होस्टल रै बारणै आगै छोरां री भीड़ बिचाळै अेक अधखड़ लुगाई ऊभी। फाट्योड़ा, कोझा अर सूगला पूर। पगां माय लिपतरा अर हाथां मांय काळै रंग रा दोय-दोय बिलिया। बीडर्योड़ी-सी अठीनैं-बठीनैं जोवै।
कालेज रा छंट्योड़ा छोरा। बापड़ी डोकरी नै मखोलां मांय उड़ाय राखी। उणसूं रिगली करै अर फोटू उतारै। अेक बूझ्यो – “ताई अठै कीकर आयी...? किणनैं बूझै?”
“सांवरो कठै…?”
“कुण सांवरो…? कांई काम करै बो…?”
“मेरो बेटो है, अठै कालेज मांय भणीजै है।”
“पण अठै तो कालेज मांय सांवर नांव रो कोई छोरो कोनी।”
“तो कठै गयो।”...डोकरी उळझाड़ मांय पड़गी।
अेक कुचमाधी छोरो सिगरेट रो धुंवों काढतो उणरै ओढ़णियै रै पल्लै नै ऊंचो करतो बूझ्यो – “ताई, इण पल्लै हेटै काईं दाब राख्यो है?”
पल्लै नै काठो करती डोकरी बोली “ओ तो सांवरै खातर परोसो ल्यायी हूं। आज सांवर रै काकैजी रो सराध है। सांवरो घरां पूग्यो कोनी... दिन ढळतां-लग तो उडीकती रैयी, पण बो कोनी पूग्यो, जणां आवणो पड़्यो। रामजी उण ट्रक हाळै रो भलो करसी, जिको गांव सूं बहीर होवतां ई आपरै ट्रक ऊपरां चढाय लीनी, नीतर के ठा’ कठै-कठै भचीड़ खांवती फिरती।”
छोरा आपोपरी मांय देखै-बूझै पण सांवरै नांव रो छात्र तो आखै कालेज मांय ई कोनी। इतरैक तो दोय-तीन छोरां सूं बतळावण करतो सुदर्शन बठीनैं आयग्यो। सुदर्शन विज्ञान रै छेकड़लै साल रो छात्र। आपरै मारग आंवणो’र मारग जांवणो। किणरी ई दूई मांय कोनी तो किणरी चूयी मांय ई कोनी। उणरै तो कोरो भणत सूं काम। होस्टल रै दरूजै मांय बड़तो, जितरैक उणरी निजर छोरां री भीड़ बिचाळै ऊभी लुगायी ऊपरां जाय पड़ी। बो अपूठो बावड़’र बां रै कानी आयो तो उणरी मा डरूं-फरूं होयोड़ी बावळी-बचकर दांई ऊभी दीसी।
इचरज मांय भरीजतो वो झट बूझ्यो – “मा तूं अठै कीकर..?” अर बो इयां कैंवतो उणरै पगां धोक खायी।
आखै दिन री आखती होयोड़ी डोकरी चाणचक ई बेटै नैं सामै देख’र हरखायीजी। आपरै लाडेसर रो सिर बुचकार्यो अर बुझ्यो – “सांवरा, लाडी तूं इतरी ताळ कठै हो रै..? मैं तो सगळां नैं बूझती-बूझती धापगी। अठै तो सगळा अेक ई बात कैवै कै सांवरै नांव रो भणेतू अठै कोई कोनी।”
सुदर्शन मुळकीजतो-थको बोल्यो – “मा अठै मनै सैंग जणा सुदर्शन रै नांव सूं ई जाणै-ओळखै।” सुण’र सगळा छोरा ताळीपटको करता बोल्या – “यार सुदर्शन, तूं चोखो चकमो दीन्यो। कदे बतायो ई कोनी कै थारो दूजो नांव सांवरो भी है।”
सुदर्शन हंसतो-थको मा रै पल्लै कानी जोंवतो बूझ्यो – “मा, ओ कांई है।”
खीर रो तावणियो अर लापसी रो बाटको दिखाणती डैणी बोली – “आज थारै काकैजी रो सराध है न! तूं पूग्यो कोनी, जणां मनै लेयनै आवणो पड़्यो।”
मा रै हाथ सूं तावणियो अर बाटको लेंवतां सुदर्शन कैयो – “मा, जद तो आज थारै मांय सागीड़ा फोड़ा पड़्या। चाल अबै कमरै मांय चाल’र आराम कर।”
कमरै मांय पूग’र लाइट चासी। हाथ-मूंडो धोयनै दोनूं मा-बेटा खीर-लापसी जीम्या अर सुख-दुख री हतायां करी। बीजळी री जगर-मगर, होस्टल रा कमरा, फरनीचर अर गुड़कै चढीज्योड़ा पंखां रै बिचाळै आपरै बेटै नै देख’र डोकरी घणी हरखायीजी। सुदर्शन कैयो – “मा, अबै घणै सूं घणा बारा म्हीनां रा फोड़ा और है। पछै मैं नौकरी लाग जावूलां। तूं इतरा दुख झेलै अर फोड़ा भुगतै, सो आखा मिट जासी।”
पण मा रो ध्यान दूजी कानी हो। बा बूंझ्यां बिना को रैवण सकी नीं – “अठै, थे छोरा अर छोरी अेक साथै ई कीकर रैवो?”
