म्हनै किणी काम सारू अेकर जोधपुर जावणो पड़्यो। आंवती बखत टेमसिर बस अड्डै पूगग्यो अर चूरू जावण वाळी बस मांय चढग्यो, पण बस मांय सीट अेक भी खाली कोनी ही। म्हैं बस रै बिचाळै-सी’क जाय’र ऊभो होयो सीटां कानी निगै करै हो कै कठैई खाली सीट दीखै के दिखाण, पण म्हनै अेक सीट खाली कोनी दीखी।

म्हूं खड़्यो-खड़्यो सोचै हो “जीवड़ा, इत्ती दूर खड़्यो-खड़यो कियां जासी”

अचाणचकै अेक बुजुर्ग सीट उपरां बैठ्यै-बैठ्यै आंगळी लगाई बोल्यो, “आ जाओ बन्ना, अठै म्हारै सारै बिराजो।” बां थोड़ा परनै सरकतां थकां म्हनै घणै सनेव सूं कैयो।

म्हारै मन मांय अणुती खुसी होई। म्हूं तावळो-सो बां रै कनै जाय’र बैठग्यो, पण अंतस मांय अेक बात खटकगी कै डोकरै आपां नै बन्नो कैय’र कीकर बतळायो। पछै सोच्यो, अठै री बोली होय सकै जद कैय दियो होसी। भासा तो अेक होवो भलाईं, बोली मांय तो फरक लाधै गो। क्यूं कै भासा अर बोली मांय फरक होवै। बोली तो बारा-बारा कोस रै आंतरै पर बदळ ज्यावै। म्हैं बैठता बीं बुजुर्ग कानी जोयो। बीं कानी देखतां म्हनै म्हारो गोमो ताऊ याद आयग्यो। डोकरो अेकदम म्हारै गोमै ताऊ जेड़ो लागै हो। ईं नै ल्हुकोल्यो अर बीं नैं काडल्यो। बो सांवळो रंग। बै मांयनै धंस्योड़ी छोटी-छोटी आंख्यां। बो मोटो-सो अर लाम्बो-सो नाक अर बै सागी काळा-काळा होठ। म्हनै बैठ्यै-बैठ्यै नै इयां लाग्यो जाणै म्हैं ईं डोकरै कनै नीं बैठ’र म्हारै गोमै ताऊ कनै बैठ्यो हूं। फरक हो तो फकत बोली अर पहनावै रो। म्हारो गोमो ताऊ जठै धोळो-धप्प चोळो अर दो लांग री धोती बांधै पण साफो तो कदे-कदास बांधै, पण डोकरो पहनावै मांय म्हारै गोमै ताऊ सूं जाबक अळगो। सिर ऊपरां अेक ठाडो-सो जूनो साफो, गळै मांय मैल सूं भरियोड़ो तोलियो, चोळो, बीं रै भी जगां-जगा कारी लाग्योड़ी, पण धोयेड़ो तो बो भी कोनी हो। अेक लांग री धोती ही जिण कारणै बीं री पिंडळियां साव निगै आवै ही। झीणी धोती रै कारणै पिंडळियां रा कई बाळ धोती सूं बारै भी दीखै हा। डावै पग री अेक पिंडळी रै अेक गूमड़ो हो जिण मांय सूं मवाद रिसै हो। देख’र म्हनै घणो दुख हुयो। म्हैं जाणै हो कै किणी बूढै मिनख रै जद चोट लाग ज्यावै या गुमड़ो हो जावै तो बो तावळो-सो ठीक कोनी होवै अर कदे-कदे तो ठीक होयोड़ो भी पाछो चेत ज्यावै। डोकरै रो डील, पहनावो अर उणियारै रा हाव-भाव देख्यां म्हनै पक्को पतियारो होयग्यो कै कोई जबरो कमाऊ अर कर्मठ मिनख है जिको इण उमर में खेत का पछै कमठाणै माथै खूब पचतो होसी।

