सखीनड़ी नव-सवानव बरसां री है-गोरी निछोर पर खून रै अभाव में चामड़ी बीरी पीळी, चैरै- मेरे फूठरी पण सरीर में थक्योड़ी। होठ पतळा-पतळा पण वां पर उदासी, आंख्यां बडी-बडी पण बामें चिन्ता अर आभो बांरो गूगळो। खेलण रो बीनै घणों ही कोड पण मौको मिंट रो ही नी मिलै न हंसरणों, न मुळकरणों काम सूं काम घर काम रो काँई अन्त, किए ही राखो। अभाव अर पीड़ री जेळ में वा बन्द, भय बीं पर पोरैदार, संको बीनै पग-पग पर घर एक बिजोग बीरे मानस नै मथे।
बाप बीरें गुडाळियां चालती नै ही छोड रस्तो लियो, न बीरों प्यार वींरी आख्यां में खिच्यो अर न बीरी मार ही कठै ही मंडी बींरी चेतना पर, ई खातर बीरो कोई ही चितराम वीरी चेतना में जींवतो नी। हाँ, मा अबार ही मरी हैं, च्यार ही महीनां पैला। चालतां-फिरतां, टैम-बेटम, वा बीनै जरूर याद आवै। पण काम री चिन्ता पर खथावळ सागै वा ही धरणी नी टिकै। काकी कोई तड़कदै, कूटले का रोटी की कमदै तो मा रो चितराम खूब गैरो हु'र, बींरी चेतना में उतरे, नैण बीरा अनायास ही गीला हुउठै, उदासी एकर बीनै ढकलै पण बा न आपरी पीड़ ने ही कीं आगै ही प्रकासै अर न औढायै काम में कोई ढील ही आवणदै आंसू आवै तो एकान्त में पूंछले, उदासी उठे तो उखणलै बीनै चैरै पर घर ढोवे बीनै आखो दिन-मन र माथै पर सरीर री थकावट सूं ही मन री थकावट जादा घातक हूवै, वा दिन-दिन नीचे बेठै।
उठती ही वा झाडू. काढ, बर्तण-भांडा ही धोवै मांजै घर सू आठ दस पांवडा पर पाणी-स्टैंड है।डालडा रा दो डब्बा है, वां आमां-सांमा कोचरा कर-कर, डोरला पो राखी है, एक-एक हाथ में एक-एक लियोड़ो, डोलनुमा बां डब्बासू वा न्हावण-धोवण अर पीवण रै पाणी री च्यार मटक्यां भरे। च्यार च्यार कीलो रा वो डब्बां सू कम सु कम पाँच-छव चक्कर तो बीनै काटणा ही पड़े।
काकै री ढाई-तीन बरसा री बेटी नै तो रोज ही न्हुवावे बा, पण आपरै सरीर पर आठ-दस दिनां सूं ही, कीलो पाणी नाखती संके। सखीना स्नान करले ए, खासा दिन हुग्या न काकी केवै अर न बा स्नान करे। कपड़ा पर ही नहीं, हाथ पगां पर ही मैल री परत चढ़े, चढ़े तो चढो, पर कोझी लागे वा, तो लागो। पन्द्रा दिनां सू खोळियों अेकर खंखोळै बो ही कागला स्नान सो, काकी उतावळ कर पर बा फुर्ती। पूर सादै पाणी में निचोर तावड़ै नांखदे, मैल तो बांरो नी छंटे, हां करड़ापण बांरो की जरूर मिटे मा थकां रोज न्हावती साबण सूं, दो-च्यार तेल रा टोपा ही नांखती सिर पर, कांगसियो ही फेरती सिर पर, पीथो ही गुथांवती अर सलवार-पजामों ही धोयोड़ा पैरती मा नै कोड हो बेटी नै चुपड़ी-चिलकती पर सागै मुळकती देखण रो, बेटी नै हो साफ सुथरी पर राजी रैवण रो। काकी रे घरा दिन दस-बारक तो वा मा पाल्य ढब हो चाली पछै । काकी एक दिन टोकदी, रोज पाणी में साबण घोळनी अर भगतण रो सो सांग सजरणों म्हाने आज पौसावे न काल, इसो कांई लाग्यो है डील रै, न्हा लियाकर, पांच-साते एकर-मना कुण करै है? 'भगतण रो सो सांग न बीरी समझ में आायो पर न बीरी हिम्मत ही हुई काकी नै पूछण री बीं दिन पछै वा न्हावण कांनी मूं हीं नी करै, जूं पड़े चाव मैल जमै खाई रोटी, हाथ फेरलो दो बर्तणा रै, ली इंढ़णी घर लियो कूडो, निकळ पड़े पौटा चुगण नै दिन भर री थकी चिकल्या जद आपरै आळां कांनी उडार भरै, तद ईरा पग ही आपरी थकावट समेटता घर कांनी मुड़े सूरज छिपतां-छिपतां तीन कूडा नैड़ा पौठा तो वा कर ही ले 'कूंडो-डोढ कूंडो बींरै काकै री बेटी हलीमड़ी ही।थापै सगळा सखीनड़ी ही घर फोरा-उथळो ही सगळो हो वा करें। थेपड़लां रिपिये री बीस-बाईस ही विकै दो ढाई रिपिया तो या मजै सूं नांखले घर में पण खटो लड़ी पकड़े जिते मर पूरी हवै, रुं-रुं उत्तर देवतो लागे पण ई सूही घणों अखरै काकै-काकी रो लूखो ववहार-बांरी चढघोड़ी त्यौरी उदासी रो धुंवों रोज की न की जादा ही गैरीजै बींरै सैज, साफ, चेतना आकास पर।
