बूढळी आपरी माची पर लेटी ही, लेटी तौ क्यांरी है, पड़ी ही। कदै इन्नै कदै बीन्नै, पसवाड़ौ फोरै। वा आपरै डील नैं देखै, क्यांरौ डील है, नांव है डील रौ, हाड हाड बाकी रैया है, मांस तौ कठै है, मांस रा चीथड़ा लटकै है। दांत तौ रैया कोनी, पूरा पिचत्तर पार कर लिया, घणकरा तौ आगीनै गया, वीं नैं मौत तो कोनी आवै।

अेक जांनवर बोलै कीं रूंख पर कू-कू, कू-कू। वा सोचै, वै पंछी तौ कोनी रैया पुरांणिया। कमेड़ी बोलती—कूहू-कूहू, कूहू-कूहू, मीठी लागती। अबै बोलै—कू-कू, कू-कू।

फागण तौ टिपग्यौ, अबै चेत लाग्यौ है। होळी टिपगी, कठै डफ कोनी वाज्या, कोई धमाळ गाईजै। सेहरी बणती, लोग नाचता-गावता, सगळी कीं गई, अबै कांई रैयौ है, मरज्यांणा दारू पीवै अर माथौ लगावै। छोर्‌यां गणगौर रा गीत गावती, वै कोनी गावै। क्यांरी जमांनौ!

इत्तै में बारी रै सारै गळी में जीप निकळी, फेर ट्रक टीप्यौ अर फेर ट्रैक्टर। कित्तौ रोळौ मचै, ऊपर सूं धूड़ उंछळै, गरद उंछळै, रोळौ कांना नैं कोनी सुहावै अर धूड़ कंठां में जावै, खांसी आवै अर दम उठै। मरज्यांणा माची पर सावळ कोनी पड़ण देवै।

उण फेर पसवाड़ौ फोर्‌यौ। बारणै कांनी देखनै हेलौ मार्‌यौ, “अै रूपली, रूपली, अै रूपलीऽऽ।”

रूपली तौ ही कोनी। अरे कठै गई? रूपली रौ बाप तौ वेगौ खेत चल्यौ जावै। मां भातौ लेय'र जावै, वीं रै साथै कुण बैठ्यौ रैवै, रूपली घरै रैवै, कदै इस्कूल चली जावै।

उण ओजूं हेलौ मार्‌यौ, “रूपली, अै रूपली, रूपलीऽऽ।”

दो दिनां सूं बूढळी कीं मांदी चालै ही, इंयां लागै ही जांणै डील में चरण-परण चालै। ज्यूं-त्यूं कोई तात कोनी लेवै। आपणौ नांव री चीज कोनी रैयी। वीं री फरियाद पर कोई गौर कोनी करै।

वीं नैं लारली बात याद आवण लागी। वीं रै मोट्यार रै तीन भाई हा। चौथा वै हा। सगळा ब्याहीज्या जद बूढिया-बूढळी वीं रै कनैं रैवण लागग्या। पैली वै खेत जावता, काम करता, पण टेम आयां सरीर तौ जवाब देवणौ हो। पण मोट्यार वीं रौ इकलंग ध्यांन राखतौ अर वा ध्यांन राखती। टेम-सर रोटी, टेम-सर चाय। बूढी काया ही, बे-टेम चाय मांगता, वा झलाती, कदै नाक सळ कोनी घाली। हारी-बीमारी आवती, डाक्टर ल्यावता, दिखाता, दवाई-गुटका ल्या'र देवता। कदै-कदै तो आखी रात आंख्यां में काढणी पड़ती। वां अेक जमीन रौ टुकड़ौ म्हारै धणी नैं देय राख्यौ हौ। कांई हुवै हौ वीं सूं। साल में कदै दो बोरी आवती, कदै तीन बोरी। कित्ती दो'री गाडी चालती घर री, पण निभावता।

उण ओजूं हेलौ मार्‌यौ, “रूपली, रूपली, अै रूपलीऽऽ।”

इत्तै में रूपली आयगी।

“कठै मरगी ही अै तूं! म्हैं कद लागी हेलाहेल करण नैं।”

“म्हैं तो टी.वी. देखै ही।”

“आ अेक बीमारी और आयगी। इस्कूल तौ आज गई कोनी।”

“आज छुट्टी ही, मास्टर तणखा लेवण गया है।”

“जा, पांणी ल्या।”

रूपली पांणी लेय आयी।

“रूपली, म्हारी लाठी कठै गई। बाळणजोगी, म्हैं लाठी बिना किंयां चालूं अै!”

