अजब सैर है ओ।

इण अध कचरै सैर नै ठा नीं क्यूं डिस्ट्रिक्ट हेड-क्वार्टर बणाय राख्यो है। मन्नै बात बेजां अणखावणी लखावै, पण जाऊं कठै? नौकरी तो करणी है।

सात दिन चपलां घस्यां पछै कमरो मिल्यो है। कमरो मिल्यो है। कमरो कांई, घूरी है। इण तरै बणायनै छोड्योड़ो है जाणै मिनख नीं, घोड़ा इणनै भाड़ै लेवण सारु आवैला। ना खिड़क्यां अर ना खूंट्यां। किंवाड़ इत्ता नीचा कै चिनीक बिरखा हुयां पाणी मांय। वीं पर भाड़ो। पूछो मत। म्हारै जिसै छोटी तिणखाळै रो तो सुण्यां काळजो मुंहडै आवै।

इयां मैं अेकलो नीं हूँ अठै। आं घुरकल्यां में म्हें पूरा चवदै जणां हां। दो तो म्हारै बराबर रा सिरकारु नौकर है; अेक वाटरवर्क्स रो पंप ड्राइवर अर बाकी सैंग पढ़णियां छोरा।

मैं पैला दस दिनां में सगळां सूं चोखी सेंध-पिछाण कर ली। दिनुगै तो दफ्तर जावणै री उतावळ रेवै, पण संझ्या फुर्‌सत आळी हुवै। हरेक कमरै मांय स्टोव रो सुंसाड़ सुणीजै, जिणमें संगीत री गुंजायश सोधनै इणी टैम पंप ड्राइवर अेक पींपो बजाय-बजाय नै गावण लाग जावै।

कमरां रै आगै, खुलै चौगान में अेक टूंटी लाग्योड़ी है जिकी बंद कर्‌यां पछै टपकती रेवैं। इण टूंटी नीचै भीलवाड़ै री पुट्टी रो अेक चौकुंटो टुकड़ो धर्‌योड़ौ है। टूंटी खोलतां इण पर पड़ती पाणी री धार छितरावण लाग जावै; जियां म्है सगळा दफ्तरां कै स्कूलां-कॉलेजां कानी छितरावां।

सिंझ्या नै म्है रोट्यां बिना उतावळ रै पोवां अर पछै आप-आपरा स्टोव बंद करनैं चौगान में भेळा हुवां। पसेवैं सूं भरीज्योड़ा। बनियानां खोल-खोलनै डील नै हवा लगावां अर हाथां पर मुंहडै सूं फूंकां देवां; जियां कोई खायां पैली ताते गासियै नै ठंडो करै!

पैली-पैली केई दिन मनै लखायो कै हाथै रोटी पोयां भूख खुल’र लागै। आं दिनां में कोडावलो हुयनै जीमणनै बैठतो। आजकालै लागै कै भूख लागणआळी बात तो साची हुवैला, पण कोड मरग्यो।

अठै इण तरै री नित-नूंवी बातां लखावंती रेवै।

वै अैड़ी किणी बात सूं गुजरण रा खिण हुवैला, जद देवधर म्हारे, कानी कीं याद करतो-सीक आयो। म्हां चवदै जणां में कुण कीरो घणो-कमती हेताळू है; मैं तोलनै तो देखी ही नीं, पण देवधर आळो पाखो म्हा कानी मनै सरू सूं भारी लखावंतो। ठा नीं म्हारो कांई सरुप वींनै आदर जोग लखायौ कै वो अठै अेक-बीजै नै नांव लेयनै बुलावणै रै खुलैपण रै उपरांत मनै ‘भाइसा’ कैवण लागग्यो हो। औस्था में बो अबस म्हारै सूं कीं कम हुवैला, पण इत्ती कांई खास बात है आ!

खैरसला, तो देवधर आपरी ठौड़ उभो-उभो तीर छुटण री गळाई चालनै म्हारै नैड़ै पूग्यो। इत्तो उतावळो हुयनै बोल्यो, “भाइसा, थे शिक्षा विभाग में हो नीं?”

