भूरी अब नाक ताई धापगी। रासू नैं एक’र भलै बुचकारय्यो—काँधै लगायो। समझायो—लाड़ी! आज दूध कोयनी। दिनगे पी लेई। अब सकर खाले, घी खाले, ले खाँड रो चूरमो करद्यूं। पण तीन बरस रो रामू स्याणो नी भोळो कूकतो-कूकतो को थम्योनीं। ‘दूध पीऊँला, हूँ तो दूध पीऊँला।” कै’र ठणकण लागियो। छेकड़ भूरी आखती हो’र दो थाप लगाई। ले पीले दूध! और पी दूध। दूध पीवण वाळो डोळ हुंवतो तो कीं भागी रै जामतो। टापरै में भाग’र क्यूं आवतो। ‘करम कमेड़ी रो अर मन राजा रो।’

थाप लागताई रामू अरड़ायो! रामजस उणरो बाप सुणताई बारेस्यूं भाग’र आयो। कांई हुयो? रामू कीकर रोयो? कै’र रामू नै गोदी लगायो। रामू बुसबुसियाँ फाटै—रोवतो कूकतो बोल्यो—मा मारी। कीकर मार्‌यो? रामजस गरज्यो।

भूरी को बोली चाली। माँचे स्यूं उतर’र तळै बैठगी अर धरती कुचरैं लागी। रामजस रामू नै झुलावतो झुलावतो भूरी नै बूझ्यो, रामू कीकर रोयो? भूरी भळै को बोली नीं। ‘हूँ बूझूं हूँ थारै मुंडै में जीभ कोयनीं? रामू कीकर रोयो?

‘आपरै जामणियाँ नैं रोवै है।’ रीसां में आ’र भूरी बोली। हूँ थानैं बीस बार कै दियो नौकरी रै चुंचाड़ी लगावो। जगां जगां पूर गुदड़िया ढोवती-ढोवती हूँ तो आखती हुगी। तीन दिनां स्यूं सारे गाँव में बूझ धापी। दूध को मिलेनीं। कोई मोल देवै नीं सींत घालै। जेसू, धरमो और गीतगी तीनूं दूध दूध करतां सोयग्या। रामू दूध बिना रोटी रो टूक को तोड़ैनीं। तीन दिनां में सूख’र खेलरो हुग्यो। अब इण नै कीकर समझाऊँ। दूध तो दूर रह्यो। इण तीनूँ टाबरा नै देखो—एक खाट पर पड़्या है। रामू नै थे सुआ लेस्यो। भळै मेरे खातर कोयनीं।

रामजस रूआंसो हो’र देख्यो। एक टूटेड़ै झोळै में उणरी बेटी अर दो छोटा बेटा नींदा में ऊपरथळी पड़्या है। दावण मां’र पग नीचै लटकै है। पीठ जमीं रै अड़ री है। भलै आप री खाटली कानीं जोयो। मूंज री खाट। ठोड़ ठोड़ स्यूं टूटेड़ी जेवड़ी—झाड़ी रा ऊंळा सूंळा सेरू ईस! खाट कांई—हाथ रो उत्तर हो। रामू सुबकियां चढतो चढतो नींद में सोयगो। सुपनैं में बरड़ायो माऊ!

दूध! रामजस काँधै चेप्यो—थेपड़्यो। जद कीं जपग्यो तो खाट पर सुवायो। अर आप भी गोडा गळै में घाल’र पड़ग्यो। भूरी तीनूं टाबरां नै सिराणैं खानीं सिरका’र भेळी हू’र पगात्यां पड़गी।

