सेठ धींगड़मलजी रजाई में मूंडो लपेटतां-लपेटतां पसवाड़ो फेरियो नै सेठाणी सूं कह्यो—‘रणछोड़ा चौधरी रै अबके बजरी-कटवळ सेंग मिळायनै ओछा सूं ओछो बीस कळसी धान हुओ व्हैला। बीस कळसी! इण भाव में’ने पाई एक किणरी देवणी नहीं, साफ नकेवळो एड़ो करसो तो कलम रै हेटे जावै तो निहाल व्है जाओं—क्यूं औ? पण सेठाणी पाछो कोई जबाब दियो नहीं, शायद उघींज गई ही। सेठ उठ्या, बत्ती बुझाई, पाळा में नाळा छोड़ कियो अर रणछोड़ा नै लपेटा में लेवण री तरकीबां सोचता-सोचता सुयग्या।

सेठ धींगड़मलजी खांडप गांव रा एक मालदार आसामी हा। सेठां रा बडेरा लेणदेण रा धंधा में चोखा पईसा कूटिया हा अर सेठ खुद बोरगत रा धंधा में खूब परवीण हा। दावा पुळी करतां तथा कचेड़ियां में भटका मारतां सेठां रा बाल सफेद वेग्या हा। इण वास्ते आड़ळा-पाड़ला गांवां रा महाजन कांम पडयां सेठां सूं ईज सलाह लेवता। खांडप गांव में तो कांई, पाड़ला गांवां में कोई मातवर करसो एड़ो नहीं हो के सेठां रो देणदार नहीं हुवै। अठा तक के खुद ठाकर साब बाईजी रा ब्याव में सेठां सूं आठ सौ रिपीया लिया हा। इण तरह सूं गांव में ईज नहीं पण आखा चोताळा में सेठां रो ठरको जम्योड़ो हो। आंटाळी पाघड़ी बांधनै तेलिया पांगळ माथे चढ़’र सेठ जठै कठेई जावता खूब आव आदर होवतो। पण जो आव आदर होवतो ऊपरला मन सूं ईज, मनमें तो लोग गाळियां ईज काढता। क्यूं के सेठां री कलम मशहूर ही। इण कलम रै हेटे जो कोई आय जावतो वो खुद तो कांई उणरा पोता पड़पोताई निकळणा मुसकल हा। ब्याज नैं काटा रो चक्कर एड़ो चालतो के लियो जिण सूं दसगुणो चुकायां रै पछै फारगती मिलती कोयनी।

घर में रामजी राजी होवतां थकां सेठ सेठांणी नै इण बात रो बड़ो दुख हो के उणरी कोई संतान को ही नीं। कोसिस करण में सेठां पाछ कोय राखीनीं, भाटा जतरा देव पूज्या, राखड़ी मादळिया कराया, गांव में गुरांसा कनैं इलाज करायो अर जोधपुर जाय’र डाक्टरां री छाती में रिपीया बाळीया पण गरज कांई सजी कोयनी। अन्त में सेठां हार खाय’र कोई दीखतो छोकरो देखने खोळे लेवण रो पक्यो बिचार कर लियो हो।

सरदी रो मौसम नै दांणा रा दिन, करसा रात-दिन लाटां रा काम में लागोड़ा हा। आछो दांणो जितरो जल्दी है सके उतरो जल्दी घर लावण री कोसिस में हा। रात राई बायरो बाजतो तो करसा चूकता को हा नीं। क्यूं के सियाळा रो दिन तो पीलू जितोक है। लुगायां पोर रात लेर उठती, आटो पीसती दोंवण बिलोवण रो काम करती अर दिनुंगा पेली पेली तो वे चूला रो काम निवेड़ देती ही। अबार दिन उगण ईज वाळो हो। घरां मांय सूं धुंओ निकळ निकळ नै गांव रै माथे धुंआ रो पड़दो सो वेग्यो हो। आदमी अळावां रै आगे बैठा बैठा ताप रह्या नै छोकरा लाटां में ऊभा हाका कर कर नै पंखेरुआं नै उडा रह्या हा, नै इणरे अलावा वे सूरज भगवान नै झट बारै निकळण रै वास्ते केवता जावता हा।

रणछोड़े री लुगाई मेथकी भैंस रै वास्ते बांटो भरने हाथ धोवती ही नै रणछोड़ो अळावै रै आगै बैठो बैठो चिलम री फूंक खेंचतोइज हो के सेठ धींगड़मलजी आय धमक्या। चौधरण मांयने सूं एक फाटोड़ी बोरी बिछावण नै ले आई। रणछोड़े रामां-सामां करने चिलम आगी करतां सेठां ने पूछ्यो— ‘सेठां कलेवो दूजौ करो तो थोड़ो मांखण ने सोगरो लाय दूं?’ सेठ चिलम हाथ में लेवता लेवता बोल्या—

‘ना रै बार दिनुंगे पेली किणनै भूख लागै। थोड़ी देर ठैर नै बोल्या— ‘थारी चिलम तो आचारी है नीं?’

रणछोड़ो घांटकी हिलाई नै सेठ चिलम खेंचण लागा।

सेठ बोल्या—‘रणछोड़ा अबके तो सुणीयो के थारे धांन चून चोखो हुयो। तिल किताक हुया?’