“हां देवधर...” मैं मुळक्यो, “अठै सगळा नै तो ठा है बात।”

“है तो सरी, पण...।”

“पण कांई देवधर!”

“आ के अेकर भळै पूछनै थ्यावस कर लेवूं” वो संको मरतो-सीक बोलनै नाड़ नीची घाल लीवी।

मनै वींरी भोळप माथै हैंसी आवण ढूकी अर मैं हँसतो अर वींरै सामीं देखतो रैयो।

“भइसा, अेक जरूरी बात री निगै करणी है...” वो मुंहडो उतारनै बोल्यो, तो मनै म्हारै हंसणै माथै पछतावो हुवण लागग्यो।

मैं अबै गंभीर हुयनैं वीं सामीं देख्यो।

“मर्‌याड़ै सिरकारु नौकर री औलाद!”

केयनै वो ठीक म्हारै नैड़ै आयो अर आगै उणरी बोली हाथ सूं छूटोड़ै किणी काच रै भांड री गळाई किरचा-किरचा हुयनै खिंडगी।

“देवधर!” मैं उणरै कांधै पर धर्‌यो, क्यूंकै मनै बो डर्‌योड़ो लखायो।

वो चुप।

“देवधर...तू कीं पूछै नीं। कांई हुयो थारै अचाणचक...?”

वो फैर चुप।

“हां, मर्‌योड़ै सिरकारु नौकर री औलाद रै बाबत बोल तनै कांई पूछयो?” मैं देवधर नै झिंझोड़ी-सी दी, पण वो तो जाणै भाटो हुयग्यो हुवै।

मनै अेक झुंझळ मांय खावण लागगी।

मैं थोड़ो दूर सरकनै ऊभो रैयो अर देवधर मुड़तो थको और दूर गयो परो। बींनै जांवतां देखनै लखायो कै वींरैं हियै री कोई दोरफ फकत चैरै पर नीं, उणरै डील पर डेरो जमा राख्यो है।

नीची छातआला आं कमरां री अेकल छात म्हां सगलां रो सामुहिक शयनागार है। म्हे बाउण्ड्री री भींत माथै पग धरनै बिना पगोथियां री इण छात पर जियां-तियां पूग जावां अर अेक-बीजै रा गूदड़ा बिछावणा ऊपर खांच लेवां। बस पछै रात हुवै, तारा हुवै, चांदणपख में चांद हुवै अर नित री वासी हुयोड़ी बातां लियां म्हे हुवां। आं बातां में नौकरी, इम्तहान, सिनेमा अर लड़ाई-झगड़ा रै अलावा चर्चावां चालै जकी अठै लिखणी मुनासिब कोनी। हां, संखेप में वांनै आपां स्त्री-पुरूष संबंधा री गुप्ताऊ बातां केय सकां।

नित री आं बासी बातां सूं जै थोड़ी-घणी उकताहट हुवै, तो वा फकत म्हारै मांय ही लाघ सकै; पण म्हारी उकताहट ओजूं इत्ती अभिजात नीं कै अठै रैवणो असंभव लखावण लाग जावै।

आज सिंझ्या देवधर रै अणमणै जावणै सूं म्हारो मन कीं अणमणो ही हो। मैं रोटी-पाणी जीमनै बारै निकळग्यो हो अर पाछो आयो जित्तै सगळा भाई लोग छात पर पूगग्या हा। पंप ड्राईवर अेक हरियाणवी राग गावै हो जकै री भाईड़ा कीं अणूती दाद देवै हा। लखावै हो कै तारां रै उजास में सगळा आप-आपरै मन री गांठां खोल-खोलनै बिचूरै हा। हरियाणवी राग आप री जिण खिलंदड़ी सारु ओळखीजै, ठीक वो स्वाद पंप ड्राइवर रै गीत रो हो, जकै नै कोई और विशेषण भी दिरीज सकै।