रामजस जात रो बामण। बीस बरसां स्यूं मास्टरी करै। दो च्यार बरसां में कठै ठाठियो जचावै इत्तै में बदळी रो हुक्म पूगै। बीस बरसां में कोई पन्दरा गावां रा रूंख देख लिया। पै’ली पै’ली एकलो हुवतो जद तो दौ’रो-सौ’रो धिकाव लेवतो। पण अब लुगाई-टाबर—मोकळो अरसो हुग्यो। सरू में तो मकान को मिलैनीं— मकान मिलज्या तो भी दो रोटी लारै सात चीज चाहै। घर-गिरस्ती रो काम। माड़ो दूबळो आपरी टाबरी नै पाळै हो, पण अबकै बदळी हुणै स्यूं तो भोत दुःख पायो। आखो सामान ढोवतां ढोवतां तीन दिन लागिया। कई चीजां महंगी सस्ती बेची, कई साथै ली। दूध देवती गाय जिकी १५०) में मोल लीनी, बदली हुणैं स्यूं खड्यां खड़ी आधै मोल बेची। बटाऊ रो माल लुटाऊ। घास, पूळा कूतर, लकडी-बळीतो कई चीजां सींत में दीनीं। अठै आ’र भळै सारी चीजां री दरकार पडी। और तो खैर दोरी-सोरी धिकावै, पण दूध री जाबक अड़गी। सारे टाबरां में दूध पीवणै री बाण। अठै सारा भूखा सोवै। रामू तो दूध बिनां भोत फीको। पीसै नीं मिलै नीं सींत। मां बाप रो जीव घणोई दौ’रो पण हाथ तोड़ै’क पग!

रामूं नै छाती स्यूं लगायां रामजस खाटली में पड़्यो पड़्यो आपरी जिनगानी री पोथी रा लारड़ा पाना उथलै। नींद आवणी ओखी हुगी।

नींद भी मूंडा देख देख टीका काढै। भागी लोगां नें जिण रै परमात्मां री दया स्यूं सारा ठाट लाग्या रहवै-बिना लोरी दियां नींद आवै। तो दुरभागियाँ री रातां है जिकी पसवाड़ा फेरतां-फेरतां कटणी ओखी हुज्या। रामजस नींद रा भोत न्होरा काढ्या बाकी नींद तो दूर, आंख्यां सळ को पड़ैनी।

ढळती रात। चौदस रो चांद ढळतो ढळतो फीको हुग्यो। आखो गाँव नींद- में चूंच हुयो। गळी में कदै कदास कुत्ता भूंकै। बीच-बीच में रामू री सुबक्यां सुणीजै। इत्तै में भूरी पसवाड़ो फेर’र बोली, “नींद आयगी कांई?”

रामजस— नहीं, नींद कोयनीं आवै। तूं अब तांई जागै है? हूँ जाणै हो तूं सोयगी!

भूरी—नींद आवै कोयनीं।

रामजस— सोयज्या, तूं घणी फिकर मत कर। नयो गाँव है। अणसैंधा लोग है। दस-पांच दिनां में सारो काम जच ज्यासी। मकान मिल ज्यासी— खाट लकड़ी रो बन्दोबस्त भी हुज्यासी। टाबरां खातर दूध भी मिल ज्यासी।

भूरी—टाबरां नै भूखा सूवा’र मायतां नै कीकर नींद आवै। तीन दिन हुया, मेरो तो काळजो भकभक बळै है। इसी नौकरी स्यूं तो माँग’र खाणो चोखो। बाळ सोनो कान तोडै। पचास पातड़ी स्यूं कांई हुवै? पेट लिवाड़ी को चालै नीं। फिरतां-फिरतां हैरान बत्ती होवणों पड़ै। टावरां में कित्ता फोड़ा पड़ै?

रामजस—तू गैली बातां कीकर करै? नौकरी छोड़’र काई भूखो मरणो है? चढ़ी हाँडी रै ठोकर मारणी चोखी कोनी। जुग देख’र जीवणो है। आखै मास्टरां रो ही हाल है।

भूरी—आखां रो हाल चोखो! पण म्हांस्यूं तो टाबरां नै रींरावतां को देख्या जावैनीं। एक दिन की तो बात कोनीं। नौकरी में तो यूं ही पूर लाद्यां फिरणो पड़सी।

रामजस—तो तूं बता अब नौकरी छोड़’र कांई करस्यां?