सुदर्शन मा रै भोळैपण ऊपरां हांस्यो अर पड़ूतर दीन्यो – “मा, जिकां नैं तूं छोरी समझै, बै सगळा छोरा है।”
“जणा बै छोर्यां री दांई लामा-लामा केस कीकर बधाय राख्या है अर अे धोत्यां क्यूं लपेट राखी है।” – डोकरी बूझयो।
सुदर्शन कैयो – “मा, ओ तो आजकालै रो फैसन है, अर जिक्यां नैं तूं धोती बतावै, बै धोती कोनी, पण बां रै सरीखी छापल लुंग्यां है।”
मा कैयो – “अर अै केयी, जिका बावळा-गैलां री ज्यूं जट बधायां फिरै, अै कुण है? मनैं तो इस्या ढंग चोखा को लाग्या नीं।”
सुदर्शन कैयो – “अे भी अठै भणेतू है। आ भी आजकल री फैसन है। तनै चोखा कोनी लागै, जद ई तो मैं इस्या बाळ को बधाया नीं।”
बातां करतां-करतां ई दिन भर री थाक्योड़ी डोकरी खरड़का उपाड़ण लागगी। सुदर्शन पढ़णो चावै हो, पण बो पढ़ को सक्यो नीं। पड़ोसी कमरां मांय रोळो-बैदो होय रैयो अर सुदर्शन रा विचारां मांय काळी-पीळी आंधी घुमट रैयी। बो बीजळी री सैचन्नण लाइट मांय आपरी मा रै मूंडै कानी जोयो तो उणरै रोजणो आयग्यो। घर रो खोरसो करतां-करतां बापड़ी री आ दुरदसा होयगी। अणमेधा री सळां उळझ रैयी, जबाड़ा बैठ्योड़ा अर सांकळ सी दूबळी-पतळी रा कबाड़ मिल्योड़ा। जुवानी मांय ई बुढ़ापो आयग्यो। मेरी पढ़ाई रो खरचो, बाप रै औसरै रो करजो अर ब्याज चुकावतां-चुकावतां पींजर होयगी। भीतर भिळग्यो।
इण मा नैं लखदाद है, जिकी बापड़ी पाणी-पीसणो करनै मनैं इतरो भणायो। इसी मा रा उपगार कदे भूलण जोग है..? मा, तूं मा नीं, साक्षात् लिछमी है! बो विचारां मांय डूब्योड़ो सजळ-नैण री सरधा सूं मा कानी जोयो।
भळै उणनैं आपरै सुरगवासी बाप री ओळूं आयगी। उणरी थोड़ी-थोड़ी याद उणरै चेतै चढ़ रैयी। बो नीठ च्यारेक साल रो होवैला, जद उणरो बाप समायीज्यो हो। बाप री अेक बात उणरै सदीव-सदीव याद रैवै जिणनै बो कदे बिसर नीं सकै। मरती वेळा सुदर्शन रै सिर ऊपरां हाथ फेरतो उण नैं बुचकारतो-बुचकारतो कैयो हो – “सांवरै री मा, इण नैं सोयरो-सोयरो राखीजे, घणो सारो भणायीजे अर चोखा सैंसकार देयीज्यै..।” कैंवतां-कैवतां अेक हिचकी आयी ही अर सांसा ऊपरां चढीजग्या हा। सुदर्शन रै चौसरा चालग्या अर बो सुबक्यां चढीजग्यो। बैठ्यो को रैयीज्यो नीं, लाइट बुझायनै गुड़ग्यो।
‘सांवरा-सांवरा’ री बोली सुण’र सुदर्शन उठ्यो, आंख्यां मळ’र जोवै तो मा जावण सारू खाथी होयोड़ी, उणरै हाथ मांय खाली तावणियो अर रीतो बाटको हो।
