समिया आंछै-आंछै रोटियां सेकण लागी। फूं... फूं... फूं... फूंकणी सूं चूल्हौ फूंकतां लकड़िया बळण लागी। घर रै मांय रोटियां सिकण री सुगंध फैलण लागी। टाबर चूल्हा कनैं बैठा खुस नजर रैया हा। रोटियां सिकगी। समिया साग रौ छमकौ दियौ।

छम्म...

बळतै मिरच-मसालै री जी घोटण वाळी हवा आंख्यां, नाक अर गळै मांय खळबळी मचायगी। आक छी...

अचांणचक छींक आवण सूं समिया रौ सुपनौ टूटग्यौ। डील रै मांय कळकळातौ तेल ज्यूं खूंन... मांयनै मांयनै धुंअे ज्यूं घुटण। ताती-ताती रोटियां ज्यूं बळतौ डील अर पेट रै मांय भूख री लाय। उण रौ गळौ सूकण लागौ।

पसीनै सूं तर-ब-तर डील पल्लै सूं पसीनौ पूंछ’र ऊभी होयी, पण खाली हाथ घरै जावण री हिम्मत कोनी हुई। पाछी उठैई नीमड़ै हेठै पटरी माथै बैठगी। कपड़ै री बणियोड़ी थैली कनैं पटक दी। मांय रा मांय आंसू उमड़ रैया हा। घणी बार अैड़ौ होयौ कै घर मांय जकौ होवतौ वो सासू अर टाबरां नैं जिमाय नै वा खुद भूखी रैय जावती। पण आज तौ घर में कांई कोनी हौ। मन में विचार आयौ कै जलमतां टाबरां रौ कंठ मोस देवती तौ...?

टाबरां री बातां कांनां में गूंज रैयी ही, “मां खांणौ अर रमेकड़ा लेवण जावै है। सालू तूं रो मती।” वीमू नैनी बैन नैं गोदी मांय लेयनै रमावण लाग्यौ। छोटी उमर मांय बगत उण नैं घणौ कीं स्याणौ कर दियौ। वो आपरी जिम्मेदारी खूब समझै। उणरी आपरै टाबरां सारू अगाध स्नेह सूं आंख्यां भींजगी। वीमू री बात काळजै मांय सूळ ज्यूं चुभगी। हियौ अेक तीखी पीड़ सूं तड़फीज गयौ। मांय रौ मांय कीं टूटतौ... घुटतौ रैयौ।

सिंझ्या होयगी। अंधारौ धीरै-धीरै गहरा रैयौ हौ। कांई करूं। खाली पेट अर माथै सूं मानसिक संघर्‌स।

समिया रा अै दो बरस... वा कित्ती परेसानियां सूं घिरगी। परेसानियां रै गैरै समंदर रै मांय फंसियोड़ी घणी हिम्मत सूं अर नेहचै सूं आपणी नाव पार उतारण री कोसीस में लाग्योड़ी ही।

गुमसुम बैठी समिया नैं लारलै दिनां री याद सतावण लागी। चवदै बरस री उमर में ब्याव होयग्यौ। धणी मांदौ अर अधखड़। आपरी पीड़ा में राजी वा दो टाबरां री मां बणगी।

मां, दो टाबर नै लुगाई। घरबार बधण लागौ। गरीबी सूं आंती आय समिया रौ धणी घणी आसा सूं स्हैर कमावण गयौ। थोड़ा दिन पछै ट्रक रै अेक्सीडेंट मांय उणरी मौत होयगी। समिया रौ सुहाग उजड़ग्यौ। धणी री अकाळ मिरतु हिवड़ै मांय सब सूं कठोर दैवी आघात लगा दियौ। बेटै री अकाळ मौत रौ मां नैं बुढापै मांय धक्कौ लागौ। वा माचौ पकड़ लियौ। दिन घणी कठिनाई सूं बीतण लागा।

धणी रौ देहांत होयग्यौ तौ साहूकार उणरै कच्चै झूंपड़ै माथै कब्जौ कर लियौ। समिया घर नैं नीं उण कस्बा नै इज छोड दियौ। मांदी सासू अर दोई टाबरां नैं लेय’र स्हैर आयगी। सोच्यौ भूख मरण सूं तौ स्हैर जाय’र मजूरी करणी आछी।