मैं म्हारै बिछावणो झूंड सूं कीं निरवाळो बिछायो अर इण मौज-मस्ती में सामल हुवणै री मनवार हाथाजोड़ी सूं पाछी करी।

थोड़ी देर हुयी कै गळी रै वीं पारआळै आपरै घर री छात पर उभनै वकील सा’ब ऐतराज कर्‌यो कै कोई भला मिनखां रो तरीको है कै डागळा चढ़नै रोळो करै।

“चुप मरो?” गावण आळै अर सुणनआळी नै केयोजणआळी इण रीसाळू आवाज पर मैं चिमकग्यो। आवाज देवधर री ही मनै अचंभो हुयो कै देवधर इण तरै चीख भी सकै।

“देवधर...” मैं हेलो कर्‌यो, “तूं अठीनै आय जा?”

पण वो ओजूं सगळा नै चुप करना चावै हो।

“इण वकीलड़ै री तो मां री...!” उक्ति कैण अंधारै में भालै री गळाई चलाई।

“देवधर...।” मैं फैर हेलो कर्‌यो।

अबकै बीं सुण्यो अर मैं देख्यो कै वो आवै हो। इत्तो उजास नीं हो कै वींरै चैरै री लकीरां दीखती, पण अंधारै में चालतै वींरै डील रै पाग रीस लखावै ही।

देवदर खेजड़ै री टूटोड़ी डाळी री गळाई म्हारै बिछावणै पर आय पड़्यो।

“अै रोळा करै तो थारो कांई लेवै...!” तूं क्यूं लोही बाळै यार? मैं बींनै सांयत देवण सारू कैयो।

वो कीं नीं बोल्यो। मैं वींनै गौर सूं देखण लागग्यो। देखणो कांई, हूं वींरै मौन में कीं सुणनै री चेप्टा करी। दूजै कानी राग खत्तम हुयी अर ताळयां बाजै ही। वकील सा’ब छैवट पग पटकता थका नीचै चल्या गया हा।

“तन्नै रागां चोखी नीं लागै!” मैं पूछ्यो।

“भइसा, मैं तंग आयग्यो पण जाऊं कठै? देवधर पडूतर दियो।”

“कठै जावणो चांव तो तूं?”

“भइसा, इण सूं ठीक हो कै टाटां चरांवतो, माटी खोदतो अर मजूरी करतो...?”

मैं वीरीं-सींग पूंछ बायरी बातां सुणनै अचूंभै में पड़ग्यो।

“भइसा, मैं साचाणी तंग हुयोड़ो हूं...।” वो फैर चीखतो-सीक बोल्यो, “थां सूं बात करणी चाई, थै हेंसण लागग्या...।”

“देवधर, मन्नै निगै नीं कै कांई बात है, पण मैं कोई हळकी पतळी केयी हुवै तो माफी दिरावजै वीरा?” मैं उणनै पतियारै में लेवण सारु साफ मन सूं माफी मांग लीवी।

वो फैर चुप।

“हां, याद आयो देवधर...तूं पूछै हो कै मर्‌योड़ै सिरकारु नौकर री औलाद...वा कांई बात ही बोल?” मैं अचाणचक सिंझ्या आळो प्रसंग उठायो कै वो इणी रै नेड़ै-तेड़ै उखड़ग्यो हो।

“भइसा, मैं हूँ वा औलाद?” वो बोल्यो।

“तूं?”

“हां, म्हारी मां सिरकारू स्कूल में चपरासण ही...!”

“पण अबै इण सूं कांई हुयो?”

“मैं नौकरी लागणो चावूं...मनै इत्ता दिन निगै नीं ही कै नौकरी करतां-करतां मरण आळै सिरकारु नौकर री औलाद नै सरकार नौकरी देय देवै... ।”

“हां यार...आ तो सही है; म्हारै आपरै दफ्तर में अेक अैड़ो मामलो है...।” मैं हामल भरी।

“आ साची है भइसा?”