तीन दिनां री छुट्टी लेयनै सुदर्शन मा नैं पुगावण सारू गयो हो अर जद बो पाछो आयो, जणा बो आपरा साथ्यां नै हड़ताळ ऊपरां बैठ्या देख्या। बूझ्यो, जणा ठा’ पड़्यो कै प्रिन्सिपल यूनियन रो चुनाव रोक राख्यो है। चुनाव सारू ई आ हड़ताळ है। हड़ताळ केयी दिनां तक चाली। छेकड़ छात्रां रा मायेतां अर दूजा नेतावां रळ’र प्रिन्सिपल सूं चुनाव करावणो मंजूर कराय लीन्यो। हड़ताळ तूटगी।
अबै तो कालेज अर होस्टल मांय आखै दिन चुनावां रो हुड़दंग। बापड़ा सूधा अर पढ़ेसरी छात्र चुनाव निर्विरोध करावणा चावै, पण गुंडां री दाळ कीकर गळै। कागलां नैं तो खिंडावण सूं काम। जे सर्वसम्मत अर निर्विरोध चुनाव होय जावै तो चन्दो कीकर मांग्यो जावै अर जे चन्दो नीं होवै तो गुंडां रा सूट अर होटलां रा खरचा कठै सूं आवै?
भणत मांय जाबक ठोरड़ू अर नाजोगा छात्र दूजां रो बिगाड़ करणो चावै। नीं आप भणै अर नीं दूजां नै भणत करण देवै। कदे वै गांव अर सहर रै नांव ऊपरां छात्रां नै भड़कावै तो कदे बै जातवाद अर सम्प्रदाय रै नांवै जूत बजावै। कदे होस्टल अर-गैर होस्टल रै बिचाळै जहर खिंडावै तो कदे क्षेत्र-विसेस रो जहर ऊगळै। दूजो कंई ताबै नीं आवै तो फैकल्टी रै नांवै ई बां मैं अळगावै।
जिकै दिन चुनाव री तिथ पक्की थरपीजी, छात्रां री नींद-भूख ई उडगी। कदे होस्टल रा बन्द कमरां मांय गोस्ठी होवै तो कदे कालेज रै हाल मांय आम सभा।
खैर दूजा चुनाव तो किणी भांत दोयरा-सोयरा होयग्या, पण यूनियन रै अध्यक्षपद सारू घणो तगड़ो संघर्ष। इण पद सारू इग्यारै छात्र परचा भर दीन्या। वां इग्यारै नांवां मांय अेक नांव सुदर्शन रो भी हो। दूजो हो महेश रो नांव। सुदर्शन चुनाव रै चक्कर मांय कदे नीं आवणो चांवतो, पण माधिया-भाई जबरदस्ती पोमाय-पोमायनै असूलां रै नांव ऊपरां खड़्यो कर दीन्यो।
केई पढेसरी छात्र महेश रो तगड़ो विरोध कर्यो। बै कैयो कै इण नंबरी गुंडै नैं आपां नेता कीकर मानां? बो आखै दिन कालेज री छोर्यां रै लारै चक्कर काटै, रातनैं दारू अर सिनेमा बिना को रैयीजै नीं। शिक्षकां री हेठी करण नैं तो बो आपरो जलमसिद्ध इधकार मानै। इणरै विरोध में आपांनैं सुदर्शन नैं वोट देवणा चायीजै। इस्यो पढेसरी, सूधो, चरित्रवान अर देवता-सरीखो छात्र दीवो लेयनै जोयां ई को लाधै नीं।
अेक छात्र बोल्यो – “भाइड़ो, म्हारो ओ निजू विचार है कै सुदर्शन सरीखै भलै लड़कै नै चुनाव मांय घींस’र क्यूं बापड़ै रो कैरियर बिगाड़ो हो। वो बापड़ो गाय रै सरीखो सूधो है। भणत मांय घणो ई तेज पण चुनाव रा छळछिद्दरां सूं जाबक अणजाण।”
यूनियन रो चुनाव कांई होयो, जाणै देस रै प्रधानमन्त्री रो चुनाव होयग्यो। परचा पूठा लेवण रै दिन घणाई संघर्ष होया। कोईसो ई आपरो परचो पूठो लेवण सारू त्यार नीं दीसै। छेवट आखा नेता रळ’र दोय उम्मेदवारां नैं छोड़’र सगळा परचा उठवाय दीन्या।