जकौ कीं कनैं हौ उण सूं खोळी रौ इंतजांम घणी मुस्किल सूं होयौ। खोळी कांई ही... नांव सूं ईंटां री नागी भींतां। अेक नेन्ही-सी रसोई अर अेक छोटोक कमरौ। चाली में सगळी खोळियां री वा इज दसा ही। झुग्गियां रै मांय थोड़ोक असबाब हौ जकौई फाटोड़ौ-पुरांणौ अर धुंअे सूं काळौ राख होयोड़ौ हौ।

पाड़ौस री खोळी वाळा... तानू। मिल में कपड़ौ बणावै है। पण खुद रै तन माथै कपड़ौ कोनी। ना रैवण रौ ढंग, नीं पैरण नै कपड़ौ। तोई दारू पी अर मस्ती सूं टूट्योड़ै माचै माथै पड़ियौ हर दम आपरै पहाड़ी गीतां में घरवाळां री याद मांय रमियोड़ौ रैवतौ। घणौ भलौ मिनख।

पाड़ौस री लुगायां सूं मिळणौ होयौ। उणां में अेक ड्राईवर री लुगाई कुंती, दूजी शांता बाई। दोन्यूं रा बेकार धणी पीपळ रै हेठै पत्ता रमता रैवता। दोन्यूं जणी बणी-ठणी फिरती रैवती। नांव रौ कचरौ चुगती पण अक्सर मुरगा अर दारू उणां री भूख मिटावै

समिया दिन-रात कांम री खोज में फिरती। केई ठौड़ कांम मिळियौ पण अेक-दो महीना या थोड़ा दिन सारूं। संघर्‌‌‌‌‌स सूं दिन कटण लागा। जकौ मिळतौ उण सूं नेहचौ कर टाबरां नैं पाळण लागी। इण दो बरसां मांय स्हैर आवण पछै कित्तौ कुछ घटग्यौ? कित्ती घटनावां उणरी आंख्यां साम्हीं फिरगी। कांम री खोज में वा अेक ठौड़ गयी। सेठ उणनैं देख घणौ राजी व्हियौ। माडांणी समिया रै हाथ में दो-च्यार नोट थमा दिया। बिना कांम रा पईसा? कीं समझ में नीं आयौ। वा सेठ रौ मूंढौ जोवण लागी।

“थनैं दूकांन माथै कांम लगा दूंला।” उदारता दिखावतौ सेठ बोल्यौ।

“सेठजी, घर में कांम लगाय दो नीं। म्हारा टाबर छोटा है, म्हैं झाडू लगा दूंली, कपड़ा धो दूंली अर खांणौ पकाय दूंली।” समिया घणी मिन्नत सूं कैयौ।

“थारै हाथ रौ बण्योड़ौ खांणौ म्हैं किंयां खावांला?” नाराजगी जतावतौ सेठ बोल्यौ, “भला थारी जात...?”

“मेहनत-मजूरी करण वाळी म्हैं नीच जात री अपवित्र लुगायां नै आप जैड़ा धनी लोग... पवित्र उच्च धरम रा लोग खाय जावै। आपरी भूख मिटावै अर लोगां रै साम्हीं...तो... वाह रे... वाह पवित्र... धनी जात रा लोग।” वा मांय मांय सेठ नैं बुरौ-भलौ कैवण लागी। च्यारूंमेर देख्यौ। चौक में कित्ती खुली लुगायां हंसी-मजाक करती थकी कांम करै है। सगळी उणनैं देख रैयी ही। उणां रै मूंढै माथै व्यंग्य भर्‌योड़ी मुळक ही। सेठ री भूखी नजर...

रुपिया बठै फेंक’र आंछै-आंछै कदम बधावती थकी बारै निसरगी। उण लुगायां रा फूहड़ मजाक समिया रै कांनां मांय गूंज रैया हा। यूं लाग्यौ जांणै हजारूं तीखी नजरां उणरी पीठ माथै फिरै है। समिया नैं यूं मैसूस होयौ जांणै बीच बजार मांय उणनैं साव नागी कर दी गई है।

