गंगली चुपचाप थापड्यां थापती री’र रोती री आज मिसराणी नाराजगी सूं मोसो मार’र कह्यो के—“बा भोत बदमाश होयगी” बीं रो कसूर ओही हो के-बा बोर्यां रै चट्टड़ रै अड़गी ही, जको कदास आलो हो बींनै बेरो कोनी हो के अछूत रै अड़ जावै सूं, जदतांई बो सूखै कोनी, बिरामणी छू कोनी सकै।
छोटी-सी बात पर मिसराणी खीज-खीज’र आखै बास नै सिर पर उठा लियो हो’र बींनै इंयाळ की गाळ्यां काढी के सात-पीढ्यां रा पितर तिरपत होयग्या सुणनै व्हाळा रै कानांरा सै कीड़ा झड़ग्या बा निस्चै कर लियो के “अबै बा ई घर में काम करणै कदेई आप नहीं आवैली”
गंगली रोती री’र थापड्यां थापती री बा सोच्यो—“मिसराणी आप खुद किती गंदी रैवै है बीं रो घाघरो, ओढणूं, कांचळी पैरणै रा पूर किया मैल सूं कुच हुया रैवै है, कनोकर निकळै तो बी खाटी-खाटी बास आती रैवै है डीलमां सूं ऊपर सूं अतो ठसको बिरामण रै घरां के जन्म ले लियो, सुरग सूं उतर आई।”
दस-बारा ढांडां रा ठांण बुहार’र पनरा कूंडा गोबर थापूं हूं तो आ ई रै बदळै मैं देवै ही के है! थोड़ी-सी राबड़ी’र चोथाड़ी रोटी राख’र कहवै—“खींवलै री भू; अड़ोई लेज्याई न जाणै कितो बड़ो ऐसान करै है आई अड़ोई सारै मिलै तो पार पड़गी”
परस्यूं दस सेर जौ कूट’र दिया हा, तो आ के दियो? एक मूठी भंगड़ा। कई दिनां रा सड्या गळ्यां, इल्यां पड्या हाथां में फाला उपड़ आया हा और बीं दिन कुत्तर करवाई ही, बच्यो-खुच्यो खाटो’र जौ की आधी रोटी जकी बासी ही, दे’र घणी धणीयाप बताई ही।
बा सिसक्यां भरती री’र ओढणै सूं आंसू पूंछती री बीं रो मन अपमाण री बात याद कर’र घणूं ही सिकुड़ रह्यो हो बा मिसराणी बीं री ऊमर री ई है दोन्यां रो ब्याव सागै-सागै ही हूयो हो, पण बा तो बीं नै बूढ़ी लुगायां री नांई सीख देवै है बात-बात पर धरम री दुहाई देती रहवै बीं रो कैणूं ओ है के— “बीं रै पीरा रा ढेढ इता बदमाश कोनी बै भोत दब’र रैहवै है, बै सेठ लोगां री पूरी पूरी इज्जत राखै है, अठांळा तो बिरामण-वाण्यां नै क्यूंई कोनी समझै है, बड़ी लापरवाई सूं रैवै है, बै सेठ लोगां रा कपड़ा आसण, बैठकां छूता डरै कोनी”
गंगली नै अपणै बाबै पर किरोध आयो जद बा छोटी ही मेमसा’ब आई ही बीनैं बीरै साथ क्यूं नहीं भेजी? जे भेज देवतो तो ओ अपमाण क्यूं सैणूं पड़तो चाणचक काकै री बेटी नथली री याद आयगी बीं नै—पाछली साल ही तो वा बीरै सागै दो दिन तांई रै’र आई है कती चोखी तरह सूं रैहवे है, आज डागदरणी बण’र रैहवै है बिरामण्यां’र-बण्यांणियां बींसूं क्यूं बी परेज कोनी राखै बा बांरै घरां जावै है’र, पिलंगां रै गदरां पर बैठ’र बांरी आंख, नाक, कान, जीभ, छाती टिंटोळ-टिंटोळ’र देखै है अपणै हाथां सूं दवाई बणा’र कदे देदेवै तो न्ह्याल हो ज्यावै है बै हाथ जोड़’र, दांत निकाळ’र घणूं-घणूं ऐसान मानै है अबै सैगः बींनैं मेमसा’ब कैहवै है बड़ा बड़ा धरम-धुजी पिंडतां रा सेठां रा बेटा बींसूं हाथ मिला’र घणां खुशी हुवै है है तो बा बीरै काकै री बेटी भैण ही पण बा मेमसा’ब है, शहर में रैहवै है रंगीण फ्रांक पैहरै है बाळां में तेल-साबण’र किलीप लगावै है।
बा कह्यो हो के— “फिजूल ही गांव में अपणी जिन्दगानी गंवा री है, बीरै सागै शहर मैं क्यूं नी रैहवै है बा बींनै भणा देली पढ़ा लिखा’र मेमसा’ब बणा देली जद बींसूं कोई बी ईसामसी री का’ण्यां सुणती, कती चोखी लागती”
गंगली चावै ही के बा शहर में जा’र अपणी भैंण कनै रै’वै, पण बींरो बूढ़ो बाबो बींनै समझायो के— “हजारां, लाखां बरसां सूं बींरो एक धरम है। धरम बदळणै सूं भगवान नाराज हुइ ज्यावै है” ई वास्ते बींनै अपणै मन री इंछा मन में ही दबा लेणी पड़ी पछै बींरो ब्याव कर दियो।