भूरी—कांई करस्यां? और सारी दुनिया काई करै है? पचास-साठ रिपिया आज रै टेम में रांडी बूची कमावै है? भळै थां जिसी गुलामी कोनीं भुगतै। अफसरां री गरज कोनीं करै। जगां जगां भटकणो कोनीं पड़ै। कांई कर्‌यो पढ’र? मूंगलो अणपढ है पण रेलवे में ९५) लेवै है। धनियो टीडी अफसर रो चपरासी है पण ९०) लेवै है। सूरजो गिरदावर ५वीं कलास है पण १२०) लेवै है। अर थे १४ बरस टापरो थोथो कर’र अै सत्तर पानड़ा ल्यावो हो तो कांई जैजैकार करो हो? कांई पड्यो है इसी मास्टरी में? इण स्यूं तो रेलवे का चपरासी हुवता तो चोखो जिको रेल भाड़ो तो बचावता!

रामजस—बावळी। मेरी अर चपरासी की एक ही बात है कांई?

भूरी—मैं एक कद बताऊँ हूँ? मैं तो कैवूं हूं चपरासी थां स्यूं घणो कमावै है अर घणो सूखी है।

रामजस रीसां में आ’र बोल्यो— अबै ठीक है। तूं अब सोज्या!

रामजस आपरी लुगाई नै तो कै सुण’र सुवादी, पण—आपनै नींद आवणीं ओखी हुगी। भूरी सांची ही कैवै है। रीस आवै तो कांई? उण नै मिलै कांई है? उण रो ध्यान लारड़ै २० बरसां कानीं गयो जद वो घणै कोड अर चाव स्यूं मास्टर बण्यो हो। पैली पैली कित्तै चाव स्यूं टाबरां नैं पढावतो? कित्तै हरख स्यूं गाँव सुधारण रो काम करतो? वो भी एक जमानो हो जद वो गाँवां खातर दिन रात भाग्यो फिरतो। विद्या स्यूं इलाकै नै जगमगा दियो। आजादी रै कोडां में अपणे आप नै मिटा दियो। पण इत्तै बरसा तांई ईमानदारी स्यूं काम करतां भी उणरी जद कोई तरक्की नीं होई तो निरास हुग्यो। वो देख्यो जाबक कामचोर अर हरामखोरां री अफसर तरक्की करै है—रिश्वत ले’र चोखी चोखी जगां बदली करै है, तो हिम्मत हारग्यो। उण रो कोई दोस नीं, कसूर नीं तो भी एक जगां टिकण दै जीं। रमण वाळा दड़ै नैं जैयां ठोकर मारै उणी तरह रामजस अफसरां रो दड़ो बणर्‌यो। उणनै रिश्वत खोर अफसरां स्यूं नफरत हुगी अर पक्को विस्वास हुग्यो इण नौकरी में कदैई तार करै नीं। सोचतां सोचतां जद रामजस री आंख्यां लागी जद गाँव रे कूवे पर माळी वारियो बोलै हो।

रामजस दो महीनां ताई मोकळी चेस्टा करी पण रैवण नै मकान को मिल्योनीं। वो ही पैली वाळो कोठो जिण में बिरखा हुवै जद पाणी पड़ै नीं गरमी। उण रै आगै आँगणो अर ऊपर छात। रेत में बैठ’र भूरी रोटी पोवै अर घर का आखां टाबर जीमै। रामजस टेम होणै स्यूं स्कूल में चल्यो जावै अर छुट्टी हुवै जद ज्यावै। स्कूल में बैठण नै खुरसी मूढा। पाणी रो कोई परबन्ध कोनीं। गन्दी स्कूल। छोटा-छोटा कमरा जिणमें ५-७ मास्टर १००-१५० टींगरां नै रोड्या राखै। भूखा मास्टर—

