म्हारै घरै जिकै दिन बीनणी आई वौ दिन म्हांनै आज भी याद है। उण दिन नै स्यात बीस साल रै नेड़ै-तेड़ै हुयग्या। म्हारी घरवाळी पदमा नै तौ इत्तौ कोड चढ्यौ कै वा तौ पूरै घर में कोनी नावड़ै ही “छोर्‌यां, जावौ अे, लुगायां नै बुलावौ। बारात आयगी। बीनणी आयगी। अे छोरी, तूं जा ! थाळी ल्या.. रोळी-मोळी ल्या.. बीनणी नै बधावां।” लुगायां आयगी। थाळी आयगी। रोळी-मोळी आयगी। लुगायां गीत उगेर्‌यौ “म्हारै आंगणै बाजा बाज्या..”। गीत गाईज्या। नेगचार हुया। फेर बीनणी घर में बड़ी।

बीनणी जद म्हारै घर रै आंगणै में काम करती, बीं रा छैलकड़ियां रा घूघरिया छमछम बाजता जणा म्हारौ जी-सोरौ हुवतौ। म्हैं उण छमछम नै सुणतौ। वा छमछम कानां रै जरियै म्हारै काळजै तांईं पूगती जणां भगवान रै मिंदर री मधरी-मधरी घंट्यां बाजै अैड़ी लागती।

म्हैं आंगणै में बैठ्यौ रैवतौ। बठैई चाय पीवतौ। बठैई रोटी मांग लेवतौ। बठैई गपशप करतौ रैवतौ। म्हारी घरवाळी कैरी-कैरी आंख्यां सूं म्हारै कांनी देखती। स्यात म्हैं उणनै सुहावतौ कोनी। पैली तौ वा टोकती संकती, पण छेवट उणनै कैवणौ पड़्यौ- “थे बारै जावौ, अठै बीनणी फिरै। थांरै थकां इणनै घूंघटौ काढणौ पड़ै। कदै ठोकर खायां पड़ जावै, टाबर तौ है ई। थे बूढा सारा अठै करौ कांई हौ..?

जिकै दिन म्हनै लखायौ कै म्हैं बूढौ हुयग्यौ। म्हारौ हक आंगणै सूं उठग्यौ। घर आदमी रौ कोनी, लुगाई रौ हुवै। उण दिन सूं म्हैं बारलै कमरै में गयौ परौ। बारली बारी खोलली। गळी में आवतै-जावतै नै देखण लागग्यौ।

टैम टिपतां जेज कोनी लागै। म्हारी घरवाळी जिकै दिन म्हनै बूढौ बतायौ, म्हैं बूढौ कोनी हौ। म्हारै डील में जवानी वाळी सागी कड़क ही। म्हैं सावळ घूमतौ-फिरतौ, खेत में काम करतौ। बुढापौ तौ इत्तौ हौ कै म्हारौ छोरौ परणीजग्यौ।

दिन आयां बीनणी रै टाबर हुयग्या। जद उण आपरै छैलकड़ियां नै संभाळ’र बक्सै में मेल दिया। नूंवा गाभा पैरणा छोड दिया, बोदां में टोपा टिपाण लागगी। तौ जिंदगी में टैम आवै है। अबै पैरै भी कियां, वा कदैई टाबर संभाळती, कदैई घर रौ काम। उणनै काम सूं ओसाण कोनी मिळतौ। धीमै बोलण वाळौ बहम उण छोड दियौ। पोसावै कियां, टाबर जक कोनी लेवण दै। वै लड़ै तौ डांट लगावणी पड़ै। वा होळै बोलणै सूं पार पड़ै कोनी। घूंघटौ भी अबै नेम तोड़ण लागग्यौ। कदै राखती तौ कदै मूंडौ उघाड़ौ हुय जावतौ। मूंडै पर जिकी भोर में खिलतै फूलां री लावणी ही बा कीं तौ टाबर चूंघग्या, कीं बगत बुहार परौ लेयग्यौ। पण जिकौ मोटौ फरक आयौ वौ कै उण इण घर नै आपरी मुट्टी में लेय लियौ। टैम री सूई वा घुमावै बठीनै घूमै। म्हारली बूढळी कदैई उणनै हुकम देवती, पण अबै वा हुकम सारू उणरै मूंडै कानी ताकती “बीनणी, म्हारै पीहर वाळां रौ कागद आयौ है। तूं कैवै तौ जावूं, नींतर टाळ करूं, है तौ ब्याव।”

जद बीनणी आपरै अफसरी लहजै में कैंवती “थांरौ जावणौ जरूरी है तौ जावौ। थांरै सागी भाई रौ तौ ब्याव कोनी। क्यूं भाड़ौ लगावौ। थांरै गयां अै टाबर म्हारी जान नै रोवैला। सगळा थांरै हाड हिळ रैया है। कुण राखैला आंनै..?”