गांव अर सहर रै नांवै चुनाव हुंकारीज्यो।
चुनाव तो कालेज री यूनियन रो हो, पण जिलै री आखी राजनीतिक पारट्यां, कितरा ई समाजी’र जातीय सैंगंठ अर धरम रा ठेकैदार इण कुरूक्षेत्र मांय आय भेळा होया। प्रान्तीय अर संघीय छात्र-संघां रा नेता तो आ कैवता फिरै कै ओ चुनाव तो म्हारो ईज है, दूजा तो दाळ-भात मांय मूसळचन्द सरीखा ई है।
सहर रो छात्र-उम्मेदवार महेश अर गांव-कानलो सुदर्शन हो। आ लड़त अेकला महेश अर सुदर्शन री नीं होयनै गांव अर सहर री लड़त बणगी।
उम्मेदवारां री नक्की होवतां ई दोनूं पारट्यां आप-आप रो प्रचार तेज कर दीन्यो। परस्पर अर गळी-गळी मांय इस्यो कागारोळ मचायो कै सहर मांय लोगां री नींद उड़गी। जीपां रा घर्राट, लाउडस्पीकरां री कांव-कांव अर छात्रां रो होहल्लो लोगां रा कान बोळा कर दीन्या। गांव रा मिनखां सारू तो इस्यो ज़हर खिंडायो कै बापड़ां रो सहर मांय आवणो-जावणो ई बन्द होयग्यो। होळी रै हुड़दंग मांय जिण भांत लोगां रै साथै भूंडी-भूंडी बातां होवै, उणीज भांत री गांव रा लोगां सागै करीजण लागी। रंग-बीरंग पोस्टरां सूं आखै सहर री भीतां रंगीजगी। कालेज, होस्टल अर बड़ी-बड़ी बिल्डिंगां भांत-भंतीली स्याही अर रंगां सूं इसी भूंडी अर कोझी करीजगी कै देख्यां ई सरम आवै। दुकानां रा साइनबोर्ड होरडिंग, तार अर बीजळी रा खम्भां नैं भी अछूता नीं छोडीज्या। तांगा, टेम्पू अर बसां रै भी पोस्टर चेप-चेप’र बां नैं बेरंगा बणायीजग्या। ठेसण, प्लेटफारम अर बस स्टैंड आं रै प्रचार सूं अळगा को रैया नीं। दोनूं उम्मेदवारां री फोटुवां अर कारटूनां सूं ट्रेन, बसां अर तांगां सजायीजग्या। रोज-रोज रा जलूस अर धुवां-धार प्रचार। अेक-दूजै रै विरोध में इस्या ओछा अर सूगला नारा लगायीजै कै मिनख सूं सांभळीजणी मांय नीं आवै।
नागरिक आपसरी में बतळावै कै हे राम, इण देस रो कांई होसी ? अै भण्या-गुण्या मिनख ई जद इस्या कुकरम करै, तो छोटा-मोटां री किसी बात। लोगां नैं कांई ओळमो? शिक्षा जे इसी ई सूगली बातां सिखावण सारू है तो लानत है, इसी भणत नैं, फिटकार है भणेत्यां नै! इस्या हैवाल है तो क्यूं टाबरां नैं भणत रै नांव अूपरां बिगाड़ीजै? क्यूं इतरो नाणो खराब करीजै? इस्या हैवालां अै देस रा खरा अर मानीता नागरिक बणसी?
दोनूं उम्मेदवारां रै समरथण मांय केयी बार चक्कू-छुरा चालग्या। केयी बार मार-पीट होयगी। आं जलूसां रै सागै जे पुलिस नीं होवै तो खून-खराबै मांय किसी कसर?
गळी मांय ऊभो रामसरण पड़ोसी हैडमास्टर सोहनलाल नैं बूझ्यो – “मास्टरजी, थारै जमानै मांय भी कांई इसी वारदातां होंवतीं के..?”
