स्कूल में जद आधी छुट्टी री घण्टी बाजै तो सगळा टाबर नळकै माथै जाय’र साबण सूं आपरा हाथ धोवै अर पोषाहार खाण खातर लाइन बणा’र बैठ जावै।

म्हैं म्हारो वो समै अखबार पढणै में बिताऊं। म्हैं अखबार पढणो सरू कर्‌यो कै तीसरी जमात रै अेक टाबर री मां आयगी। कैवण लागी, ‘राम-राम मैडम जी कियां हो?’

रामा-स्यामा पछै बा आगै बोली, ‘दूनीयै नैं छुट्टी खातर आई हूं। पीहर में भाई रो नेग करण नै आसी, तड़कै पाछा जास्यां।’

थोड़ी’क देर रुक’र बा फेरूं बोली,’मैडम जी, आज थे मोहनियै नैं कूट्यो के?’

बा बात पूरी करती, म्हैं बीच में बोली, ‘म्हैं मोहनियै नैं मारणो तो दूर हाथ तक नीं लगायो। थानैं बात कुण कैयी?’

बा बोली, ‘बा मोहनियै री मां गांव में रोळा मचांवती फिरै ही कै उण मैडमड़ी री खैर कोनी, म्हारै मोहनियै नैं मार्‌यो! बीं री तो इसी खबर लेस्यूं के याद राखसी। मैडम जी मोहनियै री मां घणी खारी लुगाई है। सगळो गांव बीं सूं डरै। बा लड़ाई करती देर नीं लगावै।’

म्हैं फेरूं बोली, ‘देर तो के ठा कोनी लगावै, पण म्हैं तो मार्‌यो कोनी। बात झूठी है। थे स्कूल रै किस्यै टाबर नैं पूछल्यो कै म्हैं कदै किणी टाबर नैं मारूं के?

बा तो आपरी बात कैय’र उठगी। म्हैं डरगी,अब के होसी! अेक कहावत याद आयगी, उल्टो चोर कोतवाळ नैं डंडै। टाबर बीं री बात कोनी मानै, किलास में उधम मचावै। कदै-कदैई तो छोटा टाबरां नैं कूट नाखै। स्याणो इत्तो बणै,आपरी मां नैं लगाई बुझाई करै।

अब समझ में आयो कै मोहनियो गुरुजी सूं छुट्टी मांग’र पेट दुखण रो बहानो कर’र घर क्यांनै गयो।

ग्यारह-बारह साल रो टींगर इसी झूठी सिकायतां करै!

मोहनियै री मां री बात तो म्हैं पैली सुण राखी ही कै बा घणी बुरी अर खारै सुभाव री लुगाई है। गांव मांय अेक घर इस्यो नीं छोड्यो, अेक मिनख-लुगाई इस्यां नी हा जकां सूं बण लड़ाई-झगड़ो नीं कर्‌यो हुवै।

भी सुण राखी ही कै आपरै टाबरां री घणी सीर खैंचै। बीं रा टाबर दूसरा टाबरां नैं कूट-पीट’र आवै, पण बांरी मां सिकायत लेय’र आवणियै नैं ओळमो देवै कै म्हारै टाबरां जिस्यां सूधा टाबर दुनियां में नीं है।

आज के बात होगी? स्कूल रा सगळा मास्टरां सूं अेकर-अेकर लड़ेड़ी है। अेक म्हें बचेड़ी ही। अबै बा म्हारै माथै लागसी। घंटी बाजी। सगळा टाबर आप-आपरी किलासां में जाय’र बैठग्या। म्हैं भी म्हारी किलास में पढावण नै गई, पण जिवड़ै मांय घणा-घणा विचार चालै। घड़ी-घड़ी स्कूल रै मोटै बारणै कानी देखूं कै कठैई मोहनियै री मां तो नीं आवती हुवै।

साथै बात भी सोचूं— म्हैं क्यूं डरूं? जद म्हैं मोहनियै नैं मार्‌यो कोनी तो म्हनैं डरणै री के जरूरत! जियां-तियां करतां स्कूल री छुट्टी री घंटी बाजी। छुट्टी री घंटी बाजतां म्हारै मन में जाणै आराम री हजार घंट्या बाजगी। आपरी स्कूटी चालू-कर’र घणी तावळी घरां कानी भाजली। घरां जावती डरती-डरती जाऊं कै कठैई राह में मिलगी तो घणी भूंडी होसी। अेक कहावत अठै और याद आयगी कै नागो सोचै म्हारै सूं डरै, पण सांमलो आपरी इज्जत सूं डरै। उण छटेड़ी बदमास लुगाई री बराबरी म्हैं कद करूं?

घरै आय’र चैन री सांस ली। आगलै दिन अदीतवार हो। सोच्यो, इत्तै तो मामलो ठंडो हो जासी। सोमवार तांई सगळी बात ठंडी-मीठी पड़ ज्यासी।

अदीतवार री सिंझ्यां गांव री अेक छोरी रै घरै फोन कर्‌यो,ओ जाणन खातर कै मोहनियै री मां री रीस अब उतरगी होसी,कै बा अजै तांई गांव में बात बणावती फिरै। पण होयो उल्टो, छोरी उथळो दियो, ‘मैडम जी, बा तो काल नै उडीकै कै कद स्कूल खुलै, कद मैडमड़ी री चोटड़ी पकड़’र खींचू, म्हारै मोहनियै रै हाथ लगायो तो कियां लगायो!’