बाबो कैवतो के “बीरै सासरै घणी ही बिरत है बिरामणां’र सेठां रा कई घर है, जाटां री कई गुवाड़ी है, ठांकरां रा रावळा है, बा बठै मजै सूं रैहसी राणी बण’र रैहसी’र आज बीं नै बोर्यां रा चट्टण छू देणै पर ही अती गाल्यां सुणणी पड़ी”
गंगली थापड्यां थापदी’र ठांण बुहारणैं चाली बीनैं याद आई के “परस्यूं बींरी पड़ोसण पैपलै री भू पुजारीजी सूं किंया मुळक-मुळक बांता करै ही एक बार बींनै बी सला रै तोर पर बतायो हो के पुजारी जी बीं पर जी-ज्यान सूं मरै है बीरै आखैं गांव रो चून आवै है बो बींनै चून देवतो रैवैलो कठै बी द्यानगी जाणैं री जरूरत न पड़ै ली केवल दो-च्यार दिनां सूं”।
केळ ज्यूं कांप उठी गंगली, बा हक्की-बक्की-सी सारी बातां सुणती री, अंत में पड़ोसण समझायो के “आखर बा इसी कसीक सती सावतरी है, बा न जाणै कताक सेठ-साहूकारां रा, कताक बिरामण-पिंडतां’र ठाकरां रा लड़कां रा नाम गिणा दिया, जकांनै वा आपणै अंगूठै पर नचाया हा, बा आंख्यां मार’र बतायो के— “बीं रो भायलो बीं पर ज्यान देवै है, बो इस्यो-बिस्यो मिनख नहीं है, बींनै न्ह्याल कर देसी, आयेड़ै मौके सूं चूकणूं समझदारी कोनी है क्यूं घर-घर सूं ठण्डा-बासी टूकड़ा ल्यावै है? नित नया माल क्यूं न उड़ावै? आ जिन्दगानी बार-बार थोड़ी ही आणै की है”।
गंगली बींरी बातां सूं समझोतो कर सकी, पण आज तो बींरो विरोध भभक उठ्यो— बा अपणूं धरम पाळै है तो बींनै छूणं बी पाप हो ज्यावै है धरम सूं भिरस्ट हो ज्यावै है तो ऐ बिरामण बाणियां’र ठाकर बींरी जूंठ तक खालेवै है? अर आ मिसराणी...? जींरो मोट्यार सोहधो’र लुच्चो है, अपणी सान बघारै है, ढेढणी, रूंगी, सांसण कीं नै ही छोड़ी नहीं, बिरामण रै जमारै में आयगी, जींसूं ही के हुयो?
बींरै मन मैं आई के- बा भाग’र बारै चली जाय’र पढणों-लिखणों सरू कर देवै अपणी भैंण नथली री नांई मेम बण’र रैहवै जीं समाज मैं जात-पांत रा झूठा दिखावा है, बीं समाज नै ही छोड़-छिटकावै।
बा बुहारी काढ री ही, बींनै मिसराणी री नणद री जनेत याद आयगी जनेत मैं आछा-आछा तिलकधारी बिरामण आया हा मोटा-मोटा टीका काढता’र घण्टां-घण्टां गोमुखी में हाथ राखता, जका भी बीसूं मीठी मसकरी करै हा, अर मिसराणी रो बीरो, जको पैहरां तांई पाणी उछाळतो, दोन्यू बक्तां सिंध्या करतो, गोमुखी में हाथ घाल’र माळा फेरतो, बींनै दो-तीन बार मिठायां दी ही, आंख मार’र कैवतो— “मेघवाळजी, गरीबां पर मेहरबानी राख्या करो” जद बा मुळक’र चली जाती जता दिन जनेत री, कोइ-न-कोई बींसूं छेड़खानी करतोई रैहतो बींनै याद आयो- बीं दिन वो जनेती तो बीसूं टकरा बी गयो हो बाद में बो बतायो के- भांग घणी ज्यादा ले लैणैं सूं बींनै तिरवाळो आयग्यो हो, पछै तो दो दिन बो बीरै लारै ही पड्यो रह्यो।
गंगली ठांण बुहार’र बिना अड़ोई लिया ही रीतै हाथ अपणै घरां कांनी चाल पड़ी- बा सोचती जावै ही- ओछी जात में जनम ले’र सुन्दर होणूं अभिसाप है, ऐ बड़ी जात बाजणैं व्हाळा ओछी जात री भू-बेट्यां नै सुख सूं जीवण वी को देवै नै? घर व्हाळी कठै ही धूळ फांकै है’र ऐ कठै ही। ऐ बाजै तो ऊपर सूं धरम रा ठेकेदार पण भीतर-भीतर इतो पाप कमावैं हैं के मिनखपणौं बी लजा जावै है बा सेठ लोगां रो हीड़ो चाकरी करै है तो के हुयो, अपणूं धरम तो बांनै कोनी बेच दियो के नीचे जात व्हाळा है धरम हुवै ही कोनी। अब बा बिरत री गुवाड्यां रो हीड़ो चाकरी करणै बी नहीं आवैली, जरूर जरूर शहर चली जावैली, नथली कनै
चाणचक लारै सू हेलो सुण्यो खींवलै री भू...!