काकै रै दो छोरा अर दो ही छोरी है। नांव काकै रो अल्लाबगस है। हलीमड़ी अर सखीना सांई नी सी ही है। पौटा तो दिन में हलीमड़ी ही चुगै पण फर्क इतो ही है के बा सखीना सूं घंटा-पूण घंटा मौड़ी आवे अर इत्ती ही बैगी जावे। घड़ी, दो घड़ी आपरी साथणां सागै खेल ही लै-निसरणी का गड्डा। छोरो एक कमठांणे जावे, बारै-तेरै बरसां रो है, दो-ढाई की लावे वो ही ठीक है। काकी ऊन रा कांटा कतरण नै जावे, घर रै गोरखधंधं सूं की फुरसत मिले तो दो घड़ी कदेई चर्खों ही कातले। अल्लाबगस चेजै रो काम करें। जावै बी दिन रिपिया पन्द्रे टाँचलावे, नी जद अल्ला-घल्ला खैर सल्ला, घर भलो अर आप।
सखीनड़ी री मा नूरी रो दम उठतो। ऊमर घणीं नहीं, चालीस में हीं दो घटै हा ओजू, पण अभाव रो लगतममार ताप बीरो जीवण रस चूसग्यो-मौतिया पतझड़ सूं कितो ही पैलां। सखीनड़ी सूं पैला पाँच टावर और हुया हा बीरें, केई पूरा अर केई अधूरा, से गया एक-एक कर साच तो पेट में पाव ही ना पूग्यो अर आतां रो रोगन उतरतो गयो, हाड चाल कियां? टावर भड़या यां ही डील भड़तो गयो, हाथ-पगां में थाकेलो अर उदासी ढोंवतो चरो। छेकड़
जांबती सखीनड़ी पधारी, जाऊ तो बाही ही, पण बचगी जेवड़ी लम्बी ही ईखातर आ बचगी तो बाप त्यारी करली, बाबो मरगो गीगली जाई, रैया दो ही।
आपरी हालत मरणासनसू हीं माड़ी तो ही विकावे ही कियां हीं-दिन गिरण-गिरण। कसाईवाड़े में एक साळ ही अधपक्की अर एक ही कच्ची-पक्की रसोई छड़ी-छटांक एक जरणी मावै जिती, गोदी में गीगलो हुवै तो बींनै हीं रोटी सेकै जितै बारै बैठाणों पड़े इसी। आगे भैस माव जितो आंगरणों, बस इत्तो ही मकान इत्ती ही जमीन। साळ पर सैतीर अर कड़ी हा कदेन रा ही, म्याद बांरी पूरी हुवण मतै ही,धिकै हा अणहूंत में बिरखा बरसती बी दिन नूरी रो काळजो ऊंची चढ़तो, आवनी हाडो ले बैठे गणगौर नै-मरांला बिना मौत। साळ चूबती कदेई तो धोबो सीमट ला'र तेड़ा में दाबती बा सूकती नी, वीं सू पैला रसोई रा कांकरा झड़ता। बरसाती रात वा पड़ोस में काटती।
घणी कदेई की तांगे-घोड़े अर घर कदेई कीं पर रैवतो। पूरो महीनों कठै ही नीं टिकतो। दस-बीस अगले रा आगूच माथै राखतो। ले'र देण नै सौगन सी समझतो दो चाय घर लप भुजिया का कोई कचोळी रा पइसा तो दो की दूकानदार नै सुवां रा सुवां ही सूप देवतो रोज। रोटी भला हो मत मिलो बीनै, पान-बीड़ी जरूरी हा। चांवतो तो सादी सल्ला री रोटीपाळा पइसा मजे सूं कर सके हो पण बो तो घर में बड़ती वेळा साव सूको का रिपियो आठ आना माथै कर'र ही बड़तो। माँस रो सौख हद सू जादा हो, सागै गुटकै रो हो। बासी, सुस्ती घर बुसीजत मांस सूं आंत पर पान सूं दांत दोनू ही तळ बैठग्या अर टीवी बीना नूते ही आ खड़ी हुई बधती गई, छेकड़ फाचर इसी दी बीने के मांचो झलादियो। वो तो फेर मरघो जित ही सूंवो नी हुयो। या विचारी आटो लावे का दवाई? पूर पल्लो ही चाईज पर चाय पाणी हो। हाथ-पग नी हिलावे तो आगलो सूरज कियां उगावै? वा छोरी नै सेर ऊन रा कांटा काढण एक सेठ री कोटड़ी जांवती। छोरी ने कई मांगो-तांगी यमल री तुस देवती, पड़ी रवती पीनक में घर कदेई कूकती कूकती धापर मत हो चुप हुज्यांवती। मन में जाणती परणों ही परण उपाव कांई?
