सियाळा नी रात ना वेल्ला पौ’र मांय टाड़ आपड़ी रंगत मांय अती। अंगास मांय परोड़ियो तारो लालघूम ततकी र्यो अतो। कूकड़ो बोलतं नारियो वादी नै समूड़ी वादण बे जणं उठी ग्यं। चूला मअें चार नं तण्णं नै पातरं लाकडं थकी तापणी करी। बे जणं लेमड़ा नं दातुणं नासका साथै घांहड़ थकं तापी र्यं अतं। जैम-जैम अजुवारू वधी र्यु अतु अैम-अैम नारिया नुं मन विचारं मअें गुंछवाई र्यु अतु। अंधारा मअें अैटलु सुख तो अतु के बाण्णै नं दुख नजरं सामं नीं आवतं। पाहे बे पोगं वेचे मुंडू दबावीने कुकड़ाई र्यु कूतरू सेरियु ‘कूं…कूं…कूं…कंक्क…’ करतू ऊभू थ्यू। पोग मौरे करीने कसरत करतू होय अैम पौरू थ्यू। थोड़ू’र मौरे जाईने अंगास सांमू मुंडु करीने भौंह्यू। नारिया ना सिकार नो हंगाता दैत्त सरखो कूतरो घणो वाल्हो अतो। पण हवार-हवार मअें अैनुं रोवा सरखु भौंहवु ठीक नीं लाग्यू। नारिये अेक वैरा तो ‘अे…सेरिया… हाड़…हाड़…’ करीनै टरकाव्यु पण सेरियो घड़ी अेक छानो र्यो अर फेर थकी भौंहवा लागो। नारिये नानी कांगड़ी लईनै सेरिया नै वाई। टाड़ मअें कांगड़ी लागतं मअें ई पाछो ‘कूं…कूं…कूं कंक्क…’ करतो थको बेहीग्यो।
समुड़ी अे वाचा उघाड़ी – “बापड़ा ने टाड़ मअें कैवु लाग्यू ओहै…? अैने-अैने भौंहतु अतु तो भौंहवा देता…। तमारू हुं वगड़ी र्यु अतू?”
“डैया फूटी ग्या हैं तारा..! बापो बीमार थईनै हौड़ मअें हूता हैं।”
“आपड़ं वत्ती अैणंनी दवाई करवा नो गजो नीं है, अैणं ने वैरा पड़ै है। अेक ने अेक दाड़ै मौत तो आब्बी’ज है; पण बापड़ा सेरिया नो हूं कसूर है..? अबोलो जीव है। तमने हवार मअें अैवी कांगड़ी वाई दे तो कैवू लागै?”
“म्हनै अे अैटलो गम तो पड़ै है कै बापो जीवते नरक भुगती र्या हैं पण अब्बार अैणं ने कोई थई जाये तो घणी मुसकेल थई जाये।”
“कैम…?”
