेक आंख रो मोतियो तो पाकोडो है। उणरो तो तुरंत आपरेशन हुय जासी।”

“फिलहाल अेक आंख सूं साफ दीखण लाग जावै तो म्हैं म्हारै पंडरी छांटी सोरी काढूं। इतरो होय जावै तोई घणो।”

“आपणै मकान में रैवण वास्तै थैं विमला मास्टरणी सूं सावळ बात तो करली है के?”

“राम कृपा सूं सै ठीक हुय जासी मा, यूं चिंता मत कर।

“हां म्हैं उणनै कैय दियो है के म्हानै मकान किरायै री जरूरत कोनीं। थूं बिना किरायै मजै सूं रहीजै पण मकान नै अवेर नै सफाई सूं राखजै।”

“थूं अेकर म्हनै उणसूं मिळाय दे। म्हैं उणनै कीं जरूरी बातां री भळामण घाल दूं।”

“वा तो खुद कैवै ही के म्हनै माजी सूं मिळणो है। सिंझ्या तांई जरूर आय जासी।”

“सीधी-सैणी छोरी है बापड़ी। च्यार साल सूं गांव में रैवै पण कोई रै आंख में घाली कोनी खटकी। इसी सुसील अर भणी-गुणी छोरी नै सुण्यो के उणरै धणी छोड़ दी है।”

“आजकल इसा किस्सा घणा होवै मा। मोकळी नौकरी पेशा महिलावां का तो विधवा लाधसी अर का छोड्यौड़ी।”

“जमानै रे कांई लाय लागगी रे बेटा! धणी-लुगाई रै आपसरी में

कोनीं बणै? कोई बात है? तो बापड़ी फेर च्यार आखर सीख्योड़ी है तो मास्टरणी बणगी। नीं तो गरीब बाप रै गळै पड़ती।”

“इण वास्तै इज तो आज छोरा रै ज्यूं छोरियां नै पढावणी जरूरी हुयगी मा। भावै संजोग जे कोई रा करम फोरा होवै अर कोई कुपात्र सूं पल्लो भेट जावै तो भणी गुणी हुयां लुगाई आपरै पगां माथै तो ऊभी हुय सकै।”

“बात थारी सही है बेटा!”

इतराक में बारै सूं किणै हाको कियो अर मा बेटा री वंतळ बीच में रुकगी।

“कुण होसी?” डोकरी कह्यो।

“आ तो म्हैं। विमला हूं माजी।”

“आव बेटी आव! उमर तो थारी लांबी। अबार म्हे थारी’ज बात करै हा।”

“उमर लांबी होसी तो खुरड़ा बेसी खोतरणा पड़सी माजी। आपरै कनै आवण रो विचार तो सिंझ्या रा निरांत सूं हो पण अबार फुरसत में ही सो आयगी। आप तो कालै पधार जासो?”

“हां काल जावणो है। कांई करूं बाई म्हारो जीव तो इण कुटिया में भमसी पण आंख्यां रो आपरेशन करावणो है अर यूं म्हारी अबै आसंग कोनीं सो जावणो पड़सी।”

“आप निश्चित होयनै पधारौ। घर बाबत आप कोई प्रकार री चिंता मत कराईजो।”

“थनै सूंपनै जावूं पछै चिंता किण बात री? लोग किरायो देवण नै त्यार बैठा है, पण म्हनै पईसां रो लोभ कोनीं। म्हैं तो कह्यो रे भाई, म्हारो मकान झाड़-बुहारनै साफ राखसी अर अवेरसी उणनै बिना किरायै देसूं। म्हनै भाड़ै री जरूरत कोनीं।”

“माजी म्हैं आपरो मकान काच रै उनमान साफ सुथरो राखसूं। आप नेहचो राखजो।”

“म्हनै थारो विश्वास है बेटी! पण थूं दो तीन बातां रो पूरो ध्यान राखजै।”

“आप सगळी बातां म्हनै खुलासै वार समझाय दो माजी। म्हैं पूरो ध्यान राखसूं।”

“पैली बात तो है बेटी के वे देख सामलै आळै में ठाकुर जी महाराज बिराज्या। इण घर में ठाकुरजी री पूजा पीढियां सूं होवती आई है। इण वास्तै थूं दीवो धूप नित रोज करती रहीजै। म्हारै सांवरियै नै अणपूज्या मत राखजै।”

“थारै मोरमुगट बंशीवाळा नै अणपूज्या नीं राखूं माजी!” विमला हंसती थकी

बोली।

“दूजी बात म्हैं लारली जायगा में बरसां सूं नित रोज पंखेरुवां नै चुग्गो नांखूं। इण वास्तै लींप गूंपनै जमीन त्यार कियोड़ी है। दिन उगतांई मोरिया, ढेलड़ियां, सूंवटा, काबरां, चिड़कलियां अर टिलोड़ियां, भांत भांत रा पंछी पंखेरुवां रो अठै मेळो मचै। अै जीवड़ा बरसां सूं अठै हेवा हुयोड़ा है। अेक मोरियो तो अठै आयनै नाचण लागै तो नाचतो जावै।

