म्हे उपन्यास पढण में मस्त हो। च्यारां कानी सांयती छायोड़ी ही। अचांणचक कुतिया भुस्या, जिकी इण बातरी सूचना ही कै कोई ओपरो मिनख गळी में आयौ है। म्हैं सोच लियौ के कोई शर्मा साब रै मिलणवाळो आयौ हुसी... का बधूड़ो दारू पीय परो'र बळ्यौ हुवैला। म्हैं पाछौ पढण में रमग्यो।

इत्तै में तो म्हारै बारलै आडै री कड़ी खड़खड़ायी। कानां रै पड़दां नै चीरती करकरी आवाज म्हनै खारी लागी। उपन्यास खासौ रोचक हौ, इण वास्तै आवाज सुण' म्हेैं अणसुणी कर दी। पढ़तौ रह्यौ। कड़ी अेकर औरूं जोर सूं बाजी। सोच्यौ, अबकाळै तौ उठणौ पड़सी। पण उठण सूं पैलां इण बेटैम आवणवाळै ने मनो-मन अेक कोझी-सीक गाळ काढी। रीस पण आयगी ही। रीस नै गिट परो'र उपन्यास नै अेकानी मेल, म्हैं धींगाणै-सीक ऊभौ हुयो। सोच्यौ के आडो खोल दूं, कठैई कुतिया नीं लटूम जावै। माळियै सूं निकळण लागौ, इत्तै पप्पूड़ै री मां री आंख खुलगी ही उण म्हनै रोकर कह्यौ - थे पढ़ौ, आडो म्हैं खोल दैसूं। सोच्यौ, इत्ती रात गयां कुण आयौ हुसी? म्हेैं उपन्यास उठाय पाछो पढण लाग्यौ, जिकै रा अबै मुस्कल सूं पन्द्रै-सोळै 'क पाना रह्या हा।

सुणौ हौ... देखौ तौ कुण आया है? हेलो सुणीज्यौ। पडूत्तर देवण सूं पैलां म्हारौ मूंढौ कड़वौ हुयग्यौ। सोच्यौ, इणी रौ भाई-वाई आयौ हुसी। जणाई इत्ती राजी हुय' हेलो करै। साळा रात नवै सुख सूं सूवण कोनी देवै। जे बैन सूं मिलणौ हौ तौ दिन रा किसौ आईजतौ कोनी? किसा अबै परदेस सूं आया है! पण आंनै दिन भरतो कमाई सूं फुरसत मिलै कोनी। आवौ, बैन सूं मिलण नै जरूर आवौ, पण टेम तो देखणी चाइजै। बैन नै लेवण आयौ हुसी। अबार कैसी के माजी री तबियत अचांणचक बिगड़गी, का कैसी के काकोजी रौ पग आखड़ग्यौ जिकौ हौ-री-हणै बुलाई है। जांणै डाक्टरणी इज हुवै।

सुणौ कोनी कांई.... ? थांरा बैनोईजी आया है। पप्पूड़ै री मां रौ हेलो अेकर भळे सुणीज्यौ। म्हेैं सोच्यौ, किसा बैनोईजी आया है अर हणै बेटैम कियां आया है? म्हैं झट ऊभौ हुय' वांरी अगवाणी सारू नीचै आंगणै में गयौ। जावतां वांनै देख्या तौ म्हनै झुंझळ सी 'क आई। पण फटाक सूं हाथ मिलाय 'र म्हैं पूछ्यौ- “आज थे ईनै-कीनै रस्तो भूल गया? अबकै तौ घणां दिन हुयग्या मिल्यां नै। काल म्हैं सोची ही थारै आवण री, आज थांरा दरसण हुयग्या आवो, ऊपर पधारौ।

पगोथियां चढ़ता वां कह्यौ- बस ईयां थांरी याद आयगी, जणै मिलण नै आयग्यौ। थे तौ कोरा कैवौ- कैवौ इज हौ। कदेई आय तौ संभाळौ कोनी। काल पिरसूं तांई आवौ घर कानी।

'आसूं, जरूर आसूं, नई क्यों! और है तौ सगळा राजी-सुखी? म्हैं पूछ्यौ अर वारै मूंडै सांम्ही जोवण लाग्यौ।

हां, सगळा राजी-खुसी है। मांचै माथै बैठतां वां कह्यौ। म्हैं नीचै सूं ठंडै पांणी रौ लोटो भर लायौ। उणारै पांणी लियां पछै लोटो पाछौ लेवतां म्हैं पूछ्यौ 'आज कियां आवणो हुयौ ?