वा केई जग्यां कांम करण नै गई पण हर जग्यां कोई कोई परेसांनी रौ सांमनौ करणौ पड़ियौ। वा सोचती, अै लोग म्हांरी बैन-बेटियां नैं ताकता रैवै। म्हांरी गरीबी रौ फायदौ उठावै। गरीब लुगायां तौ मजबूरी में फाट्योड़ा गाभा पै’र नै कांम माथै आवै। सेठ रै घर री लुगायां....बेटी... बहुआं... तन माथै कपड़ा व्हैता थकां उघाड़ी लखावै। इण बात री आंनैं कोई चिंता कोनी... कोई बदनांमी नीं। वां रा कपड़ा... अधखुला कपड़ा देख’र अै लोग गरब मैसूस करै।

वो दिन... उण दिन री याद आवतां वा कांपगी। घोर काळा बादळां सूं आकास ढकियोड़ौ हौ। मूसळाधार बिरखा री सिंझ्या अंधारी हुती। घणी थाक्योड़ी समिया रसोई रै मांय अेंठ्योड़ा बरतनां रै ढिगलै मांय बैठी बरतन मांज रैयी ही। मांदा टाबर री चिंता हो रैयी ही।

टप... टप... टप। केई आंसूड़ा आंख्यां सूं टपकिया। वा सोचण लागी गरीबी अर मांदगी री घणी दोस्ती है। गरीबां रै घर मांय मांदगी बणी रैवै। कदैई कोई बीमार तौ कदैई कोई बीमार। “समिया... अै... समिया।” मालिक री आवाज सुण’र वा चमकगी।

“आई मालिक”, पल्लै सूं हाथ पूंछती जवाब दियौ, “आऊं सा।”

“पाणी ला तो।” मांयनै सूं हेलौ सुणीज्यौ।

बिखर्‌योड़ा केस हाथ सूं भेळा कर, पल्लै सूं माथौ ढक अर ऊभी हुयी। उणनैं ठाह हौ कै मालकण पाड़ौसण रै वठै गई है। अचांणचक मालिक घरे आयग्या। यूं तो समिया उणरी आंख्यां में जदै आयगी जद सूं उणरै घरे कांम करतां देखी। पण सिकार बणावण रौ मौकौ आज ईज मिळियौ।

“पांणी।”

पांणी देवती थकी मालिक कांनी जोयौ। उणरी भूखी निजर... वा मांयनै मांयनै कांपगी। मालिक उण रौ हाथ पकड़ण लाग्यौ, वा कांपगी।

“आपनैं सरम आवणी चाईजै। वा मालिक री कंटीली हंसी देख’र बिफरगी।

“सरम तौ थारै भगवांन नैं आवणी चाईजै, जिण थनैं गरीब विधवा बणाई।” सेठ बेसरमी सूं हंसतौ थकौ बोल्यौ।

“म्हैं जांन देय दूंला पण इज्जत नीं दूं। जे वैवार आपरी बेटी रै सागै कोई करै तौ?”

“चुप रै।” बेटी रौ नांव सुणतां मालिक रीस सूं भरग्यौ।

आपरी ताकत लगा’र खुद नैं बचावण री इच्छा सूं चीख निसरगी। वा दरवाजै साम्हीं दौड़ी। कमरै सूं बारै निकळती टेम वा दरवाजै सूं टक्कर खा’र नीचै पड़गी।

“कांई होयौ?” समिया नैं माथौ पकड़यां बैठी देख’र मालकण मांयनै आवती पूछियौ।

“म्हैं भींत सूं टकरायगी ही मालकण।” वा पीड़ा सूं कराह उठी... ओह।

“...आ म्हारौ बटुऔ लेय’र भागती ही। थूं तौ बारै घूमती फिरै है।” मालिक चिरळावतौ थकौ आपरी लुगाई नैं कैयौ।

“औ झूठ है... अै झूठा बोलै... ओह।” समिया दरद सूं बेचैन होय दोनूं हाथां सूं माथौ पकड़ लियौ। वा अणजांणै डर सूं कांप रैयी ही। नौकरी छूटण रौ डर। माथै सूं झूठौ आरोप। परेसांन, बदहवास-सी समिया घरे पूगी। चेहरै माथै नीलो निसाण अर सूजन देख’र सासू घबरायी। पण समिया गुमसुम बैठी रैयी। दिन माथै दिन बीतण लाग्या।

