असाढ री जबरी उमस। दिनूगै रा आठ बज्या होसी। ढूंढा सूं झळ निसरै। रात इग्यारा बजे झबको मार्यां पछै बिजळी अजे तांई नीं बावड़ी। बिलोवणो मधाणी नै उडीकै, पण बापड़ी मधाणी बिना लाइट कांई कर सकै। वा खूंटी टंगी उबासी लेवै। पण वींनै कांई ठा कै वीं रै कारण झेरणा, नेतरा, सींखळा, नेहड़ी, सै रेड़गेड़ हुयग्या। सै कूणां-खचूणां पड़्या सुबकै। इब वांरी घणी जरूत। जद ई तो घर धिराणी चौधरण असमानी मांयली साळ मांय पसेवै सूं हळाडोब हुयोड़ी मांचा हेठी सिर फोड़ी करै। बरंगां बिचाळै टंगेड़ो झेरणियो तो ठायो लाधग्यो, पण सींखळा, नेतरां खातर झाखरा-पींपला सै फरोळ लिया। वीं रै झाळ-सी उठै। अेक तो चाइजती चीजां नीं लाधै, उपरां सूं माछरां रो धावो। मूंडै माथै चिपीजता मकड़ियां रा जाळा वींरी झूंझळ नै और बधावै। लुगायां रै सुभाव मुजब बण लाइट वाळां नै भैड़ी-सी गाळ ठोकी, “कद काटी ही आपरी मा नै! साळा रा...।”
“कांई ठा रेहळी कुन्नै बाळ्यां राखै चीजां नै। म्हारलै टेम तो इयां..., म्हारलै टेम तो बियां...।” दुलाण मांय पंखियै सूं पून लेवती वीं री सासू रा परड़ाट न्यारा सुणिजै। वींरै जीव मांय तो आवै कै दो च्यार डैणती नै ई सुणा देवै, पण वींरा संस्कार इस्या नीं कै बडेरां रो माजणो मारै। वीं री सासू नराणी सुभाव री घणी चरकी। बात-बात माथै गाळ-धूपड़ करणो वीं खातर राबड़ी-रोटी। कीं तो मायतां रा संस्कार अर कीं घरधणी चौधरी भरतै रो अज्जड़ सुभाव। वा वांरै गण हेठी दबीजेड़ी चूं नीं करै।
ओढणियै री लिरी सूं सींखळा रो जुगाड़ जचा’र बिलोवणो करती असमानी बिच्यार करै, “आजकल री बीनणियां तो सासूवां री अेक नीं सुणै। अेक सुणै तो सौ सुणावै अर म्हैं तो म्हारी बीनणियां नै लाडां-कोडां राखस्यूं। कदे होठ रो फटकारो ई देवूं तो धूड़ है म्हनै।”
बिलोवणै रै झरड़-मरड़ रो सुर तेज हुवतो जावै। इण सुर रो पल्लो थाम्यां वा सुपनां री दुनिया मांय बजारिया करै। तीन-तीन अपसरावां-सी बीनणियां वीं रै आंगणै रमै। हाथां रै चुड़लां अर पगां री पाजेबां रो सुर कानां मांय मिसरी घोळै। कदे वीं नै न्हावण वास्तै निवायो पाणी ल्या’र देवै तो कदे सिर मिंडी करै। कदे दही-राबड़ी रो गिलास लेय’र ऊभी हुज्यै तो कदे चाय री बाटकड़ी।
आंगणै मांय इतर री मोवणी सौरम रो झोंको-सो बापर्यो। बरतण मेलण री आवाज कानां मांय पड़ी। छोटकी बीनणी सा’रै जग ल्याय’र मेल्यो अर आमरस पीवण खातर न्होरा काढै।
“ना, ना। इब तो चाय पी है बीनणी! कोनी भावै, इयां के पेट पाड़स्यो तो। अेकर फरीज मेल दे, पछै पीस्यूं।” वा जोर देवती कैवै।
“क्यांरो आमरस! के कैवो थे! दूध-खाटो घालो स्याणो।” सा’रै ऊभी कोई जनानी जोर देवतां कैयो तो असमानी असमान सूं आंगणै मांय बावड़ी।
“अे मास्टरणी, तूं है ना..!” बण सांस-सो मार्यो अर मुळक’र रैयगी।
आ लारलै पड़ोसी राजिंदर मेघवाळ री जोड़ायत। जकी रो नांव अनिता, पण बास-बगड़ मांय सै मास्टरणी रै नांव सूं ई बुलावै। वा वां सूं रोज मोल दूध लेय’र जावै।
“ओ स्याणो, बिलोवणो तो अजे बिचाळै ई पड़्यो लागै। थारै बेटै नै इस्कूल नै मोड़ो होवै।” मास्टरणी कैयो।
“अे बिचाळै के...ईं बीजळती रो तो तनै ठा ई है। रात बळी ही बाळणजोगी, अजे नीं बावड़ी। खाटै मांय तो बीनणी लागसी टेम। तावळ है जणां तो दूध-दूध ई लेय’र जावणो पड़सी।”
इतै मांय स्यामै सुनार री जोड़ायत सिल्पा, ओम बाणियै रै घर सूं स्यांती अर जस्सू सुथार री जोड़ायत संतोस आद भी आप-आपरा डोलू लेय’र आ पूगी। पांचुवां मांय हथाई जुड़नी सुभावू ही। दुलाण मांय सूती नराणी रो आंतक इत्तो कै सगळी सप-सप करै, पण हस्सी रै घर मांय पूग्यां पछै भी नराणी रै मोर जिस्यै कानां सूं सप-सप छानी रैवै ई ना।
माची माथै आडी हुयोड़ी उण हेलो मार्यो, “अे...! कुण-कुणसी हो थे?”