दिन भर दुख पावता अफसरां अर गाँव वाळां नै धूळिया देवै। गाँव रा कीं मास्टर स्यूं रूं जोड़ैनीं।

दूबळै नै दो साढ। एक दिन रामजस घड़ो ले’र कूवै चाल्यो। पैली भूरी पाणी ल्यावंती पण कई दिनां स्यूं पेट में दरद होणै स्यूं वा जाणै को सकी नीं। मारग में लुगायां उण नै देख’र आपसरी में बतळाई ‘मास्टर हो’र पाणी ल्यावै।’ सुण’र रामजस रै तेल रा-सा छांटा लाग्या। आगै कूवै पर कई मिनख बतळाया मास्टरां कै तो हराम री कमाई आवै है। रामजस कीं बोल्यो नीं चाल्यो। घडियो भर’र काँधे धर’र बोलो बालो आग्यो। आत्म-ग्लानि अर सरम स्यूं मर्‌यो जावै। घरे आ’र घड़ो उताख्यो तो भूरी किरावंती दीखी। दरद स्यूं आखी रात तिराम तिराम करती काढी। रामजस भूरी नैं समझा’र भाग्यो। हूँ अबी आऊँ हूँ। कीं दवाई पाणीं मिलै तो ल्याऊँ हूँ। तूं बाई गीतगी। तेरी मां खनैं बैठज्या। हूँ दड़ाछंट जाऊँ हूँ—आं पगां को आं पगां आयो। गुवाड़ में आ’र रामजस अठी नैं बठीनैं बूझय्यो। पण गाँव वाळा जाबक आडू वैद भोपां नैं मानै। कोई कहवै मास्टरजी! आखा दिखावो, कोई कहवै सोरणी बोलो। रामजस नैं घणीं रीस आवै पण नेड़ै निड़ास कोई वैद नीं डाक्टर! अब कांई करै? सहर दस कोस अळगो। भाग’र घरे पूग्यो। देख्यो तो भूरी दरद स्यूं दुलड़ा हुवै। खनैं तीनूं टाबर बैठ्या मां कानी आँख्यां भर्‌यां देखै। छोटो नन्दू आपरी मां रा बोबा चंचेड़ै जिणमें दूध री एक बूंद नीं। दूध नीं आवै जद रोवै। टाबरां री गत अर घरवाळी री दुरदसा देख’र रामजस माथो पकड़ लियो। भूरी पेट नैं पकड्यां पकड्यां ‘किरणावती किरणावती’ बोली। “ज्यान नीखळै है, कोई दवाई पाणी मिल्यो कांई?” सुण’र रामजस माथो हेठो कर लिन्यो अर आँख्यां स्यूं टळक टळक आँसू पड़ै लागा। भूरी कै सामीं को देख्यो गयोनीं। रामजस नै रोंवतां देख’र भूरी कीं जी करड़ो कर’र बोली। लखदाद है थानैं! थे लुगाई रै बरोबर बैठ’र रोवण लागिया? भळै बापड़ा टाबर कांई करसी? दवाई अठै नीं मिलै तो सहर स्यूं ल्यावो। कोई ऊँटियो मिले तो ले ज्यावो। अर हाँ। जावता साथै मास्टर नेमजी नै लेता जावो। उण री बीनणी नैं अठै भेजो। टाबर सारा भूखा बैठ्या है। इणां नै रोटी टुकड़ो कर’र घालै।