बस, ईयां आयग्यौ। मिलण री इंछा हुयगी। वांरौ पडूत्तर सुण म्हेैं चुप हुयग्यौ। आगै कांई बात करूं? थोड़ी ताळ वां कानी ताकबो कस्यौं। सोच्यौ के औई कीं पूछताछ करै। पण वै म्हारै कानी ताकता चुपचाप इज बैठा रह्या। स्यात वै म्हारै कोई सवाल पूछणै री उडीक में हा।

म्हैं ईयां चुपचाप बैठौ रह्यौ। कांई बात करूं? थोड़ी ताळ आई सोचतौ रह्यौ। कदेई पंखै कानी देखतौ तौ कदेई रेडियै कानी। पंखै नै तेज अर धीमौ करतौ मचकावण लागग्यौ। वै म्हनै देखता रह्या म्हेैं वानै देखतौ रह्यौ। थोड़ी ताळ ईनै बींने ताक-तूक 'र म्हेैं नीचै हेलो करयौ- सुणै है नीं, बैगी सी 'क दो कप चाय तौ बणाय 'र दियौ।

“और कांई हाल है? म्हैं बात उगेरण सारू पूछ्यौ।

बस! सब ठीक-ठाक है। गाड़ी चालै है। वां कह्यौ। म्हनै उम्मीद ही के वै कीं पूछैला पण वै तौ उथळौ देय' नचींता हुयग्या दोनूं चुप! नीठ तौ म्हैं बात उगेरी, पण पाछी सून बापरगी। म्हैं ऊपर छात कानी जोवण लाग्यौ। पट्यां सगळी गिण नांखी। लम्बाई-चौड़ाई रौ अंदाज लगाय क्षेत्रफल निकाळ लियौ। पैलाई इसा घणाई मौका आया है। जद म्हैं काम कर चुक्यौ।

बात सरू करणै रौ तौ जांणे वां रै खण लियोड़ौ हौ। म्हैं वां कानी ताकतौ रह्यौ। वांरी चुप्पी सूं उथप'र म्हैं पोथी रा पाना उथळण लागग्यौ। अचांणचक म्हारौ ध्यान रेडियै कानी गयौ। ईंनै-बीनै सूई नै सरकाई पण आधी रात रा किसौ रेडियो बाजै हौ! चूं-चा कर-कराय'र बैठग्यौ। भळे वै तौ कीं कोनी बोल्या।

म्हेैं 'दर्शन दो घनश्याम...' धुन मूढै सूं काढी का वै चिमक 'र बोल्या -हैं? म्हें कह्यौ - ईयां ई, कीं नीं।

भळे म्हें माळियै री हरेक चीज माथै निजर नांखी। किणी चीज में नवोपण कोनी दीख्यौ। चदरो म्हैं सावळ कर लियौ। हाथां-पगां रा दो-दो दफै कटका म्हैं काढ लिया। हाथ ऊपर कर दो- च्यार उबास्यां म्हैं लेय ली। पण बात तौ वांरी तरफ सूं सरू हुई 'ज कोनी। अबै म्हनै रीस आवण लागगी।

म्हैं सोचण लाग्यौ, म्हारा सागी बैनोई है पण आंनै आईज टैम लाधी आवण नै? पण आंरौ कांई कसूर? दिन रा तौ मजूरी जावै। पांचवीं तांई पढ बैगा-सीक मजूरी जावण लागग्या हा। आजकाल तीन-च्यार सौ रिपिया रोज रा कमाय लावै। म्हैं आने पूरौ आव - आदर देवू। बियांस म्हारी बिरादरी में जंवाई रौ सासरै आवण-जावण रौ घणौ हिसाब कोनी। पण म्हेैं आनै दो- च्यार दफै कह्यौ हौ के आपरौ घर है। कदैई इंछा हुवै जद पधार जाया करौ। बातां करसां। ता पछै घणी दफै आयग्या हुसी, पण बातां म्हेैं कदेई कर कोनी सक्या। औं म्हारै सायनां है पण धंधै में फरक है नीं। घरां री चिणाई करै अर म्हैं मास्टरी। म्हारै काम सूं वाकफ कोनी अर म्हैं आरै। कीं जिकौ आपसरी रौ रिस्तौ संको बोलण कोनी देवै।