नूरी काम करें जिकी कोटड़ी नामी है सहर में साठ नैड़ी लुगायां रोज काम कर है आ दो घड़ी सगळा सूं पैला पूरी घटे पर दो घड़ी सगळी सू पछै दुरं। बुहारो- झाड़ो अर मेला -छोडो सगळो या करे, कीं बेगारी सेठाणी री और भुगते। बा ईनं आंवती नै, कदेई दो ठंडा फलका, साग-दाळ अर कदेई कीं ठंडा चावळ घालदे, ई रे एक टैम रो चेपो चोखो हुज्यावे। पांच रिपिया सेठ कदेई हाथ उधार ही देदेवतो, गुजारो दोरो-सोरो कियां ही चालतो, सेठ बीनै कैई दफै कैयो, कोटड़ी में एक ओरियो है, इयां ही पड़यो है, रैवै तो झाड़-बुहार'रत्यार करले तू। बिजळी-पाणी कोटड़ी में है ही। मन में तो बीरै घणीं ही पण धणी नै न तो अठै ही लासके अर न अेकले नै घरे ही छोड़ सके। ले तो अठै ही आवै पण टीबी आळै ने सेठ कद रैण दे अठै? हा सेठां था सूं केई दिन और कैरो, इया कहर टाळती बात नं। धणी छेकड़ ढाई महीनां नैड़ो मांचो भोग र लंबे रास्ते विदा हुयो एक दिन जावतो घर घिसाई में लेयग्यो।चरिये नै बण ढाई हजार में बेचदियो की माथै रा चुका दिया अर बच्या वे चढ़ा दिया चाळीस नै, राम-राम सुख चैन निरवाळी हुई बा। छोरी नै ले गोदी, सेठ रै ओरिये में आ बैठी एक दिन।
ओरियो काँई, काळ-कोटड़ी ही समझो बीनै। सेठ र दारो बणायो हो कदेई बीनै, घोड़े रो दांणों राखण नै। अब न घोड़ो अर न दाणों। एक पल्ले रो फाटक, कुटों तो टूटग्यो हो, भोगळ ही। मांयली छत पर सीरसासन करती पांच सात चमचेड़ा, भीता पर रेस करती गिलारयां, फर्स पर नीचे गिलारियां रा फूटियोड़ा
ईंडा, चमचेड़ा री बीठां अर चिड़ी, कबूतरां री पांख्यां। नास्यां आडो पल्लो बांध'र विचारी ढाई-तीन घंटा में साफ कियो वींनै। धोयो, झड़कायो फेर आपरी टैण री सन्दूकड़ी अर गूदड़िया जचाया बीमें, दो घड़ी तांई बीरो दम नी बैठो। सांमां पइसा दियां हीं, कोई नी ठैरे बी में पण अणहंत में उपाव कांई? उनाळ में मा बेटी ओरिये रै आगे, सियाळै में बीरी छत नीचे अर बिरखा में कोटड़ी रै बरामदै में काळबेलियां रो सो डेरो बदळती विचारी ई सुख-सुविधा रै बदळै कोटड़ी रो आखो तो चौक बुहारती रोज, आंधे सफारी ख'ख खांणी पड़ती इक्यांतरै अर फेर आपरो धंधो छाती धीरे-धीरे खंख सू रूधीजगी। खांसी सांवती जद तांत बोलती, डचका एक-दो निकळता जद सांस कठै ही सोरो आंवतो। पळकां में परमाळ पड़या, आख्यां कीं बुझण लागगी, तो ही काम सूं जी चोरणों वा नी सीखी। सेठाणी कैवती, नूरी आज तो कड़ायां साफ करणी है, काल म्हारी दादी सासु रो दिन है। ईंट री खोरिया सूं रगड़-रगड़ बा, बांरो काट उतारती। सेठाणी कैवती, 'एक हाथ और काढ अर वा भळे बियां ही जुट पड़ती। कदेई पोते रो नांव, कदेई दैसोटण घर कदेई सतचंडी रो होम, खूमचा घर टोपिया रात नै ही रगड़ना। बिजळी रे चांनणै में जुटी रैवती, रांत री बारै-एक तांई कदास पाणी पीवता की करण आवे तो,मूळ चिंता बींनै सखीनड़ी री ही। बीनै रोज जो-तिल बधती देख बेटे मी मैनत नै बा दूध समझ'र पिये ही अर पीड़ नै इमरत कर'र सरीर नै बण धूड़ रे भाव करदियो। रात नै सोंवती जद हाड कुळता, पौडयां अर साथळां नै, काईताळ दोनां हाथां सूं पोंचती, जद जार की जी में जी बापरतो। फेर दो मिंट सखीनड़ी रे मूढें पर हाथ फेरती धीरै-धीरै, खर्राटा लेवती