गांधी चौक री अगूणी गळी रै नुक्कड़ पर पैली हवेली सेठ शिवदयाल री है। गुंभारियां पर उठायोड़ी लाल भाठै री तिमंजली हवेली आवतै—जावतै रो ध्यान आप कांनी मतैई खींचै। पगोथिया चढतां ई जीवणै हाथ नै अेक बडो कमरो हो जिकै रै फर्श पर सगळै बिलान—बिलान ऊंचो गिद्दो, बीं पर धोळीधप सजनी, सजनी पर बिसाई ऊजळाबग्ध गोळ अर लम्बा—चौरस पांच—सात तकिया हरदम पड़्या दीसै। औ कमरो दीवानखानो बाजै।
जेठ रो महीनो। दिन री बारै—सवा बारै हुई हुसी, सेठ तांगै सूं उतर आपरै दीवानखानै में बड़्यो। मलमल रो चोळो अर मरसराईज री गिजी पसेवै सूं आलागार अर लिलाड़ सूं चालता रींगा डोळां ढळता नीचै पड़ै हा। चोळो बण झट खूंटी पर टांग दियो अर कर पंखै रो खटको नीचो, ईनै देख्यो न बींनै, पसरतो ई हुयो गिद्दे पर। पेट तिड़ै हो, नाळ भरी ही गळै तांई, पड़तां ई बो हाथ पेट पर फेरण लागग्यो।
सेठ बरस चाळीसेक रो हुवैलो। मोटो पेट, जाडी साथळां, ओछी पींड्यां, भारी बूकिया अर रंग रो टेलीफून। जूण में मिनख, रंग अर आहार—पाणी में पाडै रा लच्छण, पर लिछमी री महर। आछी खुरचण। पसरतै ई नौकर नै हेलो मार्यो—राजाराम, अे राजाराम!
—हां बाबू! अर ईं रै लारोलार मिट भर ई नीं हुयो राजाराम सांम्हो आय ऊभो।
—बाल्टी लाकर थोड़ा टाटा छिड़को तो, और बहूजी को भी बोल देवो कि थोड़ा खाटा—सुपारी निकाळ देवै।
मिंट आठ—दसेक में टाटा छिड़क’र नौकर जावण लाग्यो इत्तै में बीन पगलिया करती सेठाणी ई आ ऊभी। बोलो, कांई चाइजै? उण पूछ्यो—पैलां तो सिरका सुपारीदान ईनै, अर फेर लगा तेज चूनै रा दो पान अकरा देख’र। उण अलमारी खोल’र सुपारीदान बीं आगै सिरका दियो अर फेर पान लगावण बैठगी। सेठ पसवाड़ो फोर र सुपारीदान सांम्हो कर लियो। भिड़तां ई उण पंदरै—बीसेक नींबू रस री गोळ्यां बाकै में घाल ली, फेर पचायोड़ी पींपळयां, अदरख अर खारक,
साग फलका जीमै ज्यूं चिगळन लागग्यो। पचायोड़ै जीरै अर गुळकंद रै खाटै रो स्वाद बीच—बीच में न्यारो ई लेवतो। सुपारीदान में छव—सात खण भर्या हा। सगळां में लप—लप जिनसां मजै में हुसी। दस—बारै मिट में सेरड़ै केई खण आधा कर दिया अर केयां नै पूंछ’र बांरा तळा ई काढ दिया। ईनै सेठाणी बिचारी आपरी जाण मे तो फुर्ती घणी ई करी पण नहीं—नहीं करतां ई कीं टैम तो लागै ई। मिट दसेक री ढील जे बा और कर देवती तो बाकी खणा में ई लाघतौ ठाकुरजी रो नांव अर बचतो खाली सुपारीदान ई। पान सेठाणी झला दिया। फेर पूछ्यो—कांई जीमणवार ही आज भायलां रै?
पेट पर हाथ फेरतो सेठ बोल्यो—जीमणवार तो ठीक ही। बिदामां री कतली अर राजभोग पण टैम गरमी री ही नीं, ईं खातर अै चल कम हा।
—रायतो नीं हो?
