पंचायत चुणाव आयग्या। सरपंची एससी सारू रिजर्व हुयगी। अजे तांई सरपंची अर चलबल चौधरियां री ही। पण राज रा नेमा माथै वां रो जोर नीं चालै। निस तो मजाल है वार्डपंच ई कोई दलित रै जावै।
गुवाड़ में लोग भेळा हुया। दलित अेक पासै तो सवरण दूजै पासै बैठ्या। चौधरी बोल्यो – “देखो भाइयो, आपणै सरपंची अबकाळै रिजर्व हुयगी है, जको बास रा लोग आपरो आदमी चुणल्यै अर आपां सगळा उणरो समरथन करद्यां। क्यूं साजन भाई?” चौधरी बास रै अेक स्याणै मिनख साम्हीं हाथ कर’र पूछ्यो।
“नांव थे ई काढद्यो चौधरी।” – साजन लुळताई सूं बोल्यो।
थोड़ी ताळ सुर-फुर होयी। छेकड़ चौधरी ई बोल्यो – “मेघै रो नांव काढद्यां तो कियां रैवै?”
सगळा हामळ भर दी। भेळप खड़ी हुयगी। अबै गांव में चरचा कै मेघो सरपंची पार घाल देसी के?
“घालै क्यूं कोनी, के कमी है उण रै..? सरतियो माणस है”
मेघो गांव रै दलितां में सूं सूधो माणस। पण टाबर कोनी। दो ब्याव हुयोड़ा। दो ई क्यूं हुया? मेघै री मां जीवै। पोतै सारू तरसै। पैलड़ी लुगाई थकां ई दूजो ब्याव कर दियो हो। दोनूं सागण भैणां गोर-निछोर। घर री खेती। पाणी लागै। पण आस दोनूंवा रै ई नीं मंडी।
मेघो मा कनै गयो। राय मांगी – “गांव रा लोग म्हनैं सरपंच बणावणो चावै। के करणो?”
मा साव नटगी - “ना बेटा आपां नै कोनी बणनो नीं सिरैपंच।”
“क्यूं मा आपणै में के खोट है..?”
“अरे बावळा, तूं जाणै कोनी आं चौधरियां नैं। अै इस्या सिरैपंच बणासी कै खा नीं कुत्ता खीर।”
“कियां”
“कियां के, घर बिधूंस कर देसी तेरो। आं री नीत नैं थूं कोनी जाणै। दिनगे जवाब दियाई आपणै तो।”
स्यात मेघै रै कीं समझ में आई हुवैला। जदी तो बो दिनूगै ई चौधरियां रै घरै जाय’र सरपंची पाछी नाख आयो। चौधरियां रो वार खाली गयो। पारटी-बाजी गांव में स्हैर नाऊं घणी तकड़ी हुवै। दोनूं कानी लड़ै चौधरी ई है। जीतो भलांई किस्यो ई पछै दोनूं अेक रा'। पण गांव नै राखै फांटो-फांट।
छेकड़ चौधरियां मोडू पर हाथ मेल्यो। दूसरी पारटी आळा सूणै नैं आपरो उम्मीदवार बणायो। बो हो चौधरियां रो चौथियो। इण सारू बै तो नचीता कै सरपंची तो आपां नैं ई घोटणी है। गांव वाळा चौधरियां नैं ई इस्यो अड़वो चाइजै हो। बां नैं मोडू ठीक लाग्यो। मोडू गांव में ध्याड़ी-मजूरी करै। काम रो करड़ो। धीरो माणस। ध्याड़ियो जावै जणां दो जणां जित्तो अेकलो काम करै। मोडू नैं काम उढावणै री दरकार कोनी। हां, रोटी जीमै जणां गुड़ री डळी जरूर मांगै।
इन्नै मोडू अर साम्हीं सूणो। मोडू गांव रो अर साथै चौधरियां रो जोर। चुणाव गेड़ चढग्यो। चौधरियां रा छोरा मोडू नैं जीप में चढायां फिरै। आथणां रा मोडू आळै घरां ई दारू पीवै। उगावै। मोडू नैं ई प्यावै – “अरै, पी ले, पी ले, पीयां बिना सरपंच कोनी बणीजै नीं।”
मोड़ै तांई मोडू रै घरां चौधर करै। बठै ई रोटी जीमै। मोडू ढोल होग्यो, क्यां में ई को नावड़ै नीं, कै चौधरी आपणै घरे जीमै। भींट कोनी राखै। बीं रा लुगाई टाबर न्यारा तरधन हुयोड़ा चौधरियां री सेवा करै। दारू में चूंच हुयोड़ै अेक जणै मोडू री लुगाई रो मुरचो झाल आप कानी खींच ली। “भाभी तड़कै तूं ई चाली बोट मांगण नैं। लुगाई सागै हुवै जणां बोटरां पर चोखो रोब पड़ै।”