रणछोड़ो— ‘हां शंकर री किरपा सूं धांनड़ो तो अबके बीसेक कळसी हो जायला जिनमें तिलां रो पांचेक कळसी रो अन्दाज है।’

सेठ—‘भाव तिलां रो अबके ठीक है, पण इण सूं आगे हमें संका है, भाव घटो भले पण वदणो मुस्कल है, थूं चावे तो दो-चार कळसी रो सौदो करलां, हण वास्ते इज म्हू आज आयो हूं।’

रणछोड़ो—‘आपरो केवणो तो ठीक है, पण अबार म्हनै रकम री जरूरत तो है कोयनी, पछे वेई जद देखी जाही।’

सेठ हंस्या ने बोल्या—‘गेलो कठे रो रकम री जरूरत किणने नहीं है? थारे बाप ने मरियां नै आज चार बरस वेग्या है नै हाल तक डोकरो झाड़कां माथे बैठो है। खैर उण वगत तो थारो हाथ काठो हो पण हमें तो रामजी राजी है। देख रणछोड़ा नांणो हाथ में आय जावे पण टांणों नहीं आवे, म्हारो तो केवणो है के अब’के डोकरे रै लारे न्यात गंगा नै जिमाय दे। चोताळा में थारो नाम व्हे जावेला। घणो जोर तो पांच दस कळसी धान रो खरचो है नै थने रुपीयां री कांइ कमी रै गेला? थारी गुवाड़ी नै किण बात री कमी है। थारो दादो तो गांव चौधरी हो, चोताळा में उणरा पत्थर तिरता हा। नै इण कांगरेस रा राज में दूजो थूं लारलो कोई बात रो फिकर मत करजे। तहसीलदार म्हारे सेंदा-मेंदा है, बोत भला आदमी है।’

चिलम री फूंक खेंचतां खेचतां सेठां आडी नजर सूं चौधरी कांनी देख्यो के तीर ठिकांणे लागो के नहीं। चौधरी नीचो माथो कर नै एक घोचा सूं खीरा आगा पाछा करतो हो सेठां नै बोलता बोलता चुप रह्या जाणने नींद मांय नै सूं जाग्यो व्हे ज्यूं एकदम ऊंचो माथो करने बोल्यो—ठीक है सेठां थे म्हारा सेंण हो जणे म्हारे फायदा री बात केवो हो न्यात-पांत में म्हूं जठे कठेई जाऊं म्हने नीचो माथो घालने बैठणो पड़े है नै फगत इण कारण ज।’

सेठां चिलम देवण ने हाथ लांबो कियो ने बोल्या— ‘भेळा बैठा भायां ज्यू हां रै गेला। म्हूं थारो भलो नहीं सोचूं तो और कुण सोचेला? म्हें तो केई न्यातां जिमाय दी। यूं इण बातरो पूरो विचार कर नै काले म्हने मिळजे।’

सेठ उठ नै चाल्या ग्या, दिन निरोई चढग्यो अळाव रा खीरा बुझने राख वेग्या पण रणछोड़ो बैठोइज रह्यो, विचार में डूबोड़ो।

अन्त में चौधरण आय ने उणरो विचार तोड़ियो, बोली—‘आज यूं ठाडा व्हे नै कीकर बैठा हो? वायरो चोखो बाजे है, रोटी खाय नै लाटे चालण रो विचार कोयनी कांई? उठो रोटी खाओ जितरे म्हूं पोठा थापनै आजाऊं। घाट में दूध री अदोळी लीजो, छाछ लीजो मती, ठाडेलो घणो है।’

सेठां वाळी बात रणछोड़ा रै हिया में बैठ गई ही। दो महीनां पहिला जद वो एक न्यात रा मामला में बारे गयो हो तो एक पंच उणने बीच में बोलता नै टोकियो हो नै कह्यो हो कै पेली बापरे लारे कारज करने न्यात नें जिमाय दे नै पछे ऊंचो ऊंचो बोलजे। वे बोल हाल तक उणरा हिया में तीर रै ज्यूं चुभियोड़ा हा। अबके धान चोखो हुयो। क्यूं नहीं वो न्यात नै जिमाय नै आपरो फरज पूरो करले। पछे उणनें न्यात-पांत में बोलता नै कोई टोक नहीं सकेला, वो ऊंचो माथो करने चाल सकेला। दिन भर उणें लाटा में काम कियो जरूर पण उणरे मन में तो अइज विचार परडोटिया रै ज्यूं आंटा खावता हा। रात रा आईज बात उणे आपरी बेरडी नै कही और सब तरह सूं समझायने ऊपर सूं कह्यो—‘पईसो हाथ रो मैल है, तो आवतो जावतो ईज रेवे पण नुगतो हाथ, सूं वेणो मुस्कल है। घर में रामजी राजी है नै इण उपरान्त चार छः बीसो रो काम पड्यो तो धींगडीगो बांणियो त्यार है। म्हारो तो पूरो मन है, अब थारो कांई विचार है सो बोल?