सखीनड़ी वीं बेळा कुरा जारी किसे सपनलोक में हुती? हाथ जियां-जियां फिरतो, नाक, कान, होठ पर लिलाड़ पर आपरै पोरखां सूं कीं मांडती, की ओळखती। फेर अन्तराळ में ममता आ उतरती, 'आ ही कदेई बड़ी हुसी, म्हार जींवता जी, आपरो कोई घर पकड़सी भलो घर सूधो? मालिक तू है, जींवत जी से हुसी से हुसी, इयां सोचती नींद मेळै हूँती। बीनै हसती-मुळकती देख, बीरी ममता खूब पसरती अर कीं काया ही। सियाळ में जद खंख सू रूधीजती छाती रै चिपा र ईनं सोंवती तो बीरी बुझती चेतना में एकर नुवां प्राण सांचरता। रंगीन पजामा, छोट री सलवार अर कदेई गोडां सू नीची गघरी पैरावती। रोज न्हवांवती, काच-कांगसियो अर तेल री सीसी से राखती। आप तो कदेई रातो ओढयो न तातो खायो, पण ईनं तो जाग्यां री जाग्यां आप सूं ताबै आयो जिसो दियो त्यार राखती।
इयां करते-करते बरस सात काढदिया बी ओरियै में हीं। दो-बरसां सू' रिपियो -दो रिपिया छोरी ही करती। बा सेठाणी रै मांजो-धोबो हो कर आंवती।
सखीना, सेठाणी रै हेलै सागै हाजर। सेठाणी स्यांणी, काम करांवरण री बीनै अटकळ। होळी-दियाळी घर तीज-तिवार वा एक दो गाभो करावे बीनै। घर में जिती दफै मीठो-चूठो बापरै, दो नग पैला बीनै। बडो देखे कियो, टाबर देखें हियो, बडी राजी ही वा सेठाणी सूं।
मा-बेटी हजार दो-एक री पूंजी ही जोड़ली। पूंजी ही की बधै ही, छोरी री ऊमर ही अर आ दोनां सू' ही जादा नूरी री ममता, बीमारी अर वीरी चिन्ता। सरीर बींनै उत्तर देवतो लागे हो। चालै तो भुंवाळी आवै, न पूरो सूझै अर न दम ही थिर हुवण दे कीं काम पर। घंटो तांई ऊंधो माथो कियां पड़ी है तो पड़ी है-सिर सुवों करण री जी में हीं नी आवै, न वा बात करणों चावै अर न बात कर बो सुहावे, न धान भावै अर न नींद आवै, बरण सोच लियो मरण रो गआंको आलियो नैड़ो, ईं में सक नी।
मां, कांई दूखे है, बा पूछै जोर सूं नी होळै-होळै', एकर नी केई दफै पण मा बापड़ी, की सरधा हुवै तो बोलै सांस की धमै तो होठ खोलै? छोरी री उदासी बधै, आंख्यां छलीजै, कांई हुसी, ओ बीरी समझ सूं बारी, बा डरै। दो दिन निकळग्या इया हीं।
तीजै दिन, नूरी आपरै देवर-दिराणी नै बुलालिया। हाँफती-काँपती देराणी नै बोली कीं साफ कीं अधूरी, ईरा मा बाप थे हो, आ अबे थारे सुपुर्द है का मालिक रै , अर आंख्यां बह निकली बीरी। देवर-दिराणी दोनू' ही बोल्या, म्हारै टावरां सूं, सवाई-राखस्या ईनै, ईरो थे सपने में ही सोच मत करो। बण बेटी, पूंजी अर पेटी से सूप दिया बांनै पेटी में दस बीस कपड़ा हा, नुवा ही हा घणखरा। खोटा ही छल्ला-बीटी, खोटी ही पड़ी-चूड़ी अर पांच-सात सावणां ही बी में अर एक ही पावलां री जोड़ी, भरी पांचेक री, बा खरी, सेठ रै मा हेत बणवाई ही बण। नूरी रो गळो ही रूंधग्यो अर सांस ही। कीं बोलै ही छेकड़ली बात, पण आ रियायत नी मिली बीनै, मालिक रै घर सूं। अमू जतो पांखी, नहीं-नहीं करता निकळग्यो पींजरे सूं। सखीनड़ी रो-कूक'र, काकै-काकी कने या बैठी छेकड़। ओपरो घर, ओपरो बवहार पर उदास उदास बा।
एक दिन पोटां सू एक ही कूडो ले र घर में बड़ी वा, देखता ही काकी रो पारो ऊंचो चढग्यो, बोली, हैं ए, पोटा आज इत्ता ही किया? हाथ इता ही माया, बण धीरे से कैयो। खेली तो नी कठै ही?