“दादी, लाठी तौ टींगर लियां फिरै हा, डांगर घेरै हा।”

“जा ढूंढ'र ल्या।”

रूपली ओजूं गई परी। वा पूठी कोनी आयी। दादी मां सोचै, पैली कनैं गोळ्यां होवती, वां गोळ्यां रै चक्कर में वा सारै-सारै रैवती, पण देखौ, अै टाबर मतळबिया होयग्या। गोळी बडी कै दादी? दादी रौ कांई सिर में मारै, गोळी सूं मूंढौ मीठौ होवै।

बूढळी नैं बारै जावणौ हौ, लाठी बिना चालीजै कोनी, पेशाब री हाजत होय रैयी ही। आज तौ वा अेन टूटैड़ी पड़ी ही।

वींनैं ओजूं लारली याद आवण लागी, वै कैयता, माईत री सेवा है, घर बैठ्यौ तीरथ, अठैई हरिद्वार अर अठैई बिन्दरावन। बठै जावण री जरूरत कोनी। पण अबै वा भावना कठै गई, भार क्यूं होयग्या माईत?

वा ओजूं आडी होयगी। फेरूं सोच में डूबगी, हेमै रै कोई औलाद कोनी, वो दुखी। देवलै रै अेक छोरौ, पण धाप'र बेकार, दारू पीवै, जूऔ खेलै, कमाई करै कोनी। वो रोवै। मूळै रै दो बेटा, दोनूं आपस में लड़ै, माथाफोड़ी करै, माईत कींनै कींनै समझावै। वै दुखी। पीलियै रै तीन बेटा, अेक तो नौकरी लागग्यौ, पण दोनूं कीं कांम रा कोनी, वै माईतां नैं कूटै। अै म्हारै रैया तीन, तीनूं ब्याया-धाया, सगळां नैं जमीन बांटदी। घर बांट दिया, फेर वो इज रांडी-रोवणौ।

म्हारै दो बेट्यां। म्हारै कनैं गैंणौ हो सोनै रौ, चांदी ही। वो म्हैं छोर्‌यां नैं दे दियौ।

टींगर रोज माथाफोड़ करै, “मां रांड, तूं तौ बेट्यां नैं मांनै। वांरी मे'र करै, वांनैं खुवावै, जेवर हौ जकौ सगळौ वांनैं सूंप दियौ। अबै है कांई थारै कनै?”

वा कैवती, “अरे मरज्यांणां, थांरी वै भांण कोनी, वै म्हारै जायोड़ी है, वां रौ हक है घर में।”

“तो लेलै पींडिया।” वै सगळा कैवै।

उण सोच्यौ, अरे कांई जमांनौ आयग्यौ। म्हे तौ कहांणी सुणा हां कै राजा दशरथ रौ बेटौ राम हौ। बाप कह्यौ, राज छोडदै, चौदह साल रौ देसूंटौ काट। उण राज छोड्यौ, चौदह साल रौ देसूंटौ काट्यौ, कित्ता फोड़ा भुगत्या। आज रै राम नैं कैय'र देखौ देखां, अेक टुकड़ौ जमीन रौ छोडदै तो, वो माथाफोड़ी करलै, मां-बाप माथै मुकदमौ करदै। देसूंटौ तौ भोत दूर री बात है।

उण फेर हेलौ मार्‌यौ, “अै रूपली, रूपली, अै रूपलीऽऽ।”

रूपली तौ नेड़ै-तेड़ै कोनी ही।

वींनैं हाजत जोर री हो रैयी ही। सोच्यौ, वा टींगरी तौ कठैई टी.वी. में उळझगी, बीनणी कोनी आई, अबै लाठी रै ठेगै बिना चालणौ ओखौ है।