मजबूरी उणनैं बीड़ियां बणावण वाळी फैक्ट्री में लेयगी। फैक्ट्री रै मुनीम री आंख्यां में समिया नैं उण ‘भूख’ री झलक दिखी। सगळै ठौड़ उणनैं भूखी निजरां सूं सांमनौ करणौ पड़ियौ। वा सोचती, टाबरां री भूख रै वास्तै सब कुछ सहणौ पड़ैला।

स्याम रंग अर सफेद बालां वाळौ। आंख्यां मांय सुरमो लगायां, महीन कुरतौ पहर्‌यां अर मूंढै में पांन चबातौ मुनीम बेतकल्लुफ हरेक रै कनै आय’र बैठ जावतौ।

कांम करती टेम कनै आय’र चिपक’र बैठण री कोसीस। कांम देखण रै मिस घड़ी-घड़ी हाथ रै हाथ लगावतौ। लुगायां सरम री मारी उण री, कैयोड़ी बातां नैं पाछी कैय नीं सकती। बदनांमी सूं डरती। कांम छूटण रौ डर... वा सहम जावती। टाबर मांदा है। दवा-दारू रा पईसा चाईजै।

“थोड़ा’क रुपिया चाईजै।” घणी हिम्मत कर उण मुनीम सूं कैयौ।

वो अेकदम गुस्सै में आयग्यौ। आंख्यां रा भोपणां चढ़ा लिया। बोल्यौ, “म्हैं जद कैवूं कै रात वाळी पारी में जाया कर, घणा रुपिया मिळसी, पण थूं मांनै कठै?” अपणी विवसता रौ उणनैं बेरौ हौ।

“कसाई छुरी सूं हलाल करै है पण अै लोग जीवता गरीबां रौ लोही पीवै है।” समियां मन मन मुनीम नैं गाळ काढी।

समिया आपरै कर्तव्य रै पेटै निस्ठावांन ही। बा धणी रै प्रति सिरधावांन ही। घणी रै देहांत पछै सरधा कम नीं पड़ी अर ना वा आपरै कर्तव्य नैं बिसरी। निर्णय मजबूत राखियौ। वा जांणती ही कै उणरी कळुसित दीठ उण माथै है। इण सूं वा मन मन डरती रैवती। नारी रै जीवण मांय केई ज्वारभाटा आवै। वा आपरै भाग नैं कोसण लागी। अेक असहाय अबला रौ समाज में इज्जत सूं रैवणौ कितरौ मुस्किल है। अेक-अेक दिन कठिनाई सूं बीत रैयौ हौ।

काल सूं गळी मोहल्ला मांय पांणी छपाछप भर्‌योड़ौ हौ। मेह थमग्यौ। मकांनां री परनाळां सूं स्वछंद बूंदां किणी दुखियारी री आंख्यां रै टपकतै आंसुवां रै रूप में मोती पण टपक रैया हा।

पांणी री बूंदां टपाटप लगातार टिन माथै गिरणै सूं संगीत री धुना जलम लेवण लागी। मेह रै कारण तीन-चार दिनां सूं कांम माथै नीं जा सकी। घर मांय कीं खावण सारू नीं हौ। टाबर भूख सूं बेहाल हा।

बरसात रुकतां वा अेक ढाबै रै साम्हीं जा ऊभी व्ही। साम्हीं भट्टी जगती ही। रोटियां सिक रैयी ही। लोग होटल रै मांय बैठ्या खा पी रैया हा। साम्हीं काच री अलमारी मांय मिठायां, बिस्कुट अर नमकीन रा थाळ सजायोड़ा हा। वा अळगी ऊभी खावण-पीवण री चीज-वस्तुवां नैं ललचायोड़ी निजरां सूं देखै ही। पेट मांय भूख सूं लाय लाग्योड़ी ही। सेवट उण सूं रैईज्यौ कोनी। भूखा टाबरां रौ खयाल आवतां हाथ आगै बधग्यौ।

“टाबर भूखा है सेठजी.... कांई देय दौ।” वा घणी दीनता सूं सेठ साम्हीं गिड़गिड़ाई।

“चाल हट...हटी-कट्टी है। मैनत-मजूरी कर’र खा... थनैं भीख मांगतां लाज नीं आवै।” वो रीसां बळतौ बोल्यौ।

अचांणचक लारै सूं अेक हाथ आय’र उण रौ पुणचौ पकड़ लियौ। वा डर परी अर लारै देख्यौ। वो हाथ उणनैं खांच’र अळघौ लेयग्यौ।