‘म्हारो? म्हारो कांई विचार व्हे, थांनें ठीक जचे जयूं करो, पण बांणिया रो मूंडो नहीं देखणो पड़े तो ठीक’, चौधरण भींत कांनी देखती देखती बोली।

इणरे बाद पछे वाइज हुई जकी सेठां रै विचारियोड़ी ही। चौबीस गांवां रा नैना-मोटा आठ सौ मिनख न्यात रै रूप में जीमण नै आया। उणांरै खावण-पीवण रो इन्तजाम महीना भर पेलांइज चालू वेग्यो हो। कळसियां बन्द आटो पीसांणो, पीपा बन्द घी, और बोरियां बन्द गुड़ तथा खांड आई ही। पईसा-टका तथा लावण मेलण रो सब काम धींगड़मल रै हाथ में इज हो। जीमण रै सें दिन राज रा आदमी ऊंटा माथे चढ़ नै आय पुग्या हा और पंगत में भगदड़ मचण ईज वाली ही के सेठां मुंशीजी ने एक कांनी बुलायने जेब गरम कराय दी। रात रा अळावा रै माथे सबां रै मूंडे एक इज बात ही के सेठां रणछोड़ा रो नाक राख दियो। नहीं तो पोते तो डूबतो सो डूबतो ईज पण दूजां नै उणरे लारे खेचियां तांणियां फिरणो पड़तो।

सेठां रै केवण सूं ईज रणछोड़े बूडिया खोपां री जोड़ी बेचनै, आठसौ में नवा काटीडा लेलिया हा। उण रै मन तो चेत्री रा मेळा माथे जोड़ी लेवण रो हो पण गांवां-गांवां रा मिनख आवै और घरै फोरी जोड़ी बाध्योड़ी व्हे जरे चोखो नहीं लागे अेड़ी सेठां री सलाह ही।

नुगतो बीतण रै बाद हिसाब-किताब हुयो, सतरै कळसी धान सेठां नै भरायने बाकी रा 500) रु. रो खातो पाड़ने चौधरी अंगूठो चेप दियो पण ब्याज नै काटा रो हिसाब सुणनै उणांरा कांन खुलग्या। रिपियां 500 (बाकी निकळता हा पण काटो मिलायने पांच सौ रा सवाया सवा छः सौ उणरै नाम मंडीया। ने फेर उण रै ऊपर एक री मिती रो ब्याज। उणनै चौधरण रा वे बोल याद आया जिको उणें एक दिन रात रा कह्या हा कै बांणिया रो मूंडों नहीं देखणो पड़े तो चोखो रेवे। पण अबे कांई व्हे? अबै तो उण बात नै घोड़ाई कोय पुगेनी। हिसाब करायने जिण टेंम चौधरी सेठां रै घर रै बारे निकल्यो गिरण गेलो व्हे ज्यूं वेग्यो हो। चालबां री वेळा सेठां है कहयोड़ा वे बोल रणछोड़ा रै कानां में रै रै नै होली रै-चंग है ज्यूं गूंजता है कै—आज आपणो ईज नहीं पीढियां रो लेण-देण वेग्यो। पीढ़ीया रो लेण-देण चौधरी मन में धोखतो जावतो हो।

घरें आयां सूं चौधरण थोड़ी हिम्मत बंधाई—भगवान साजा ताजा राखो थांने और म्हारा नेन्याने रिपिया तो काले उतर जासी। आछा सोच में पड्या। म्हारे भावै आंख मींची जद म्हारे माथे पांच सौ रो देवणो हो— केवतां केवतां चौधरण ठेरगी।

‘देवणो हो तो लारा सूं थारा भाई री केड़ीक फजीती हुई वा थारां सूं कांई छानी है। घर रो घर कोल्यो वेग्यो। बापड़ो कठेई मजूरी करने पेट भरतो व्हेला—आभा कांनी मूंडो करने चौधरी बोल्यो।

सियाळो उनाळो बातां करतां बीतग्यो ज्यूं देखे ज्यूं वरसाळो आय धमक्यो। मोर मीठा मीठा बोलण लागा। करसां री आंख्यां तो रात’र दिन आभै कांनी इज लागोड़ी ही। अन्धारी रात रा ठेट अळगी बिजळी खिंवतीं तो मन में घणा राजी व्हेता। जमीन तैयार पड़ी ही। कसर मेहरीज ही। रणछोड़े तौ अबके सदेई का सूं दुगणी तिगणी खेती करण रो बिचार कियो हो आखो उंनाळो धणी-लुगाई दोनुं जणा दिनूंगे जावता नै अन्धारो पड्या पाछा आवता। आखो दिन सूड करता। खेत कांई त्यार कियो हो, उडण खटली रो मैदान त्यार कियो हो।

एक दिन भगवांन गऊआं रै भाग रो सामो जोयो, ईसाणी बिजली ऊंडी खिंवती ऊपर चढ़ी नें सोपो पड्यो जितरे तो नेव झरण लाग ग्यो। पाणी पड्यो तो पछै वो पड्यो। दिनूंगे उठ’र देखे तो नाडा’र खाडा सब एक। दूजोड़े दिन तो जमीन आली घणी ही जिण सूं हळ जुता कोयनी पण तीजे दिन तो रात थका इज हळ खेतां में पुगग्या हा।