— दही बड़ा हा किसमिस दियोड़ा, बड़ा स्वाद। घणकरा लोग तो बांनै ई बांनै चेपै हा।
— लोगां री छोडो, थे थांरी बतावो नीं।
— मूंढो साफ करण नै अेक आधो चाख्यो जिकै रो तो दोस लाग्या मत ना, बाकी म्हैं पेट में फूस भेळो करूं, म्हारी अकल भांग खायोड़ी ही? बड़ा पाणी कित्तो मांगै तनै ठा है? तिस तो अबार इयां ई सांस नीं लावण दै, जाण र ताव ने तेड़ो क्यों?
—अबै पेट पर हाथ फेरो अर टसको तो इत्तो पैलां खावो ई बाळन नै?
—तूं जाणै है, भाणै पर बैठां पछै कीं तण र खाणो ई पड़ै। छव—सात जणा हा बराबरिया। नईं—नईं करतां च्यार धामा कतली अर डौढ—दो धामा राजभोग तो उठ ई ग्या, डौढ—दो धामा कीं मनवार रा ई लेणा पड़्या। नटीजै कियां?
—इत्तो—इत्तो मीठो तो पैलां ई ले लियो अर मनवार बळी भळै बाकी ई रही। इयां अगलै पछै सगळो समान कांई थांरै खातर ई कियो हो?
—म्हां खातर क्यों, सगळा ई जीमो। कोई कींरो ई हाथ थोड़ो ई पकड़ै हो? करै जिका सै आपरी शोभा नै करै है, मनवार अेढै—मेढै नई तो फेर किसै दिन, भाई—परसंगी रो हाथ पाछो थोड़ो ई करीजै कदैई? अर ओजू इत्तै सूं ई किसो सरग्यो, सिंझ्या ढुकाव में भळै किसो जाणो नीं पड़सी, बठै हाथ बांध’र थोड़ो ई बैठीजसी?
—अबै तो म्हैं देखूं, जाय र फौड़ा—सा ई देखणा है। पेट में खाली जागा तो सायत आध आंगळ ई नीं लाधै।
—ईंरो तनै कांई ठा? हां, बित्तो तो खैर नीं भावै पण खाणै पर बैठ र कीं—न—कीं जाड़ नीं हिलायां लोग टक्का नीं गिणलै?
—काल नै कींनै ई जे भोरो ई नीं भावै तो कोई धिंगाणो है?
—धिगाणो नीं तो कींरै ई सागै क्यों बैठै, लुक र बैठो अंधारै में कठैई।
—आंतां रोसीजै अर जी दुख पावै जिकै सूं तो लुक'र बैठणो ई आछो।
—थारा ओजूं मढ में बैठी रा ही मटरका कियोड़ा है। भाई—परसंग्यां में बारै नीसर्यां ठा पड़ै। न्यारो बैठ्यां लोग बूकिया झाल र ठरड़ लावै। न्यारो बैठूं कांई न्यात बार हूं?
—तो फेर जावो ई क्यों? इसो कांई अणसर्यो जावै है बिना गयां?
—नईं गया म्हारै कुण काकोजी आसी? मीठो कांई लोगां रो देख्योड़ो नीं हुवै? कह'र आधी मिट अेकर बो चुप हुयग्यो। फेर बोल्यो—दो—तीनेक संतरा सुधार'र भेजै नीं, पेट कीं ठंडो हुवै तो?
—अर आलूबखारा?