ईयां तौ म्हैं मुलकां बायरी बातां बघार लूं। स्कूल में मास्टरां अर छोरां सांम्ही घंटां बक लूं। भायलां सागै गप्पा मारण नै बैठ जावूं तौ पन्दरै आयां कोनी उठू। पण अठै तौ म्हैं कीं बोल कोनी सकूं। दोनां रै बिच्चै बड़ी खाई है जां। म्हारी बातां रा विषय कोनी मिलै। जद आया है, म्हारौ टैम ईयां इज कट्यौ है। चुपचाप! आंनै कीं-न-कीं तौ बोलणौ ईज चाईजै। म्हैं ओकलो आनै कांई-कांई पूछतौ रैवूं! छेकड़ म्हैं अक सवाल भळै फेंक्यौ- काम-धंधो कठै-कांई चालै है आजकाल?

“अठैई रामपुरियां री हेवेली कनै अेक घरियो चिणीजै है, बठै करूं। “दैनगी कित्तीक दे देवै है?

“साढी तीन सौ रिपिया रोज री रेट है आजकाल। फेरूं दोनूं पाछा चुप हुयग्या म्हेैं ईनै-बींने ताका-तोला करण लागग्यौ। मांचै हेठै ऊंदरो कुट-कुट करण लागग्यौ, वींने काढ्यौ। पछै चदरै री सळ काढण लागग्यौ। पंखो थोड़ो तेज करयौ जिकै सूं कमरै री सून कीं तौ तूटै। म्हैं इण चुप्पी सूं धाप'र ऊथपग्यौ।

“आज तौ बौत गरमी है। म्हारी बात सुण 'र वै खाली-“हूं ऊं कर 'र रैयग्या। म्हैं वारै चेहरै नै पढता सोच्यौं, आखर इत्ती रात गयां क्यूं आया है ? इसौ कांई खास काम अड़ग्यौ? रिपिया-पईसां री जरूरत हुय सकै।...औ लाजां मरता मांग नीं रह्या हुसी। म्हैं सोच्यौ, जे रिपिया मांग बैठ्या तौ म्हैं कांई करसूं। म्हारै कनै तौ रिपियां रौ नांव-निसांण कोनी। पैली बार मांगसी, इण खातर ऊतर कोनी देय सकूं। पण मजबूरी है। म्हारौ खुद रौ खरचौ दोरो-सारो कियांई कर चाल रह्यौ है। पढियै- लिखियै समाज में उठणौ-बैठणौ पड़े, खरचौ तौ लागै ई। तौ आप ओक आडी है। कोई कोई काम तौ जरूर हुवैला जद तौ अबार आया है।

अेकर पैलां सिंझ्या पड़यां आया हा। वीं दिन ईयांई मौनी बाबा दांई बैठा रह्या चाय पीय' टुरण लाग्या, जणां सौ रिपियां रौ नोट देय म्हनै हौळ सीक कह्यौ- “थांनै अेक काम भोळावूं। अेक- अेक रिपयै वाळी गड्डी तौ ला दिया। जरूरत है।

म्हैं दूजै दिन बैंक सूं अेक नुंवी गड्डी ला दी। वै बौत राजी हुया। जांणै के म्हैं वांरौ बौत बडो काम कर दियौ देखां, आज कांई काम भोळावै।

“लौ, चाय लेय लौ। पप्पूड़ै री मां रौ हेलो सुण म्हारै सोचणै में झटकै सूं बिरेक लागग्यौ। म्हेैं दोनूं चाय पीवण लागग्या। पीवतां-पीवतां अेकर दोनां री निजर मिळी, पण जबान कोनी खुली। चाय रौ गुटको लेवतां म्हैं सावळ वां रै सांम्ही फुरयौ। उडीकण लाग्यौ, देखां अबै कांई कैवै। चाय बैगी-सीक पीय'र वां कप-प्लेट हौळै सी'क हेठा मेल दिया। धीरे-सीक अेक खंखारो कर'र वै सावळ बैठ्या। म्हनै लखायौ के अबै जरूर कीं कैवैला। पण वां तौ कीं नीं कह्यौ। म्हैं चाय पी ली। कप मेलतां म्हैं ठीमर सुर में फेरूं पूछ्यौ और कांई हालचाल है?

वै बोल्या कोनी म्हैं वांरी मन-ई-मन वां लोगां सूं तुलना करण लाग्यौ जिका घणी ताळ ऊभा रैसी पण कोई खास बातचीत कोनी कर सकै। मिलतां पूछसी जरूर कांई हालचाल है?

