रात रै काळै अंधारै में बाबू काळीचरण चौबारै में होळै-होळै बड़्या अर बिना की दिक्कत रै बत्ती जगाई। खाट पर बींरी घरवाळी सूती पड़ी ही। नैणा री पलकां बंद जरूर दीसै ही पण भीतर सूं भलीभांत जागै ही। बींनै आस ही कै बै बीं कनै आय’र बैठैला अर बींनै घोथळ’र जगावैला तद बा बांरै गळबाथ घाल’र कनै सूवावैली। पण बींरी इण आस पर जाणै कित्ता घड़ां रो पाणी ढुळग्यो हो अर बींरै काळजै में दरद रो अेक बंभूळियो-सो बहग्यो। बा पसवाड़ो फोर लियो। बाबू काळीचरण आपरा गाभा बदल’र दूजै मांचै पर सूयग्या हा। पण उण आपरी जोड़ायत री नींद खोस ली ही। बींनै जक कठै? बा दो घंटा में जाणै कित्ता पसवाड़ा फोर लिया हा। बींरो भीतर खरण-खरण ऊकळै हो। बा कित्तै चाव सूं सांझ सूं बाट जोवै ही। बा आपरै हिवड़ै नै काठो कर्‌यो। बैई नीं बतळावै तो आपणै कांई बिसर पड़्यो है? पण नित—नित री उपेक्षा कियां बरदास हुवै? अयांलकी उदास रातां कित्ती काटी जावैली? बींरै काळजै में ढीम बधै हो। बा कांई करै? बाळणजोगी नींद भी तो आवै कोनी।

बा चाणचकै ही ऊभी हुयगी अर लांबा—लांबा सांस सार्‌या। बाबू काळीचरण नै इबी नींद नीं आई ही। बो सूत्यो-सूत्यो बोल्यो—के बात है? इबी ताणी सोई कोनी के?

बाबू साहब रो इत्तो पूछणो जाणै बींरै आंटीलै बाळ-मन नै पुचकार दियो हुवै अर बो बाग—बाग हुय’र मुळकतो हुवै। बा बांरै पलंग रै सहारै टिक’र बोली—के करूं?.... नींद कोनी आवै!

बाबू बिना बोल्यां सूता रह्या। बा आपरै मन री साळ में नुंवी अनुभूतियां भेळी करै ही। गेलड़ै जोबन रै रूड़ै-रूपाळै दिनां नै हेला मारै ही। बा आपरै धणी नै भी उण बगत रै बाड़ै में बाहुड़ो झाल’र लाणो चावै ही.... आपरै डील अर मन रै परस सूं ताजगी भरणी चावै ही। पण बाबू री उदासी बींरै काळजै नै ओजूं अखरी। बांरै मौजूदा जीवण में अयांलका दिनां रो तारतम कम नीं हृय रह्यो हो। बां दोनां रा बै सोनलिया दिन ऊमर रै सागै अस्त हुयग्या हा।

—थांनै खाणो लाद्यूं?

—ऊं हूं! बाबू आपरै धंधे रै चक्कर में खोयोड़ा हा।

—कठै गोठ—गाठ में चल्या गया हा के?

—नीं तो!

—तो इब नटण रो कारण?

—नीं-नीं। कीं बात कोनी। बस, भूख नीं है।

बींरै भीतर रो सगळो सुख धूळ में रळग्यो हो। अबार ताणी बींरी कल्पना रै सजायोड़ै माळियै नै ठेसतां कीं देर नीं लागी। कित्तै उमाव सूं, कित्तै कोड सूं बा बींरै पलंग रै नेड़ै आई ही। बींरी नकार बींरै नीर भर्‌यै नैणा रो नाळो खोल दियो। बा आपरै मांचै पर जा पड़ी। पण बींरी आटी-पाटी नै परै करणियो खुद परै पड़्यो हो।

बा कित्ती बातां सोच मेली ही अर जाणै मन री कित्ती गांस बारै फेंकणै री जचा मेली ही अर जाणै टाबरां ज्यूं कित्ती किलकार्‌यां भरण री मनस्या ही, पण बाबू साब नै ‘न जाणै कित्ता’ री बातां सुणनै री फुरसत कठै? बै आपरी उधेड़ बुन में मस्त हा। बांनै बींरै भीतर रा हेला सुणनै रो औसाण कठै हो? बांरो दिमाग तो खाली पइसां री गोळाई में घूमै हो।

बा आपरी दिन कटी करण सारू पड़ौसी शर्मा सा’ब नै कदै-कदै चाय रै बगत बुलवा लेवती। वो बडो खुशमिजाज आदमी हो। बा पैली मुलाकात में बींसूं प्रभावित हुयगी ही। बींरी बातां अर व्यवहार सूं बींरै हिवडै रै च्यारूंमेर सुख री चांदणी बंधीज जावती। बा बीं चांदणी री छीयां तळै खुद नै सुरक्षित महसूस करती।

सरदी रा धवळा दिन भौत सुहावणा लागै हा। बा अेक कुरसी पर बैठी कहाण्यां री पोथी पढ़ै ही जिण सूं अेकलैपण री कांटी महसूस नीं हुवै। छोटा टाबरिया स्कूल गयोड़ा हा। खावणै-पीवणै रै काम सूं फारग हुयगी ही।