“थूं भूखी है नीं... म्हैं थनैं कांम दिरा सूं। हां, भीख मांगणौ तौ चोखी बात है, पण तूं अनाड़ी दीसै है। म्हैं... थनैं कांम... उणरी नजर देख वा सिहरगी।

“तूं म्हारै पवित्र धरम माथै कीचड़ लगावण री सोच रैयौ है। म्हैं सब समझूं।” या मांयनै मांयनै उणनैं कोसती हाथ छोडाय दौड़ण लागी।

उण रौ दिल उणरै पहलू में धड़-धड़ कर रैयौ हौ। उणरै साम्हीं जथारथ अपणै नागै रूप मांय नाचण लाग्यौ।

समिया सोचण लागी, टाबर नीं व्हैता तो... उणां रै कारण म्हैं तौ बेरा में कूद सकूं... नीं रेल रै आगै आय सकूं।

उण रौ माथौ चकरा रैयौ हौ। पेट रै मांय भूख री लाय बळ री ही, वा माथौ पकड़ अर सड़क माथै बैठी जद सूं उठैई बैठी ही।

भूख... भूख... भूख भूख।

कांई म्हारै च्यारूंमेर भूख भूख है? इण धरती रै माथै सगळा भूखा है, सगळां री आपणी-आपणी भूख है।

वा घड़ी-घड़ी आपरा होंठ काट रैयी ही। उण री सूख्योड़ी जबांन उणरै सूख्योड़ा-मुरझायोड़ा होठां नैं तर करण री नाकांम कोसीस कर रैयी ही।

वा कद घर रै चौक मांय पूगगी, उण नैं चेतौ नीं।

“कठै गई ही। सुबै री गयोड़ी अबै इत्ती रात पड़ियां आई है? थोड़ी घणी परवाह है थंनैं कै म्हनैं थारी कित्ती फिकर हो जावै। टाबर रोवतां-रोवता भूखा सोयग्या बापड़ा। म्हैं ताव में बळूं हूं। थंनैं कठै जोवण जावती?” सासू रिसाणी होय उण नैं लड़ण लागी। समिया सासू रै आगै ऊभी होयगी। हाथ मांयली थैली नैं होलै सै जमीन माथै राख दी। सासू री कड़वी वांणी में रीस. अर ममता रौ स्नेह रौ अेहसास हुयौ। जी भरीजग्यौ।

आत्मा री अनुभूति इत्ती गैरी ही कै वा सासू रै नैड़ी जाय’र उण रौ हाथ आपरै हाथ में ले घणी नरमाई अर निस्पाप वांणी सूं पूछियौ, “अम्मा, कांई तबीयत घणी खराब होयगी?”

समिया रौ परस पाय’र वा थोड़ी द्रवित होयगी। उण रौ उदास मूंढौ देख ममता उमड़ आई। समिया री भोळी आंख्यां मांय पवित्र भावां री आभा देख अर पूछियौ, “कीं मिळियौ कांई?”

मजबूरी जकी उणरै खूंन मांय उबळ रैयी ही उणी सूं प्रवाहित होय’र वा सासू रै आगै बेचैनी भरी दीठ न्हांखती बोली, “अम्मा... अम्मा।”

कातर वांणी रै मूंढै सूं निकल्योड़ा सबदां साथै समिया सासू रै साम्हीं देख माथौ नीचौ कर लियौ।

धीमै अंतरनाद रै बाद राती आंख्यां सूं सासू नैं देख्यौ। वै आंख्यां राती लाल ही। कांई होयौ जे इणनैं जलम नीं दियौ। कांई मां सिर्फ जलम देवण वाळी होवै?”

“टाबर भूख सूं रोवता थका सोयगा।” कैवतां थकां सासू रौ गळौ रुंधग्यौ। कमरै मांय अंधारौ पसरग्यौ। बारै मधरी चांदणी फैल्योड़ी ही। सासू रै लहजै में नरमी पाय वा उण री गोदी मांय माथौ राख अर जोर-जोर सूं रोवण लागी, “म्हैं कांई करूं अम्माऽऽ...”