रामजस भाग’र नेमजी खनैं पूग्यो। सारी बात कैई। सुण’र बापड़ो भूखो को भूखो साथै हो लियो अर लुगाई नै उण रै घरे भेजी। अब दोनूं गाँव में भैत पूण देखता फिरै। पण सोने रो टक्को दियां ऊँट को मिलै नीं। कोई कहवै, सा! म्हें तो भाड़ै जावां कोयनी—दूजो कहवै सा म्हारो तो भैत अणसारो है। दोनवां नैं घणी रीस आवै पण कांई जोर? इत्तै में स्कूल री दूजी घंटी बाजगी। दोनूं भूखा का भूखा स्कूल में पूग्या। जा’र हैड मास्टर स्यूं छुट्टी मांगी पण वो जाबक नटग्यो। दोनूं आपरो सो मुंडो ले’र कलास में बैठग्या। पढावै कांई धूळ? जी टंगारै टगर्‌यो। मन में इसी रीस आवै जाणैं जंजाळ नै तोड़’र भाग ज्यावै। रामजस रीसां में आर दफ्तर कानीं चाल्यो। सामीं हेडमास्टर मिलग्यो। बोल्यो, आप एकला जा सको हो। दोनुवां नै छुट्टी कोनीं मिलै। खैर एकलो ही सही। कै’र रामजस शहर खानीं भाग्यो— दड़ाछंट। शहर सात कोस—लाठी री जात। दोरो सोरो पूग्यो तो आगै डाकधर कोनी। उड़ीकता उड़ीकता जद आयो तो रामजस आखी विपदा सुणाई। सुण’र बोल्यो—भाग’र मोटर ले आ। फीस रा ५० रीपिया लागैला। पचास रिपियां रो नांव सुण’र रामजस एक’र सैंतरो बैंतरो हुग्यो। पण भळै ‘संभळ’र बोल्यो सा! हूँ बजार में जा’र मोटर ल्याऊँ हूँ।

बजार में ढबढेका खावंतां-खावंतां एक मोटर हाळो मिल्यौ। बो पचास रिपिया मांग्या। सुण’र कानां रा कीड़ा झड़ग्या रामजस जाड़भीच’र तीस रिपिया कै दिया। पण मोटरहाळो बोल्यो, मास्टर जी! उण खोड़ा में जावै कुण? टेढो-मेढो ऊँचो-नीचो रस्तो। कठै धोरा, कठै डैरी। तो थे आग्या जद मुलायजै स्यूं हामी भरली। रामजस घणोई किणतावै रिपिया भी पचास लेसी अर ऊपर स्यूं मुलायजै हाळो जूतो न्यारो। पण कांई जोर? रिपिया तो पचास घणांई करड़ा लाग्या, पण भूरी री ज्यान पचास रिपियां स्यूं बेसी लागी। झट मोटर में डाकधर नै बैठा’र टुरग्यो। दूबळै नै दो साढ। खोड़ में मोटर खोटी हुगी। घणीं रामाण करी पण कळ ऊक चूक हुगी। खोड़ों में भचीड़ खावतां खावतां भूखा तिस्या जद गाँव पूग्या तो भूरी लोथ होई पड़ी। डाकधर देख दाख’र सूई लगाई जिण स्यूं भूरी नैं चेतो हुयो। आँख्याँ तिरमिराई अर धूजतै हाथ स्यूं ओक मांडी। रामजस भाग’र गिलास में पाणी ल्यायो। होठां स्यूं लगायो। दो गुटका ले’र नस हलादी। डाकधर ऊँधी पाधरी दो च्यार दवायां दे’र आपरी फीस मांगी। फीस रो नांव सुणता मोटर रो भाड़ो भी याद आयो। तनखा पांच महीनां स्यूं आई कोनीं, कनैं जहर खावण नैं पीसो नीं। ज्यान रै भोत ध्यारी मंडी। छेकड़ बापड़ो नेमजी अठीनैं बठीनैं स्यूं कर करा’र दोनवां रो मुं बाळ्यो।