रणछोड़ा जेडो सागड़ी नै नवा काटीडां री जोडी, जोतण में पछे पाछ राखी नहीं। मिनख आगा उभा उभा ईज थुथको नाखता। एक एक दिन में चार चार बीघा जमीन दाब तो। धान उगो तो पछे वो उगो के देखते भूख भागे जेड़ो। बाजरी देखो तो पत्ता भूंगल रा भूंगल, सांवळा भंवर। तिल नै गवार नीला डेडार करता जाणे आज ईज बरसने गयो व्हे जेड़ा।

घणी हूस सूं लोगां निनाण कियो और विचार कियो के है जिण पांनड़े धान पाकग्यो तो अवेरणो मुस्कल व्हे जायला। पण भगवान नै तो कांई और मंजूर हो, करसां नै साख दीवी पण फगत देखण नै और मन दुखावण नै। मेह तो पेहलो हळोतियो करायने गयो सो गयो ईज गयो। असाढ गयो, सावण गयो और भादरवो बीतण माथे हो। धान-चून सगळाई बळ बळा’र भस्म वेग्या ओर साथे साथे भस्म वेग्या करसां रा मन ई। बापड़ा कठा तक गाढ़ राखता।

पाछो उनाळो आवतां आवतां तो तळाबां रा पाणी खूटग्या। मिनख आप आपांरा सींगड़ा समाया जठीने भागणा शुरू हुया। दिनूंगा री वेळा ही और रणछोड़ो बळदां रै ठांण माथे माथा रै हाथ दे’र बैठो हो। सेठ धींगड़मल ब्याज जोगा पईसा लेवण सारुं और हिसाब करावण सारुं तीन वेळा आय चुक्या हा। चौधरी फिकर में डूबोड़ो हो, ठंडा, मण मण रा घंटिया भरतो हो। घर में तो खावण ने दांणा नहीं ने सेठां ने ब्याज जोगा पईसा देवणा हा।

उणरै लांबा कियोड़ा हाथ माथे बळद करड़ी जीभ फेरी और उणरो ध्यान टूटो। ऊंचो जोयो तो सांमने चौधरण हाथ में गळा रो तिमणियो लियां उभी ही। बोली—‘यूं मूंडो छिपावता किताक दिन फिरोला? आज जायने आगो हिसाब कराय आओ। ब्याज पेटे म्हारो तिमणियो केवतां केवतां चौधरण रो गळो रुंधीजग्यो। आंख्यां में पाणी आयग्यो। तिमणियो लारली साल ई’ज आंपरी लाडकी भैंस नै बेचने घणो दोरो लड़ झगड़ नै करायो हो। आंसूड़ा छिपावण सारुं दूजी कांनी देखने तिमणियो चौधरी रै हाथ में पकड़ाय दियो।

तिमणिया रै बाद आई बाड़ली, कातरिया नै कड़ोलियां री बारी। क्यूं के पेट तो नरणो रेवीजे नही, ने बिना हथेरण बांणिया पेढ़ी माथेई चढ़ण देवे नहीं। चौधरण चूल्हा आगे बैठी सोगरा करती जावती ही नै छांने रोवती जावती ही। बांणिया है अठा सूं लायोड़ी बाजरी उणें घणीई महीन पीसी पण केई बरसां री जूनी और सड़्योड़ी खातर व्हे जेड़ी होवण सूं उणरो सोगरो भी बणणो मुस्कल हो। तवी माथे नांखता-नांखता तो सोगरा रा टुकड़ा टुकड़ा व्हे जावता हा।

चौधरी चुपचाप आर बैठग्यो। थाळी में सोगरो नै लूण मिरच आया देखने, खावण लागो झट झट जाणे लारे वार आवती व्हे ज्यूं। चोधरण नै लारला दिन याद आगया। दो-दो भैस्यां, तीन-तीन गायां, चौधरी पाव घी बिना चळू कोय करतो होनी। क्यूं उण ठाला भूला धींगड़ीया री बातां में आय’र न्यात जिमावता ने’ क्यूं दिन देखणा पड़ता।

आटो गूंदतां गूंदतां चौधरण बोली—‘यूं कीकर वेग्या हो बेटी रा बापां करजो व्हे तो मिनखां रै माथे ईज व्हे है, कोई जिनावरां माथे तो व्हे कोयनी। पोर परार केड़ो थांरो शरीर हो—मुक्की देने पांणी काढ़े जेड़ो, नै अबे थोडो म्हारी काजळ वाली डब्बी में मूंडो तो देखो केडो वेग्यो है, लेमटा री थर व्हे जैडो। चिंता कर करने क्यूं शरीर रो नास करो हौ बडा मिनखां। छेवट तो आंपणे भाग में लिख्योडो है ज्यूं वेई।

गळा में अटक्योड़े सोगरा रा टुकड़ा पाणी रा घुटिया सूं उतरने मांडांणी हंस्तो हंस्तो चौधरी बोल्यो—सेंग रोगां री दवा दुनियां में है पण बैम री ओखद कठेई कोयनी। थनें मारे थाकण रो बैम वेग्यो है, दूजो म्हूं तो हो जेडो रो जेडो ईज हूं। आज तो तपत है आडंग व्हे ज्यूं लागे है, के म्हने ईज यूं लागे है? चौधरी आडी बात घाल दी।