पछै देर के ही, दिनूगै तो बां मोडू री लुगाई नैं ही जीप में चढा ली। आखै दिन ढाणी-ढाणी बोट मांगता फिर्या। मांय-बिचाळै हांसी-ठट्ठा ई करता चालै। उमर में भलांई मोडू सूं बडा, पण बा तो फेर ई आं सगळा री भाभी।
सिंझ्या रा सगळा मोडू रै घरां बावड़्या। आपरै रिपियां री दारू मंगाई। पी अर प्यायी। रोटी जीम्यां पछै अेक जणो बोल्यो, “अैल्यो, बा अेक ढाणी तो रैयगी अर काल आपां नैं घग्घर आळै पासै जावणो है।”
“तो इयां करां, आपां अर भाभी चालियावां बोट फोरण नैं बीं ढाणी। मोडू तो थकेड़ो है, आराम करण द्यो बापड़ै नैं।”
भाभी साव नटगी, “म्हैं तो आधी रात री कठै ई जावूं नीं।”
देवर मूं बछड़ती रो-सो कर’र रैयग्या।
अेकलै सरपंच सूं ई के सरै हो, पंच भी तो चुणणा हा। कई वारडां में लुगायां चुणीजणी ही। जठै हाथ टिक्यो बठै टेकण में चौधरियां काची कोनी तकी। म्हारलै बारड में तो बारडवाळा म्हनैं निर्विरोध चुण दियो हो। लोगां कैयो, “पंची नैं कुण पूछै, कीं नैं ई बणाद्यो। क्यूं बैर बांधो।” चुणाव हुया जीतै नैं चौधरियां मोडू रै घरां भगी मचा दीनी। छेकड़ बोट पड़ग्या। नतीजो खासा मोड़ो आयो हो। मोडू सरपंची जीतग्यो। अबै रात नैं मोडू रै घरां जे कोई ढोल बाज्यो है, ना पूछो बात। घर री लुगायां-पतायां, छोर्यां नैं चौधर्यां आप रै साथै नचाई। चौधर्यां मोडू रो घर झाल लियो। स्हैर आवणो हुवै तो ठै, जीप सरपंच रै बारणै आगै। साथै ले ज्यावै। पंचायत समिति सूं आपरै लै’ ढब रा काम करवावै। सिंझ्या रा पाछा आवै। फळ-फरूट ल्यावै। साथै अंगरेजी दारू।
अेक दिन मोडू सोझळै-सोझळै ई मेरै घरे आग्यो। म्हैं टाबरां री मां नैं कैयो – “चा बणाओ भई, सरपंच सा’ब आया है।”
बो बांथ घाल’र रोवण लागग्यो। म्हे धीर बंधाई। “इयां करे करै के माणस? इसी के बात हुगी?”
बो गरळायो, “चौधरी घर कोनी छोडै। के करूं? मेरै तो ज्यान नैं ब्याधी हुगी।”
“कीं कोनी करणो, करड़ो हूज्या। अबै थूं सरपंच है, थारा दसखत चालसी पंचायत में। हूगी जिकी हूगी। अबै सिर सामल्यो अर लोगां रा काम करवाओ। जाणकारी सारू सरकार ग्राम सचिव थानैं दे राख्यो है। म्हारै सूं हूसी जिस्यो सैयोग म्हे करबो करस्यां।”
चा पी’र सरपंच उठग्यो।
दस अेक बजे-सी चौधरियां री जीप सरपंच रै बारणै आयगी। चौधरी हेलो कर्यो, “सरपंच सा’ब आ ज्याओ, स्हैर चालां।”
सरपंच बारै आयो‘र कैयो, “आज म्हैं कोनी जावूं। आसंग-सी कोनी अर कीं घरां काम भी है।” “चंगा तो आसंग री दवाई ल्यावां आथणपौर रा आवां।” केय’र बै चल्या गया।
छिपतै दिन ई चौधरी तो आयग्या मोडू रै घरां। मांचां पर बैठतां हेलो कर्यो, “भाभी पाणी-पूणी तो झलाओ अर सरपंच नैं भेजो।”
इत्तै नैं तो मांय सूं बरंगो लियां मोडू ऊपड़्यो ई आयो। अेक-अेक चौधरियां रै कड़तू में सरकाई। बोतलां रै दी बरंगै री तो किचरी-किचरी हूगी। चौधरियां रो सपीड़ बाज्यो। उण दिन पछै मोडू बरस पांच सरपंची घोटी।