टाबरां रै भाग स्यूं भूरी दस-पांच दिनां में बारा पडंग हुगी। लाठी रै ठेगै अठीनैं-बठीनैं फिरण टुरण जोगी हुगी। टाबरां नैं दोनूं टेम मंडकिया सेक दे। पण चिन्त्या रै कारण डील पांघरै नीं। खायो अंगचंग लागै नीं। गीतगी रै ब्याह री चिन्त्या में दोनूं लोग-लुगाई जाबक सिटग्या। थोड़ी तनखा—घणो खरचो। गाँव में बळीतै रो तोड़ो, कणाई फाटी पुराणी पोथ्यां बाळ’र आग जगावै कणाई घास-फूस बाळै। अधकाची अधपाकी पळसेयेड़ी रोटी जीमैं। अठै आ’र भूरी मोकळी दुःख पाई। गाँव में छाछ मांगी को मिलैनीं। साग सब्जी री तो बात क्यूं बूझो। सहर स्यूं अळगो होणै रै कारण हरेक चीज बस्त भोत मंहगी मिले। ऊपर की कमाई रो धेलो नीं। सहरां में पराईवेट ट्यूसनां रा मोकळा पीसा हो ज्यावै, पण सहरां में तो अफसरां रा खास खास आदमी ही रह सकै—बाकी रा तो बापड़ा खोड़ां में जूण पूरी करो।

रामजस भी स्कूल मैं घणो आखतो। आठ-आठ घंटा स्टूल पर बैठ्यो बैठ्‌यो आखतो हुज्या। कुरसी राज देवै कोनीं। मास्टरी है या सजा? कीं समझ में आवै नीं। टींगरां से कोई एडो कोनीं। कोई रोक टोक कोनीं। पैली अर दूजी कलासां में तो चाहे कित्ता भरती हुवो—कोई कानूंन कायदो नीं। दो-दो च्यार-च्यार कलासां सागै पढाणी पड़ै अर कित्ता विषय। इत्ती माथापच्ची—आ तनखा अर बैठण नै स्टूल। इण सारी चीजां स्यूं घणीं नफरत हुगी। एक’र स्कूल में अफसर रो दोरो हुयो। स्कूल नै अठीनैं बठीनैं देख्यो, खोट कसर काढी। मास्टरां नैं दस पांच खोटी खरी सुणाई अर मोटर में जा बैठ्यो। रामजस भाग’र आगै ऊभो हुयो। हजूर। आप स्यूं पांच मिनट बात करणी चावूं। अफसर गरज’र बोल्यो मैं एक मिनट भी बात नीं करूं। इत्तै में कोई नेतो आग्यो। कीं बात पर अफसर स्यूं ताण तकर हुगी। नेतोजी! घंटे अफसर रै माजनैं रा टक्का झाड़िया।

रामजस रै पाड़ोस में कीं छोरी रो ब्या हो। जान आई उण दिन मांडै वाळा पाड़ौस रै नाते भूरी होरां नैं जीमण नै बुलाई। मास्टरजी जाबक नटग्या पण टाबर जद ठणकण लागिया तो भूरी उणानै जिमावण नैं ले गयी। ब्याहवाळां रै घरे मोकळी लुगायां भेळी ही। कोई बूझय्यो, बाई! अणसैनी कुण लुगाई है। बीनणी री मा कैयो, आतो आपण मास्टरणी है। कई लुगायां सागै बोली, ‘बोली। के मास्टरणी। को गैणों पाती। या टांका देयेड़ी पुराणी साड़ी। मास्टरां रै तो मुफ्त री कमाई आवै है।’ सुण’र भूरी नाड़ नीची करली। इत्ते में गीतगी अर नन्दू बारै स्यूं कूकता आया। बूझ्यो, लाडी! कीकर रोया। गीतगी रोवती रोवती बोली, मां! मैं फाटेड़ी घघरी कोनीं पैरूँ। मनैं सारी छोरियां चिगावै है। भूरी उणनैं बुचकार’र कैयो, बाई। तनैं और नूवीं घघरी करा देस्यां। इत्तै में नन्दू भी ठणकै लागो। मां! मैं भी नयी कमेच पैर स्यूं। सारा छोरा कहवै तो गरीब मास्टर रो छोरो है। सुण’र भूरी स्यूं बैठ्यो को रह्यो गयोनी। उठ’र खाथी खाथी घरे आ’र मांचलियै में मुं माथो ले’र पड़गी। टाबर रोवता कूकता लारै आया। मां नै सुबकियां भरता देख’र डरता-डरता खनैं बैठग्या।