थोड़ी देर चुप रैय सासू आपरी गूदड़ी माथै जाय’र चुपचाप सोयगी। हिलतै डील सूं अंदाजौ लगावणौ मुस्किल नीं हौ कै वा रोय रैयी है। समिया रा सगळा हौंसला टूटण लागा।

समिया अेक मां...वा रात मां सदियां रै अजाब री कैफियत मांय जाग’र गुजारी। उण रौ हियौ दरकण लागौ। पण वा भाटै री मूरत ज्यूं सांत बैठी रैयी। मूंढै माथै व्यथा अर क्षोभ रौ काळूंस छोयोड़ौ हौ।

रात घणी होयगी ही। पण उण री आंख्यां मांय नींद कठै? सोच-सोच अर उण रौ भेजौ थाकग्यौ। वा अेकदम उठ बैठी हुई। बेचैनी सूं भींतां कांनी घूर-घूर देखण लागी। थकांण रौ अेहसास होवतां वा पाछी सोय जावती। नींद आंख्यां मांय कठै?

भर जोबन में धणी साथ छोडग्यौ। कोई आसरौ नीं। उणरै माथै रीस अर करुणा छायोड़ी ही। मांयनै उमड़ती बेकळी नैं संभाळण में असमर्थ उणरै मूंढै सूं अेक लांबौ निसांस निकळग्यौ। होठां माथै जीभ फेरी। जांणै मांयनै री आग उमड़’र होठां नैं बाळ री होवै?

“सगळा मर क्यूं नीं जावै।” अेक पीड़ सूं तड़फड़ाती थकी उण सोच्यौ, आं सगळां नैं ज्हैर देय'र मार दूं।

मां बणियां पछै नारी सिर्फ नारी नीं रैय जावै, वा मां है मां, जकी परिवार रै वास्तै अपणै आपनैं खपावै है, टाबरां अर धणी रै खातर जीवण अरपण कर देवै। कांई वा मात्र औरत है, वा मां है मां!

भूख... भूख... भूख

च्यारूंमेर बधतै तूफांन नैं अग्निपुंज नेत्रां सूं देख्यौ। च्यारूंमेर अेक हाकौ सुणीज्यौ। कांनां मांय अेक गूंज भूख... टाबर भूखा है।

मातृत्व नैं नारी रौ अंतिम रूप मांन्यौ है। इण नैं सबसूं ऊपर... अेक और दीठ सूं देख्यौ जावै तौ मां रौ ओहदौ सब सूं ऊपर होवै। इण खातर इण नैं ज्हैर तौ सगळां सूं घणौ पीवणौ पड़ै।

मां खांणौ अर रमेकड़ा लावैला। कांनां मांय टाबरां री बात गूंजै ही। समिया नैं आपरै पेट मांय अेक आग-सी बळती मै’सूस होय रैयी ही। वा जाणती कै लाय घर रै च्यारूं जीवां रै मांय बळ रैयी है। इण लाय माथै पांणी न्हांखती-न्हांखती थाकगी है वा। पेट री लाय आपरौ ठियौ छोड दियौ अर हियै मांय लागगी। लाय समिया नैं पूरी बाळ दी, उणरै मांय कुछ खुन्न सूं टूटग्यौ।

अबै उण में भूख सूं लड़ण री हिम्मत नीं रैयी। वा जाणती ही कै इण तरै म्हारी जिनगांणी बरबाद होय जावैला। पण उणरै बावजूद उण खुद नैं बखत रा पांवडां माथै पग राखण वास्तै त्यारी करी... टाबरां री भूख रौ... उण भूख सूं। उण नैं लाग्यौ कै बायरै रौ तेज झोंकौ उण नैं अेक ऊंची इमारत सूं नीचे फेंक दियौ। उण रौ डील चीथड़ा-चीथड़ा व्है रैयौ है। डील रै साथै मन सिथिल होयग्यौ।

“भूख।”

सिहरण उणरै रेसै-रेसै मांय उतरती गई। दो बूंद आंसू गालां माथै आयग्या। विवशता... दांत किटकिटा’र रीस मांय आपरी हथेळियां मसळण लागी। उण री आंख्यां नैं देख अैड़ौ लागतौ मांनौ सगळा संसार री सगळी भूख रौ सागर मिटावण रौ निस्चै करियौ है। उणरै होठ माथै अेक हंसी थिरकगी। इण हंसी मांय विचित्र पीड़ा ही। उण हंसी मांय खुद रै पेटै व्यंग भरियौ हौ। उण मुळक मांय कांई-कांई लुकियोड़ौ हौ।

