टोरियै रै टापरै रै अड़वांअड़ मोलियै रो बाड़ो। उणी रै अेक खूणै में खेजड़ी री छड़यां खिंडी पड़ी। दूजै खूणै में थेपड़्यां रो ऊंचो बटोड़ो ऊभो। टोरियै रै ठांवरी डोळी खनै पड़ती जगां में राखुण्डै रो ढेर लागीज रयो। बठै आठ-दस छोरा-छोरी बैठ्या खेलै। बस सूरज हाथेक ऊंचो चढ्यो हो। कातिक उतरता दिन। मीठी-मीठी सरदी। पाछली साल रा बोदा-पुराणा गाबल्या गळै में घाल्यां टाबरिया खेलण में मगन हूर्या। ईनरो, काळियो, गंगलो, पिरचू, मूनियो, सोनली अर चानली सगळा सायेना, अै ही दस-ग्यारा बरस रै अेडै-छेड़ै।
वांरो ओईज काम, दिनभर खेलणो-रमणो अर लड़णो-घुळणो। मायतां रो ओढ़ायो काम नीं करीजतो। वांसूं जखापत करतां-करतां वांरी छात्यां में राद पड़ जावती। पण “ले, लंगोटियो धन है यूं ही पड़-रड़'र मोट्यार बण ज्यासी,” आ सोच'र संतोख करीजतो। अठी नैं छोरा म्हारै मड़ा इसड़ा अळबादी कै मायतां रै बड़बड़ाटां नैं छूंतरो भी नीं गिणै। पाठसाळा रै नांव सूं छींकणी आवै। छुट्टी वाळै दिन तो इसड़ी अपरी घालै कै आखै दिन बास-गळी में महाभारत मच्यो रैवै। फेर टाबरां री राड़ मायतां रै माथै मंडीजै। ओ के गिरस्त रो धंधो! ओ छाती-कूटो क्यूं?
ईनरो भाठा पर भाठां मेल नै मकान चिणै। सोनली लीप-पोत’र चू’लो घालनै रसोई बणावै। ठीकरी नैं सिल्या पर रगड़ कर गोळ तवो बणावै। बेवणी में तुणकां री पंडोकळी पड़ी, ईंधण री के कमी! चानली परूसै। काळियो, पिरचू अर मूनियो पालथी मार’र जीमै। साटै रै गोळ पत्तां री थाळी अर कागलै रै सुका पत्तां री रोटी। पूरो सरंजाम। सगळा ठाठ। च्यारूंमेर धूळ री पाळ।
थोड़ी ताळ में म्हे ई खेल्या म्हे ई बुझाण्या हुयग्यो। चाणचकै अेक छोरो चिल चालदी कै आं छड़्यां में सीपली ब्याई है। सो सगळा टींगर अेकै साथै छड्यां खानी “सीपली ब्याई रै सीपली ब्याई रै” बोलता भाग्या। सीपली छड्यां रै नीचै ऊंडी घूरी कर मेली अर मूंडै आगै बैठी घुर्रावै। कदे घूचरियां खानी जावै अर ऊ..ऊ..ऊं..ऊं.. करै। कदे छोरां खानी देख’र पूंछ हिलावै। पण जी नैं जक नीं लेवै। घूचरिया घूरी मांय कुं..कूं.. करै। बै आपरै नान्हा-नान्हा पगल्यां सूं चालै अर मूंडो धूड़ में रोळै। हाल ताणी वांरा दीदा खुल्या कोनी हा सो मा रा बोबल्या बबूड़नै आंधै चोभै मूंडो मारै हा। छोरा-छोरियां रो टोळ मन रो पतड़ो खोलै'र वांरो नामकरण संस्कार करै अर काळियो, धोळियो, टीकियो अर भूरती री टेर लगावै।
सीपली रै ब्यावणै रो सनेसो सगळै बास में आग री ज्यूं फैलग्यो। मोकळै टीगरां रो घमसाण माचग्यो। वांरै रोळै सूं कान पड़्यो सुणै नीं। सीपली रा पिराण घियारी में आ रिया। वींरो घुर्राट घूचरियां पर कीं आंच नीं आवण देवै। पण अेक अगजाण्यै डर सूं वींरो काळजो जगां छोड़ राखी।
