म्हैं पसु-बौपार रौ नामी दलाल। सिर पर झूठ री मोटी-सारी पांड। जबान पर इमरत रौ बासौ। गायां रा भैंस्यां तळै अर भैंस्यां रा गायां तळै करतौ फिरूं। आखै इलाकै रा बोपारी म्हारी कदर करै। मिलतां ई ढाबै पर ले जावै। ओडर मारै, “दो चा बणाई रै ढाबाळा!”
ढाबै रौ धणी म्हारै कानी ख्यांत’र बूझ्यां बिना नीं रैवै, “और सुणा रै तनसुख!” कैवण रो अरथ, म्हनै घणकरा’क जाणै। म्हैं नीं जाणूं तो बात और।
म्हैं मेळां-ढोळां फिरतौ ई रैवूं। दलाल रौ और काम ई कांई। पसु-मेळा ईज आखै साल कठैन-कठै लागता ई रैवै ईं कारण म्हारी ध्याड़ती इज बणती रैवै। वा म्हैं थानै पै’लां ई बतायदी कै झूठ मोकळी बोलूं। वा म्हारै होठां बड़ी ओपै। अटक्यै सूं अटक्यौ अर खोटै सूं खोटलौ पसु धोळै-दिन बिकाद्यूं अर सोळवौं सोनौ खूंटै खड़्यौ राखद्यूं। लौह नै सोनौ अर सोनै नै लौह बणांवतौ बार नीं लगावूं। इसी चुटकी मारूं कै ग्राहक नै साम्हीं पड़यौ लौह सोनौ दिखै। आ बात कोनी कै अेकलै ग्राहक रा कान कतरूं। बेचणियै री अक्कल में इज मूतूं। इस्यौ मंतर मारूं कै पसु खूंटै सूं हाल क्यांरो जावै, धणी आखै मेळै उबासी मारौ भावूं। ग्राहक नै दूज रो चांद बणाय’र दरसण दुरलभ करायद्यूं। म्हनै तनसुख दलाल कैवै। हाथां पाळ्योड़ी म्होर बरगी टोरड़ी म्हारी फाक्यां चढतां ई धणी नै खोटां रौ डूजो दीसण लाग जावै। वौ वींरी नुवै सुरै सूं परख करणी सरू कर देवै। आंख्यां में इसी धूड़ गेरूं कै वींनै सावळ दीसै ई कोनी। सेवट फीकौ होय’र कैवणी पड़ै, “थनै कीकर लागै तनसुख? खोती मांय दम है’क नीं? थूं कैवै तौ काटद्यूं रांद?” कैवण रौ मतलब, इत्ती हथफेरी है म्हारै कन्नै।
पण म्हनै चौकस ठा है कै औ काम आछौ कोनी। आखै दिन राध मांय छुरी मारणी पड़ै। म्हैं जाणूं, झूठ सैं सूं माड़ी है, पण पेट खातर बोलणी पड़ै। दूजौ रुजगार कोनी। नीं जर नीं जमीन। बोलौ, कांई करां? म्हैं दलाली रौ अरथ इज जाणूं। आ इज समझूं कै सगळा इण सबद सूं नफरत करै। अेक दलाल री समाज में कांई इज्जत है, इणरौ ई म्हनै ठा है। पण मजबूर हूं। इलाज कोनी। सगळां रै भाग में आछौ काम कठै पड़्यौ है, ईं सारू जी टिका राख्यौ है। सोचूं, केई बापड़ा बकरिया ई काटै हा नीं। वांरी पीड़ कुण बूझी है? बस पांती आया धंधा करणा ई पड़ै।
हां, सरू-सरू में थे सोच्यौ हुसी, म्हैं म्हारी बड़ाई करूं। चंटताई रौ बखांण करूं। पण अैड़ी बात कोनी। म्हैं तौ म्हारी सच्चाई उगळी है। म्हैं म्हारै कसाईपणै में कित्तौ बांकौ हौ, आ इज बताई है।
म्हैं गांव आयौड़ौ हौ। गरमियां रा दिन हा। म्हैं दरवाजै मांय आडौ हुयोड़ौ हौ। सिर पर चिड़कल्यां लड़ै ही। नींद कोनी आयी। निजर छात मांय जा अटकी। लटकता बरगां मूंडै माथै पड़ण सारू बतळावै हा। बोदा सिणियां म्हनै ढलती उमर री याद करावै हा। वांरै मांय चिड़ियां रा मा’ळा जीवण रै खोखळैपण री कहाणी सुणावै हा। म्हैं सोच्यौ, जीवड़ा कित्तौ झूठ बोल्यौ। कित्ती खप्पर चक्या। ठाह नीं कित्ता रोगला पसु खरै पीसां मांय बिकाया अर कित्ता खरा पसु रोगलै पीसां मांय। पेट खातर कित्तौ बुरौ कर्यौ। पण औ बैरी तौ फेर इज खाली है। म्हारौ ध्यान विगत मांय जावण लाग्यौ पण अेक मिनख आय’र पाछौ खींच लियौ,
“राम-राम सा..!”
“राम-राम भई..!”