दूजा पंखेरू चुगता रैवै अर माटो पांखां री छत्तर बणायनै घंटो दो घंटा नाचतो रैवै। इणरो मन धापै तद पांख समेटनै च्यार दाणा चुगले अर उड़ जावै। जे इणां नै दाणो नीं मिळ्यो तो अै पंछीड़ा निराश होय जासी अर इणां री हाय म्हनै लागसी। इण वास्तै थूं चुग्गो नियमित नांखती रहीजै। चुग्गै वास्तै अनाज रो प्रबंध म्हैं करनै जावूं अर जरूरत मुजब करती रहसूं। थूं म्हनै कागद नांख दीजै।...

औरूं- हां अेक जरूरी बात तो भूल गी- वो कनै माटी रो कुंडियौ पड़्यो, इणमें थोड़ो पाणी घालबो करजै। उन्हाळे रो मौसम है सो पंखेरू पाणी पीयनै थनै आसीस देसी। अेक सूंवटो पग सूं खोड़ो है। वो बापड़ो आखो दिन इण कुंडियै कनै इज बैठो रैवै।”

प्रवीणकुमार कनै बैठो मा री बातां ध्यान सूं सुणै हो। मा रै कुटुंब परिवार री बात सुण’र उणरो हिवड़ो भरीजग्यो। वो कीं कैवणी चावतो पण कंठावरोध होय जावण सूं बोल नीं सक्यो।

डोकरी थोड़ी ताळ ठैरनै फेरूं बोली—“देख बेटी आंगणै तुळसी रो थाळो है, ठेट म्हारै दादी सासू रै हाथ रो है। दादीजी रै पेट में कोई कन्या नीं ही। उणां आंगणै तुळसांजी री थापना करनै इणां रो धूमधाम सागै ब्याव रचायो हो। गांव रै ठाकुरद्वारै सूं ठाकुर जी महाराज ठाट बाट सूं जान लेयनै तुळसांजी सूं हथळेवो जोड़ण नै पधारिया हा। तोरण सूं लगायनै चंवरी तकात रा ब्याव रा सगळा नेगचार हुया हा। आखै गांव नै जीमण रो न्यूंतो दिरीज्यो हो। बरसां लग बस्ती अर चौखलै में इण ब्याव री चरचा रही ही। कई बूढा-ठाडा लोग आज उण ब्याव री बातां करै। अेक साधारण पौधो नीं है। उणरै सागै इण घर रो इतिहास पीढियां सूं जुड़्योड़ो है। थनै इणरो विस्तार सूं हाल बतावण रो कारण के थूं इणरै महत्व नै समझ’र इणरी सेवा चाकरी में फरक नीं आवण देवै। थूं इणनै पाणी नित रोज देयबो करजै। मंजरी सूखै ज्यूं उतारबो करजै अर कोई डाळी सूख जावै तो अवेरनै भेळी कर लीजै। वा देख गळियारै में सूखी डाळियां री भारी बंध्योड़ी पड़ी। प्रवीण नै म्हैं कह्योड़ो है सो काठ रै रूप में म्हारी आरोगी में काम आसी। काती महीनै तुळसांजी रै दीवो भरीजै। वो थासूं बण आवै तो करजै नीं तो पाणी री तो कमी मत आवण दीजै। जे तुळसी थाळो सूखग्यो तो म्हैं सूख जासूं अर मरियां मुकोतर नीं जासूं।”

डोकरी री हिदायतां द्रौपदी रा चीर री गळाई वधती जावै ही पण विमला नै पाछो घरां जावण री उतावळ ही। बातां-बातां में सिंझ्या रो अंधारो घिरण लाग्यो अर दीवा बत्ती री वेळा हुयगी। विमला डोकरी नै थावस देवती रवानै हुई तो प्रवीण आपरी ठौड़ सूं उठ्यो अर दीवा बत्ती करण लाग्यो।