“आपड़ो डेरो अब्बार अजाणी जगा माथै है। आपडू आंय रैह्वूज तो भारी पड़ै है। अजाणा गांम नं महाणं पाहे कोय आवण-जावण नीं है अैटले आंय डेरो जमावीनै पड्यं हं। जगा नो मालिक जाणी जाये तो रोड़ीनै काढी मेलै। कुंण जाणै कतरा दाड़ा सुधी आपड़ं ने आंय रैवा मले..?” आ कैते थके नारिया नी आंखें आंहुवं थकी ततकी आवी।
गांम-गांम मअें हैत्ता डेरा नो भार हाईने फरवा वारो अैनो गधेड़ो आखी रातर हल्या वगर बैठलो अतो ई अे उठी ग्यो। जगा माथै आळोटीनै ऊभो थातो’क भौक्यो। नारिया ने आजै अैनू भौंकवु लेमड़ा नी टेकेर जैवु लाग्यू, पण कयं बोल्यो नीं। अैणै डेरी निगा सुमड़ी माथै नाखी। सुमड़ी नारिया नी दसा हमजी गई। गधेड़ा नुं भौंकवु अैटलु जोर थकी अतू के अैणं नं बे टाबरियं मोटी छोरी धापूड़ी नै नाना रतुड़ा नी नींदर उड़ी गई पण टाड़ ने मार्ये पाछं पौताईनै हुई ग्यं। सुमड़ी अे बै टाबरियां ने उठवा नुं क्यू तो आंखें मथतं थकं उठी ग्यं।
सब जणैं बांगौड़ चाय पीधी। रतुड़ो चारै-मैरे जोई वर्यो। आहे-पाहे कोय बस्ती नीं अती। गांम थकी बाण्णै बणतं थोड़कं ऊंचं घरं देखणं तो अैनी नजरें अेकठाम जमी गई। अैम तो रतूड़ो हर गांम मअें घर अर बंगला जोतो। चार वरस नी उम्मर मअें अैणे दुनिया नुं अब्बार तक जौयु हुं अतू? पण बंगला नी अवधारणा अैने बल्ले जुगातई जैवी अती। बंगलं नी वपरास अैने विचारवा नुं विसय बणीर्यु अतू जैम के जगतपौसाळ ना सोधार्थी ने होय। हर फैरे ई आपड़ा बाप थकी पूछवा नो विचार करतो पण अैने पाहे स्यात सबद नीं अता, के पछै पूछवा नी हिम्मत नीं अती। पण आजे बंगलं नी ऊंचाई अैना मन मअें वाहंड़ा नी फांस वजु घोंचाई गई। पण अवै सबद सैने जीभ माथै तरवा लाग्या अर मुंडा थकी बाण्णे नीकरवा सारू ववळीर्या अता।
“बापा, आ लांबंताड़ हूं बणी र्या हैं..?” – रतुड़े नारिया पाहे जाईनै पूछवा नी हिम्मत करी नाखी।
“दीकरा, आ नवा बंगला बणी र्या हैं।”
“आ बंगला हुं काम आवें?” रतुड़े टाबरपणा मअें पूछी लीधू। टाबरपणा मअें पूछणूं ई तो खरू पण नारिया ना मन मांय कउवेच वजु घवड़ ऊपड़ी आवी। डील ऊपर नी घवड़ होय तो नौकं थकी घवड़ी नाखै, पण मांय नी घवड़ हरतै मटाड़े..?
“दीकरा..! बंगला अैटले रैह्वा नुं घर।”
“कुंण रअें, घरं मांय..?”
“दीकरा कैवी वात पूछै है..? मनखं रअें, बीजु कुंण है?”
“तो पछै आपड़ू घर कैम नीं बणावता हो, आपण मनख नीं हं?” रतुड़ों अेक थकी वधीनै अेक प्रस्न पूछी र्यो अतो। नारियो अेकदम खवाई ग्यो। कोय बोलवा नी नीं तो अैने पाहे ताकत अती के नीं हिमत। बाप थकी कोय जवाब नीं मल्यो अैटले रतुड़ो समुड़ी पाहे जाईनै आज प्रस्न फैरे पूछी बैठो। समुड़ी अे टाळवा नी कोसिस करी पण आ तो बाळहठ अती। समुड़ी अे जवाब आल्यो, “बेटा, मनख तो आपण हां, पण कुंण जाणे आपड़ी जात नं मनखं कईया जलम मअें कैवु खोटू करम करैं के आवो जमारो जोवा मले? गांमें-गांमें रखड़वू, मांगी खावू नै कोय नानुं-कोटू दाडा-दानगी सरखु काम करवु अैणा सिवाय आपड़ों कोय गुजारो नीं रै।”