बा कीं नीं बोली, हलीमड़ी की परियां खड़ी ही, सुणतां हीं वा मा कनै आ लागी बोली, हां खेली ही मा, जाळ नीचे-छोरयां सागै।”
हाँ खेली है, खेली, छांनी थोड़ी ही मावै है? और खेल लेगों हो काई ताळ, पेट भरीजतो तो? अर वा उदास ऊभी, पग र अंगूठा सू' जमीन कुचरै ही, एक भय उतरै हो बीमें धोळी चेतना बींरी घूंवटी बणै ही।
काकी खड़ी हुई बीरे दी तो नी, हळकै हाथ वींरो कान झाल'र बोली, गिटण नै तो तनै दिन में चाईज तीन दफै, अर बळीतो एक टैम रो लांवती ही दोरी, मावड़ती इसो कोई खजानों सूपर नी गई है म्हानेै, आज तो हूं टाळ करूं हूं, आइन्दा जे इयां कियो तो म्हारै जिसी भूंडी नी है कोई, घर में नी बड़न दूली, सोच लिए। बा खड़ी रही फोटू में कोरीज्योड़ी सी थिर, नस नीची कियां।
जा बळ, चूलड़ी सिलगा, बा चाल पड़ी उदास उदास। बी दिन पछै वा पूरी चिन्ता ही नी राखेै, सूकै और है मांय री मांयं। सोचै अबकै तो कान ही झाल्यो है, अबकै कूटैली, छुडासी ही कुण; अर फेर घर सू काढदी तो? तो न बीनै कोई आसरो ही दीसे हो अर न कोई गळै लगावणियों हीं, सूनै आभै री अन्तहीणता तांई, धरती पर बींने कठै ही ठेराव निजर नी आवै। मूढो बा सड़क कांनी कर, गळी र मोड़ पर जा ऊभी, अर्जुन री चिड़ी रै सिर सो, बीनै खाली पोटो ही दीखै।
गळी रै एक खूंणै में बीसू पांवड़ा परियां हट'र एक जाळ खड़ी है, छीण अर खूस्योड़ी। कदेई तो वा खूब गैर-गंभीर हुया करती, ऊपर बींरै चिड़ी कागला री जान री जान,नीचे उगाळी सारती बींसू गाय-टोघड़ियां रो झूल अर आसैपासै बारे पोटा चुगती आठ-दस छोरयां रो झूमको। छोरयां ओजू हीं बोरी बगल में आप-आपरा पोटा भेळा करें, दिन भर खेले, जांवती आप-आपरी ढिगली ऊंच घरां रो रस्तो लै, पण मुश्किल आ है के गायां अबार बठै, ढाई-तीन ही बेठै घणीं करां तो दो गायां अर एक टोघड़ियो, कदेई दो गायां घर दो टोघड़िया। बास में गायां तो छड़ी-बीछड़ी की जुगतमाळ रै ही है। पोटा चुगणआळी घाठ-दस कदेई ईस हो जादा पर गायां गिणती रीअै? छोरयां गड्ढा खेलै बठै बैठी- बैठी पण ध्यान बांरो पोटा कांनी। गड्ढा खेलती-खेलती एक छोरी अचानक बोल उठै जोर सू- 'हे वा उठी लीलकी गाय, हे वो टोघड़ियों उठयो रातियो, बा कर पोटो,, क्यों लाडी पैलां मैं दख्यो है, चालतो-चालती पोर्ट खातर, केई दफै दो जणी उळझ ही लै, लूठी अर लड़ाकू हुई बा पूरो रो पूरो ले पड़े, समझदार दो आपस में पाँती करलै आधो-आधो पौटो पण सखीनड़ी सी सूधी अर डरपोक नै न पूरो मिले न पाँती न बा अठै ही ठैरे अर न की सागै ही बात करें, सीधी आपरै जावै छोरयां बीने खेलण खातर बतळाई दो-च्यार दफै, न्योरा ही काढया पण बण उजला राम-राम करलिया।
आज बा कूडो लियां आपरी गळी रै नुक्कड़ पर खड़ी हैं, आई नै आधो घंटा ही मसां हुई हुसी, कूडी बण कानां ताई रो करलियो। सोच्यो, ई हिसाब तो सुगन सावळ है आज, च्यार कूडा तो मजे सू भरणा चाईजे परियां सू एक पौटो ले र, जियां ही आगीने टूरी, कनली दुकान आळै एक हलवाई हेलो मार'र कैयो, छोरी सुण तो?