गिरमी रा दिन हा। सगळां रै पसीनो छूटै हो। कीं बस मांय भीड़ बेजां होयगी ही। बस नै चालतां भी कई जेज होयगी ही। म्हारै साथै-साथै बीं बुजुर्ग रै भी अणूतो पसीनो चालै हो, जिण सूं खाटी-खाटी सौरम आवै ही। डोकरै आपरै चोळै री जेब सूं बीड़ी रो बंडळ काढ लियो। बीड़ी री बास म्हानै जाबक नीं सुहावै, पण फेर म्हैं डोकरै नै कीं नीं कैयो। डोकरो बंडळ सूं बीड़ी काढण मतै तो होयो पण पछै ठाह नीं कांई सोच’र बंडळ पाछो जेब मांय घाल लियो। स्यात बसां रा नूंवा नेम बीं नै चेतै आयग्या हा। अबकाळै बीं रै हाथ में जरदे री पूड़ी ही अर बण अेक जरदै री चिमठी आपरै होठां हेठै दाब लीनी। मजदूरी करण वाळां नै बीड़ी का जरदै री तलब होवणी सुभाविक है। मजूर आं रै बहानै थोड़ा सुस्ता लिया करै। अर अै बैल बीं री आखी उमर सारू चिप जाया करै।

जरदो लगांया पछै डोकरै म्हारै कानी जोयो तो म्हूं सोच्यो स्यात बूढीयो आपणी मनगत समझग्यो। पण बो तो म्हनै ऊपरां सूं लगा’र नीचै तांई इयां देखै हो जाणै म्हारै मांय सूं बो कीं कीं ढूंढै। बण म्हारै कानां मांय ओपतै चांदी रै लूंगां कानी देख्यो। पछै म्हारी नूंवी-नकोर टी-सर्ट कानी देख्यो। म्हारी छाती रै बिचाळै टी-सर्ट ऊपरां मंड्योड़ै शेर कानी कई जेज तांई जोयो।

बठै सूं निगै हटाय’र म्हारै अेक हाथ रै बंध्योड़ै सुवानाळ कानी देख्यो। डैण रो म्हनै इण भांत देखणो कीं अटपटो-सो लाग्यो। म्हनै लाज-सी आवण लागी। सोच्यो-सेवट डोकरो इत्ती बारीकी सूं मुआयनो कियां करै है। पण म्हैं कीं नीं बोल्यो अर मन रा भाव बीं रै साम्ही नीं प्रगट्या।

डोकरै री निजर तो म्हारी जींस पेंट सूं तिसळती-तिसळती म्हारै जूतां तांई जाय पूगी अर बठै सूं उठी अर सीधी म्हारै चेरै ऊपर आय टिकी। आपरी वाणी में घणी अपणायत घोळतो बो बोल्यो “सिध जावोला बन्ना..?” बन्ना रै नांव सूं म्हैं अेकर भळै चिमक्यो। पछै मन नै भरोसो दिरायो कै अठै री बोली मांय जवान-मोट्यार नै स्यात बन्ना कैवै है। अर घणी नरमाई सूं म्हैं पडूत्तर दियो कै ताऊजी म्हैं तो चूरू जास्यूं।

“जोधपूर आयोड़ा हो का आगै सूं आया हो?” बूढियै सवाल कर्‌यो।

“नीं आगै सूं कोनी, जोधपुर आयोड़ो हो”

बंतळ री सरूआत होई ही कै अेक बस अड्डो और आयग्यो। बस सूं सवारियां उतरी तो कमती अर चढी बेसी, जिण कारणै बस मांय भीड़ पैलां सूं घणी होयगी। अब म्हानै पैलां सूं और भी सट’र बैठणो पड़्यो। पसीनै रा रींगा बां रा म्हारै अर म्हारा बां रै ऊपर पड़ै हा।

“ब्याव होयग्यो कांई थारो..?” बण ओज्यूं पूछ्यो।

म्हैं ऊथळो दियो, “ना जी, अबी तो सगाई कोनी होयी।”

सुण’र डैण कीं मुळक्यो अर म्हारै लाल-लाल मूंडै कानी देखतो बोल्यो “अबी कांई ताकड़ है, अजै तो मूंछ्यां रा बाळ को उपड़्या नीं।”

म्हूं की कोनी बोल्यो अर मुळक’र रैयग्यो।

“और लाणो-बाणो तो तकड़ो है नीं..?”

म्हैं सोच्यो, डोकरो आपां नै इत्ती अपणायत सूं कीकर पूछै है! कदे आपणी आंगड़ी-फांगड़ी में आपणो कोई सगो-परसंगी तो नीं है। कदे म्हैं ओळख्यो नीं होवै। पण पछै याद आई कै इत्ती अळगी तो आपणी कोई रिस्तेदारी होयोड़ी कोनी अर म्हैं कैयो, “हां ताऊजी, सगळा मोज में है।”

“धीणो-धापो क्यां रो है..?”