मांनखा रो मन कितरो कमजोर व्हे है। उणने साच्ची बात केवता डर लागे।

केवत है कै मुसीबत आवे जरे अेकली नहीं आवै। साख जरनाद हुई तो करलां मन सूं हीणो दाव कोय दीयो होनी! आगला बरस रै आस माथे दिन तोड़ दिया हा। उनाळा रा पाणी री तकलीफ रा दिन में कोई आपरा सगा गिनायतां रै घरे जाय जम्यो हो, तो किणेई वेरा कोइटा करने दिन तोड़ दिया हा। पण असाढ़ रा चांदणा पख रा दिन जावता खारा जेर व्हे ज्यूं लागता हा। अषाढ़ सुद नम आई ने वुई गई। रात’र दिन कोरो बायरो बाजतो खें-खें करतडो, लांबा पन्ना रो। आभी सफाचट, टाटिया रो माथो व्हे ज्यूं। दिन लागता लांबां लांबां नै रातां लागती डरावणी। बायरो सूं झाड़ का सरणाट करतां। कुत्ता सारी रात भुसतां कै रोवता। लोगां रा काळजा ऊंचा चढ़ग्या हा। क्यूं कै छप्पनो नै बऊतरो निजरा देख्योड़ा केई बड़ा ठाडा मौजूद हा।

अषाढ़ रै ज्यूं सावण आदोक बीतग्यो नै मिनख-मिनख नै खावै जेड़ी टेम आयगी। मिनखां रो धीरज जातो रह्यो-खावण नै दाणां नहीं; पीवण नै पाणी नहीं नै ढोरां चारौ नहीं। करसां तो ऊंची आंगळियां करली।

पण अेड़ी कुबेळा में धींगड़मल जेड़ा महाजन बांणिया बडा राजी हा। वे सोचता कै हमके तो काळ पड़ जावे तो पो-बारे पच्चीस है। सडीयोडी खातर व्हे जेडी बाजरीं चांदी रै मोल बिकेला। कई बरसां सूं भरीओड़ा कणारा खाली व्हे जायला नै और सोना-चांदी सूं घर भरीज जाएला। निहाल व्हे जाआंला।

पण भगवान इणांरी मरजी पूरी कीवी नहीं। सावण उतरतां उतरतां सात दिन री झड़ी लागगी। करसां रा बळतोडा मन पाछा नीला वेग्या। धान चून चोखा चेंटा और मन मांग्या मेह व्हेता ईज गया। साथ रो पछै कांई पूछणो, बाजरी रा सिरटा हाथ हाथ लांबा नै दांणो देखो तो परड रा डोळा व्हे ज्यूं। मूगां चावळां री फळियां भुर्‌ती भेंस रा सींग व्हे ज्यूं एक एक फळी रै मुट्ठी मुड्डी दांणा।

रणछोडो खुशी में मस्त हुयोडो खेत में फिरतो हो के कुरजां गावती गावती चौधरण जाय पुगी आंख्यां में काजळ लियां घाघरा रा उछाळा देवती बोली—‘बांणिया रा रिपिया चुकाय’र अबके म्हनै चूडो जरूर पेरावणो पड़ेला। हाथां में चार-चार डांखळा लियां फिरूं, म्हने तो सरम ईज घणी आवे।’

चौधरी साफ नेडो आय’र हिचकी पकड़ने मूंडों उंचो करतो बोल्यो ‘गेली कठेरी आछो फिकर कियो चूड़ारो हतो जित्तो सगळोई एवज और इणरे अलावा इण गोरा-गोरा गालां माथे पेरण सारूं कनफूल नीं घडावुं जितरे सूतोड़ा नै ऊंघ थोड़ी ईज आवे।’

चौधरण हिचकी छोडाय’र माथे रो पल्लो आगो खेंचता बोली—‘टाबरां रा बाप वेग्या पण हाल तक छोरापण नहीं गयो। कोई अबार देख लेवतो तो?’

‘देख लेवतो तो कांई व्है जावतो, किणरी चोरी तो कीनी को—चौधरी बोल्यो, ने पछे दोनूं जीव जोर जोर सूं हसण लाग्या। बायरा री एक ठाडी लेर आई ने हंसण लागी बाजरी, गवार और तिल।

और ऊपर, ऊपर आकाश में हँस रही ही विकराल भैरवी गज गज लांबा दांत लियां हा हा हा हा हा हा मारग चलतो बटाउडो बोल उठ्यो ‘थारे मन में कुछ और है, कर्ता के कुछ और।’