वा दो पांवडा बीरै कनै जा'र खड़ी हुगी, धीमै से बोली, 'बोलो बाबाजी?
कूडा दो एक भट्टी री राख काढदै, भाड़ो देसू।”
आज बा जीमी जद कम ही रंजी ही। दो फलकां में एक रात रो हो, लगावण की कम हो, आधो फलको और लेऊ ही, पण संकती चळू कर फट करती उठगी ,बण सोच्यो, देसी ज्यूं ही ठीक है, दस मिंट में किसी फर्क पड़े है-एक कूडो तो करही लियो। बा बोली, बाबाजी, राख लेजार कठे ही अळगी तो नी नांखणी?
नही, अठै ही दूकान री भींत सारै।
कूडो बण भर दियो। राख बण बड़ी जुगत सूं काढी, हाथ पर कपड़ा भड़काया, दसवार मिंट सूं बेसी नी लाग्या हलवाई बीनै लप डोढे'क बूंदियां दी अर दो पेठै री डळी दे दिया। कुडो ऊँचर वा पाछी ही नुक्कड़ पर आ खड़ी हुई। पेठै री डळी तो बण चालती चालती ही पेट में नांखली, बूंदिया रो एक फाको लियो ही हो, इस हलोमड़ी आ खड़ी हुई, मूंढो चालतो देख'र वा बोली,
कांई खावै है?
ले तने ही दूं, बूंदिया है।
कठै सू लाई?
सामले हलवाई री राख काढी ही बण दिया हा।
खाली बूंदिया ही?
पेठैरी डळी ही दी दो, बै तो मैं चालती ही चिगळली। बू'दियां सूं आपरी मुट्टी भर' र हलमड़ी कांनी करती बोली, ले”।
रैया-सैया इत्ता सा लू किसी मंगती हूं?
बा आधी ही नी रही, मूंढो चढा'र बिना लियां ही चाल पड़ी। सखीना नै की बेंम हुयो वा डरगी। बा पग की खांथा उठा'र, बीनै नावडती, बड़ै न्यौरे सूं बोली, डावड़ी, ले लैनी अे?
नईं म्हारा किसा बूंदिया देख्योड़ा नी है? कह'र बा टुरण लागी जद, बीरो कांधो झाल र भळै' कैयो, “अै ले, है जिता है तू लें।
क्यों लूं नी चाईजै मनै, बा खाथी-खाथी चाल'र जाळ कनलै झूमके में जा मिली। सखीना री चिन्ता कीं भळै बधगी। आ सोचै ही, आज गदीड़ पड़सी ई में सक नीं, आापरी मा नै कैयां बिना आ मरी ही नी मानै अर मा फेर मनै? एक अणचींतो भय बीमें उतरण लाग्यो, उदासी चैर पर आ बैठी। हाथां-पगां में एक साथै ही एकर तो दुर्बळता बापरगी, पौटा बिसरगो, भय नै याद करण लागगी। एक कुडो तो बण कर ही लियो हो दूसरो सड़क पर रोसनी हुई जद जांवतो कानांताई हुयो। पौटा पिछोकड़े में नांखर, आंगण में आई तो काकी कामोलिये तांई भरी बैठी ही। हलमड़ी आप कांनी सूं, भाठा भोरण में की कमी नी राखी। काकी रै कम बेसी पौटां री धुखण ही अर न मौड़ी आवण री ही, धुखण ही,टींगरी सांमी खड़ी-खड़ी मीठो खावै म्हारी छोरी आँख्यां तिड़कावै बी सांभी, चूखा नी खोसल्लू ईरा। ईनै देखता हो वा बोली, करड़ी बैगी आईनी अे,काई ताळ और गोता खा'र आणों हो
बा कीं को बोली, खड़ी रही चुपचाप, सागी जाग्यां-सागी पंगां पर।
पोटा किता कूडा लाई?”