ठीक है।

और सुणा

कांई सुणावां। गाडी चालै थांरी किरपा सूं।

और?

तू सुणा।

अच्छा, चालां भायला! भळै मिलसां।

पन्दरै-बीस मिनटां री मुलाकात में खाली इत्ती- सी बातां हुवै। बात म्हारै अर बैनोई सागै हुवै। अबै म्हैं साव ऊथपग्यौ। कांई ठाह बैनोईजी कीं कैवैला के नीं कैवैला। छेकड़ म्हेैं इज भळै बतळाया- और सुणावौ!”

कांई सुणावां सब ठीक है।

'म्हारै लायक कोई सेवा हुवै तौ कैवौ।

नईं नईं। कीं कोनी। म्हेैं तो ईयांई आयग्यौ। हुसी तो जरूर कैसां। थोड़ो 'क ठैर 'र म्हैं भळे कह्यौ- और? अबकाळै स्यात वै समझग्या। वां म्हारै सांम्ही जोयौ अर उठणै री चेस्टा करता कह्यौ- और? म्हेैं ऊपरलै मन सूं कह्यौ-ठैरौ। अबार कांई जावौ। अजै तौ पूणी बारै हुई है।

'बस, अबै चालसूं। मोड़ो बौत हुयग्यौ। थांनै तकलीफ दी।

नंई जी! इणमें क्यांरी तकलीफ है। आपरौ इज घर है। जचै जणां पधारौ। कदेई-कदेई दरसण दे दिया करौ म्हांनै ई।

'...! वै सांम्ही देखता रह्या, कीं बोल्या कोनी।

“ठैरौ। रोटी करावूं, जीम 'र जाया।

'अबार तो चालूं। भळे आसूं कणाई। वै ऊभा हुयग्या। 'अच्छा, आपरै जचगी जणां...।

हां, अबै ठैर कोनी सकूं। कह वै सांचै टुरग्या। म्हैं बारै गळी तांई छोडण नै आयौ। साईकिल माथै चढतां बै बोल्या - अच्छा, चालूं।

म्हैं कियां कह सकूं हूं जावण रौ...। अच्छा, राम-राम।

“राम-राम! भळै आया। कह परो पाछौ आडो ओढाळतां म्हैं सोच्यौ, अबै तौ पिंड छूटियौ। माळियै में जाय'र उपन्यास उठायौ, पण टैम घणी हुयगी जाण बत्ती बुझाई अर सूयग्यौ।”

थोड़ी ताळ हुई हुसी के पप्पूड़ै री मां बोली सुणीजी- सूयग्या कांई ओ?

हूं...। नींद आवै। कह परो म्हैं पसवाड़ो फेर लियौ।

कांई बातां हुई बैनोईजी सूं?

कोई खास बात कोनी हुई।

तौ कांई कैवता हा?

'बस, ईयांई आया हा। कीं कोनी कह्यौ।

'ईयांई-कियां, कीं तौ कह्यौ हुवैला?

'नईं ओ। वै तौ खाली मिलण ने आया हा।

पण कियां हुय सकै? घंटौ भर तांई गप्पां मारी, तौ कैवौ हौ के कीं बात कोनी हुई।

अबै बतावौ कोनी। क्यूं मांण भरीजौ!

“थारी सोगन! वां कीं कोनी कह्यौ।

वा सदा बात-बात माथै सोगनां खाया करै है। आज म्हैं वींनै चुप करण सारू औई उपाय काम में लियौ।

पण कीं तो कह्यौ हुवैला? भांणकी री सगाई री बात करै हा कांई? नंई, बात कोनी।

बस, थे तौ कीं बतावौ कोनी। आजकाल घणी सी 'क बातां म्हारै सूं लुकावण लागग्या म्हैं तौ थानै सगळी बातां बताय दूं। ईयां कह वा रीसांणी सी'क हुवण लागगी। म्हेैं थोड़े जोर सूं कह्यौ - कह दियौ नीं के वां कीं कोनी कह्यौ, विस्वास तौ

कर तूं।

सुण बीं बगत तौ पसवाड़ो फोर लियौ उण पण आज तांई वीरै जाणनै री इंछा बाकी है के म्हां उण दिन कांई बातां करी!

स्रोत
  • पोथी : राजस्थानी री आधुनिक कहाणियां ,
  • सिरजक : भंवरलाल 'भ्रमर' ,
  • संपादक : श्याम जांगिड़ ,
  • प्रकाशक : बोधि प्रकाशन
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