समिया रौ मूंढौ अेकदम रातौ लाल होयग्यौ। दूजै पल धोळौ पड़ग्यौ। रगतविहूण मूंढै अर धोळै पड़तै मूंढै माथै धूजता होंठ बड़बड़ाया, “टाबरां री भूख, उण सगळा री भूख... सूं...।”

समिया सूतोड़ै टाबरां माथै आपरौ हाथ होळै-सी’क राख्यौ, पण उण री गिरफ्त मजबूत ही। टाबरां नैं अेक तरै रौ डिफेंस रौ अेहसास दियौ। अेक इतमीनान भरियौ निस्चै। दिनूगै टाबर भूखा नीं रैवैला। वा अेकदम बैठी होयगी।

सासू उण नैं घर सूं बारै निकळती देखी। इत्ती रात रा? वा बैठी होयगी। उण रौ वजूद हैरतजदा होयनै रैयग्यौ। मां रै जमीर री ख्वाहिस हुयी कै जमी आपरी छाती चीर लेवै अर म्हनैं आपरै मांय समा लेवै। अै दिन तौ देखणा नीं पड़ै। म्हैं मांदी इण री मदद तौ नीं कर सकूं। म्हैं तौ अेक बोझ हूं इणरै माथै।

दुख अर कांटां रै समंदर नैं पार करण री अद्भुत ताकत समिया मांय पैदा व्हैगी। वा अंधारै मांय जावण लागी। धरती माथै कीं जोवती सोच रैयी ही, स्यात जमीं माथै कोई नोट पड़ियौ निजर जावैला।

थोड़ी’क आगै जाय नै अेक रूंख सूं पीठ अड़ा’र ऊभी होयगी। सोचण लागी कठै जाऊं? ताळाब मांय डूब जाऊं... रेल रै आगै कूद जाऊं? जद आं री भूख रौ कांई व्हैला? वा अंधारै मांय आपरै मन रै अंधारै सूं जकड़्योड़ी ऊभी। जीवण रै अंधारा में भटकती आसरै खातर हाथ जोवती। जीवण सूं तौ बरसां सूं मोह नीं रैयौ पण कैड़ौ मोह?

ऊभी-ऊभी च्यारूंमेर डरती-डरती देखण लागी। उण रौ मूंढौ घणौ गंभीर हौ। साम्हीं सूं आदमी नैं आवतौ देख उण नैं डर लागण लागौ। सोचण लागी हमें सायद वो म्हारै कनै आवैला। कठैई खराब मिनख होयौ तौ? म्हनैं माडांणी आपरै घरे लेयग्यौ तौ...वा चिमकगी... म्हैं तौ खुद फैसलौ करनै आई हूं। भूख... सगळा री भूख मिटावण री।

दिल री धड़कण तेज होयगी। वा धूजण लागी। जद बटाऊ सीधै मारग निसरग्यौ तद उण नैं नेहचौ होयौ।

भळै कोई आवतौ दिखियौ तौ समिया रौ वो ईज हाल होयग्यौ। वा डर नै अधमरी-सी होयगी। कांई करूं जकी सोच... करण री सोचण आई वा कर नीं पाऊं।

थोड़ी ताळ पछै किणी नैं आपरै कांनी आवतौ देखियौ तौ भळै वो इज हाल होवण लागौ। उण देखियौ वो आदमी रस्तौ छोड उण कांनी आवै हौ। उण रा होस उडग्या। वा अेकदम डरगी, कांई नीं सूझ्यौ तौ आंख्यां बंद करली।

आंख्यां बंद कर्‌योड़ी चुपचाप बोली-बोली जड़वत ऊभी सोचण लागी कै अठीनै क्यूं आवै है?

“समिया!”

अचांणचक खुद रौ नांव सुण अर सिहरगी। वा बापड़ी डर’र आवण वाळा मिनख रै मूंढै साम्हीं जोयौ। आसंका री भारी विहल होय’र सिकुड़ी-सिमटी ऊभी ही।

“कींकर लाज बचाऊं...” पण म्हैं तौ बारै आई ही... आवण वाळौ उण नैं घणै अचंभै सूं देखियौ।

“समिया!”