वीं नैं तकड़ी हाजत होयगी। उण हिम्मत करी, उठी, अेन आक तड़कै-सी पतळी टांग्यां, उण पग मेल्या—अेक, दो, तीन, फेर अेकदम चक्कर आयौ अर वा धू जा पड़ी, कुरळाई, “अरे मरगी रेऽऽ।”

सारै घर हौ बाबूड़ै रौ, जात रौ नाई। उण सुणी तौ सोच्यौ, बूढळी क्यूं कुरळाई? वो झट सूं आय खड़ी करी, “अरे दादी, इंयां कांई करै ही तूं!”

“अरै, हाजत होयगी ही, चाल पड़ी। लाठी टींगर लेयग्या।”

बाबू वीं रौ मूंढौ पूंछ्यौ। पांणी ल्यायौ, मूंढौ धुआयौ, फेर पांणी प्यायौ। बूढळी कीं ठीक हुयी। उण वीं नैं खड़ी करी, वीं रै गोडां में खूंन रैयौ हौ। अेन पतळी चामड़ी ही, थोड़ी-सी लागतां उतरगी।

“चाल, तनैं....”

वीं देख्यौ, वीं रौ घाघरियौ भरग्यौ हौ, अेन गीलौ हौ रैयौ हौ, बाबूड़ौ समझग्यौ।

“बेटा, अबै कठै जांणौ है, कांम तौ सरग्यौ।”

“ताई, तूं रूपली नैं हेलौ मारै ही, म्हैं सुणै हौ। बावळी, रूपली पल्लै तौ रोही में चल्लै, रूपली कोनी रैयी, तौ अबै रूपली क्यूं आवै?”

“तूं कैवै तौ ठीक है।”

“तूं कीं जमा-खरची राखती, तौ औलाद आसै-पासै घूमती।”

“अबै तौ हाड रैया है।”

“उडीकै है, मर जावै तौ बाळ’र बारह दिन बैठ जासां।”

“जमांनौ माड़ौ आयग्यौ रे बेटा!”

“कांई कसर है? देखती जा, म्हे बूढा होस्यां जद जींवता नैं मुसांणां में गेर आसी।” बाबूड़ौ हंस्यौ, “तेरौ गैंणौ कठै गयौ?”

“छोर्‌यां नैं देय दियौ।”

“नकद आवै हौ कठै सूं, किसी गांठी कटै ही तूं।”

“कीं कोनी।”

“तौ भोग।”

“बेटा, अबै तौ मां कोनी, माया प्यारी होयगी।”

“सगळा अेकसा कोनी होवै, धरती कीं धरम पर खड़ी है।”

इत्तै में बीनणी आयगी।

“ओ होऽऽ, कांई कर लियौ, सगळौ तौ घाघरियौ भर लियौ। म्हैं कैय’र गई ही, अबार जासूं, पण बातां लागगी, मोड़ौ होयग्यौ।”

बूढळी चुप रैयी। वा खड़ी-खड़ी धूजण लाग रैयी ही।

“कांई करूं, चैन ले, लेवण दै, जेठ-जिठांणी पाप म्हारै चेप दियौ।

म्हैं अबै कठै निकळूं। वै आछी हथायां करै, मस्ती मारै।”

बूढळी बोली कोनी। वा जांणै ही, बीनणी बड़ड़ावैली।

बाबूड़ौ चालण लाग्यौ, जद बूढळी कांन में बोली, “बाबू, कठैई मौत मिळ ज्यावै तौ भेजी।”

दूर कठैई ब्यांव रा गीत गाईजै हा, वा अेकर तौ हंसी, फेर अेन फीकी पड़गी-उदास, निरास, हतास।

स्रोत
  • पोथी : साखीणी कथावां ,
  • सिरजक : करणीदांन बारहठ ,
  • संपादक : मालचन्द तिवाड़ी/भरत ओळा ,
  • प्रकाशक : साहित्य अकादेमी