देव झूलणी ग्यारस रो दिन और प्रभात री बेळा। मन्दिर रो पुजारी ठाकुरजी रो पालणो बारे काढ़’र सफाई में लागोडो हो। छोकरा अबार सूं ईज नगाड़ा और झींझाओं ने कूटण लाग र्‌या हा। पुजारी बापडो हाका कर कर नै कायो वेग्यो हो। मोट्यार ठाकुरजी रै प्रसाद सारूं खेतां में पूंक मतीरा लेवण नै गयोड़ा हा। उंणे उठे सूरज भगवान रै नींचें लांबी पतळी कांठी देखी। थोड़ी देर में वा कांठी बढ़णी शुरू हुई और धुआं रा गोटा व्हे ज्यूं दीखण लागी। करसां रो माथो ठणक्यो। पूंख तोड्या जितरे जितरे तो सूरज ढकीज ग्यो, आडो काळो बादळ आयग्यो व्हे ज्यूं धरती आकाश जठे देखे जठे टीड इज टीड। गांव’र खेत पीळा पट्ट पड़ग्या। ठाकुरजी धरया ईज रेग्या और सारो ही गांव खेतां जाय पूग्यो।

थाळी भरणका ने पीपां री भड़भड़ाट सूं नें लोगां रें हाका सूं आकाश गूंज उठ्यो। मेथकी एक हाथ में पीपो दूजोड़ा हाथ बेलण लियां आंतरड़ियां काढ़ती दौड़ रई ही। खेत रा इण खूंणा सुं उण खूणें। उणने कपड़ा री सुद ही और सरीर री। रणछोड़ो उभो हो खेत रे एक खूंणें भाटा री मूरत हुवे ज्यूं। आंख्यां उणरी फाटीज रैगी ही और जबान जाणे चेंट गई ही। गांव सारे रात पड़ी जितरे माथो फोड़ लियो पण पाणी नहीं उड्यो सो नहीं उड्यो।

इणरे बाद पछै वाईज हुई जिकी के महाजण बांणियां री मरजी ही। गांव रो गांव बरबाद वेग्यो और करसां रा टाबरिया रुळण्या। धींगड़मल जेड़ा सेठां री बण आई, आईज तो वे चावता हा। उणें विचार कियो के अबे रणछोड़ा कानी सूं ब्याज-बट्टा री उम्मेद करणी गंवार मांयनै सूं तेल काढणो है। अवै तो कब्जो नहीं कियो तो रही सही घर वकरी और ढोर-डांगर हाथ मायनै सूं जाता रैवैला।

दो चार वेळा तकाजो कियो नै थोड़ा दिन बाद 10-25 नोटिस लिखिया, उणां भेळो एक आठसौ रुपियां रो नोटिस रणछोड़ा रै नाम चेप दियो। कचैड़ी में दावो पेस हुयो और न्याव रा ठेकेदार उणरै नाम कुर्की रो हुकम निकाळ दियो। सेठजी कुर्की-जमीन और दो चार रातां छोगा वाळा चेलां नैं ले’र और रणछोड़ा रै घरै जाय धमक्या।

ढोर-डांगर, थोडो घणो गैणों-गांठों, राछ पीछ और दोनूं झूंपड़ा जिकां नै के रणछोड़े रात’र दिन एक करने बड़ी मुस्कल सूं बणाया हा, सगळाई सेठां रा वेग्या। झूंपड़ा रा बारणा माथै राज रा चैपा लागग्या। राज रा बेलिये उण दोनूं जीवा नै लैजा’र एक खेजड़ी’र नीचै बैठाय दिया। रणछोडा ने अचुंभो व्हे रह्यो हो और साथ-साथ खुशी ही कै बात बात मायैं रोवण वाळी मेथकी आज अेड़ी कुबेळा में चुपचाप कींकर बैठी ही। आंख्यां उपरी फाटीज रैगी ही और देखती ही घूखी बाधणी व्हे ज्यूं।

सेठां नै आपरी फोज पल्टण साथै पाछा जावता देखने मेथकी गरजी— ‘सेठां थांरो भगवान रै दरबार में काळो मूंडो व्हैला।’

सेठ हंस्या नै बोल्या—‘धरमादो कोय बंटे है नीं, पेला घर मांयनै सूं मूला री कापियां व्हे जेड़ा काढने दिया हा, न्यात में नाक ऊंचो राखण नै। अबै आई है भगवानवाळी।’

पण रणछोड़ा नै तो आज इण बात रोई बेहम हो के भगवान नाम री कोई चीज इण दुनियां में है। अगर है तो वो आंधो है, अन्यायी है, अेड़ो उणरो पक्को बिचार हो। वो सोचण लागो ओईज वो धींगड़मल है, जो साल पैलां उणरी खुशामद करतो हो नै कैवतो हो कै थनै और थारी गुवाड़ी नै रिपियां री कांई कमी।

और आज? आज आगै वो सोच नहीं सक्यो। ऊपर टीड रै चाट्योड़ी ठूंठ व्हे जैड़ी खैजड़ी नै निजरां आगै उणरो बरबाद हुयोड़ो घर। दूर-दूर उणरी नजर पूगी—राज रो बेली उणरी जोड़ी खैंचने लियां जा रह्यो हो। इतरे में उणरे जीव री जड़ी गोरियो चालतां-चालतां ऊभो रैग्यो पाछो फिरियो नै बोल उठ्यो—हं ऽऽऽभेंऽऽऽ! जाणै कैवतो व्है—अरै म्हनै बचाव। पापी म्हनैं कुण लियां जा रह्यो है? जितरै तो उणरा सूं आला मांरां माथे सोटो पड़्यो धम्म करतो। रणछोड़ा रै काळजा माथै छुरियां चलगी। उणें घणोई गाढ राख्यो पण रै नहीं सक्यो रोय पड़्यो भूं-भूं-भूं।