“अरे, तौ तानू है।” समिया मांय मांय बुदबुदाई। वा अैड़ी डरी कै सायद नाग देख’र नीं डरती।

“जाणै है थूं कांई करण जाय रैयी है? अचांणचक फैसलौ क्यूं कर लियौ?” फीकी मुस्कान अर पीड़ा सूं तानू पूछियौ।

“जाणणौ नीं चावूं, म्हैं जीवणौ चावूं।” सगळी ताकत लगा’र समिया जोर सूं बोली।

“भगवांन खातर समिया, थूं जैड़ी है, वैड़ी’ज बणी रैव। भूख सूं लड़... बहादुर बण... थूं खुद मांय ताकत पैदा कर।” तानू समझायौ।

वा तानू साम्हीं सर्मिंदा होयगी

तानू कैयौ, “विधाता सायद म्हनैं-थनैं... केई लोगां नैं चिरजीवण दुखी रैवण सारू संसार मांय भेज्या है। म्हारी कोई आस पूरी नीं होयी। फेर म्हैं खुसी सूं जीवूं हूं। क्यूं जीवूं, गांव मांय रैवता टाबरां वास्तै खुद भूखो-तिरसौ रैय’र दूजा खातर जीवूं हूं...।”

वा आत्मग्लानि रै मारै मरगी।

“कर्तव्य री रक्षा करौ। जित्ती डरैला... डराई जावैला। कांई और लोग दूजा खातर नीं जीवै?”

“तानू... टाबर दो दिन सूं...।” सबद गळै मांय अटकग्या।

“जिण टाबरां सारू आज थूं सूळी माथै चढण नै जाय रैयी है, वै काल थारै सूं नफरत करेला।”

समिया रौ चेहरौ घणौ कीं कैवतौ रैयौ। तानू अेक अभिप्राय सूं समिया रै मूंढै साम्हीं देख्यौ। सायद उण में परेसांनियां सूं लड़ण री... वांनैं झेलण री हिम्मत आय जावै।

“अम्मा नैं कीं देय’र आयौ हूं, वा टाबरां नैं खवाय दियौ होसी। थूं जा, कीं खा-पीय’र सूय जा। सुबै कांम माथै जावणौ है।”

“पण?”

“समिया, थूं जा। किणी भांत री हार नैं गळै सूं मत लगाईजै।” वो आपरी धुन मांय गीत गावतौ आगै बधग्यौ।

“ओह।” ठोकर खाय’र पड़ण सूं पैलां संभळगी। अेक गंभीर मुळक उणरै होंठां माथै रचगी। वा होळै-होळै घर साम्हीं जावण लागी।

तड़कै उजास पसरण लाग्यौ। वा आपरी ठौड़ माथै गुमसुम बैठी ही। बीत्योड़ी रात री बात सोच रैयी ही। साम्हीं रूंखड़ै माथै निजर गई। अेक चिड़ी हाथ पग नीं होवण रै बावजूद आपरी चूंच मांय दांणौ भर’र लाई अर नेन्हा टाबरां री चूंच में घाल रैयी ही। परहीन नेन्हा-नेन्हा टाबरां री चूंच मांय दांणा नांख’र फेर पाछी दांणौ लावण री तलास मांय उड जावै।

घणी ताळ तांई बैठी समिया नजारौ देखती रैयी। घड़ी-घड़ी दांणौ लावती अर टाबरां री चूंच मांय घालती... फेर पाछी उड जावती। दांणै री तलास सारू...।

दांणा लावणा... चूंच मांय घालणा... फेर दांणा री तलास मांय उड जावणौ, चिड़ी री लगन...।

म्हैं चिड़ी जैड़ी मां हूं। समिया री आंख्यां मांय टाबरां सारू स्नेह आंसू बण’र झर-झर बैवण लागौ। उण नैं लाग्यौ, जांणै बरसात पछै चमकीलौ ठंडौ तावड़ौ आयौ है।

वा ऊभी होय अर चाल पड़ी दांणां री तलास मांय...

स्रोत
  • पोथी : साखीणी कथावां ,
  • सिरजक : ज़ेबा रशीद ,
  • संपादक : मालचन्द तिवाड़ी/भरत ओळा ,
  • प्रकाशक : साहित्य अकादेमी ,
  • संस्करण : प्रथम संस्करण
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