“आपड़ं वती नौकरी नीं थाय?” रतुड़ै फेर थकी पूछी लीधू।
“नौकरी करवा बल्लै भणवु पड़े, पईसा जुवैं, भणवा बल्लै अेक जगा माथै रैहू पड़े… आ सब आपड़ी किसमत मांय नीं है, बेटा।”
रतू ना मांय नी जगा नाणांपणां वगर ना भैंज थकी अतरी उपजाऊ थई रई अती के अैणी माथै अजी भी सवाल पौंगराई र्या अता। जाणवा नो अेक दरियो अैना मन मांय ठाठे मारी र्यो अतो। अैना मन मांय अजी भी घणां अबूझ सवाल अता।
रतुड़ो अजी पूछवा नी कोसिस करतो अतरा मअें मरजीवो थयेलो नारिया नो बापो रागूड़ो गोदड़ा मअें रईने’ज ‘खूं…खूं…’ करीने ढांही पड़्यो। नारिये अैनै सांमु जोईनै क्यू, “बापा…! चाय बणी गई है, कोगळो करीनै पी लो।”
रागूड़ो सायद ना कैवा चाहतो अतो, पण जोर थाकी उधरस आवी गई। उधरस अेवी के ई हैत्तो हली पड़्यो अर अणबोल्यो थईनै हुई ग्यो। नारिया ने अंदेसो थ्यो। उठीनै गोदड़ा मअें हाथ घालीनै तसल्ली करी के अैनो बापो ठीक है।
नारियो तगड़ो मोट्यार अतो। मुंडा माथै गैरीगट्ट दाढ़ी। आंमरेली मूंछै। उतरांण ना दाड़ै दान मांय मलैलं छेतरं मअें थकी जीन्स नं पेंट पैरेलू। समूड़ी नै फट-फट नं छेतरं पैह्रावै, कैम नी पैह्रावै? उतरांण ने दाड़ै ढगलाबन छेतरं आवी जयें अैटले पूरा वरस नं देतरं भैगं थई जयें, साथै अनाज अे भेगू थई जाये। रागूड़ो जंतर-मंतर करवा नं मंडलं कूटवा मअें पैकवान अतो। रोज अेक-बे जणं नं जंतर-मंतर तो करी आलतो। कैटलू भी अजाणूं गांम होय, रागूड़ा पाहे मनखं थकी पईसो कढाब्बा नी कळाये पाकी अती। बाप-बेटो बे जणां मलीनै हर गांम मअें भंगार अर रद्दी लेवा नुं काम करता ई जूदी। अैणा थकी पाई-पईसो मली आवतो। हेंग मलावीने अैम कई संकाय के रोज नी कमाई तो कैम भी करीनै पूरी करी नाखता। अैणं नी जात नं हंगरं मनखं वजू अेक सरखू दुख अतू के अैणं नुं कोय घरबार के जाणीती जगा-पाळी नीं अती।
ग्ये मईनै गांम थकी घणे वेगरै डेरो जमाब्बा सारू बे दाडं पैले अेक डूंगरी माथै वांहड़ा गोठवीनै टाटडं टेंग्यं पण थो’ड़ेक छेंटी अैणंनी जात नो अेक जमैलो डेरो अतो। वांहड़ा रोपैला जोईनै बीजा डेरा वारं ने खणहारो थई ग्यो अतो के कुंणेक डेरो नाखवा नी कोसिस करी र्यो है। अैणें सांझे डूंगरी ना मालिक पाहे जाईनै चाड़ी करी आव्यं। डूंगरी ना मालिक अे रागूड़ा ना वांहड़ा उपाड़ी आल्या नै टाटड़ं फाड़ी आल्यं। औटलु’ज थातू तो ठीक अतु पण पैले डेरा वारै गांम ना अेक-बे आदमियं थकी मलीनै गांम ना आहे-पाहे डेरो नीं जमाब्बा दीधो। जैम-तैम करीने रागूड़े अर नारिये मलीनै आपडो डेरो