नगर सूं दूर नुंवी सड़क पर बांरो बंगलो हो। नुंवी बस्ती बसै ही। पड़ौस में घणी चहल-पहल नीं ही। अेक सून्याड़ बींरै काळजै नै हिलाय नांखती। इत्ती बोर हुय जावती कै कदै-कदै बा बारै ऊभी हुय’र मिनखां रा मूंढा देखबा खातर घंटा बिताय देवती। च्यारूंमेर जंगळी बोझा ऊभा हा। हवा री सूंसाट रै सारै बींरै धूजणी छूट जावती पण बींरै कनै कीं उपाव नीं हो। बाबू काळीचरण स्वार्थ रै वशीभूत हुय’र व्यापार में इत्ता मस्त रैवता कै आधी-आधी रात बंगलै पूगता। बींरो नित रो नेम हो।

अंयालै ओकलैपणै रै सिलसिलै नै कदै-कदै तोड़ण वास्तै मिस्टर शर्मा जाया करता। बो पड़ौसी हो अर मिलतारू हो। बींरो गोरो गोळ चेहो मन मोवणो हो। बींरै बोलणै अर ऊभै हुवणै री छिब निराळी ही। बाबू काळीचरण री जोड़ायत नै बींसूं बात करण में आणंद आवतो अर बींरो मन वत्तो सूं वत्तो बगत बींरै सागै काटणै

में घणो रमतो। पण बाबू सा’ब नै बांरी मुलाकात रो मालूम नीं हो। बै आपरै बिजनस में बेफिकरी सूं लाग रह्या हा।

पगां रा खुड़का सुण’र बा सामनै जोयो-ओह! शर्माजी! आवो। आज छुट्टी ही कांई?

तबीयत कीं नरम ही, सो छुट्टी ले ली। पड़्यां-पड़्यां घरां आवड़्यो कोनी, सो थारै सूं गपसप हांकण नै आयग्यो।

आछी बात है। बैठो, शर्माजी! अयां टेम कठै-कठै काटोला? आखर घर बसाणो तो चाहे।

जरूर। पण घर बसाणै सूं पैली घर में आवणवाळी नै भलीभांत समझणो चावूंलो। अभी अयांली नारी री खोज में हूं। बो भाव में उळझतो-उळझतो भी चुपचाप बींरै कानी देखतो जावै हो। बींरै चेहरै री चिंता-रेखा नै स्यात बो पढणै में सफळ हुवतो जा रह्यो हो। बा इण मिनख री अपणायत अर सनेह जाण’र घणी प्रभावित ही। बींनै लाग्यो कै बा आपरै मोट्यार नै भी इण आदमी रै विचारां री भांत देखणो चावै है। असल में बा चावै है कै बींरो धणी आपरी जोड़ायत नै समझणै री चेष्टा करै कै बा इत्ती ऐश-आराम री सुविधा पा'र भी दुख रो जीवण क्यूं जीवै है? बींरै मन में अेक भय बड़्यो। स्यात बा इण तीस बरस रै जवान खून में आपरो धणी सोधणो चावै है।

मिस्टर शर्मा उठणो चाह्यो। बा रोक्यो-चाय तो पीता जावो।

शर्माजी पाछा बैठग्या।

बाबू काळीचरण नींद में ठोरै हा अर बा खाट पर पड़ी थाकेलै सूं ऊबगी ही। आंख्यां में नींद नीं ही। बा पसवाड़ा घणा फोर्‌या पण दिमाग में चैन नीं हो। बा ऊभी हुय’र बत्ती जगाई। पण बींनै कीं सूझै नीं हो कै बा अब के करै! बा अठीनै-बठीनै डिगतै पगां नै थाम्या। थोड़ी ताळ पछै बाबू काळीचरण रै पलंग कनै आय’र ऊभी हुयगी। बिजळी री धवळी रोशनी में बाबू री उघाड़ी पीठ नै देख’र बींरै दिमाग में पाछली रोमानी बातां घूमण लागगी। बींरै हिवड़ै में अेक सरणाटै सूं लकीर-सी खिंचीजगी। बा पलंग पर आडी हुय’र बांरी मगरां पर हळवा-हळवा हाथ फेरै लागी। बींनै लागी कै अब बै जागैला अर बींनै घणो-घणो प्यार करैला।

—के बात है? नींद कोनी आवै कांई? अेक छोटो-सो सूखो-सूखो सवाल सरका’र पाछो खर्राटा भरै लागो। बा के पड़ूतर देवती। पसवाड़ो फोर लियो। भीतर घुटती पीड़ा रो नाळो उफण रह्यो हो। बींरै ढळतै डीळ में जवान इच्छावां किलोळां करै ही। बींरै सगळै डील में भांत-भांत री उथळ-पुचळ हुवै ही। फेर बा सोचै लागी कै बा फालतू में इत्ती बेचैन क्यूं हुय रही है? कुण-सी कुंठा बींनै उठायां पटकै है? के बा वासना रो... नीं-नीं। बा अेक झटकै सूं उठी अर काच रै सांम्ही जाय’र आपरो मूंढो भाळ्यो। आंख्यां री ललाई अर चेहरै रो फीकापणो देख’र बा पाछी नागण ज्यूं फण उठायो- समाज सूं बा डरणवाळी नीं है। समाज रो कांई नैतिक बळ जिको बींरी कोमळ भावनावां नै फेस लेवै।

बा अेक-नुंवो बळ लेय’र कूंटो खोल्यो अर चाल पड़ी बारै। बींरा पग मिस्टर शर्मा रै बंगलै कानी तावळा—तावळा बधै हा!

स्रोत
  • पोथी : उकरास ,
  • सिरजक : अमोलकचंद जांगिड़ ,
  • संपादक : सांवर दइया ,
  • प्रकाशक : राजस्थानी भाषा साहित्य एवं संस्कृति अकादमी ,
  • संस्करण : प्रथम संस्करण
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