बाप नै रोवतो देखनै में नैन्योई मां री छाती में मूंडो घालनै रोवण लागो पण उणनै ठा नहीं पड़ी कै कांई रासो है।

चौधरण चौधरी नै रै ज्यूं हिम्मत बंधाई। रात उण खेजड़ी रै नीचे ईज पाणी पी नै बिताय दी और दिनूंगा पेली पेली वे चाल पड़्या कोई मजूरी माथे। उणो सुणियो हो के काळ पड़ जावण सूं राज ठौड़-ठौड़ कमठाणां खोलिया है जठै पेट भराई व्है सके है। इणरै अलावा दूजो कोई रस्तो तो नहीं हो। आगे-आगे रणछोड़ो नै लारै लारै मेथकी मारां माथे नैन्या रो भार लियां चाल पड़्या। तळाब री पाळ लांघता-लांघता चोधरी एक बेळा अंधारा में गांव कानी पाछो जोयो अर एक लांबी सांस खेंचली।

इण रै बाद रणछोड़ा अर उणरा परिवार नै किंणेई देख्यो नहीं। गांव वाळां ने कोई पक्का समाचार नहीं मिळिया। कोई केवतो के उणनै मजूरी कठेई मिली नहीं। और चौधरण उणरो छोकरो भूखां मरता मरग्या तो कोई कैवतो के रणछोड़ो डाकुआं रै भेळौ मिलग्यो है अर गांव रा गांव लूट रह्यो है पण रणछोड़ा री पक्की मालूम किणनैई कोय ही नीं हां एक आदमी अेड़ो जरूर गांव में आयो हो के जिण चौधरण अर नैन्या री लाशां निजरां देखी ही। पण गांव वालां इण बात रो विस्वास नहीं कियो।

बरस तो काळ हो ईज और राज पोपां बाई रो। कांनी कांनी चोरियां-डाका और कतल रा हाका उठणा शुरू वैग्या हा। आज मारग चालतां अमुक आदमी रो ऊंट लेग्या, आज फलाणां रो घर खोस लियो आज ढींकड़ो गांव लूट लियो। सैरां री बाबा ठा नहीं, पण गांवां में तो एड़ो मालम व्है तो हो के सरकार नाम री कोई चीज देस में है कोयनी। मिनख आपस में बातां करता—ओ कैडो राज वेग्यो—खोए खावणा नै नाएं जावणा! कोई दाव-फरियादाई नहीं। नैना सूं नैनां लगाय’र मोटा सूं मोटा अहलकार सगळाई खाऊं खाऊं करैहै। एड़ीज पोलां तो पेला कोय ही नीं।

करसा तो पेला गांव छोड़ चुक्या हा। बापड़ा कठा तक गाढ़ राखता? लगती दो दो साल तक कैतसाली और उणरे ऊपर मूंगीवाड़ो। गांव नहीं छोड़ता तो कांई करता। पेट खाडो दो टेम नहीं तो कम सूं कम एक टैम तो भरणो पड़ै।

खांडप गांव री पांच सौ घर री बस्ती मांयनै सूं सिरफ सौ घर आबाद हा। बाकी घरां में या तो ताळा लागोड़ा हा या बारणा आडा कांटा दीनोड़ा हा। सौ घरां मांयनै सूं आठ घर बाणियां रा और बाकी ठाकर ठठेरां रा हा। अंधारी रात छोड़ नै घोळा दिन रा अकेला दुकेला मिनख नै गांव री गळियां में चालता नै डर मालूम होवतो हो। लूट तथा डाका रा हाका सुण सुण नै बाणियां रा काळजा ऊंचा चढ़ग्या हा अर पेट में खळबळी लाग मेली ही। गांव रा इन्तजाम वास्ते राज में रपोटां कीवी ही अर रात रा पोरा वास्ते दो तीन भीलां नै मुकर कर राख्या हा पण तो धीरज कोय आवतो हो नीं।

धन तेरस रो दिन हो नै दुपेर री बेळा। सेठ साहूकारां अर ठाकर-ठठेरां रे घरे धोळा मंगला व्है रह्या हा। कठेई लिछमी री पूजा वास्ते गेंणो-गांठो बारे कढीज रह्यो हो तो कठेई बरतन-भांडा अर दीवा बत्ती साफ व्है रह्या हा। टाबर-टूबर खेल में मस्त हा नै लुगायां काम धंधा में लागोड़ी ही। कालै नहीं’र परसूं तो दीवाळी ईज ही। सेंग आप-आप री उमंग में मस्त हा।