पुलिस थाणा वाहें जमाव्यो। अैयं अैणं नो डेरो अठवाड़िया सुधी र्यो। पण जात-जात मअें वैर काठू होय। अेक नी खुसी बीजा ने नीं गमें। गमें अे खरू, पण आपड़ी रोजी मअें भाग पाड़वा नुं कैने गमे? पैले डेरा वारे अेक छौरे सोमिये जाणी-जोईनै भंगार रातरे चोरी करीनै दाड़े बीजं छोरं साथै रागूड़ा ने वेची दीधी। अैणीज रातरे सोमिये अेक-बे दुकानं नं ताळं तोड़ी नाख्यं नै चोरी करी। जारै भंगार ना मालिक ने जाण पड़ी के अैनी भंगार चोरी थई गई है। पुलिस ने इत्तला आली। भंगार रागूड़ा ना डेरा पाहे पड़ेली मली गई।
रागूड़ा ने पुलिस अे कूट्यो ई अलग नै गांम वारैं कूट्यो ई अलग। अैनै मांयेलो मार थई ग्यो। ई तो नारिया नी होसियारी थकी बीजे दाड़ै साबिती थई गई के चोरी करवा वारा सोमियो नै अैना दोस्त अता अतरे जेळ नीं थई। पण चोरी नो इलजाम जिनगी मअें अेक वैरा लागै तो ई चामड़ी साथै चोटी आवै। गरीब कैने आपड़ी सफाई आले, कैनं-कैनं मुंड़ं बंद राखै? आवी रखड़ती जात ऊपर ‘क्रिमिन जात’ नो ठप्पो तो लागेलो है’ज।
नारियै रागूड़ा नी बणै अैटली दवा दारू करावी, पण गड़पण मअें लागेलो मयेलो मार माहणं माथै’ज वखेराये। आ कैवत अमथी थोड़ी है! रागूड़ो अब्बार मरै, पछै मरै अैवी हालत मांय अतो।
…नारिया ने बापा नी तबीयत ऊपर पूरो विसवा थई ग्यो, अतरे खावा खाईनै साइकल लईनै गांम मअें भंगार लेवा सारू नेकरी ग्यो।
समुड़ी बरीतु भैगी करवा सारू गई अती, पण डेरा नी देखांण नी हेम मअें अती। छोरं डेरा माथै अेकलं अतं, अतरे वधारे छेंटी जाई भी नीं सकती अती। समुड़ी देखाउड़ी अती। आवी हूनी जगा माथै अेकली छेंटी नी जाती।
रागूड़ो गूदड़ी मअें थकी हली पड़्यो। अैनुं मंडु हुकाई आव्यु। अैणै धापूड़ी ने हाद्यू, “दीकरी धापू! म्हनै पाणी पाई दे। घणी तरस लागी गई है।” धापू अे पाणी लावीनै दादा ने आल्यू। रागूड़ो अद्दर हाथे पाणी पीवा ग्यो। थोड़ू पाणी नाकुरा मअें ठलवाई ग्यू। पाणी उनारे आवतं मअें धापू ओ हाद पाड़्यो, “भईया…रतुड़ा…रतु…दौड़। आई ने हाद…दादा ने कयं’क थई ग्यू है।”
कूतरा साथै रमतै रतुड़े दौड़ते थके अैनी आई ने हाद्यु – “आई…दौड़…दौड़! दादा ने कयं’क थई ग्यू है…दौड़।” समुड़ी अे रतु नो हाद सांभरी लीधो। भैगं करेलं हूकं लाकडं झट-झट हुंड़ला मअें भर्यं। माथा माथै हाईनै उतावरै पोगे डेरे पूगी।
रागूड़ा ने दक चढ़ी ग्यो। समुड़ी हुंड़लो उतारीनै हाथ विचर्यर। हीदी रागूड़ा पाहे बैही गई। छाती दबावीनै मालीस करी। हाण्णु वघारवा सारू लावेला हरबा नुं तेल लईनै माथा माथै मालिस करी। धापू अे बे हाथेलियं नी मालिस करी। नानकड़े रतूड़े बे पगलियं माथै नानं हाथं थकी मालिस करी। रागूड़ा नो जीव जरा-सो ठेकणे पड़्यो। अेनै हांपणी वसूटी गई अती अतरे सामुड़ी ने इसारो करीने धीरे-धीरे तौतराते थके बोल्यो, “समु…दीकरी…। तू अमारे वादी जात ना खानदानी गणाता घर नी दीकरी है। तैं म्हारी सेवा करी है, अैवी अणा जुग मअें भायेग थकी’ज हो मअें कोय अेक वऊ करै। दीकरी…म्हारै पाहे पइसो तो नीं है, पण म्हारी पेटी मांय मेणिया नी थैली मअें कागदं हैं…।” रागूड़ा ने वधारै नीं बोलणुं अैटले हा गारवा सारू रोकाई ग्यो।