काळियो छोरां में आगीवाण हुतो। वो कुत्ती रो मेळो करणरी योजना बणाई। वीं बखत अेक तगरो ले'र सगळा टाबर आटो, तेल अर गुड़ भेळो करण नैं मांगण व्हीर हूग्या। सारा टाबर अेक ढाळ सूं सागै बोलै – “कुत्ती-कुत्ती रो मेळो। कुत्ती ब्याई जाटां रै। जाटां घाली रोटी। कुत्ती हूगी मोटी। अेक घुचरियो मेरो। अेक घुचरियो तेरो।” जीं जात रो घर आवै छोरा वांरो ई नांव लेवै अर जापायत रो जुगाड़ बिठावै।
वांरो मेळो घर-घर जाचतो काळियै रै घर री पोळ पूग्यो। कुत्ती रै मेळै री गूंज सूं सारो घर उठा मेल्यो। टींगर-टींगर्यां कुचमादी करै अर लड़-लड़ मरै। गंगलो पोळी मांय सूं हेलो पाड़्यो “ताई! सीपली ब्याई है सो अेक गुड़ री डळी, अेक मिरियो तेल अर अेक धपसो चून रो घाल।” काळियै री मा वीं रामरोळै में काळियै नै तगरो थाम्यां देख’र उकळतै पाणी ज्यूं खरणाई – “अरै! राममार्या! नाड़ीटट्या, तूं आं बिगड़ै तीवणां रै सागै हूग्यो। तैं बहोत रोबा घाल्या है। ठैर, आज तेरी सतेवड़ी घणी जचा’र करस्यूं। आं मरज्याणा ऊतरी उतारां रै साथै बिना तन्नै ढोई कोनी,” यूं झाळ पटक नै गंडक मारण रो डंडूकलो इसड़ो बायो कै काळियै रो भोबरो फूटतो पण बाळ भर रो आंतरो रहग्यो। काळियो तो तगरो छोड़ नै दी दड़ी। बाकी छोरां में अेक सरणाटो सो बहग्यो। काळियै री मा दकाल मारी – “निकळो म्हारी पोळ सूं। राम रा सुवांर्या बरण-बरण रा भेळा हूग्या। जे ओजूं पग मांड्या तो खोज बाळ न्हांखूगी। थारै मायतां रा लोही पीवो। म्हारै क्यूं गैल पड़ो?” ईं दकाल सूं छोरां री चेतना पाछी बावड़ी अर पलक झपतां बै तेतीसा देग्या।
थोड़ी ताळ में काळियै रो बाप पोळ में बड़ियो अर बोल्यो – “यो क्यांरो रोळो हूर्यो है? काळियो ओळमो ल्यायो दीसै।” “अजी, थारो बो तीवण घणो कुचमादी है। बास रा सगळा टींगरां नैं भेळा कर ल्यायो। कैवै, कुत्ती रो मेळो है, तेल गुड़ घालो। राममार्या नै ओ ठा’ कोयनी कै समो के बगर्यो है। काळ मूंडो फाड़ मेल्यो है। बाणियो रिपिवै रा तीन पाव दाणा पल्लै नीं घालै। दो जूण दो टीकड़ां रो जुगाड़ नीं बैठै। मोठ तो घीव सूं मूंगा हूर्या, मन मोस नै पड़्यां हां। इबकळै सिरकार भी फेमन रो काम नीं चलावै। मिनखपणो कींकर रैसी। इयां सोच’र म्हारो भीतर भिळ्यो जावै है। टींगरां नैं सीरै री सूझै।”
“काळियै री मा! टाबरां नैं काळ-सुकाळ रो काईं बेरो। वांरा तो खेलण-रमण रा दिन है, वांसूं माथा-पच्ची ना करिया कर। थ्यावस राख। परमातमा सब ठीक करसी। वांरो खेल निराळो है। वां चूंच दी नै चुग्गो भी देयसी।” काळियै री मा झरण-झरण आंसू टळकावती चूलै खानी मुड़नै बोली “कोरो ढांढस आतमा नै ढूकै कोयनीं। चुग्गो रूळग्यो धूड़ में.. सीळी धूड़ पिराणहीन – इणरी कूख सूनी-सूनी.. निपजणै सूं टळगी.. बांझ..।”
काळियै रै बापू रै काळजै नैं अणचिंत्या भावां रै भय रो काठ मारग्यो। वांरै हिरदै री उगती फसल नैं निसासां रो कातरो कुतरतो जावै है। मन रै पानां पर हळवां सरकतो-सरकतो अणथाक...!