म्हारी घरवाळी बीनणी रौ आदेस मिलणै पर टाळ कर देवती, पण खुद नै जावणौ हुवतौ जणां वा आपरी सासू रौ आदेस कोनी चावती। फकत सूचना देय देवती “म्हैं म्हारै पीहरै जावूं। आप डांगरां नै नीर दीज्यौ। गावड़ी दूध देवै है, दूध काढ लीज्यौ। बिलोवणौ हुवै तौ बिलोय लीज्यो, नीं टाळ कर दीज्यौ। अर आपरै टाबरां सागै बहीर हुय जावती।

टाबर जणै इण धरती पर उतरै, बेल बधै। उण रा टाबर बडा हुवणा हा। अर म्हैं जाणै अबै बुढापै कांनी बेगौ-बेगौ भाग रैयौ हौ, इयां लागै हौ।

दिनूगै उठूं। पाणी म्हारै सिराणै रैवै, पी लेवूं। म्हारी सदां री आदत है। कदैई होकौ भर लेवूं तौ कदैई बीड़ी सिळगा लेवूं। बीड़ी-होकौ पीवतां धांसी आवै, जिकी आवै ई। सागै बलगम आवै। हिम्मत कोनी रैयी कै उठ’र बारै थूंकूं। बठैई थूक देवूं। म्हनै म्हारै सूं घिरणा हुवण लागगी। बीनणी अर टाबरां नै तौ हुवणी’ज ही। अेक दिन बीनणी म्हांनै बोलती सुणीजी “अबै बापसा, इण कमरै में रैवण जोगा कोनी रैया। आंरौ मांचै बारली चूंतरी पर घाल दिया करौ, बठैई थूकता रैसी। कमरै रौ सत्यानास हुय रैयौ है। कोई ढंग है..!” तौ कमरौ तौ म्हारौ बणायोड़ौ हौ, पण धणी और हुयग्या। पण उणरी बात साची ही। म्हारौ बणायोड़ौ कमरौ म्हारै हाथां नास हुवै हौ। अबै म्हारी घरवाळी रौ सत कोनी रैयौ। उण रा गोडा दूखण लागग्या। वा लाठी रै सहारै चालण लागगी। लोग कैंवता “इण बुढापै रौ कोई धणी-धोरी कोनी। इणरौ कीं नीं बटै। लोग इणनै मोल कांई, उधार कोनी लेवै। वौ बुढापौ म्हारै सिराणै-पगाणै आय’र ऊभौ हुयग्यौ।

पैली तौ म्हारै पैलै हेलै रौ असर हुंवतौ। अबै पांच हेला अकारथ जावै। छोरा मूंडौ मंचकोड’र भाग जावै। बीनणी बांनै ललकारै जद कीं सुणै।

म्हैं रोज बारली चूंतरी पर सोवूं। बठैई छोरा म्हनै होकौ भर’र ला देवै। बठै पाणी पकड़ा देवै अर बठैई रोटी।

घरवाळा पैली म्हनै पूछ’र सब्जी बणाया करता, फेर वां वौ बैम छोड दियौ। पैली म्हैं रोटी में काण-कसर काढ दिया करतौ; म्हैं वौ बैम छोड दियौ। जैड़ी भी लूखी-सूखी आवती, खा लिया करतौ। काया नै भाड़ौ देवणौ हौ, दे दिया करतौ। ऊपर पाणी पी लिया करतौ। जवानी री बात और ही, बुढापै री बात और। बुढापै री खुराक बदळ जावै। दिनूगै कोई री सब्जी सूं रंजै कोनी। कीं छाछ-राबड़ी हुवै तौ पेट भर्‌योड़ौ लागै। काया तिरपत हुवै तौ हुवै, नीं हुवै तौ नीं हुवै। पाणी पी’र जी नै टिका लेवै। और जोर कांई चालै..? बुढापौ सोचै टैम टिप जावै तौ सही है। रात नै कीं दूध-खीचड़ी मिळ जावै, धान हळकौ हुवै तौ ठीक रैवै। नींद सावळ आवै। नीं तौ कदैई ऊदस उठै, कदैई जी दो’रौ हुवै, कदैई सांस उठै, कदैई नींद नीं आवै, पण टैम तौ टिपाणौ है, टिपावै। उपाव कांई..?

