अै म्हारा मा’ट साहब है म्हारै पड़ोस में। अै म्हारा अेकला रा मा’ट साहब हा कोनी, पिंकी, मोंटू, पप्पू, बंटू, सगळा रा मा’ट साहब है। पिंकी म्हारै पड़ोस में है तो मोंटू पिंकी रै, पप्पू कीं दूर रैवै है। पप्पू रा पापा तो मोटा अफसर है एस. पी. है, बंटू रा पापा भी मोटा है कलक्टर है, पण म्हारा पापा मोटा अफसर तो कोनी, पण अफसर है ए. ई. एन.। पण मा’ट साहब सगळा ऊं मोटा है। पापा स्यूं मनै डर कोनी लागै, आं री गोदी में बैठ ज्याऊं, आंस्यूं लङ भी ल्यूं मैं डट ज्याऊं तो म्हारो काम कराल्यूं।

लारला दिनां सगळा पतंग उडावै हा, मैं मम्मी नै कैयो म्हूं भी पतंग ल्यास्यूं, मम्मी मनै डांट दियो, म्हूं सीधो पापा कनै पूंच्यो, पापा म्हानै पतंग ल्यादी। पापा मनै पतंग नीं ल्या’र देता तो मैं रूस ज्यांवतो, रोवण लाग ज्यांवतो, पग पीटतो, पापा नै पतंग मंगावणी पड़ती। पप्पू रा पापा एस. पी. है, पण पप्पू री बात रोकै कोनी। लारला दिनां म्हे खेलता हा, पप्पू बोल्यो आपां फूटबाल खेलस्यां, पण फुटबाल रो ब्लेडर कोनी हो। पप्पू फट आपरै डैडी नै कैयो, फटाक स्यूं जीप गई अर ब्लेडर ले आई। पण मा’ट साब, अरे बाप रे बडो डर लागै, कै डांटै तो..बस।

पप्पू री कोठी मोटी है, बंटू री भी मोटी है, म्हारै कनै छोटी कोठी है। म्हे खेलां तो पप्पू री कोठी में खेलल्यां, बंटू री कोठी में खेलल्यां, म्हारै अठै भी खेलल्यां, पण म्हारै अठै जगां थोड़ी है। पप्पू रै जीप है, म्हारै भी जीप है, पण बंटू रै डैडी कनै कार भी है, जीप भी है। म्हारी मम्मी बतावै है कै बंटू रा डैडी सगळा ऊं मोटा अफसर है, आखै जिलै रा अफसर है, कलक्टर है, पण मनै तो पप्पू रा डैडी सगळां में मोटा लागै है एस. पी., आं स्यूं चोर डरै, डाकू डरै, पुलिस रो सिपाही भी डरै। थाणैदार आं रै सामै खड़्यो होय’र सलूट मारै। पण म्हे तो कोनी डरां सामै ही खेलता रैवां, लड़ता रैवां, रूगस भी खाल्यां अै देखता रैवै, हंसता रैवै, पण मा’ट साहब..? आं रै सामै आंख ऊपर नीं कर सकां।

मा’ट साहब, बात कोनी कै अै म्हारै मारै, जद म्हे डरां... ना...ना..., अै म्हारै मारै ही कोनी, बडो लाड राखै, पढावै जद प्यार स्यूं पढावै, अेक बात नै कई बार बतावै, कदे-कदे डांटै भी। मैं तो आंरी बात फट समझ ज्याऊं, अेकर बतावै जद ही समझ ज्याऊं, बंटू दो बार बतावै जद समझ ज्यावै, पण पप्पू डफर है, वो भोत मोड़ै समझै, पण मा’ट साहब जद ताईं नीं समझै, बताता रैवै, मनै रीस सी आवै। पण मा’ट साहब नै रीस कोनी आवै। बै बताता रैवै। मैं जे मा’ट साहब होऊं तो पप्पू रै दो चट्टू धरद्‌यूं, पण मा’ट साहब री तो तोरी भी कोनी चढै, जद मैं समझूं, मा’ट साहब भोत मोटा है।

मा’ट साहब म्हारै पापा स्यूं मोटा है, मैं बानै अेक सवाल पूछ्यो, कोनी आयो, बां घणो ही तरळो मार्‌यो, फेर बोल्या - मा’ट साहब नै पूछज्यो, फेर म्हे पिंकी रै पापा कनै आया, वांनै की कोनी आवै, वै संस्कृत रो माइनो भी नीं बता सकै। फेर म्हे पप्पू रै पापा कनै आया वां सवाल गळत बतायो उत्तर तो मिला दियो, पण तरीको गळत हो। बंटू रै पापा स्यूं तो उत्तर ही कोनी मिल्यो। पण मा’ट साहब चटाक स्यूं सवाल कर दियो, कित्ता मोटा है मा’ट साहब..! फेर तो म्हे हर बात मा’ट साहब नै ही पूछां हां, आं लोगां नै की आवै ही कोनी। अै लोग आखे दिन और ही बात करता रैवै मारणै री, पकड़णै री, खावणै री, पीवणै री, पीसै री, टक्कै री, पण मा’ट साहब आखै दिन ध्यान री, ज्ञान री, देस री, परदेस री, गांधी री, नेहरू री, मीरा री, कबीर री बात करै जकी बड़ी प्यारी लागै, आछी लागै, रस ही टपकतो रैवै आंरी बाता में। मा’ट साहब भोत बड़ा है।

मा’ट साहब रो घर छोटो सो है दो कमरा, अेक रसोई, अेक नहाण-घर। मा’ट साहब रै थोड़ा सा कपड़ा है दो खादी रा चोळा, दो पजामा। मा’ट साहब रै थोड़ा-सा टाबर है अेक लड़को, अेक लड़की। मा’ट साहब रै अेक बकरी है। मा’ट साहब गांधी जी सा लागै है। मनै अै गांधी जी रो पाठ पढावै तो इसा लागै जाणै अै आपरो पाठ पढावै है।