मोलियै रै बाड़ै में टींगरां रो टोळ घूचरियां नैं लड़ावै। आप-आपरै खूंजै में बिचूरेड़ी सूकी रोट्यां रा टुकड़ा लुका’र ल्यावै अर घूचरियां नै खुवावै। रेसम सा कंवळा बाळां पर हाथ फेरै, पुचकारै – लाड करै। थोड़ी ताळ पाछै गुद्दी पकड़’र लड़ावै। काळियो जीत री मोद में मगन नाचै-कूदै तो गंगलो हार नै नकार, जिदबाद करै। कूड़ी गाळ काढै अर घुळै। दूजा टींगर अेक’र साथ बोलै – “अठारियो अटकै। बीसियो पटकै, इकीसियै रै मूंडै खरगोसियो लटकै।” ईनरियै रा बस नीं चालै के करै। झरळायेड़ो काळियै नैं चिड़ावै –
“काळियो टींट घड़ै में पादै
घर रा जाणै झालर बाजै।”
काळियो करड़ावण में किरड़कांटियै री ज्यू रंग बदळै –
“ईनूणी रै कारणै मैं मरूं दही में डूब
गुमगी ईनूणी, आहा गुमगी ईनूणी।”
सायेनां रा चबड़बोथिया बेसी बढग्या। थापा-मूकी हुवणै वाळी ही कै चाणचकै सोनली हांफरड़ै चढी आई अर काळियै री बांवां सार नै बोली – “काळू भाया, ओ काळू भाया..! सुण..! सीपली रै सीरै रो तगरो हुणतो काको लेय नै आपरी कोटड़ी खानी लुकग्यो।”
“क्यूं के बात होई..?” काळियो तिलमिलायो।
“के बेरो। मैं तो उवांच देवण गरसेळा ढूंढण नै परै निकळगी। हुणतो काको उठै ई ऊभो हो। चाणचकै ई तगरो उठा’र लुकग्यो।” सोनली सुबक्यां चढी ई बोली।
“तन्नै रोई हाळो गटकाज्या सोनलती..! फेर तेरो सिर निगै राखै ही।” काळियो वींरै सिर पर अेक ठोलो मारतो बोल्यो – “आवो रै छोरो! हुणतो काको सीपली रै तगरै रै कांई मांगै। अेक मिरकली तेल नै जीव निकळग्यो। ऊपर सूं सीपली रो मेळो भांगण लाग्यो। चालो वींरै टापरै। काळियै री हुंकार रै सागै सगळा छोरा ही..ही..रा रोळा मचांवता हुणतै री पोळ पूग्या। काळियै दकाल मारी – “ओ हुणता काका..? तूं म्हारी सीपली रो तगरो कठै लकोयो..?”
हुणतै री आंख्यां पथरीजगी। जाबक सूनो हुयो बैठ्यो। छोरां री टोळी नै अेक टोर सूं निरखै पण सूझै कोयनीं। वींरी निजरां आगै काजळियो अंघारो पसर्यो पड़्यो, छोरां नैं कांई पड़ूत्तर देवै। चुकली री मा नैं आज तीजो दिन है जापै में पड़्यां। अजवाण रा मोया सुपना हुयग्या। अेक बखत गुड़ रै घोळियै री बिद नीं बैठी। किंया बैठै..? घर में कुठला सूना हुया उबासी मारै। मोट्यार तो कड़ाका काढ लेवै पण जच्चा रो कांई हुवाल। आज तो निरहार खाली पेट। मिनखपणो रुळग्यो। साबूत हाथ-पगां रै मिनख री करारी हार। काळजै री अणूती डोर तणी, आ हीमत बांधी फकत सीपली रै तगरै उठावण री। मजबूरी रै घाघरै रो नाड़ो भर्यै मिनखां में खुलग्यो अर वो नागो हुयग्यो। वींरी पत री बीरबानी सरम सूं हळाडोब हुयगी। हया सूं बेसी कोई मरण हुवै..!
हुणतो अेक'र चेतो कर्यो अर बोल्यो – “टाबरो..! मैं नीं ल्यायो। थानै बैम हुग्यो हूलो। बावळियो, मैं तगरै रो कांई करतो। हुणतै री जीभ ताळवै में खिचीजै। बोल सावळ नीं अूपड़ै सोनली हुणतै रै कांधै भचभेड़ा देवती बोली – “कीकर कूड़ो बोलै काका..! मेरी आंख्यां आगै तगरो उठायो।” टींगर ओजूं हेला-हेल मारी – “सीपली रो तगरो दे काका, सीपली रो तगरो दे।”
भीतर चुकली री मा नैं रोळो सुणीज्यो। वा स्याणी लुगाई ही। लामी सांस ले रैयगी। थाळी में पूरस्योड़ै सीरै रो डोळ देख’र असल बात जाणगी। झट छोरी रै हाथ धणी नैं बुलवायो। हुणतै री फिरती लास भीतर पूगी। जच्चा बोली – “मेरो गोळो दूखै है। कीं चोखो नीं लागै सो ओ सीरो बां छोरां नै बांट द्यो।”
हुणतो भणेड़ो नीं हो पण चुकली री मा रै चैहरै रो अेक-अेक आखर बांचग्यो। हुणतो भाठो हुयग्यो। वींरी सूकी आंख्यां में कीं टोपा निचुड़ नै बारै निकळ्या। अेक भूचाळ सो आयो – जीवण रो आखरी बंभूळियो। हुणतो थाळी लेयनै बारै पूग्यो अर बोल्यो – “ल्यो, टाबरियो! कुत्ती नै सीरो पुरसो..! तगरै में नी, कांसी री थाळी में। तगरो फूटग्यो, थाळी में जिमावो। जच्चा गावो।”
हुणतो पागल सो बरड़ातो गयो। आखर पोळ री देळी खनैं गुड़कग्यो। टाबर तो परमहंस हुवै। खावै-पीवै अर रळी करै। पण हुणतै री पीड़ नै कुण पीवै। वो खुद परमहंस बणग्यो – सुख-दुख री चिंत्या सूं परै बेलाग-वेराग..सांत..!