सोहनलाल, जिको बरसां पैली पैंसन लेयनै आयोड़ो हो, चसमो उतारतां बोल्यो – “रामसरणजी, होवती कांई म्हे तो कदे इसी सुणी न सांभळी!”
रामसरण कैयो – “मास्टरजी, अेक बात बतावो, आं छोरां कनैं चुनाव सारू इतरा दाम कठै सूं आवै...हजारां रिपिया खरचीजै!”
सोहनलाल कैयो – “आपनै ठा कोनी कांई! अै छात्र दस-दस बीस-बीस रा गुट बणायनै दुकनदारां अर दूजा सम्पन्न लोगां कनैं जावै अर बां नैं डराय-धमकायनै चन्दै रै नांवै खोस ल्यावै।”
रामसरण कैयो – “आ तो घणी भूंडी’र माड़ी बात है। बै आं नैं इण भांत देवै ई क्यूं?”
सोहनलाल कैयो – “डरपीजता देवै, कांई करै बापड़ा? नीं देवै तो घरां’र दुकानां नैं पळीतो दिखाण देवै। छोरां नैं कूट नाखै। मारग बैंवतोड़ां रा कंठ झाल लेवै।”
रामसरण कैयो – “तो राज अर पुलिस कीं नीं करै ?”
सोहनलाल कैयो – “पुलिस हाळा तो आप बापड़ा आं सूं डरपीजता ओलो लेंवता फिरै।”
रामसरण कैयो – “अै छात्र आपरी पढाई-लिखाई कद करै।”
सोहनलाल कैयो – “पढाई-लिखाई सूं तो आं रै कोई मुतळब कोनी। कालेज मांय हाजरी माफ। परीक्षावां मांय नकल री छूट। ट्रेन अर बसां मांय बिना टिकट। जे कोई आंरी इण आजादी रै बिचाळै अड़ंगो लगावै तो पछै हड़ताळ, प्रदर्शन, जलूस अर नारैबाजी रै सागै लूट-खोस, मारपीट, तोड़-फोड़ अर लाय-पळीता!”
रामसरण बुझयो – “तो पछै इण समस्या रो उपाव?”
सोहनलाल कैयो – “उपाव? उपाव तो रामसरणजी, घणा ई है। थे आं छात्रां री खिमता नैं कमती मत आंको। छात्र देस रो लूंठो धन है। आ युवा-सगती देस रो धन है, क्रीम है। आं रा बूकिया मांय निरमाण अर विधूस दोवां री करामात है। पण...”
रामसरण कैयो – “पण…पण कांई।”
सोहनलाल कैयो – “पण, देस रो दुरभाग! आ सगती खरै काम नीं बरतीजै। आं मोट्यारां मांय के ठा’ कितरा तिलक अर गोखले कसमसावै। ठा’ नीं, कितरा भगत’र आजादां रा काचा-कुंवारा अरमान तड़फड़ावै। इण उफणतै जोस नैं खरै मारगदरसावै री दरकार है।”
रामसरण बुझ्यो – “खरै मारग-दरसावै रै बिचाळै कांई अबखायी है?”
सोहनलाल कैयो – “अबखायी री मत बूझो। आज आपां आखा माईत, शिक्षक, नेता अर सगळां सूं अपरां आ नाजोगी शिक्षा इण युवा-पीढ़ी री दुसमी है।”
रामसरण कैयो – “कीकर?”
सोहनलाल कैयो – “कीकर? आ बात भी बतावणी पड़सी? आपां सगळां रा चिरत, आचार-विचार, रैण-सैण, क्रिया-कर्म जिण ढाळै बगै है, उण सूं आज रा छात्र किण भांत अछूता रैवण सकै? छाती ऊपरां हाथ मेल’र सोचां तो आपां किस्याक हां…?”
रामसरण अेक हुंकारो भर ई नाख सक्यो।
सोहनलाल कैयां जाय रैयो “हूं कांई? आपां ई जे आज कींई जोगा होंवता तो आपणी आ पीढ़ी इण भांत को रुळती नीं। थोड़ोक सोचो कै आखी युवा-सगती जे अणभणियां नैं भणांवती तो आज लोग अंगूठाछाप लाधता! जे आ पळटण मिलावटियां, काळै-बजारियां, घूसखोरियां, कमतोलणियां चोरां’र धाड़व्यां नैं धकै लेय लेवै तो आपणै देस मांय कोई सी समस्या ऊभी रैवण सकै?”