गांव आवतो तद ब्याळू करनै हथाई माथै जावण री प्रवीण री ठेट सूं आदत ही। गांव रा बूढा-बडैरां सागै बैठ’र गप-शप करण रो उणनै अणूंतो शौक हो। कई बार तो वो ब्याळू कियां पैलीज उठै पूरा जावतो अर लारै डोकरी बैठी बाट जोयबो करती। खासी रात बीतां घरै आयां वा उणनैं मीठो ओळमो देवती - ब्याळू तो बखतसर कर लिया कर बेटी रा बाप! थारी कांई आदत है? बातां रा ब्याळू सूं तो पेट भरीजै कोनीं। प्रवीण लचकाणो होयनै कैवतो - मा आज तो बातां बातां में अबेळो होयग्यो, कीं ठा कोनीं पड़्यो। डोकरी कैवती - ब्याळू कियां पछै हथाई माथै जायबो कर बेटा। पछै मोड़ो बेगो आवै तो कोई चिंता नीं। पण आज ब्याळू करनै हथाई माथै गयो हो। कालै उणनै आपरी मा रै सागै शहर जावणो हो। पछै जाणै पाछो गांव कद आईजै। गांव रा कई डोकरा-डोकरा मिनख अदरींग बा, मूळो बा अर मुकनो बा सफा खड़क माथै आयोड़ा बैठा हा। कांई ठा अबकाळै पाछो गांव आयां इणां रो मेळो होवै के नीं? इण वास्तै प्रवीण किरत्यां ढळी जितरै हथाई माथै बैठो सगळां सूं गपशप करतो रह्यो।

डोकरी अेकली आंगणै खटोलड़ी माथै सूती पसवाड़ा फेरै ही। यूं उणनै ऊंघ कम आवै सो आज तो आवती कियां? दिनूंगे तो घर-गांव छोड़नै शहर जावणो हो। जाणै पाछो कद आईजसी के नीं इणरो कांई पतो? डोकरी री आंख्यां आगळ विगत जीवण सिनेमा री रील री गळाई घूमण लाग्यो। आज सूं चौसठ बरसां पैली वा नवी बीनणी बणनै इण घर में आई तद फगत सोळै बरस री ही। कितरो बखत बीतग्यो पण जाणै काल री बात। ‘नर जाणै दिन जात है अर दिन जाणै नर जात’ उण वखत इण घर में कितरा मिनख हा। प्रवीण रै दादा दादी सूं लगायनै हाळी बाळदी तांई घर में मिनख मावता आथ कोनीं। पण अेक अेक करनै सगळा जावता रह्या अर म्हैं पापणी बैठी रैयगी। प्रवीण चवदै बरस रो हो तद इणरा पापाजी जावता रह्या। तो दुखियारी शरीर नीं छूटो।.... गांव में कितरा बूढा बूढा मिनख हा डोकरा डोकरियां घर घर में मौजूद हा। सगळा देखतां देखतां निजरां आगै सूं चालता रह्या। चौसठ बरसां रो गाळो कोई मामूली बात कोनीं। बीस बरसां में तो नुंवी पीढी धरती माथै आय जावै। गांव रा झाड़का डोकरा होयग्या। प्रवीण रै पापाजी नै झाड़ बीट लगावण रो बड़ो शौक हो। प्रोळ आगली पीपळी उणां आपरै हाथ सूं रोपी। उणी’ज सागण बरस प्रवीण रो जनम हुयो। आज वा पीपळी घेर घुमेर होयगी है। उन्हाळै री लाय में सगळै मोहल्लै रा ढोर डांगर उणरी ठण्डी छियां में बैठा आंख्यां मींच’र कानड़ा ढेर्‌यां वागोळ रा टोर उडावै। प्रवीण केयबौ करै के पीपळी म्हारी सरीखी साईणी सगी बैन है। ज्यूं बात साची, म्हैं इणनै पेट री जाई है ज्यूं पाळ पोस नै बड़ी करी। ... पण छेवट तो संसार असार है। अेक दिन तो सै छोड़नै जावणो पड़सी। सगळो अठैई धर्‌यो रैय जासी। भलांई अठै रैवो के बेटा कनै शहर में रैवो। कांई फरक पड़ै? फेर आपणो तो जीवण रूपी सूरज आथमण नै आयो। अबै तो लकड़ा मसाणै पूगा। इण वास्तै रामजी राखै ज्यूं रैवणो है अर राखै जठै रैवणो है। बात जरूर है के मिनख जठै उमर काढ दे, उणरै हेवा हो जावै। आक रो आक राजी अर नीम रो नीम में। माटी रो मोह जबरो होवै। वो सहल वातै छूटै कोनीं। इतराक में बारणै री खिड़की बाजी अर डोकरी री विचार-तंद्रा टूटी। वा बोली - “आयग्यो बेटा! आज तो मोकळो अबेळो कर दियो रै।”

“हां मा, किरत्यां ढळगी। हथाई माथै गांव रा कई पुगता पुगता मिनख आयोड़ा हा सो बातां बातां में वखत बीतग्यो।”

“कुण कुण आया हा रै?”