“हां, भई...।”

उठीनै भाई लोगां रै झुण्ड में हेंसी रो तूफान आयो जाणै।

“तू तो मास्टरी री ट्रैंनिंग करै नीं!” मैं केयो।

“इणमें तो अेक बरस और है...” वो जाणै किणी कुवै मांय सूं बोल्यो हुवै।

“तो इत्तौ तंग क्यों हुवै देवधर...अगर कोई रस्तो निकळसी आपां अवस निकाळसां...”

“भईसा...” वो फेर बोल्यो, “थे नीं जाणो...मनै अबै नौकरी री सख्त जरुत है...बापूजी नै रिटायर हुयां केई दिन हुयग्या अर वांनै जित्तो मिल्यो वो बैनां रै ब्यावां में पूरो हुयग्यो...वै किसा फैर अफसर हा...चपरासी री पेंशन सूं गुजारो नीं हुवै, फेर म्हारो सैर रैवणो अर पढ़णो...बापूजी केवै कै गांव आळो घरियो बेच देवां अर बाप-बेटो अठै भाड़ै रै घर में पड्या रेवां...खेत तो पैली गयो।”

देवधर बोलतो-बोलतो हांफणी चढ़ग्यो अर बिसांई लेवण लागग्यो।

“देवधर...थारा पिताजी भी सिरकारु नौकर हा...?” मैं पूछ्यो।

“हां, पण मनै काल ठा पड़ी। नौकरी इण आधार पर मिलै कै सिरकारू नौकरी आपरै नौकरी रै टैम में जावै...तो मैं उण मां रो बेटो हूँ...”

देवधर रो कैवणो हो कै वीं कनै अेक रस्तो है कै सरकार वींनै इण आधार पर नौकरी देवै कै वींरी मां चपरासण ही अर नौकरी में मरगी ही।

“भईसा, कांई हुयो मनै पढ़ायनै... इण सैर री हवा खाय-खायनै मैं मैनत-मजूरी सूं गयो...” देवधर जाणै आपरै मुंहडै सूं म्हारी बात केवै हो, फरक फकत इत्तौ हो कै मनै भटकता-भटकतां अचाणचक बाबूगिरी हाथ लागगी। मनै लखायो कै म्हारी अमीरी अर बडावलोपण हो, जकै रो देवधर कनै इत्तौ काण-कायदो हो।

देवधर अबै चुप हो।

मनै इण मौकै पर थ्यावस बंधावण सारु घणी बातां सूझै ही, पण मैं वांनै केय नीं सक्यो; चुपचाप देवधर री अधारै में लीलिज्योड़ी आकृति में वींरो चेरो सोधतो रयो।

“भईसा....थे थांरै दफ्तर रै वीं मामलै री पड़ताल कर्‌या। मनै मां रै कारणै नौकरी मिल सकै नीं? मां स्कूल में चपरासण ही। वींने मर्‌यां बारै बरस हुया है...कठै इण कारण तो...पण वीं टैम मैं छोटो हो नीं! स्यात इण मामलै पर बिचार अवस हुय सकै...भईसा,, इण टैम तो मां रो कोई टाबर जवान नीं हो...अबै मैं हूं तो सरकार क्यूं कोनी नौकरी देवै?”

देवधर बोलतो-बोलतो थमग्यो, पण उठीनै भाईड़ा ठा नीं किण बात पर अेकर और जोर सूं हेंस्या। मैं उठीनै देख्यो। वकील सा’ब रै गळी मायलै कमरै रै रोशनदान सूं झांकतो उजास गायब हुयग्यो हो। स्यात वै सोय चुक्या हा।

भाईड़ां नै हेंसण रा दौर-सा पड़ रया हा। वां री हो-हो आभै लग पूग रैयी ही।

देवधर रै कांधै माथै मैं हाथ धर्‌यो। वो निढ़ाल हुय नै आपरो माथो न्हाख दियो। मैं वींरा केसां में हवळै-दवळै हाथ फैरण लागग्यो।

देवधर अेकर और माथो उठायो अर हवळै सीक बोल्यो, “भईसा, म्हारी मां स्कूल में चपरासण ही...”

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