“कैवं कागदियं हैं बापा…!” समुड़ी ओ जाणवा नी गरज मअें पूछयू।
“जगा नो पट्टो है। …आपड़ा खानगी गांम मअें अेक फैरे अमंनै कूटी-कूटीनै काढी दीधा अता। बीजे वदियं अे तो बीक ने मार्यै जगा वेची दीधी, पण म्हैं जगा नीं वेची। पूरा राज मअें ‘घूमंतू’ जातियं ने जगा आलवा ना अेक जलसा मअें सरकार थकी आ जगा मली अती। जगा मौका वगरनी है। पण अवे तो अैणी जगा नुं मान वधी ग्यू है।”
“बापा..! आपड़ी जात तो सरकार मअें गुना करवा वारी गणाये। अैवा मअैं अमंने कुंण हक लेवा देगा? कुंण पाहे रैह्वा देगा, आ जगा हूं काम नी?” समुड़ी ठगठगी थाते थके बोली।
“ठीक वात करी दीकरी..! आपड़ी जात ने बस्तियं पाहे कुंणेय नीं रेह्वा दे। पण अैणी जगा ने नारियो वेची देगा तौय घणो पईसो मली जायेगा। कलक्टर साब के बीजा अफसर पाहे जाईनै हक मांगोगा तो न्याव तो मलेगा। नियम परमणै जगा नी कीमत तो मलेगा…। …खूं…खूं…” रागूड़ा ने फेर थकी उधरस आवी गई। पण छाती काठी राखीनै ई फैरे बोल्यो, “अ...णी… अजाणी जगा माथै म्हूं मरी जऊं, तो कुंणेय अैणं नं माहणं माथै तो बारवा नीं देगा… अैटले… बणे… जारे सुधी तो रातरे कैयं’क पड़ताल जगा मअे…खां…खांडो खोतरीनै गाढी देजू…खूं…खूं…।” समुड़ी अे रागूड़ा नुं माथू खौरा मअें मेलीनै मुंडा मअें पाणी टोहव्यू। फाटा मुंडा थकी पाणी उगलाई ग्यू अर डील ककडू थईने रड़ी ग्यू। आ जोईनै समूड़ी ने डैबो बंधाई ग्यो।
नारियो करम थकी झट आवी ग्यो। बाप नी मौत जौतं मअें अैणे छैंटी-छेंटी गांमं मअें वखेरायेलं हगं ने फोनं लगाव्यं, पण हैत्तं नी हालत अेक सरखी अती। कईया’क नं फोनं मअें करंट नीं अतो। कईया’क नं फोन नेटवर्क मअें नीं अतं। अेक-बे ठेकणे फोन मल्यू तो अैणें बताड़्यू के ई अतरं छेंटी हैं के आवते बे दाड़ा तो थयेंगाज, अतरे जे भी किरिया-करम करवू होय, ई करी नाखजू।
अब्बार नारियो अेकलो’ज अतो। जात नो गणो तोय। कुटुंबी गणो तोय। हगो-वालो गणो तोय, अैना घर नं मनखं के पछै सेरियो कूतरो, गधेड़ू के कूकड़ अतं। हैत्तं नबलं अतं नै बापा नी मौत नो डूंगरो अैणं माथै वरी ग्यो अतो।
“साब नमस्ते!” नारिये थाणेदार सांमे हाथ जोड़्या।
“बोल, क्यों आया है?” रौब झाड़ते थके थाणेदार बोल्यो।
“म्हरो बाप मरी ग्यो…।” कांपतो थको नारियो बोल्यो।
थाणेदार अेकदम उभो थई गयो। नरम थातो थको बोल्यो, “बोल, मैं क्या करूं?”
