डाकियो हेलो मार्यो—तार! तार!!
भाग’र डाकियै कनै पूग्यो। तार ले’र उलटै पगां पाछो आयो जितरै तो मा घबराई थकी किंवाड़ पकड़्यां धीरै सीक बोली, “राम! काईं हुयो? तार क्यूं आयो?”
जाणै तार दुख रो संदेसो ईज लावै है। उण री आंख्यां में दादाजी, बाबाजी रा मरण संदेस घूमग्या।
“कांईं बात है?” म्हांरी आंख्यां कानी झांकती थकी बोली।
मैं तार रो पानो खोल्यो तो खुद घबराग्यो। तार रा आाखर मोटा होग्या। माथो भारी पड़ग्यो। होठां पर फेफड़ी जमगी, गळो सूखग्यो। खून री दोड़ धीरी हुयगी। मन धड़क-धड़क करबा लागग्यो। मा रै सवाल रो जवाब देबा जित्तो भी दम कोनी रयो। आंख्यां सूं आंसू ढळ रुग्या। माऽऽ जी-जी, जी-जा, जी...। हुयग्या। मा! भाठो पड़ग्यो। अब जीजी रो कांई होवैलो। मनैं बस इतरो ईज होस है कै मा घाड़ मारी ही, चीखी ही। हाय राम! करबा लागी ही। पेट लवूरती माथै हाथ राख’र बैठगी ही।
मनैं जद पाछो होस आयो जद तक बापूजी आफिस सूं आग्या हा। मुहल्लै आळा भेळा हुयग्या। सबरै चेहरां माथै मुर्दनी छायगी।
जीजी ईं मुहल्लै में खेल नै बड़ी हुई ही। बींरो प्रेम सगळां सूं ई घणो हो। सो सगळा ई बींनै बेटी ज्यूं मानता हा, जद ई तो ब्याव रै बखत बींनै घणी सारी भेंटां मिली ही।
म्हारी हिम्मत नीं ही कै मैं जीजी रै घरे जाऊं, पण करतो भी कांईं। घर-गिरस्थी सारू हिम्मत पाण भारी पगां जीजी नैं समझावा-बुझाबा री सीख देवण गयो। रस्तै भर सोचतो हो—मैं बींनैं म्हारो मूंडो कियां दिखाऊंला नै बींरो रोवतो मूंडो कियां देख सकूंला।
दूर सूं ई मनैं देखतां जीजी रै धीरज रो बांध टूटग्यो। नैणां में सूं अखूटो नीर बैवण लाग्यो। मैं चिड़कली सी तड़फती जीजी रै माथै पै हाथ फेर्यो नै रोवतै टाबर नैं छाती सूं चेप्यो।
मनैं लाग्यो अबार ई आभो गड़गड़ा’र फाट जावैलो, नै कोई बोलैलो—“अे सतवन्ती। थारै दुखड़ै सूं म्हारो सिंघासण डोल रयो है। लुगाई हुवै तो थारै जिसी। मैं राजी होय’र थारो खावंद सेवट तनै पाछो देवूं हूं।” सावत्री रो विलाप जमराज नैं पिघळाग्यो हो, पण कळजुग में मिनख, देव नै भगवान सब पाथरग्या।
दुख दुस्मण नीं लागै। जीजी तीन दिनां में ई सूख अर कांटो हुयगी। कंचन सी काया काळी स्याह पड़गी। सावण री बरखा ज्यूं रह-रह नै बरसै, पण दुख रै सागर रो अंत कठै!
“मा नै कहजे, नै फेर जीजी सुबकबा लागगी।...
कैर रै दुख्यारै नैं सुख कठै! मैं अभागी हूं। गरीबी सू जूझतां जूझतां जोबन बीतग्यो। सुख री झलक आवण सूं पैली काजळ दुळग्यो, काळ पड़ग्यो!
मा घणी रोती होवैली— समझाईजे।
म्हारा आंसू नै उणरी सिसकी। झुरमुट रोवै हो।
अब कांईं होवैलो—सासू है, पांच देवर-दोराण्या है नै एक ओ महेस टाबर। कमावण आळी जीजी एक। खावण आळा दस जीव। एक नैं ढांकै, दूजो उघाड़ो। मंहगाई काळै नाग ज्यूं छाती पर लोटै है।
एकदम ई दो अणजाण आदमी पोळ में आया नै जीजी री सासू सूं कोई चुपकै-चुपकै बातां करी। सासू पानड़ी बणवाबा लागी। सासू जाणै हाथ सूं जीजी नैं कांईं समझायो। जीजी चुपचाप ऊपर गई नै एक पोटळी ले’र नीचै आई। मैं समझग्यो। रीस तो घणी आई पण करतो भी कांईं।
रात आवै। जीजी रो दुख अंधारै ज्यूं म्हारै विचारां पर छा जावै। पसबाड़ा फेरूं पण न नींद आवै, न रात कटै, न दुख बंटै।
मैं जीऊं जितरै जीजी नैं अब ओर दुखड़ों नीं होबा दयूं। कांईं हुवो भले। नै फेर नींद लावण री कोसीस करबा लाग्यो...