—बै ई भेज दै दो—च्यार। पाचक हुवै है।
— थोड़ो बील रो सरबत कर दूं, आछो रैसी पेट नै।
—करदै थारै जचगी तो।
पांच—सात मिंट में सै हाजर कर दिया सेठाणी। सेठ खा—पी र थोड़ी आड—टेढ करै ई हो इत्तै में अेक भायलो आयग्यो। बीं खातर कीं जळपान मंगायो—थोड़ो मीठो, अेक लंगड़ो अर कीं लखोट, थोड़ी चबीणी अर कीं चरका काजू। दो कवा सागै आपनै ई लेणा पड़्या। लारै जावतां अेक शीशी कोकाकोला और बींनै देवै जद आप लारै कियां रैवै? सुपारीदान भळै मंगा लियो। खण दबा—दबा'र दूसर भर्या है सगळा। भायलै तो बिचारै रीतसर ई लिया पण भाईड़ै तो भळै ई कीं भारी हाथ ई मार्या। स्वाद स्पीड पकड्यां पछै कींरै सारै? मूंढो पाछो ई पान सूं भर लियो। ताश पर जमग्या। ताश ई सूकी नईं गीली। ताश घंटा अेक मसां खेली हुसी पण हार—जीत इत्तै में ई दो पत्ती री करली अर इत्तै में ई तेड़ो आयग्यो—जल्दी संभो—सा, दुकाव खातर।
नहा—धो पाघ रा पेच संवार अर बण फीटाफीट, बजी सातेक सेठ ढुकाव में तैयार।
शहर री अेक सांकड़ी गळी में, अेक आंधै—सै ओरियै में अेक बेवा पींजारी बरस पचास—पिचपनेक री अर बींरो बेटो हुसैनियो बरस तेरह—चवदैक रो बसै। ऊमर सूं तो बा इसी डोकरी नीं हुई पण रोग, भूख अर अणगिण चिंतावां बींनै बेरहमी सूं कूट—कूट बींरा जीवणपान झड़का बींनै अकाळ में ई ढंखर कर दी। धांसी आवै अर लोही शरीर में खासो भूलो सूकग्यो। चामड़ी चूस'र पींजरै रै चिपगी। लूखो—पाको सांम्हो आवै जिसो पेट में नांखलै, नई तो अल्ला—अल्ला खैर सल्ला, बैठी माख्यां उडावै अर मौत नै उडीकै।
छोरो कींरै ई पचास—साठ पइसां मण लकड़ी फाड़ आवै, कींरै ई दो—च्यार कूंडा बेकळू नांख दै। हाथ आवै तो कूंडो—कड़ाई री का और कोई छुटकर कार—मजूरी करलै। पूरो—अधूरो पेट जिसो भरीजै बियां ई ठीक है। कदै—कणास साव निरणै काळजै ई संतोष करणो पड़ै। अबार ऊनाळो है। माड़ी—माठी कोई रूई भरावतो हुवै बो ई नीं भरावै, हां सीयाळै में नईं—नईं करतां पेट कीं ढंगसर भरीजै पण डोकरी कीं कळाप सागै करै जद। बीं बिचारी नै आवै दम दोरो, तो पींजण सोरो कियां चालै, तो ई मौत सूं जूझ'र काया नै भाड़ो देवण हाथ—पग कीं चलावै बापड़ी।
काल हुसैनियो बजी च्यारेक चाळीस पइसां रा सवा सौ ग्राम डंकोळी भुजिया लेय'र घर में बड़्यो अर मां—बेटै बां भुजियां में ई रात काढी। डोकरी भुजियां रा दस—बीस टुकड़ा मसळ'र कीं अधचिगळ्या कर पेट नै भाड़ो दियो अर खटोलड़ी पर गोडा भेळा कर पडगी। दिन भर रो थक्योड़ो छोरो ई लप भुजियां पर लोटो पाणी नांख, मां कनै ई अेक बोरी बिछाय र आडो हुयग्यो बीं पर।
आज च्यार बजगी दिन री। ओजूं ई फिर है, ताळमेळ कठैई नीं बैठी। झिगदर दोवटी रो मैलो—सो चोळियो, कार्यां लाग्यो खाली जांघियो, लूखा अर मैल सूं करड़ा, ओछा ऊभा केस, हाथ में टाट रो अेक थेलियो, बींमैं तीन—च्यार टांकी अर अेक हथोड़ो घाल्यां बो हेला मारतो फिर कोई लकड़ी फड़ावो तो, कोई लकड़ी...। पण ओजूं कोई नीं टकर्यो। दिनूगै अेक कंदोई सूं भेटा हुयग्या हा। लक्कड़ तीस कीलै सूं कम नीं हो। बात आठाना मण में तय हुई ही। लकड़ी कर'र जद बो छेड़ै हुयो तो हलवाई बींनै पन्द्रह पइसा झलाबण लाग्यो। छोरो बोल्यो—इत्ता ई कियां देवो हो? घंटो भर लागग्यो म्हनै, देखो फाला हुयग्या हाथां रै।
—इसो अमीर हो तो घरै ई क्यों रह्यो नीं? लकड़ी फाड़सी बींरै तो फाला ई हुसी।
—तो लक्कड़ कांई बारै—तेरै कीलो रो ई हुतो?