म्हैं उण छोरी नैं कैयो, ‘थे सगळा टाबर उणनैं कैंवता अर बतांवता कै मैडम जी तो हाथ कोनी लगावै, मारणो तो घणीं दूर री बात है।’

छोरी पाछी बोली, ‘म्हैं तो घणोई कैयो कै मोहनियै नैं के, बै तो किस्यै टाबर नैं कोनी मारै, पण बा बोली कै थे सगळा मैडमड़ी नैं बचावण खातर बीं री सीर खींचो।’

म्हैं फोन काट दियो। तो घणी मोटी रांद होगी। अब मुसीबत कियां टळसी? बीं लुगाई रो के करल्यै जकी साच नैं झूठ अर झूठ नै साच बतावै।

विचार कर्‌यो कै सोमवार अर मंगळवार री छुट्टी लेल्यूं। दो दिनां में बात आपी आई-गई हो जीसी। इत्ता-कित्ता’क दिन जोर रैसी। बात आखिर में ढळ सी।

मन घणोई दूखै कै बिना बात दो छुट्टी खराब करस्यूं। घरां कीं काम कोनी पण राड़ सूं डरती भी मंजूर कर्‌यो। राड़ रै नांव सूं म्हारा हाथ-पग ठंडा पड़ण लाग जावै।

सोम गयो, मंगळ गयो अर बुधवार नैं ले गणेशजी म्हाराज रो नांव कै—हे बिनायकजी! बिघन आप टाळ्या म्हाराज। स्कूल गई। किणी बात री कीं चरचा नीं ही। सोच्यो, काम ठीक होग्यो, दो सी.अेल. काम आयगी। झगड़ै सूं बचग्या।

पांचवीं किलास में पढणियो मोहनियो किलास में बैठ्यो घणो खुस दिखै हो। पण म्हनैं उणरी खुसी रो राज समझ में नीं आयो।

टाबरां री हाजरी लेय’र रजिस्टर ऑफिस में मेल’र आयगी। किलास में जा’र हिंदी पढावण लागगी। थोड़ी’क देर हुई कै किलास री खिड़की कानी देख’र टाबर बोल्या,’मैडम जी, मोहनियै री मां आयगी।’

मोहनियै री मां तूफान री तरियां स्कूल में धमकी। वा सीधी ऑफिस में जाय’र बोली, ‘बा मैडमड़ी किन्नै है, दिन च्यार होग्या काळजै में आग लागरी है।’

म्हैं किलास में खड़ी-खड़ी सुणूं। बीं री दूंकती आवाज कानां में जाणै बम फोड़ै। पग जाणै जमीन में रुपग्या। ऑफिस रो अर म्हारी किलास रो फासलो ठीक-ठाक सो है। अेक घड़ी खातर म्हारै दिमाग में घणा-घणा खयाल आया। अेक सागै हजार-हजार री गिणती में आवै अर जावै।

जाणै बा मोहनियै री मां राक्षसी ताड़का बणरी है। घणो मोटो लांबो-चौड़ो विसाल सरीर। काळो रंग। दांत बारै निकळेड़ा। खुला लाम्बा केस। मोटी-मोटी फैल्योड़ी आंख्यां। नाथूंणा फूंकारती अर हाथ जाणै दो नीं होय’र आठ दस होग्या।

सगळा हाथां में न्यारा-न्यारा हथियार लियां, गाजती-गुर्रावती म्हारै कानी आवण लागरी है। अेक पग धेरै तो इयां लागै जाणै धरती में गै’रो पाताळ ताई खाडो होग्यो।

अटै आय’र म्हारा हजार टुकड़ा कर देसी अर हंस-हंस गांव में लोगां दिखावती फिरसी।

आगली घड़ी इयां लाग्यो जाणै उणरै इस्यै रूप रै साम्हीं म्हारो रूप भगवान राम रो बणग्यो अर म्हैं उणनैं हरा’र भगा दी।

साथै सोचूं अर राजी होऊं कै इत्ती मोटी-तगड़ी राक्ससी किलास रै बारणै में कियां आसी! म्हैं बच जास्यूं, पण भाव जच्यो कोनी।