दो, बण डरती-डरती होळै से कैयो।
बैगो आवै जद तीन अर मौड़ी आवै जद दो ही, तू पौटा थोड़ा ही चुगै है तू तो मीठी ठोकती फिरै है, मीठो चाईजै तनै तो, म्हारी मिर्ची-रोटी सू थोड़ी ही रंजै तू, ठैर, मीठो चखाऊं तनै? वा उठी अर एक गुदी में पाई आवै जिसी, छोरी बाको फाड़ दिया।
ऊपर सूं रोवै और है बाळू दीन थारो, अबार सूं ही खांवणखंडी अर भटकोर, मनै तो, सांस इयां हीं नी आवेै, तू भळै आ मरी छाती छोलणनै : हुवै 'कोनी चुप का और आंवणदूं? काकी रो पछलो बोल पूरो हुयो हो बस, इतै में अल्लाबगस आ पुग्यो बोल्यो कई बात है, आ रोवै कियां है?
बा बोली, ईनं हीं पूछो कियां रोवै आ?
तो ही की बात तो हुवैली?
हलीमड़ी लारी सू स्नान कर आई ही साबण रो एक टुकड़ो हाथ में हो, वा बोली, बापू आ अबै बड़ी है घर में।
बड़ी तो अबै हो हेली, पण रोवै क्यों है? '
बीरी बहू चिड़'र बोली, रोवै मनै है जीवती नै ही।
बात तो बता?
बण सगळी बात बता'र कैयो, बिगड़सी तो आ अर बदनामी रो ठीकरो फूटसी म्हारै सिर पर। आंख्यां देखते, इयां खुली किया छोड़दू-हिरावड़े डांगरै दाई? थप्पड़ री धरदी माड़ी सी, आ अबै बास नै भेळो करु चावै है, थे सुणो चावै ना, चटोरा पण आपां नै पसन्द नी।
ववहार काकै ही लूखो ही कियो, बोल्यो, छोरी सुर्ख है नी, पैलां चुप रह एक'र नी तो भळै पूजा हुवैली।
अल्लाबगस रै पछलै बोल सागै, बींरी बहू रो बड़ो जीसोरो हुयो। छोरी, डरती चुप हूगी। बो बोल्यो, देख, जे अबकै ईनै-बींनै मीठो चाटती सुणली कठेै ही, तो म्हारै जिसो भूंडो नी है कोई?, काकी तो कूटैली'क नी कूटली, हूं फोड़े बिना नी मांनूला। सुणलियो?
छोरी चुप चाप खड़ी रही, दो पाटां र बिचाळै।
काको भळे बोल्यो, बोल, मैं कही वा सुणी'क नी? बा अेडी सूं चोटी तांई, भय पर निराशा सूं भरीजगी, न बोलणै में आवे अर न रोणै में काकै-काकी कांनी एक उदास अर हळकी सी निजर नांखी-कीनै ही कोई अपणायत री किरण फूटती दीखे तो? दोनां कांनी खीरा उछळै हा। डरगी। बीरी बहू बोली, माठी घर मिजळी है ओ, भाठो बोले तो आ बोले,
क्यों छाती तोड़ो हो ई सागै- कुवै में पड़न दो नी।
काको कीं ओर जोर में आ'र बोल्यो, 'बोल सुण्यों' क नी,नी तो आवै है थप्पड़? छोरी नै लागे हो गळो जाणू बीरो चिपरयो हुवै अर होठां रै लागग्यो हवै ताळो। 'हाँ,' बा जीभ सूं तो नी कह सकी पण सिर हिलार जरुर करदी बण
'जा बळ,' कह'र काको उठ खड़ो हृयो।
बा जीमली, दो घड़ी बाद आपरी खटोलड़ी पर जा आडी हुई। केस अर कपड़ा करड़ा, अर डील चिपचिपो। पूरो एक हफ्तो हुग्यो न्हाई नै अबार सोच ही हलीमड़ी रोज न्हावे। म्हारी साबणां अर पीथा से काम में लेलिया, बींटी छल्ला ही म्हारा नित नुंवा पैरै, काकी होठ रो फटकारो ही नी दें बींनै, चोखो, नी दे तो मत दो, न्हांवण रो तो मनै हो कैवै, न्हांवण रो पूछूं तो ही कियां पूछूं? पूछ अर कहनांखें “काई लाग्यो है डील रै, भगतण रो सांग, अर को
कांई कांई कह सुणावै, ना हूं तो भी पूछूं। मन, माथो घर हाथ पग से भारी, मा याद आवै पण आवै कठै सूं? थक्योडी ही, घुळती आंख्या, नींद मतै ही फिरगी ऊपर कर।
सगळो घर ही सोयग्यो सगळो बास ही। एक सूं ऊंची हुगी हुसी। नूरी, सखीनड़ी री चेतना पर आ उतरी- एकदम जागती अर चलती-फिरती। सखीना री स्थूल आंख्यां बंद, पण मन री खुलगी। होठ अर जीभ साचेली खुलग्या।पड़ी पड़ी बा एकदम सूं चीख उठी 'मा! तूं आयगी, ठैर मा हूँ चालू, थारै सागै, मा मनै ले चाल-मा।
काको ही जागग्यो अर जागगी काकी ही। काकी बोली, “कांई हुयो अे? कठै है मा? तनै तो नींद नी आवेै, म्हांनै तो पड़न दै अथ घड़ी।
काको बोल्यो, हाथ तो नी आयग्यो, छाती पर? कनै जा'र बोल्यो, 'सखीनड़ी?'