— तो हो ऊंठ दो ऊंठ रो? लेवै तो लै, नीं तो औ रस्तो पड़्यो, पार बोल। छोरो मूं लटकायां हो जियां ई खड़ो रह्यो। पसीनै रा टोपा रह—रह डोळां सूं पड़ता चोळै पर चुसै हा, खड़ो—खड़ो बो अेकटक बीं कानी देखै हो।
मिंट दो—अेक बाद हलवाई पांच—पइसा और भेळ, कीं चिड़ र बोल्यो—लै बळ आगड़ो ई! भळै म्हारी दुकान कानी मूंढो कर लियो तो तूं थारी जाणै है।
— सफा ई इयां कांई करो हो, च्यारानी तो पूरी करो।
वो लाल—पीळो हुय'र बोल्यो—हां, आकां रै लागै है पइसा। च्यारानी रो मनकार्योड़ो, लेवै तो लै, नीं तो पड़ कुवै में—कर दै शिकायत करै जठै।
छोरै ईंनै—बींनै निजर पसारी, कोई सहारो देवै तो पण भैंस भैंस री सग्गी,दिगंबरां री बस्ती में गाभैवाळो कठै? बठै तो पांच—सात हलवाई ई हा कनै—कनै। उण सोच्यो—थारी पांच—पइसां री पंचायती में किसो स्याणो पड़सी अर काल भळै आणो ईंनै। मन मार, मिल्या बै ई लेय'र टुरग्यो पण अबै बींरी भळै फिरण री सरधा कम ही। कीं हो रात रो भूखो, अर कीं ही तिड़की अकरी। बीस पइसां रो कांई लेवूं? सोचै हो का सामनै अेक खुमचैवाळो दीखग्यो। छोटी—छोटी दो कचोळी, बै ई बासी अर खांडी—खोरी, लेय र टुरग्यो—मां अर आप खातर। बींसूं जी सोरै रो अेक गब्बो ई नीं हुयो बींरो। पड़ग्यो पाणी पी'र। मां बोली—लाडेसर आं सूं किसो पेट भरीज्यों आपणो? आटो जे पाव ई लावतो तो की आधार ई आवतो अर गुटको पाणी ई भांवतो।
—सिंझ्या लासूं मां। अबार तो बीस ई पइसा हाथ आया।
—लायै भाई, आज दो दिन हुयग्या, भुजिया—कचोळ्यां सूं न तो भूख ई बुझी अर न जी सोरो ई हुयो।
बो कीं नीं बोल्यो। बोरी पर आडो हुयग्यो। फिरतो-फिरतो थक्योड़ो तो हो ई, आंख लागगी। सिंझ्या च्यारेक बजी भळै निकळ्यो। अेक भट्ठी री राख काढी बण, दस पइसा मिल्या, लेय'र बो आगै निकळग्यो नुंवी टोह में, पण छव बजी तांई किणी बींरै सांम्हो ई नीं देख्यो। मन में तो उण धार राखी ही कै आज दो-च्यार रोटी रो आटो जरूर ले जाणो है। जे दस-पांच पइसा ऊबरग्या तो च्यार आलू ई ले लेसूं, उबाळ'र दो कांकरा लूण रा नाख, चरकै पाणी सागै रोटी चपो लेसां। मां ई रोटी की सावळ चिगळ लेसी, सोचतो ईंनै-बींनै आंख्यां फाड़ै हो, पण दिन भर रो थक्योड़ो सूरज ज्यूं-ज्यूं आथूणी दिस ढळै हो बियां-बियां बींरै काळजै निरास अंधकार गाढीजै हो। बो उठ्यो, कनली पौ में अेक लोटो पाणी पियो। मरतै नै भावै तो क्यांरो हो, तो ई पी लियो। पेट में डीक बंधगी। सोच्यो-अेकर दस पइसां रा खुणच-खंड चिणा लेय'र खासूं, आंख्यां आडा तिरवाळा