रामसरण हामळ भरी – “बात तो सांची है मास्टरजी!”
सोहनलाल कैयो – “ठीक ईज नीं, जे सैंठो’र विसवासू नेतृत्व मिलै तो सड़कां, नहरां, पुळिया अर निरमाण रा आखा काम इण युवा-सगती रै श्रमदान मात्र सूं पूरा होय जावै। इतरो ई क्यूं, देस री भूख, गरीबी, बेकारी, बेमारी अर दूजा अभावां नैं जे जड़ामूळ सूं मेटणा है तो इण सगती रो सायरो लियां ई सरसी।”
इतरैक तो सामली गळी सूं बुलन्द नारां री आवाजां उठण लागी “जो हमसे टकरायेगा, मिट्टी में मिल जायेगा” दोवां री आंवतोड़ै जलूस कानी टोरां बंधीजगी।
दोवां कानी वोटर-छात्रां नै डरावणो-धमकावणो, लोभ लालच, दबाव-प्रेसर बरोबर चालता रैया। वोटर भी दोनूं उम्मेदवारां नैं डोका चरांवता रैया। सुदर्शन जठै गांव अर करसां रै नांव वोट मांग रैयो, महेश प्रतिक्रियावादियां रै खिलाफ नारा उठाय रैयो।
चुनाव रै सैं-दिन आड़ोस-पड़ोस रा केयी कालेजां रा छात्र जीपां मांय हॉकी-स्टिकां अर लाठ्यां रा बंडळ रा बंडळ भर-भरायनै पूग्या। सहरां’र गांवां रा नेता भी कालेज रै इड़द-गिड़द चक्कर काटण लाग्या। विधायक’र सांसद तो आखै ई नाटक रा सूत्रधार हा। पुलिस रै घणै करड़ै पो’रै मांय वोट पड़्या। बोटां री गिणतकार रै बखत तो दोवूं ई दळां रै बिचाळै इस्यो तणाव बध्यो कै रिजर्व पुलिस नैं बुलावणी पड़ी।
छेकड़, जद चुनाव-इधकारी सुदर्शन नै विजयी घोषित कर्यो, जणां उणरा समरथक घणा राजी होंवता उणनैं आपरै कंधोळै उपरां ऊठाण लीन्यो। जै-जैकार री रोळाट सूं कानां रा पड़दा फाटण लाग्या। गुलाब रै फूलां री इसी उछाळ होयी कै कदे देखणी मांय ई को आयी नीं।
महेश री हार रो नतीजो सांभळतां ई उण-कानला पांच-सातेक नेता आपोपरी मांय सैन करी। भीड़ सूं टळ’र कालेज रै पिछोकड़ै छ्याऊं-म्याऊं होयग्या। हिंसा’र बदळै री तीव्र भावना बां रा मूंडां ऊपरां साव लखायीजती।
सुदर्शन रो विजेता जलूस उणरी जै बोलतो कालेज सूं चालनै गांधी चौक रै कानी मुड़्यो ई हो के इतरैक तो दणदणाट करती तीन गोळ्यां सुदर्शन री छाती नै आर-पार करगी। जलूस मांय भाजा-दौड़ माचगी। पकड़ा-धकड़ी होयी। पुलिस मौकै रा कागद-पत्तर बणाया। डागधर ल्हास रो पोस्टमार्टम कराय नै उणरा समरथकां नै संभळाय दीनी।
वै जीप सूं ल्हास नैं उणरै गांव लेयग्या। सुदर्शन री मा उण बखत गाय नै दूयनै हथेळी मांय गुणियै नैं ऊंच्यां बाखळ मांय ऊभी ही। जीप उणरै फळसै रै आगै थमी। ल्हास नैं उतारनै जद आंगण मांय ल्यायीजी, जणां उणनै देखतां-पाण ई डोकरी पछाड़ खायनै पड़गी। गुणियो कठैई जांवतो पड़्यो। आखै गांव मांय किरळी माचगी।
छात्र-नेता मा नै होस मांय ल्यांवता कैंवता सुणीज रैया “मा, सुदर्शन असूलां खातर मर्यो है, वो मर्यो कोनी, अम्मर होयग्यो है!”