“बस साब! आप थकी अतरी अरज है कै म्हारै बापा ने अगन-दाग करवा सारू आपनी मेहरबानी अर रजामंदी जुवै।”
“देख, यहां सब बड़ी जात वाले लोग रहते हैं। यहां गांववालों के अपने कानून-कायदे होते हैं। हम उनको कुछ नहीं कह सकते।” विचार करीनै थाणेदार अे क्यू, “सरपंच साहब के पास जा। वे जैसा कहेंगे वैसा करना। उनको तेरी पूरी जानकारी और बात बता देना।” नारिया ऊपर अेक तो दुख नो डूंगरो टूटी पड़्यो अतो। सहायता मांगवा आंय आव्यो, पण आंय अे कोय नी बण्यू। सांझे घणी करपैते सरपंच मल्यो। अैणे रोड़ ना कनारे अेक खाली जगा बताड़ी। जगा ना मालिक ने हादीनै कैवड़ावी भी दीधू के नारिया ना बापा ने गाढवा सारू खांडो खौतरवा देजे। जगा ना मालिक अे हां करी दीधी। नारियो सरपंच ने धन्यवाद आलतो थको रवाना थई ग्यो।
नारियो अर समुड़ी बे जणं खांडो खणवो चालू करी दीधो। अड़धो फीट ओ नीं खणणू अतु के जगा नो मालिक बे-तीन लठंगा साथै आव्यो।
“ओ! जगा खणवी बंद कर!” जोर थकी जगा नो मालिक बोल्यो।
बे जणं बीक ने मार्यै अेकठाम ऊभं रई ग्यं। नारियो बोलवा ग्यो, पण मालिक आंगरी नो इसारो करतो थको बोल्यो, “आंय खांडो नीं खणवा नो। म्हारी जगा ने महाणं थोड़े बणाब्बं हैं। जीवतू रैह्वु होय तो आंय थकी नाही जाजे, नीं के तारे बाप नुं मरदू तो डेरा मअें रई जायेगा अर तमैं बे जणं ने आंय खणीने घाली देंगा।” अैम केहते थके अैणै खणवा नं रासं नाखी आल्यं।
अजाणु गांम अर अजाणं मनखं। नारिया पाहे कयं कैह्वा-करवा जैवू नीं अतू। बे जणं हाथ जोड़ीनै हैंड़तं थई ग्यं। अंधारू थावा मांड्यू अतू अतरे बे जणं बीक थकी कांपतं थकं डेरा माथै आव्यं। धापूड़ी नै रतु बे टाबरियं बीक ने मार्ये ठगठगं थई र्यं अतं।
नारियो बापा नी लास माथै वेटौराई ग्यो। लांहका लई-लईनै रौई पड़्यो। रोते थके बापा थकी माफी मांगी के बेटो टैम रैह्ते अगन दाग अे नीं दई सक्यो। अवे लास नुं हुं करवू? छोरं ने संभारै के लास बल्ले कोय वैवस्था करै?