वा मुड़नै देख्यो— मिंदर रा पुजारी देवता ऊभा तिलक काढ्यां खड्या है जींरी बींरी पड़ोसण सूं सांठ-गांठ है’र जींनै बी भायली करणूं चावै है बा कांप उठी’र खाती-खाती चालणै लागी
“चून चावै तो आपणै मिंदर सूं ले जाया कर”
बा क्यूं बी न बोली वा सोच्यो— आंनै धरम रा ठेकेदार बणा कुण दिया, जका नीच कोम री भू-बेट्यां पर लांग खोल्यां ही फिर है अछूतां री भू-बेट्यां अपणै धरम नै अछूतो राख बी कियां सकै है गरीबी री जिन्दगाणी’र ऊपर सूं आंरो इत्याचार! पग-पग पर परलोभण। जैं कदास कोई सैंठी रैहवै तो भी कियां रैहवे! ओ पुजारी पचास कै आसरै होयग्यो है, पण अबार तांई ईरो दिल तो जोध-जुवान हो रह्यो है।
“क्यूं, बोली किंया कोनी! के नाराज है?”
बा चायो के दोड़’र दूर निकळ ज्याय, पण पैर तो पंसेरी बंध्या सा होयग्या
“चून रो भाव-ताव पपलै री भू नै पूछ लेई!”
मन में आयो के दोड़’र पुजारी रो गळो घोट देवै, घणेक गांव री लुगायां रो धरम भ्रिस्ट करणै व्हाळा नै ईसूं कम सजा बी के देवै। ऊपर सूं तो दूर-दूर करता रैहवै है’र भीतर ही भीतर जूंठो चाटता रैहवै है, ओ बी कोई धरम है कोरी धोखाधड़ी है, दिखावो है, वासणा रो नंगो नाच है, जकै में जात-पांत, धरम-करम से रुळ रिया है।
अपणै घरां पूगी’र वास्ते बालणै लागी के पड़ोसण आयगी, पैपलै री भू! बा आय नै बीरै कनै बैठगी’र घर-गिरस्ती री बातां करणै लागी ईनै बींनै री बातां बणायने धीरै-धीरै समझाय’र कह्यो—“गंगली, बावळी मत बण, मैं तनैं घर री जाण’र बार-बार सीख देऊं हूं के- तूं पुजारी जी री बात मान लै, न्ह्याल हो ज्यासी वो थारै लारै बावळो हो रह्यो है, बोही क्यूं, ठाकर बी तो थारै पर मर रह्यो है”
गंगली चुपचाप सुणती री’र वा बोलती री—“आज बी वै दोन्यूं मनै बुला’र कह्यो है के तूं बांरी बात मानलै, बै तनै क्यां री बी कमी कोनी रैवण देसी। बै थांरै वास्तै तड़पै है! तूं राजी खुशी मान ज्यासी तो चोखी बात है!”
गंगली कांप उठी बींनै अपणी ओछी जात पर घणों ही किरोध आयो बा इती कमजोर क्यूं है? जींरी छिंयां सूं न्हाणं पड़ै है, जीरै छूणैं सूं चीज छुईज ज्यावै है, अपवितर हो ज्यावै है, कुआ, तालाब, बावड्यां जीरै चढणैं सूं गिंदा हो ज्यावै है, जीर मिंदर में जाणैं सूं भगवान भ्रिस्ट हो ज्यावै है, पण बीं जात री लुगायां रे सागै काळो मूण्डो करतां कोई दोष नहीं! जींरै छूणैं में बी पाप है, बीरै सागै गिंदो काम। राम! राम! आंनै ऊंची जात व्हाळा ने कैवै कुण! लांबा-लांबा टीका-टमका काढ’र अछूताई राखणूं’र अछूतां री भू-बेट्यां सागै धूल फांकणी, के दोन्यूं ही पुण्य है?
बींरी पड़ोसण कैवती री— “अगर तूं ज्यादा नखरो करैली तो ठाकर’र पुजारी दोन्यूं मिळ’र रात्यूंरात सोवती नै उठवा मंगा लेवैला।”
पैपलै री भू पूठ फैरी कै बा चूल्है में लोटो भर पाणी न्हांख’र मांचै पर जा पड़ी बा रोती री, रोती री जदतांई बीं री आंख न लागगी।
एक पखवाड़ै बाद गंगली’र बीरै मोट्यार नै गांव में कोई बी कोनी देख्यो बींरी खाली पड़ी टूटी-फूटी गुवाड़ी, ढांढा’र गधेड़ां री बैठक बणगी।
ठाकर’र पुजारी कनोकर निकळता तो लाम्बी-लाम्बी उछासां छोड़ता।