‘किन्नै है मैडमड़ी?’ रा बोल कानां में पड़तां म्हारो ध्यान भंग होयो।

म्हनैं कीं नीं सूझ्यो। म्हैं होळै-सी मीठा-मीठा सुरां में बोली, ‘अरे थे वे करो, छोटा-छोटा टाबर थांरै सूं तो बो’ळो जाणै कै किलास में पूछ’र आणो चाईजै कै म्हैं मांयनै ज्याऊं। सगळा टाबर के जाणसी, कै थे बात इं कोनी जाणो।’ वा मांयनै आंवती अेकर बारै खड़ी रैयगी। म्हारी बात सुण किलास रा सगळा टाबर हांस्या। बीं रो मूंडो देखण आळो होयग्यो। बा कीं बोलती, म्हैं पाछी धीमी आवाज में बोली, ‘थानै म्हारै सूं कोई काम है तो थे ऑफिस में बैठो म्हैं टाबरां नैं पाठ पढा’र अबार आऊं।’ बा जोस में आवण नै हुयी कै म्हारो ध्यान आगली बेंच पर बैठ्या बां टाबरां कानी गयो जिका मोहनियै री मां कानी में देख’र आपस में बोलण लाग्या हा। म्हैं बांरै कनै जाय’र घणै लाड सूं कैयो, ‘बातां ना करो। के सोचसी कै टाबर तो किलास में रोळा मचावै।’ पाछी मोहनियै री मां कानी मुड़’र बोली, ‘थे बैठो, म्हैं आऊं।’ बां नीं चावतां अणमणी-सी होय’र ऑफिस कानी चाल पड़ी। कीं नीं बोली।

अब म्हारै दिमाग में खयाल आयौ जाणै गाजती राक्ससी हाथां में हथियार लेय’र आई अर सांमै रामजी मिलग्या। अब पाछी जावती इयां लागै जाणै अेक-अेक पग धरै जियांई अेक-अेक हाथ अर हथियार पड़ता जावै। रूप बदळतो जावै। ऑफिस पूग’र बैठी जद लागै मोहनियै री मां बणगी। मन में हौंसलो बंध्यो कै मामलो सलट जासी। थोड़ी’क देर पाछै म्हैं ऑफिस मांय गई। बा त्यौर्‌यां चढायां बैठी ही। म्हैं बोलती कीं बार नीं लगाई। बडै प्रेम सूं उणरै कांधे पर हाथ मेलती कन्नै पड़ी कुरसी पर बैठगी अर बोली, ‘पाठ थोड़ो मोटो हो। थांनै उडीकणो पड़्यो। थां जमीदारां रै घरै तो घणोई काम हुवै। खेत, घर अर डांगरां रो। म्हारै कारण थांनै खोटी होवणो पड़्यो। थे बताओ, म्हासूं के काम हो?’

म्हारो प्रेम सूं इत्तो बोलणो उणरै खातर टाबरां री मीठी गोळी रो काम करग्यो, पण फेर भी थोड़ी ताव में आय’र बोली, ‘मोहनियो कैवै हो थे बीं नैं कूट्यो। म्हारै टाबरां नैं कोई मारै, म्हैं सहन नीं करूं। थे मारी तो कियां मारी म्हारै मोहनियै रै?’

बात आवणी ही जकी आयगी। म्हैं सुणली। अब म्हारी बारी ही, ‘म्हैं थारै मोहनियै नैं नीं मार्‌यो। थांरै तो अेक मोहनियो है जको थांनै इत्तो प्यारो लागै। म्हारै खातर तो स्कूल रा सगळा टाबर मोहनिया है। म्हे वांनैं क्यूं मारां! थे उणनैं बुला’र पूछल्यो।

वा तावळी-सी बोली, ‘हां पूछल्यो। म्हारो मोहनियो झूठ कोनी बोलै।’

मोहनियै नैं बुलायो। वो डरतो-डरतो आयो। अब म्हनैं उणरी खुसी रो राज समझ में आयो कै आपरी मां रै बळ पर खुस होर्‌यो हो।

आवतां म्हैं प्रेम सूं पूछ्यो, ‘मोहन, साची साची बता। म्हैं तनैं मार्‌यो के?’

वो ‘ना’ में नाड़ हिलायदी। उणरी मां उचक’र पूछ्यो, ‘मरज्याणा! च्यार दिन पैलां घरै आय’र बोकल्डो फाड़्यो, कूक्यो, घर नैं सिर माथै चक लियो कै मैडमड़ी मार्‌यो। दिन च्यार होयग्या मेरो काळजो बळतां नै। अब मुकरै कै मार्‌यो कोनी।’

बो फेरूं बोल्यो, ‘मैडमजी मार्‌यो कोनी हो। म्हैं स्कूल रो काम कोनी कर्‌यो जद सोच्यो इयां कह देस्यूं तो तूं म्हनैं स्कूल कोनी भेजसी।’ बो चुप होयग्यो।

बा मोहनियै नैं मारण लागी। म्हैं बोली, ‘अब थे क्यूं मारो? थांरी मार के फूल-सी लागै!’ मोहनियै री मां कीं नीं बोली। बस इत्तो बोली, ‘मरज्याणो मोहनियो, झूठ कद सूं बोलण लागग्यो?’ अर उठ’र चाल पड़ी।

स्रोत
  • पोथी : हेत रो उजास ,
  • सिरजक : कीर्ति शर्मा ,
  • प्रकाशक : राष्ट्रभाषा हिन्दी प्रचार समिति, श्रीडूंगरगढ़ ,
  • संस्करण : प्रथम संस्करण
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