इतरा में तो गांवरा आथमणा फळा सूं बन्दूकां रा चार छः धड़ाका एक साथै का ईज हुया नै गांव में खळबळी मचगी। बाणियां महाजन घरां मायनें ताळा लगाय-लगाय नै ठाकर-ठेठरां रै घरा कानी भागणा सुरू हुया। पण उणां नै देखनै अचंभो हुयो के उणा रा मकान तो पेला सूं बन्द हा। बिजळी रा पळका ज्यूं आठ दस ऊंट गांव भर में फैलग्या। गांव रा फळां ऊपर एक एक आदमी कारतूस लियां उभो हो ताकि चिड़ी रो जायो गांव रै बारे पग नहीं धर सके। गांव में सरणाटो छायग्यो मालूम कुत्ता उण दिन कठै छिपग्या हा।

सेठ धींगड़‌मलजी सेठाणी नै ऊंडा ओरा में छिपायनै बारणा में धूजतां हाथां सूं ताळो लगावता हा और मूंडा सूं ‘नमो अरिहंताणं’ रो जाप करता जावता हा कै इतरा में जम रा दूत जाय धमक्या। करसां और गरीबां है ऊपर लाल-पीळी आंख्या करण वाळा सेठजी रा होस-हवास उड़ग्या। ताळो हाथ रो हाथ में रैग्यो और सांकल माथै बारै बजगी। जमदूत सेठां नै खींच तांण’र आंगणा रै से बीच लैग्या और पूछतांछ कीवी।

सेठ बोल्या—‘अरे भाई म्हूं तो दूजै गांव से रैवण वाळो हूं, इण घर में पांवणो आयोड़ो हूं, म्हनै कांई ठा धन माल। घर पड़्यो। थै जाणो नै धन जाणै।’

‘सेठां पांवणा हो हा हा हा हा हा ‘एक जणो जोर जोर सूं पागल व्हे ज्यूं हसण लाग्या।

सेठ पाछळ फैर नै हंसण वाळा कांनी जोयो तो आंख्यां फाटीज रैगी। कपड़ा तो मिलटरी रा पैरियोड़ा हा पण सकल सूरत नै बोली बिल्कुल रणछोड़ा जैड़ी ही। सेठ ज्यूं-ज्यूं आंख्यां फाड़-फाड़ नै उणरै कांनी देखता जावता हा, ज्यूं-ज्यूं वो जोर-जोर सुं हंसतो जावतो हो। सेठां नै धीरै धीरै पूरो विस्वास वैग्यो। पण सेठ रह्या साब चुप ईज। मदूते देख्यो के अबै सांम दाम भेद सूं काम बणणो मुश्कल है तो एक हाथ लोहरा घण व्हे ज्यूं सेठां रा कनपड़ा माथै पड़यो। पण सेठ नहीं बोल्या—नहीं बोल्या।

पड़तै हाथ रौ चटाकौ सुण नै सेठाणी ओरां में रैय नहीं सकी। धमाकै सूं उठी। सोनै रै कंदोरै में लटकी तिजोरी री चाब्यां नै खोल नै रसोई में सूं चांदी री थाळी ले नै कमरै में पड्योड़ी हींगळूं री सीसी उण माथै ऊंधाय दी।

सेठ नै डाकुआं रै बीच में आयनै खड़ी व्हेगी।

‘बीरा थोड़ी’क म्हारी सुण!’

यूं कैवतां थकां’ई पड्योड़ी थाळी में सूं हींगळू रो अंगूठौ भरनै झरकरतो डाकू रै लिलाड़ माथै टीकौ निकाळ दियौ।

‘आज सूं तू म्हारौ धरम भाई है।’ आंख्यां में बेनड़-बीरै री ममता भर नै बोली ‘अै तिजोरी री चाबियां। वै तिजोरियां जितरौ धन माल तन्ने चाइजै, लेजा कोई रोकण वाळौ नई।’

इतरै तो सेठजी झटदेना डाकू रा पांव पकड़ लिया।

इण घटना नै रणछोड़ौ नहीं समझ सक्यौ, कै हुय क्या रयो है।

लुगाई माथै हाथ उठावणौ नै फेर’ई उण माथै जिण मन्नै धरम भाई बणाय लियौ—म्हारौ करतब नहीं।

जो होणहार हो होयग्यौ। अबै जिण पापां नै म्है सोचिया हा, उण नै धोय नै मैं इण नै बैन बणायर क्यूं नहीं पुन्न रो काम करूं।

हिवड़ैं में उतरती चढ़ती बिचारां री लैरां में रणछोड़ो डाकूपणै नै भूलग्यौ।

इतरै’ई सेठ बोल्यौ—‘आज थै एकलै ‘ई पुन्न नई कमायौ, म्हारी हिवड़ै री आंख्यां खोल दी। मैं जिण रीत सूं धन कमायौ, उणनै सगळां रै बीच में गांव रै नुवै निरमाण खातर लगाय देसूं।

उण दिन सूं सेठ गांव रै जीवण में ई’ज आपरौ जीवण मिलाय दियौ।

रणछोड़ौ उण गांव नै छोड़’र दूर-दूर चल्योग्यौ पण गांव वाळा हाल ताई उण नै नहीं भूल सक्या।

स्रोत
  • पोथी : राजस्थान के कहानीकार ,
  • सिरजक : नृसिंह राजपुरोहित ,
  • संपादक : दीनदयाल ओझा ,
  • प्रकाशक : राजस्थानी साहित्य संस्थान, जोधपुर ,
  • संस्करण : द्वितीय संस्करण
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