छुट्टी दे’र रामजस जद घरे पुग्यो तो घर रो हाल देख’र सैंतरो-बैंतरो हुग्यो। खाटली खानीं निजर गई तो काळजो धक धक करै लागो। भाग’र भूरी री नाड़ पकड़ी—माथै पर हाथ मेल्यो। मन में डरतो डरतो बूझ्यो, कांई हुयो? जी सोरो है कांई? भूरी सामीं देख्यो। बोल्यो को गयोनीं सिर गोडाँ में दे लियो। रामजस रो बूझण रो हियाव को पड़योनीं। ठोडी ऊपर नै उठा’र देख्यो तो आँख्यां स्यूं टळक-टळक आँसूड़ा ढळकै। अपमान अर असन्तोस री आग स्यूं जळ’र हिवड़ै रा सारा भाव आँख्यां रै मारग हो’र गालां पर ढळण्या। भूरी कातर दिरस्टी स्यूं पैली आप खानीं भळै टाबरां खानी देख्यो। एक आखर कयै बिनां ही रामजस सो समझग्यो। आँख्यां रा भाव आँख्यां में ही पढ लिया। वो देख्यो कीं टाबर रै कमेच नीं हैं, कीं रै जूतिया कोनीं तो कोई टोपी खातर उणमणो है। भूरी रै दो पुराणी साड़ी छोड़’र तीजी रो नांव नीं। अर आपरै किसी पौसाकां? एक पजामो अर एक कमीज जिणनै छुट्टी रै दिन धो’र सुखावै। पगां में टायरां री चप्पल, टाबरां रो यो हाल! लिछमी सी लुगाई रो यो डोळ! कित्तै दिनां में बोरिया बिखरग्या। अर देस रै भाग विधाता वां—मास्टरां री दुरदसा गाँव में अपमान—राज में अपमान, जात बिरादरी में अपमान! बापड़ा मास्टर!

मिनख री जिनगांनी में कई घड़ी-पळ इस्या आवै जिका उणानै ऊँचा उठा दे। अर कई घड़ी-पळ इस्या आवै जिका उणानै पींदै बठा देवै। आज भूरी रा आँसू अर उणरै मनरो दुःख उणनै नयो परकास दियो। बो हड़बड़ा’र उठ्यो। आँख्याँ फाड़’र हाथ पसार’र बोल्यो—भूरी उठ! आज बीस बरसाँ री गुलामी पर ठोकर है। बीस बरसां री कङ्गाली पर थूक है। उठ। बींटो बाध’र टाबरां नै त्यार कर। समान बांधा-जुड़ी कर। गुलामी नै नमस्कार है।

भूरी अचरज में आ’र सिर ऊँचो कर’र देख्यो इत्तै में रामजस आधो समान बाँध लियो हो। भूरी उठ’र बोली— इसी कांई बात है? दिनगै चल्या चालस्यां।

‘दिन उगसी आपणै गाँव में।’ रामजस बींटो बाँधतो-बाँधतो बोल्यो— तूं बरतण-भांडो बोरी मैं घाल, हूँ दो ऊँटीया ल्याऊँ हूँ। तूं ताका-तोली मत कर। मेरै मूंडै खानी कांई देखे है?’ कै’र रामजस हिरण हुग्यो। भूरी बांधा जूड़ी करती-करती सोचै—अब कांई हुसी? इणां में इत्तो जोस अर हिम्मत कठै स्यूं आगी? टाबर सारा बिरेड़ा-सा भूरी नै चीज-बस्त झलावै। नन्दू धीरै-सी बोल्यो—‘मां! अब आपां अठै कोनी रहवां कांई?’