रातर नुं अंधारू वधवा थकी नारिया ना तथाकथित घोर मअें दुख नै बीक नी सामलाती थई गई। सब जणं भूखं अतं। घर मअें मरदू पडेलु होय तो नेम परमणै चूल्हो अे नीं हरगै। खावा नुं बणेलु होय तो खवाये हुं करीनै? नारिये आजे डेरा मअें दीवो नीं लगाड़वा दीधो अतो, कैमके अजुवारू कैयं अे अैणने हौवा नी हैलणी नीं बणी जाये।
अंधारा मअें डेरा थकी गांम नं माहणं नी दिसा मअें अजुवारा नो भान थ्यो। नारिये हिमत भेगी करीनै जरा मौरे वधीनै जोयू। महाणं माथै कई’क मनखं भैगं थई र्यं अतं। अैम लागी र्यु अतु के गांम मअें मौडू मरतूक थई ग्यू अतू। थोड़ो वैरा वांहे मरदा नी रोवती देवाई गई अतरे सब जणं जातं र्यं।
नारियो डेरा मअें पाछो आव्यो। पैले तो डेरा नी सब सामगरिये हमेटीनै बांधी दीधी। गधेड़ा नुं लगड़ू तैयार करीनै खूंटा सामू बांधी दीधू। डेरो उठाब्बा नी पूरी तैयारिये करी दीधी। समुड़ी, धापू नै रतुड़ा ने कोय गम नीं पड़ी र्यो अतो के नारियो हुं करवु चाहे है? सब जणं ठगठगं थईनै जौई र्यं अतं। नारियो पाछो महाणं आडै ग्यो। चारै-मैंरै निगा नाखीनै जोयू। कुंणेय मनख नजर नीं आव्यू। नारियो तरत् पाछो वर्यो।
पाछो आवीनै नारिये समुड़ी ने हुं करवु है ई हमजाव्यू। बे जणै खंबं माथै रागूड़ा नी लास हाई लीधी। धापू नै रतू बे जणैं जैटलं हवाई सकैं अैटलं लाकड़ं हाई लीधं।
महाणं ऊपर पूग्यं। बरता मरदा नी लाय ना उजुवारा मअें मरदू उतार्यू। सब जणं मरदा ने पोगें पड्यं। मरदू ऊंचू करीनै वैजावीनै बरती आग मअें नाखी दीधू। आग नी बरतास घणी अती तौय बरवा नी परवा कर्या वगर आ काम थई ग्यू। लावेलं लाकड़ं आग मअें नाखी दीधं।
समुड़ी अे रौते थके आचकियं माथै काबू राखते थके पूछवा नी हिमत करी – “गांम नं मनखं ने जारे जाण पड़ेगा के अमैं आवी अगजोगती वात करी है, तो आपड़ हूं थायेगा?”
“काले मंगळवार है, अतरे चारी नी वळाई सकेगा अर परसो सुधी तो अमैं अतरं वेगरं पूगी जंगा के केनेय पतु तक नीं लागेगा। …नै पतु लागी भी जाओगा तो जै थायेगा ई जौई लंगा…।” नारिये रौते थके पण पूरा विस्वास साथै जबाब आल्यो।
अगन-दाग करवा पूठै बेटो पौक मेलीनै रोवै, पण नारियो औवू नीं करवा सारू मजबूर अतो। समुड़ी बइरीजात। अैने नीं टकणूं, जोर थकी रौई पड़ी। नारिया ने आवू थावा नो खटको पैले थकी अतो अतरे दौड़ीनै समुड़ी नुं मुंडू दाबी दीधू अर क्यू, “अब्बार पारकी लास साथै बाप ने अगन दाग दीधो है। पण जोर थकी रौवानी आपडं ने आजादी नीं है। कुंणेय सांभरी जाहै तो आपड़ी खैर नीं रै’गा। बस आपड़े जावा नी हैत्ती तैयारिये करी दीधी हैं। हैत्तं बापू ने आखरी धोक लगावो। आक्खी रातर आपड़ ने हैंडवू है।” नारिये दबैला हाद मांय क्यू।
हैत्तं जणै अैम’ज कर्य।
बळती चिता नुं अजुवारू वाहें छूटतू जाई र्यु अतू। सांमूं गैरूगट्ट अंधारू अू नै अजाणी वाट अती। कुंण जाणै वाट अती भी के नीं। कैवी भी दिसा नो भान नीं अतो। बस लगोलग हैंडी र्यं अतं। पगरवा कर्या वगर। हैत्तं जणं डेरा ना सामान साथै डूंगरा जैवा मोटा दुख नो भार भी वेंटी र्यं अतं। अेकदम अणबोल्यं…।