“राठौड़ां रै अदरींग बा, भजवाड़ां रै मूळो बा, ढोलियां रै मुकनो बा अर दूजा मोकळा जणा हा।” डोकरी सुण’र हंसवा लागी— “म्हैं सासरै आई तद अै सगळा नागा फिरता अर आज गांव रा पुगता मिनख बणग्या।”

“पण आज उण बात नै बरस कितरा होयग्या मा! जुग बीतग्या।” “म्हनै तो जाणै काल री बात लागै। खैर अबै सूय जावां बेटा, दिनूगै बेगो उठणो है। बस तुरंत आय जावै, उण पैली सगळो काम निवेड़नै बस स्टेंड माथै पूग जावणो है।”

“म्हैं तो त्यार होय जासूं मा, पण थारै तांता घणा है, थूं फुरती राखजै।”

डोकरी’ श्रीराम-श्रीराम!’ कैवतां पसवाड़ो फेरियो अर प्रवीण थोड़ीक देर में घोर खांचण लाग्यो।

रात रा घणी ताळ जागती रैवण सूं डोकरी नै आधी ढळियां गेहरी ऊंघ आयगी। पण प्रवीण घणी रात थकां जाग गयो। घट्टियां मंडगी ही। गांव में चक्की आयां नै मोकळा बरस होयग्या पण हाल कई घरां में घट्टियां छूटी नीं ही।

“मा!” प्रोफेसर प्रवीण हाको कियो “पौ फाटण वाळी है।”

“हां, उठूं बेटा!” अर डोकरी’ श्रीराम! श्रीराम!’ कैवतां बिस्तर छोड्यो। सगळो जरूरी काम निवेड़नै पोटका पोटकी बांध्या जितरै सूरज किरणां काढ दी ही। बस नै हाल थोड़ी देर ही पण वखतसर स्टेंड माथै पूगणो जरूरी हो।

देखतां देखतां मोहल्लै री लुगायां अर टाबर डोकरी मा नै सीख देवण तांई भेळा होयग्या। आंगणो थबो-थब भरीजग्यो। डोकरी सगळां सूं घणै हेत प्रेम सूं मिळी। सगळां अेक रट लगाय राखी ही “माजी पाछा बेगा आइजो।”

प्रोफेसर प्रवीण देख्यो के मा री आंख्यां जळजळी अर कंठ गळगळो होयग्यो हो। गळै में डूजो आय जावण सूं मूढै सूं बोल नीं फूटै हो। पैलड़ी वार सासरै जावण वाळी कन्या जिसी हालत डोकरी री होयरी ही।

लुगायां पोटका पोटकी उठाया तो टाबर टूबरां दूजो सामान डोकरी घर री पेढी लांघी कै कोशिश करनै मांडांणी रोक्योड़ै आंसुवां रो प्रवाह ढावा तोड़नै वैवण लाग्यो। नीं चावता थकांई कंठ सूं रोज फूटग्यो। प्रवीण डोकरी रो हाथ पकड़तां कह्यो “ओ कांई मा?”

पाड़ोस री कीं लुगायां रोवण लागगी अर अेक अजब नजारो पैदा होयग्यो। प्रवीण नै इणरी उम्मीद नीं ही। वो हाक बाक होयग्यो। पण हिम्मत राख’र डोकरी नै नीठ बोली राखी।

घर रै ताळो लगायनै रवानै हुया हा के विमला मास्टरणी आयगी। डोकरी आपरा आंसूं पूंछ’र उणरा हाथ पकड़ती गळगळै कंठ सूं बोली “थूं आयगी बेटी, म्हैं थारी’ज बाट जोवै ही। काल थनै अेक बात कैवणी भूलगी - ढाळियै वाळी ओरड़ी में काबरी मिन्नी ब्यायोड़ी है, हाल उणरै बचियां री आंख्यां खुली कोनीं। दसेक दिन मिन्त्री नै म्हारी तरफ सूं पाव-पाव दूध पायबो करजै। तीजी बार इण ओरड़ी में ब्याई है अर बापड़ी हेवा हुयोड़ी है।”

“मा, बस आवण रो टैम हुयग्यो है। फुरती करजै।” प्रवीणकुमार उतावळ देवतां कह्यो।

“चालो बेटा!” कैय’र डोकरी धूजतै हाथां घर री कूंची विमला रै हाथां में पकड़ाय दी। पछै जावतां जावतां अेकर मुड़’र पीपळी कानी देख्यो। पवन वेग सूं पत्ता हिलावती वा जाणै डोकरी नै विदाई देवै ही।

स्रोत
  • पोथी : कथेसर जनवरी-जून 2024 ,
  • सिरजक : नृसिंह राजपुरोहित ,
  • संपादक : रामस्वरूप किसान ,
  • संस्करण : तिमाही राजस्थानी अंक 48-49
जुड़्योड़ा विसै