‘नां बेटा! आपणै गाँव चालस्यां।’ गाँव रो नांव सुणताई नन्दू नाच्यो। ‘हां मां! जठै आपणी पीळती गाय है। मां। मैं अब अठै कदैई नीं आऊँलो। अठै दूध कोनी मां।’ इत्तै में रामजस दो ऊँट ल्यार जैकाया। सारो टांडो लादलूद कर गाँव स्यूं निकळ्या तो मास्टरां अर गाँव वाळां नै ठा पड़्यो। लारै भाग’र हेलो कर्‌यो- ‘मास्टरजी, इसी कांई बात हुगी? कीं कैयोनी-सुण्योनीं। नौकरी छोड़णी आछी कोनीं। चढी हांडी रै ठोकर मारणी चोखी कोनीं—भळै पछतावोला।’

‘पछतावो बात रो है मैं अब तांई नौकरी छोड़ी कोनीं। गुलामी में सारी जवानी होम कर दीनीं।’ कैवतो-कैवतो रामजस ऊटां री पूरी खींच लीनीं।

देस में आम चुनावां रो रोळो। गाँव-गाँव में रैण-पैण हो री। कान पड़्यो को सुणीजैनीं। जगां-जगां उम्मेदवार परचो भरै। आखै देस में एक नुवों जोस—एक नुवीं आस। पर थळी रै इलाकै रा लोगड़ा जाबक निरढाळ। उणानैं इस्यो आदमी कोनीं मिल्यो जिको पार की पीड़ आपरी जाण’र मिनखां री सेवा करै। अयां घणाई माधीया भाई— धींगाणियां पंच वोट लेवण नै त्यार पण जनता कीं रो विश्वास नीं करै। इत्तै में जद लोगड़ां नै ठा पड़्यो रामजस मास्टर सिरकारी नौकरी छोड़’र आयो है तो लोगां रै मोद नीं मायो—फूल’र घिंटाळ हुग्या। बाग्या-दौड़्या उणारै खनै जा’र विधान-सभा री सदस्यता खातर अरज कीनीं। रामजस राजनीति मैं पड़णो को चावै हो नीं। पण पांच-च्यार दिना में लोग पिंडो ही नीं छोड्यो तो हाँ भर’र फारम भर दियो। रामजस रो’ना सुण’र दो-च्यार विरोधी हा बै आपरो नांव पाछो ले लियो। इण तरियां निरविरोध सदस्य बणग्यो। आखै राज रै चुनावां रो फळ निखल्यो। मिनिस्टरी बणी। उणरी लायकी, सच्चाई अर ईमानदारी के कारण मुख्यमन्त्री भोत राजी हो। उणानें शिक्षामन्त्री बणा’र उणारी भोत इज्जत कीनी। अब भूरी रो गोड़ै-सूदो राज। लोग ठोडियाँ हाथ घालै। लारड़ी कमाई काम आगी। पूरबळै करमां रो फळ मिलियो। परमात्मा रै घर में देर है पण अन्धेर कोनीं। टाबरो है भाग स्यूं धूरी है सागेड़ी ताबै आगी। अब लारलै दुखां नै भूलगी। पण उण दिन नै कदै नीं भूलै जद बीस बरसां री नौकरी रै लात मार’र घरै आया हां। साँची कैई है, ‘घोड़ै अर मरद रै तकदीर रो ठा नीं पड़ै।’

स्रोत
  • पोथी : राजस्थान के कहानीकार ,
  • सिरजक : बैजनाथ पँवार ,
  • संपादक : दीनदयाल ओझा ,
  • प्रकाशक : राजस्थानी साहित्य संस्थान, जोधपुर ,
  • संस्करण : द्वितीय संस्करण
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