“गावड़ती है अेक।”

“कितरो’क दूध दे देवै है..?”

“कांई ठाह, घरआळां नै बूझ्यो कोनी।” म्हैं कीं आखतो-सो होय’र कैयो। क्यूंकै लाम्बै सफर री थकान रै कारण म्हारो बोलण नै दर जीव नीं करै हो, पण डोकरो घणो बातेरी हो। बातां रा छूंतरा उतारण वाळो जीव। बो तो ओजूं बोल्यो “और गांव-गळी री सुणाद्‌यो।”

म्है कैयो, “के सुणाद्‌यां गांव-गळी री सो कीं ठीक है।”

“कितरा’क है आपड़ला घरिया..?”

डोकरै री बात रो मतबल समझ्यां बिनां म्हैं बोलग्यो “हैं कोई बीस-पचीसेक।”

“दबदबो तो पछै आच्छो-भलो होगो..?”

“ना, घणो उठाव कोनी।”

“अेकठ कोनी होगी..?”

“ना, अबी तांई तो सगळा अेक जगां हां।”

“इतरो मोटो परवार है, पछैं भी जे दबदबो कोनी तो पछै थारै गांव मांय कुणसी जात री बेसी चलै..?”

“किणी जात री कोनी चलै।” म्हनै झूंझळ-सी आवण लागी ही।

डोकरो तो ओज्यूं बोल्यो “थारलै जितरा म्हारा घर है, पण इतरै मोटै गांव में म्हारी हलाई डोर हालै।”

“हालती होसी।” म्हैं अणमणो-सो ऊथळो दियो अर पछै अचाणचक म्हारै मूंडै सूं निसरगी, “ताऊजी, कठै उतरस्यो..?”

“नागौर, क्यूं..?”

“ना-ना...म्हैं तो इयां बूझै हो” कैवतो म्हैं सोचण लाग्यो, नागौर आवण में तो अबी डेढ घंटो और पड़्यो है। म्हारो तो बोलण नै दर में जीव कोनी करै हो। लांबो सफर अर ऊपरां सूं बेजां गिरमी रै कारणै जीवदोरो होवै हो। पण डोकरो हो कै जाणै चुप होवणो कोनी जाणै। ओजूं बोल्यो “आल्ल्यो, इतरी जेज होगी आपां नै बंतळ करतां, म्हैं तो बन्ना रो नांव कोनी पूछियो...कांई सुभनांव है सा आपरो..?”

म्हैं मन मन मुळक्यो...लागै ताऊ अब नामावली परदादां तांई री बूझसी अर म्हैं दोरांसी’क कैयो, “नांव तो पुरखाराम है जी।”

नांव सुणतां बीं रै मूंडै री चैचाटी जाणै अचाणचकै गमगी अर म्हारै मूंडै कानी जोंवतो बोल्यो “पुरखाराम! कांई नांव है भळै..?”

“क्यूं, नांव कोनी हो सकै..?” म्हैं बोल्यो।

“तो पछै थारी जात कांई है..?” डोकरो कीं तणतो-सो बोल्यो।

“मेघवाळ।”

इत्ती सुणता डोकरो म्हारै सारै सूं इयां सरक्यो जाणै म्हारी जगां म्हैं नीं कोई मैल स्यूं भर्‌योड़ी गांठड़ी पड़ी है। बस में बेथाक भीड़ नां होंवती तो बो स्यात सीट बदळ सकै हो। मसकोड़ो मारण सूं बेसी इलाज नीं हो बीं कनै। डोकरै री इण हरकत सूं म्हानै इण भांत रा घणा किस्सा चेतै आवण ढूक्या। “हीण-जात” रो तमगो देवण वाळै ऊंचै समाज री हीणी भावना माथै तरस आवण लाग्यो। म्हैं अेकर भळै डोकरै कानी देख्यो। बो अजे मूंडो फोर्‌यां मून बैठ्यो हो। अचम्भो तो इण बात रो हो कै इण डोकरै रो उणियारो म्हनै गोमै ताऊ जिसो क्यूं लाग्यो हो!

स्रोत
  • पोथी : कथेसर ,
  • सिरजक : उम्मेद धानिया ,
  • संपादक : रामस्वरूप किसान, डॉ. सत्यनारायण सोनी ,
  • प्रकाशक : कथेसर प्रकाशन, परलीका ,
  • संस्करण : 02
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