अेक रात पतौ नीं कांई बात हुई कै रोटी आई’ज कोनी। म्हैं हेला मार्‌या, पण सुण्या कोनी। राम जाणै कांई हुयौ कै सगळै सून्याड़ हुयगी, जाणै च्यारूं कांनी सोपौ हुयग्यौ। पैली तौ भूख हेला मार्‌या, पण वा जपगी। म्हनै नींद रौ अेक गुटकौ आयग्यौ। भूख नींद मांगै, पण मांगै कद तांई..? म्हैं जाग्यौ जणा भूख सागै जागगी। म्हैं दुखी हुयौ, मन में पछतावौ आयौ। सोचण लाग्यौ कै इण सूं तौ मौत आछी है। म्हैं रोटी सूं मूंघौ हुयग्यौ..!

म्हैं हिम्मत कर परौ उठ्यौ। घर च्यारूं कांनी बंद हुय राख्यौ हौ। स्यात सगळां रै ऊपराकर नींद फिरगी। आसै-पासै कुतिया जागता रैवता, वै सोयग्या। म्हैं फेरूं मांची पर आय’र आडौ हुयग्यौ। आज कांई होयौ..? घरवाळा म्हारी रोटी भूलग्या। म्हारी बूढळी कठैई पड़ी हुवैली भेळी हुयोड़ी। उणनै सुणीजै नीं, सूझै नीं। उणरौ आपरौ बोझ कोनी संभै, म्हारली कुण सुणै..? मन में विचार कर्‌यो छोरा भूलग्या दीसै। पण छोरा गया कठै..? स्यात रामलीला घलै है गांव में, बठै गया दीसै। म्हैं आडौ होवूं। फेरूं बैठ जावूं। भूख नै नींद कठै..? म्हैं फेरूं अेक गुटकौ पाणी पीयौ। फेरूं अेक बीड़ी सिळगाई।

इत्तै में दूर टाबर बोलता सुणीज्या। स्यात रामलीला खिंडगी। छोरा आवता हुवैला। बात साची निकळी। छोरा नैड़ा आयग्या। म्हैं हेलौ मार्‌यौ

“अरे कुण है..? घोटियौ है कांई..!”

“हां दादा।”

साचाणी घोटियौ हौ।

“अरे घोटिया, म्हैं तौ भूखौ हूं।”

“अरे दादा, म्हैं तौ भूल गियौ।”

“वाह भाई, वाह..!”

घोटियौ अर पूरणियौ मांयनै गया अर मां नै जगाई। “मां, मां..! आज दादौ भूखौ है।’’ “अरे मर मरज्याणा, म्हनै तूं काची नींद सूं जगा दी। तेरौ हिंयौ फूटेड़ौ हौ..?” वा बरड़ायां जावै ही। कैयां जावै ही। हुकम दियां जावै ही। बा फेरूं बोली “अरे बीं हांडी में देख। कीं खुरचण पड़ी हुवैला, घाल दै। दूध रौ अेक पळियौ घालदै। गिट लेसी।”

म्हनै वा बरड़ावती सुणीजै ही। बोलती सुणीजै ही। हुकम देवती सुणीजै ही।

रात ठंडी ही, पण काया गरम ही, बोल गरम हा। म्हैं ना बोल सकै हौ, ना चाल सकै हौ, ना कीं कर सकै हौ।

छेवट उण अेक बात कही जिकी रा बोल काळजै गडग्या। बा बोली “गांव रा सगळा बूढिया-बूढळी मरग्या। आपां वाळां बूढियां नै मौत कोनी आवै। पतौ नीं, अै गळै रा हाड कद निकळसी..?”

स्रोत
  • पोथी : साहित्य-सुजस (भाग -1) ,
  • सिरजक : करणीदान बारहठ ,
  • संपादक : डॉ. श्रीमती प्रकाश अमरावत ,
  • प्रकाशक : माध्यमिक शिक्षा बोर्ड, राजस्थान, अजमेर ,
  • संस्करण : प्रथम
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