आवै है, पग ई पूरा साचा नीं पड़ै। जे लकड़ी फाड़नी पड़ी कठैई तो ताबै आणी ई मुश्किल है। चिणा लेवण नै उठ्यो तो अेक सवाल भूत बण'र बींरी आंख्यां आगै आ खड़ो हुयग्यो कै कीं और पइसा पल्लै नीं पड़्या अर आंरा खा लिया चिणा तो मां खातर कांई ले जासी? दो दिनां सूं बा ई भूखी—सी है। आटै रो कह्यो हो उण पण ईं हिसाब पटड़ी बैठणी मुश्किल लागी। तीस पइसा और हुवै जद हुवै मनचींती। मन भारी हुयग्यो। चिणा लेवण रो विचार उण टाळ दियो। बो आगीनै टुरग्यो। पांवडा दसेक राख्या हुसी का गैरू री हांड्यां रो ठेकैदार यासीन मिलग्यो। बोल्यो-छोरा, ब्याह में अेक जागा गैस री अेक हांडी लेय र चालणो है, बोल?
— चालसूं परो। कांई देसो?
—देखूं कांई हाथी-घोड़ा, आठानी अेक है, बा ई सूकी।
—छोड कद-सीक देसो?
— सवा-डौढ घंटो तो लागै ई लो।
—तो चालो। अर बो बींरै लारै टुरग्यो।
आठ-दसेक लुगायां, दो-तीन आदमी गैस री हांड्यां लियां जान रै आगै-आगै चालै हा, बां में अेक हुसैनियो ई हो। हांडी उण माथै पर पूर री अेक ईंढूणी धर, बीं पर मेल राखी ही। होळै-होळै बड़ी सावधानी सूं चालै हो।
बीन री घोड़ी आगै पांच-सात डूमां रा छोरा चालै हा। अेक जणै बांमें जनाना वेस कर राख्यो हो, लैंघै-लिपस्टिक सूं लेय र हाथ में रूमाल तांई। वै दस-बीस पांवडा पर, ठैर-ठैर बीन आगै नाचता-गावता हा— उड-उड म्हारा काळा रे कागला...। अर कदैई—खड़ी नीम के नीचै मैं तो अेकली, जातोड़ै बटाउ म्हानै छांनै-छांनै देखली, जिसा सस्ता अर डूमाउ गीत। हुवण नै तो बैंड बाजो ई हो, पण घणकरै जान्यां रो झुकाव आं छोरां कानी ई हो, बीं जनानियै छोरै कानी विशेष। जानी होडा-होड अेक-अेक, दो-दो रा लोट बीं छोरै पर औसरै हा; सौ-सवासौ तो बै हुवैई ला। देवणियां में सेठ शिवदयाल अगली पांत में हो। बींरी मलमली जेब कड़कड़ै लोटां सूं खासी ऊंची आयोड़ी ही। जान ज्यूं-ज्यूं आगै बधै ही, खंख बर सैंट री सुगंध ई बींरो सागो करै ही, बिना नूंतै ई।
अंधेरो पड़ग्यो हो तो ई सड़क ओजूं खासी ताती ही। हुसैनियो पगां उबाणो होळै-होळै चालै तो हो पण चालण में लूण-लक्खण कीं हो नीं। पग कीं डिगै हा, नस दूखै ही, शरीर कीं बिसांई मांगै हो। जान टुरी नै आध घंटा सूं ऊपर हुयगी। ओजूं तो आधींटो ई नीं आयो तो ई मनेग्यानै बो हो सावळचेत कै आवैनी हांडी कठैई पड़'र फूटगी तो सोनै सूं ई घड़ावणी मूंघी पड़ैली। गिणगिण पग मेलतां छेकड़ उण ब्याह वाळै घर तांई नाको कियां ई पा’दियो।