मा’ट साहब जद हिन्दुस्तान रो भूगोल पढावै तो बतावै, हिवाळो है, ईंस्यूं बड़ी-बड़ी नदियां निकळै है।

मा’ट साहब पढावै भारत में समदर है, ईं में मोटा-मोटा जहाज चालै है। फेर मा’ट साहब बतावै गंगा म्हारै देस री पावन नदी है तो मनै मा’ट साहब गंगा-सा पवित्र लागण लागज्या।

अेक दिन बंटू री सालगिरह रो दिन आयो तो मैं बंटू नै कैयो तेरी सालगिरह पर मा’ट साहब नै बुलाई, बण हां भी करी, पण म्हैं जद बंटू रै घरै गयो तो बठै मोटा-मोटा अफसर हा, जज साहब, एक्स. ई. एन साहब हा, बड़ा डाक्टर साहब भी हा, और भी कई साहब हा, पण मा’ट साहब कोनी हा। मनै भोत बुरो लाग्यो, बंटू नै भी बुरो लाग्यो, बंटू रा पापा नै भी बुरो लाग्यो।

फेर पप्पू रो जलमदिन भी आयो, बठै भी सै साहब हा, पण मा’ट साहब कोनी हा। म्हूं सोच्यो पप्पू स्यूं कुट्टी करल्यूं। म्हूं पप्पू नै पूछ्यो तूं मा’ट साहब नै क्यूं कोनी बुलायो..? बो बोल्यो म्है पापा नै कैयो हो। पापा बोल्या - मा’ट साहब अफसर थोड़ा ही है। म्हारो काळजो कळप्यो।

म्हूं मन में पक्की करली कै म्हूं मा’ट साहब नै जरूर बुलास्यूं।

मेरो जलमदिन भी आयो। म्हूं मम्मी नै कैयो पण मम्मी इसै काम में फसरी ही कै मम्मी नै याद कोनी रैयो, मैं पापा नै कैयो पण पापा भी मेरी बात कोनी सुणी। म्हूं बोळो फिकर में पड़ग्यो करां तो कांईं करां, फेर मेरै अेक बात सूझ में आई। मैं झट स्यूं अेक कार्ड लियो अर मा’ट साहब रो नाम लिख’र बांरै घरै दे आयो अर कह आयो “मा’ट साहब आपनै जरूर आवणो है।”

सगळा लोग भेळा होवण लागग्या। मैं इकलग देखूं - मा’ट साहब कोनी आया। मेरो जी और तरियां होवण लागग्यो। मा’ट साहब नै घरै कार्ड देय’र आयो, बानै आछी तरियां कह’र आयो, फेर भी मा’ट साहब क्यूं कोनी आया ? म्हारै स्यूं रीस तो कोनी करली।

अडीकतां अडीकतां खासा देर होगी। लोग आवै म्हानै प्रैजेंट देवै, पण मा’ट साहब बिना म्हानै कोई प्रैजेंट आछी कोनी लागै। सगळा मेज रै सामै भेळा होग्या, केक काटणै री टेम आगी। ‘हैप्पी बर्थ डे’ रो गीत सरू होग्यो, म्हूं आपरी जगा आग्यो, सगळां री आंख्यां म्हारै कानी, पण म्हारी आंख्यां दरवाजै कानी अर मा’ट साहब आग्या, म्हारो रूं रूं खिलग्यो, बो ही खादी रो चोळो अर पजामो। मैं खड़्यो होय’र हाथ जोड़्या, पगां लाग्यो, मेरी वावा खिलगी। मा’ट साहब मुळक’र आसीस दीनी। अै छण म्हारै सारू भोत कीमती हा।

दूजै दिन मैं मा’ट साहब रै घरे गयो। मा’ट साहब बोल्या “थारा पिताजी भोत भला आदमी है। भगवान थारो भलो करै। मैं भोत खुस हो।” अेक दिन इसो आयो कै पप्पू रै पापा रो तबादळो होग्यो। पप्पू बोल्यो - म्हारो तबादळो भोत रद्दी जगां होयो अर पप्पू आपरी कोठी छोड'र चल्यो गयो।

अेक दिन फेर आयो कै बंटू रा डैडी बीच में ही रिटायर होग्या। वो दिन तो भोत ही भैड़ो हो, जकै दिन बंटू री मम्मी अर डैडी रोटी ही कोनी खाई। फेर अेक दिन म्हारै सारु भी आयो। म्हारा पापा एक्स. ई. एन. बणग्या अर अेक आछी जगां तबादळो होग्यो। मैं पापा नै जकै दिन कैयो “पापा काम मा’ट साहब करायो है। मा’ट साहब आपणै अठै म्हारी सालगिरह पर आया हा, जकै दिन म्हारै सूं बात कैयी ही थारा पापा भला आदमी है। थारो भगवान भलो करसी।” पापा आपरै काम में लागग्या हा पण म्हारी बात ध्यान स्यूं सुणरैया हा। मैं फेर कैयो पापा मा’ट साहब री सीधी भगवान कनै ‘एप्रोच’ है। पापा म्हारी बात पर हंस्या, मम्मी मनै गोद में उठा लियो। मम्मी बात स्यात् सावळ समझी ही।

स्रोत
  • पोथी : आज री राजस्थानी कहाणियाँ ,
  • सिरजक : करणीदान बारहठ ,
  • संपादक : रावत सारस्वत, प्रेमजी प्रेम ,
  • प्रकाशक : साहित्य अकादेमी, नई दिल्ली ,
  • संस्करण : प्रथम
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