“तनसुख थांरौ ई नांव है।”
“हां, हां।”
“अेक भैंस लेवणी ही।”
आ कैय’र वौ पगाणै बैठग्यौ। पाकौ आदमी हौ वौ। उमर, अंदाजन साठेक। वीं रौ चै’रो बतावै हौ कै आदमी है टूट्योड़ौ। म्हैं सोच्यौ, औ तीरथ है। इणनै कोई कामल-सी भैंस दिराय’र गैलड़ा पाप धोस्यूं।
वौ पाणी पीय’र भळै बोल्यौ, “ हां तौ, म्हारली बात सुणी?”
“सुण तौ ली, पण थे ई कोई देखी है..?”
“देखी तो है अेक खोलड़ी, जचाद्यौ तौ।”
“कीं रै..?”
“अठै ई थांरै पड़ोस में ई। कासी कारीगर है...”
‘कासी’ नांव सुणता ईं गरीबी में कळीज्योड़ौ घर अर अेक भोळै-सै आदमी रौ चितराम आंख्यां आगै मंडग्यौ। कैन्सर सूं तड़फड़ांवती वींरी लुगाई अर वींरै मूंडै कानी जोंवता नान्हा-नान्हा टाबर इज आंख्यां आगै नाच उठ्या। कासी भैंस बेच’र लुगाई रो इलाज करावणौ चावै। उण बौत वार म्हारै कानां मांय-कर बात काढ दी, “खोलड़ी बिका यार तनसुख! थारी भाभी रौ इलाज ईं पर ई है, डाक्टरां अपरेसन रौ कह्यौ है। घरां तौ फूटी-कोडी ई कोनी। थूं दलाल है, इत्तौ काम तौ काढ ई दै। थारौ हक कोनी राखूं यार!”
इतणौ तौ ठीक है। पण कासी नांव सुणतां ईं जकौ दूजौ चितराम आंख्यां सांम्हीं आवै, उणनै देखतां ई धूजणी छूटै। वौ है बीमार भैंस रौ। कासी रा भैंस च्यार बर लोही मूत चुकी। अबकाळै डाक्टरां इलाज तौ कर दियौ पण इणरी मौत इज ‘डिक्लेयर’ कर दी। वांरौ कैवणौ है कै दो म्हीनां पछै आ भैंस औरूं खून मूतसी अर उण बगत इण नै मरणौं ई पड़सी।
म्हैं ऊंडी सोच मांय डूबग्यौ, माथौ पकड़ सोचतौ रह्यौ। सेवट बूढियै ई समाधी तोड़ी –
“हां तौ, कांई सोचण लागग्या थे? भूलग्या म्हारली अरज..?”
“नां, भूल्यौ तौ कोनीं, कांई कैवै हा थै, कासीआळी भैंस..?”
“हां वाइज। कोई खोट है..? सोच में किंयां पड़ग्या थे? मरा ना देइयौ। बौत गरीब आदमी हूं। छोरै खातर लेय जावूं हूं।”
“छोरै खातर..?”
“हां। छोरौ बीमार है। दो साल सूं अस्पताळ मांय भरती हौ। काल ई घरां आयौ है। दूध बतायौ है डागदरां। मोल रै दूध नै गरीब आदमी कठै पूगै। बैंक सूं ‘लोन’ लियौ है, सोच्यौ भैंस लेयल्यां। छोरै रौ इलाज हुय ज्यासी अर कीं दूध बेच’र आटौ बपरा लेयस्यां।”
“तौ आ बात है..?”
“हां मरा ना देइयौ। ध्यान करियौ, कदे राध मांय छुरी मारद्यौ।”
म्हैं अेक लाम्बौ सिसकारौ मार्यौ अर माथौ पकड़ लियौ। आभौ घूमतौ-सो दीख्यौ। म्हैं लाठी अर भींत बीचाळै आयग्यौ हौ। काळजौ फड़कै चढ़ग्यौ। आज इण बूढियै बीस बरस री दलाली री सजा अेक ई झटकै मांय देय दी। म्हारै सांम्ही दो भूखा चितराम हाथ पसार्यां खड़्या हा। आ बात म्हारौ काळजौ खावै ही के किसै नै बचावूं? औ सवाल म्हारै सांम्ही नागौ हुय’र नाचै हो कै म्हैं कासी नै मारूं’क बूढियै नै? हां कैवूं’क ना? हां रो अरथ बूढियै री हत्या, तौ नां रौ कासी री।
बूढियौ फेरूं बोल्यौ, “तनसुख जी, चालां कासीआळै घर कानी..?”
म्हारै मूंडै सूं चीख निकळगी, “म्हैं दलाल कोनी बूढ़िया! सुवांज आवै सो कर।”
बूढ़ियौ लाठी रै ठेगै खड़्यौ हुयौ अर धूजतै पगां चाल पड़्यौ। म्हैं अेकलौ रैयग्यौ मांची पर। म्हैं भळै आडौ हुग्यौ अर वींयां ईं देखण लाग्यौ छात कानी।
चिड़कल्यां वींयां ई लड़ै ही।