जान्यां नै पैलां तो मैंगोसेक भावै जित्तो। तीन-तीन च्यार-च्यार गिलास तो हर अेक ई खाली करी। सेठ शिवदयाल मनवार रो कीं घणो काचो हो, उण नईं-नईं करतां सात नै तो हाथ बता ई दियो। मैंगोसेक पछै प्लेटां री बारी आई। कतली, राजभोग, संदेस अर समोसा। डब्बल अर तिब्बल तो घणकरा ई खाली करी पण सेठ अर बींरा भायलां री डब्बल सूं ई अेक-अेक आगै बधग्या। लारै जावतां पान, सुपारी, खाटो हुवै ई है पण टुरती वेळा जान में केयां रै कीं कीं खोटवों शुरू हुवण लागग्यो। सेठ बां में अगाडियां में हो। मैंगोसेक बणायां तीन-च्यार घंटा हुयग्या हुसी; पड़्यै-पड़्यै में कीं बादी भरीजगी। तपती रो जोर हो ई।
मोटर में बैठ'र सेठ दीवानखानो तो नैड़ो लेय ई लियो पण उल्टी अर दस्त शुरू हुयग्या। फोन कर'र बड़ै डागधर नै बुलायो, हैजो बतायो उण। मोटर में बैठा'र बो बडोड़ी अस्पताळ लेयग्यो बींनै। रात भर डागधर पर डागघर, सूयां, ग्लूकोस अर दूसरी दवायां। अेक बजी डागधर बोल्यो— अबै घरै जाय'र आराम करो। खतरै सूं बारै हुयग्या।
अस्पताळ में इनाम बंट्यो अर घरै प्रसाद।
हुसैनियो घरै आवण लाग्यो जद नव-साढी नव हुयगी ही। होठां रै फेफी, ताळबो सूकै अर जीभ कलराईजै-अेकदम मुरझायोड़ी। चालण री ही आसंग पूरी नीं। साठ पइसा हा कनै। पैंताळीस पइसां रो तीन सौ ग्राम बाजरी रो आटो ले लियो अर पंद्रह पइसां रा पाव आलू ले टुरग्यो। रस्तै में अेक गाडैवाळो कचोळी-पिचका बेच’र आपरै घरै जावै हो। उण सोच्यो, जावतां ई किसी रोटी हुवै है, हुवै अर नीं हुवै। फेर तो दिन ऊगणो ई ओखो हुसी। गाडैवाळै नै बोल्यो-कीं है कांई रे?
— कीं भोरा—भुरकला तो है।
—दस पइसां रा कीं है तो दै नी। पइसा काल ले लियै।
उण बुहार झाड़'र लप अेक भोरा बींनै दे दिया। घरै आयो जित्तै नै दो गब्बा उण मार लिया। बासी-कूसी अर बूसीज्योड़ा हा जिसा ई चोखा, भूख में सै चढै है।
घरै पूग्यो। डोकरी खटोलड़ी पर मरती पड़ी उडीकै ही ईं नै पाळै मरतो सूरज नै उडीकै ज्यूं। पसवाड़ा फोर धापी, कदास अबैई आवै। दम दोरो आवण लागग्यो अर हाडां में ताव री चिणपिण न्यारी।
—मां, अे मां! बो बोल्यो,।
मां थिर हुवती-सी होळै-सै बोली— आयग्यो तूं, मोड़ो कर दियो नीं रे?
—हुयग्यो मां, हांडी लेय'र अेक जान में गयो हो।
—तो कीं चाबो-भूको मिलग्यो है लो बठै?
— नईं मां, आटो लायो हूं, तैं कह्यो हो नीं।
—बेटा, म्हारी तो उठण री आसंग ई नीं। टुकड़ो दिनूगै भलांई सेकीजो।
— तो अबार तूं?
—रात-रात में किसी गळूं हूं बेटा! पड़ी हूं हाड नांख्या, न इसी भूख अर न करण री आसंग ई, पण तूं?