हाँ।
कांई हुयो अे? तिस्सी तो नी? पाणी झलाऊ? वा आपरी जाग्यां ही बैठी हुगी, पण गुमसुम सी सोचै ही।आ काईं हुई, मा आई अर गई, न बोली अर न बात सुणी म्हारी। आधो पाणी पी'र पाछी ही आडी हुगी।
अगलो दिन तो बण काढदियो उदास उदास र दोरो- सोरो। आज दूसरो दिन है तांगा अर गाडा घणखरा, पीरजी रै मेळै कांनी गयोड़ा है पण बींनै ओ ठा नी। कूंडो लियां बा ,आपरै ठाइयै पर आ खड़ी हुई। सड़क पर टकटकी लगा'र देखे आंता-जांता तांगा-गाडा, कदेई सै,को दीखे। बळध कोई बिना पौटो कियां ही बघ जावे तो बीरी निरासा ही वधै अर बीरी झाळ ही। 'खांवता-पीवता रै कांई हुयो बाळण जोगां रै, एक पोंटो ही नी करें,' वा सोचे। दो बजगी कूडो आधो ही मसा हुयो। मू सूकग्यो, उदासी बधगी। आज तो जांवता हो कूट त्यार है, अर कैयो 'आई जठै ही जा, घर सू काढदी तो? दुश्चिता रो कोई चाको? तिस लागगी। सड़क री एक पो पर पाणी पियो, उदास उदास ई ने बीनै देखी, पाछी ही सागण जाग्या आ खड़ी हुई-आंख्यां बियां ही फाड़नी। काळ में अधिक-मासो, एक छोरी बी साईंनी ही पण शरीर में बीसू की लूंठी और दीसी बीनै सड़क पर घूमती-पगां उबांणी अर कूंडो सिर पर, बीरी छाती, और नीचे बैठगी दो पांगळ आ किसो लेवण देसी सोरी सांस,' वा पैलां सूं सजग जादा हुगी।
च्यार, पांच, पर छब बजगी, परण कूंडो पूरणों हीं हुयो ओजू। सूरज छिपे हो पर बींसू जादा बीरो भय 'अब? बण चाल तेज करदी। एक तांगो दीस्यो बीनै आगे पाँच-सात पांवड़ा परियां एक बळध गाढो सिरकतो। निजर बींरी दोनां पर ही। अेकर घोड़े नै देखै अर एकर बळध नै। घोड़ो पूछ ऊंची कर लीद करण मतै हृयो, वीं सागै ही बीरो आवाज मतै ही फूट पड़ी 'हे बो घोड़ो करै, कोई दूसरी आवाज फुटे बी सूं पैलां हीं। लीद कांनी भागी पण आंख्यां गाडै रै बळध कांनी सूं ही छेड़े नी हुई। बळध दिस्यो पोटा करतो लीद उठी नी बैसू रैला ही आवाज भळै' फूठी 'हे वो बळध.......।'कूंडो लीद कनै ही छोडदियो, लीद बिना उठायां हीं, सोच्यो पोटो पैला ले आऊ, बिना आगे लारै सावळ देख्यां, बडी फुर्ती सू भागी, छोरी, कठै ही मरसी, एक साइकल सूं भिड़ती भिड़ती बचगी, इस ही वेग सूं आवती एक मोटर सूं जा टकरी माथो फाटग्यो, सड़क पर बिछगी पिचकारी सी छूटगी। खून गद् गद् करतो निकळै हो, दिन भर सूं तिस्सी वळती सड़क बीनै चूसै ही। चाठा खून रा बीरै चैरै पर जमै हा ढळतै सूरज री उदास लाली वांनै और गैरा करै ही। छोरी रा पग एकर हाल्या, पण मोटर रा रुकग्या। ड्राइवर भाजग्यो। चालती भीड़ भेळी हुगी, पुलिस आळा आ लिया, भीड़ में बात करै हा केई, 'अबै पोटा चावै कित्ता ही पूरा करो, चीज तो गई। हूं जाणू ,मनै ठा है। बिचारी नै टुकड़ों ही धपा'र नी देवता, इयां दो हजार नैड़ी खुरचण ही सूंपगी ही आनै।
बैन, मत मरज्यो बाळक री मां, मत मरज्यो बूढे री नार. भीड़ नै पीठ देवती खासी आगै निकळगी।