असमानी आंगळियां बारकर नेतरै रा अळबेडा लगावती झरड़-मरड़ पाछी चलू कर दी। सगळियां रो सांस ऊपर रो ऊपर नीचै रो नीचै।
“अे बोलो कोनी...? कुण-कुणसी हो? नराणी रो हेलो फेर सुणीज्यो।”
“म्हे हां स्याणो...!” हिम्मत कर’र सिल्पा सगळियां रा नांव बताया।
“अे आ मास्टरणी कुणसी है? अठीनै भेज ईं नै।” नराणी हुकम दियो पछै मन मांय बरड़ाई, “कासियै मेघवाळ रै टींगर रै घरां सूं दिसै। कासियो अर वीं लुगाई तो म्हारै कुतर काटतां अर पोठा रेड़ता जूण पूरी करग्या अर आ आई है बच्ची मास्टरणी री। म्हारलै टेम मांय तो अै...।”
वा कीं और बरड़ावै वीं सूं पैलां अनिता दुलाण मांय जा पूगी।
“अे थम-थम...! बारै ई लाडी, बारै ई। नराणी अनिता नै देळियां बिचाळै ई थामदी।”
“डैणती आपरा लच्छ नीं छोडै।” सोचतै थकां अनिता पूछ्यो, “कांई कैवै हा..?”
“अे के नै के तेरै सूं भागौत बंचावै ही। इंया कर बिलोवणो होवै इत्तै आंगणै मांय थोड़ी भारी सिरकावै नीं।” भींत सारै पड़ी भारी कानी सैन करती नराणी कैयो।
“म्हनै तो स्याणो, टेम कोनी। थारै पोतै नै इस्कूल जावण नै मोड़ो होवै।” कैवती अनिता अपूठी बावड़ण नै हुयी।
“तेरी सासू तो बापड़ी भोत भली होवती भई! भारा-झाड़ी मांय घणो ई स्हारो देवती बापड़ी। कदे ना नीं केयो अर ना ई कदे म्हैं रीती जावण दी छाछ रो कुलड़ियो हमेस पोळां-पोळ ई जावतो।” नराणी पुराणिया राछ बरत्या।
“अे वा म्हारली थारै खातर ई खसियो करण लागरी हूसी। कीं स्हारो लगा देवै तो टांग टूटै ना तेरी।” नराणी कीं आकरी हुवती कैयो।
“बात टांग री कोनी, टेम री है। म्हनै तो टेम कोनी दादी।” अनिता कैयो तो नराणी रै बाकी कोनी रैयी। वा रेडियै री ढाळ चालू हुयगी, “बात तो टेम री ई है लाडी, निस तो थारै बरगी नै तो म्है गुद्दी पकड़’र लगा लेवती। थारली बूडक्यां सदां ई म्हारै पोठा रेड़्या। कदे नटण री हिम्मत नीं करी। नटै कियां ही, छाछ के सींत आवै ना। गा-भैस्यां रा लोट लागै। बाणियो बाबो को लागै नीं जको खळ-बंदोळा सींत रेड़ ज्यावै।”
“सींत कुण लेय’र जावै है तो। दूध रा पइसा देवां। सींत को घात्तो नीं अर फेर बारै और घणी ई आई बैठी, वां सूं करा ल्यो कीं करावणों होवै तो। म्हारै साथै ई के बाद है तो।” कैवती अनिता अपूठी बावड़गी।
“ओ तेरो चोर मरै! तूं वां री होड करै ना! कठै टैं-टैं अर कठै झैं-झैं।” नराणी माची माथै बैठी होयगी।
“टैं-टैं, झैं-झैं रो कांई मतलब है बट्टो। वां मांय इस्यो कांई है, जको म्हारै मांय नीं है।” अनिता नै झाळ आयगी।
“वै थारली ढाळ हीण घरां री कोनी” नराणी जाणै अनिता नैं वींरी औकात बतावै ही।
अनिता, सिल्पा, स्यांती अर संतोस कानी ख्यांत करी। जकी पासै ऊभी मुळकै। वांरी मुळक वींरै काळजै रै पारूं-पार हुयगी।
“हीण नै क्यूं म्हे मांग’र खावां हां ना? कमा’र ल्यावां अर हक रो खावां। पइसा-धेली री कैवो तो थारै सूं घट कोनी, डोळ री कैवो तो थारली बेमां सूं सवाया हां अर लखणां मांय तो थारै सूं देस भलो। किण ठौड़ जलमणो, न जलमणो किणी रै सारै नीं होवै, पण मिनखायत सूं जीवणो जाणां। थारली ढाळ कुहाड़ै सूं तो मुंह नीं फाड़ेड़ो म्हारो, पण जिस्या जवाब चावो हाजर मिलसी।” नराणी रै सरड़का लगावती अनिता आंगणै मांय आयगी।
वा सोचै, “लोग मानै कै जात-पात रा दिन लदग्या, पण नराणी जिसी कूवै री मींडकी अजे ई घणी जीवती है। अैड़ी खौम बेगी-सी खूटती तो नीं लागै। खूटै क्याबी है, ईं बरगी जीवतै जी ठाह नीं, कित्ताक नै कोचिंग देय’र खोळियो छोडसी।” खाटै री घूंट खाटी होवै, पण अनिता सारू कड़वी हुयगी। वीं जिस्यां नै अैड़ो कड़वो घूंट पग-पग माथै पीवणो पड़ै। वा डोलू रीता ई लेय’र चाल पड़ी। रीता डोलू भी वींनै मण-मण रा लागै। वां मांय पीढियां री जलालत भरीजेड़ी मैसूस होवै। हरेक पांवडै साथै जलालत रो ओ जैर झबळकतो जावै। वीं रो घर लेवणो भारत होयग्यो।