—भूख तो है मां, पण दस पइसां रो लपेक भूको (खूमचै रो पूछण) खा लियो हो, रात इत्ती तो निकळगी। इत्तीक और हुवैली, काढ देसूं दोरी-सोरी।
— तो सेकलै नीं दो रोटी। अन्न पूग्यां आंतां सोरी रैसी तो नींद ही सावळ आसी।
—म्हैं ई थक्योड़ो हूं मां, रूं-रूं दूखै है, आसंग नीं म्हारी ई। दिनूगै ई बात अबै तो।
—तो तूं जाणै। बा जी सूं ऊपरकर अेकर तो उठण मतै हुई पण शरीर साथ देवतो नीं लाग्यो, पाछी पड़गी ही जियांई।
उण मां रै डील रै हाथ लगायो- न्यायो हो, दम दोरो अर तांत बोलै ही। बींरा बै भोरा खायोड़ा हा ई। पेट में कीं कुक्ख उठी। उण आधो लोटो पाणी ऊभै ही पेट में नांख लियो। दिन भर री रोसीज्योड़ी आंतां, पेट में भभकी उठगी। आडो हुयै नै दो मिंट ई मसां हुया हुसी, जी दोरो हुय र अेक उल्टी हुयगी। दो-च्यार मिंट बाद अेक दस्त पाणी-सो; फेर अेकदम सतटूट-सो हुयग्यो। डील बटीजण लागग्यो अर रह-रह आंख्यां आडा तिरवाळा आवण लागग्या।
— मां? अर फेर दस्त री शंका।
मां जमीं पर हाथ धरती कनै आय र बोली-कांई हुयो रे?
— तिस लागै है मां अर दस्त ई।
— कांई देवूं रे?
बा मटकी तांई गई होळै-होळै, पाणी री गिलास झलाई बींनै। अेके सागै ई पीयग्यो बो। बारै बजी रात रो हेलो ई कींनै मारै अर बैगो-सो सुणै ई कुण? सरधा नीं ही तो ई धूजती—टसकती बा बारै आई कियां ई। सोचै ही-दवाई रै नांव घर में तो कांदै रो छूंतको ई नीं, पांच-च्यार आलू हुवैला, का धोबो-डौढ धोबो आटो, किसी कारी लागै बां सूं? घर रै चिपतो ई सुलैमान रंगारो बसतो, बीं सूं अगलै घर में अधबूढ अक्खो चपरासी अर बींरै सांम्होसाम गुलाब; आपरी घरू स्कूल रो अेक गरीब मास्टर। डोकरी रंगारै नै जगायो, रंगारै मास्टर नै अर मास्टर चपरासी नै। ई अळसा-मळसै में अेक तो अठैई बजगी। सुलैमान कीं कांदै रो रस काढ'र पायो। डोकरी धूजै अर बिलताप करै—अरे, म्हारै हुसैनियै नै बचावो कोई, मालक बींरो भलो करै।
अक्खो बोल्यो— तूरी, घबरा मत। मालक सब ठीक करसी।
गुलाब कह्यो—माजी, अस्पताल पूगण री देर है बस। थे नींद लेवो जाय'र।
बूढ़ो सुलैमान बोल्यो—थारो है तो कठैई नीं जावै, मालक नै याद कर।
बा उदास-उदास आपरै खटोलियै कनै पूगी।
मास्टर बिचारो बड़ी मुश्किल सूं अेक तांगलियो कर'र लायो। अक्खै नै सागै लेय'र बो बड़ी अस्पताळ पूग्यो कियांई। सूती गंगा बहै ही बठै। ड्यूटी डागघर चढ़ती उमर रो—सो ई हो। बोल्यो— वर्मा साब तो गया, आध घंटा पैलां तो अठैई हा, इसोई एक केस और हो। बै तो अबै दिनूगै आठ बजी ई बापरसी, पण घबरावै जिसी कोई बात नीं। थे जावो भलांई। अेकलै नै छोड'र मास्टर घरै आयग्यो।
विंग रै अेक कमरै में स्टोव पर चाय बणै ही। डागधर, नर्स अर कंपोडर चाय बारकर बैठा हा आपस में हंसी-मजाक करै हा। खळखळी कोई बरामदै सूं बारै तांई जावै ही। पंखा चालै हा अर सिगरेटी धुंवै रा छल्ला कमरै रै अकास में घणा हुय बारै निकळै हा। दवाई हुसैनियै नै दी जिसी दे ई दी, मनेग्यानै अेकर बै निरवाळा हुया। बांईटा आवै हा अर तिस बियांई बधै ही। आसार तर-तर माड़ा हुबै हा। रोग रो वेग चालू हो अर जीवण रा किनारा कट-कट मांय पड़ै हा, मौत उफणै ही। अक्खो उदास हुवै हो। सांम्हलै बैड सहारै बैठो अेक बोल्यो— बाबा, अठै तो पद-पइसो अर का हुवे सागीड़ी जाण-पिछाण तो कीं बात बणै नीं तो कुण कींनै ई पूछै, काम हुवै जियां हुवै।
—अठै तो न जाण है अर न और कोई जोर, हुसी जियांई ठीक है। अक्खै कह्यो।
अठीनै डोकरी अेकर आडी तो हुई, फेर पाछी ई उठगी। नींद तो मरती नै पैलां ई नीं आवै ही, अब बा बिल्कुल ई बिदा हुयगी। रह-रह बींरै गोट उठै हा-ऊंधा सूंधा अर अणमींत। सोचै ही-जे दो रोटी बीं खातर पैलाई उत्तार राखती तो क्यांनै? पाव आटो सुलैमान सूं उधारो ई ले आवती, तीन पाव अगलो ई है, कीलो सागै ई दे देवती। आगै किसो राख्यो है कदैई। कमर दूखण लागगी, भळै आडी हुयगी। घड़ी-दो घड़ी बाद भळै उठगी, ईं उठ-बैठ में झांझरकै नैड़ी जाय पूगी।
अक्खो बैड रै चिपाचिप स्टूल पर बैठो हुसैनियै कानी देखै हो। उण अेकर बतळायो बींनै-हुसैनू?
—हां। फेर आपरी आखी शक्ति भेळी कर बड़बड़ायो बो-बाबा, मां भूखी है दो दिनां री... आटो पड़्यो है... पाणो...। अक्खै हाथां रो सहारो देय'र पाणी बींनै पा दियो। जीभ कीं आली हुई। उण फेर आपरी पीड़ प्रकासी-बीरी सरधा नीं है... ताव है.... थे बैगी बींनै रोटी...।
—ठीक है रे, तूं चिंता मत कर, सब हुय जासी आपैई।
फेर उण न सावळ आंख खोली अर न जीभ, जाणै बीं कनै कैवण नै अबै कीं नीं बच्यो हुवै। रोग रो वेग चालू हो। प्राण सांवटीजै हा। अेक मरोड़ो आयो। अक्खो खाथो-सो उठ र डागधर कनै पूग्यो। डागधर आयो अर देख र हाथ झड़का दिया।
डोकरी खटोलड़ी कनै बैठी सोच ही—अबै तो कीं पीळो बादळ हुवै दीसै है। सूरज ऊगै तो कोई आवैलो ई, हे मालक, म्हनै भलांई अबार ई उठा लिए, छोरै रै कीं मत हुया मालक, धोळां री लाज राखै। उठ'र फेर अगूणै आभै कानी देख्यो— अबै तो थोड़ी देर नै सूरज निकळैलो ई? बा पाछी ई आपरी सागण जागां बैठगी।
पांच सूं कीं ऊपर हुयगी। दस-बीस मिंट ई घटै हा सूरज निकळण में। अक्खो मूं लटकायां मास्टर कनै गयो-गुरुजी, छोरो तो...।
—हें! मास्टर रै पगां रै चाक्यां बंधगी अर जीभ पर अेकर अध मिंट खातर जाणै लकवै री हवा निकळगी। धूजती धड़कती जिंदगी कनै जाय र बो आ बात कैवै तो कैवै कियां?