गांव री हींडखाट चढ्योड़ौ हौ। हवा मधरा-मधरा हींडा देवती। घरां रै आंगणै चांदणी इमरत ज्यूं बरसती ही। इण चांदणी अर हवा में सुगंध ज्यूं घुळ'र चारूं खूंट व्याप जावता आसै माराज रै तंदूरै रा सुर। वै हवा रै घोड़ै चढता अर घर-घर दौड़ आवता। वा टेम होवती जद घराळियां आखरी रोटी पोयनै हाथ धोवती, साम्हीं जीमतौ घराळौ चळू करतौ। टींगर रालियां में घुस जावता। कीं'क बडा टाबरिया 'हड्‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌ड्‌ड्' करता घर सूं बारै निकल जावता। चौतड़ै रै चौक में भेळा होय भोंसदड़ी रौ अमल घोटता। मूंछां मांय मुळकतौ घरधणी दिवलै रै चांदणै झलमलाती घरवाळी नैं मीठी मींट सूं जोवतौ अर मूंछां पलारतौ तंदूरै रै सुरां माथै होळै-होळै पग धरतौ चांदणी में बह जावतौ। घर-लिछमी आखरी रोटी री राख झाड़'र आपरी थाळी में राखती अर संतोख रै साथै जीम'र तिरपत होय जावती।

पण उण दिन आसै रै तंदूरै रा सुर कांनां में पड़्या तौ पैली तौ मलजी माराज माथौ लुडायौ। आंख्यां बंद कर हिवड़ै में उतारण लागा। रोटी रै कोलियै री मिठास बधगी। “कित्तौ सुरीलौ बजावै है आसौ। वैड़ी इज राग है इणरी। पण जलम लियौ है मेघवाळ रै घरे। भगवांन कैड़ा अन्याव करै है।... अरे, माथै में जांणै सोटौ मार्‌यौ व्है!... कठैई मिंदर रै मांय तौ नीं बैठौ बजा रियौ है? वै दिन में कैवणौ भूलग्या।... देखणौ चाईजै। मिंदर री भी मरजादा व्है है।... पछै म्हैं बांमण किण वास्तै!”

मलजी माराज री चोटी में बळ पड़ण लाग्या। हिये में खळबळी मचगी। गुरुआंणीजी मनवार करता रैयग्या पण माराज तौ चळु कर लियौ। संकट में रोटी किणनैं भावै। थाळी नैं हाथ जोड़्या अर चोटी बटता माराज उठ खड़ा व्हिया। गुरुआंणीजी रै कीं पल्लै नीं पड़ी। माराज लठ लेय'र बारै निकळग्या।

चोटी बटता लठ बजावता माराज गळी बिचाळै नीसर्‌या तौ गळी रा कुत्ता अणूंता सावचेत होयग्या। वां पैली तौ चांदणै में माराज नैं पिछाणण री कोसिस करता कांन खड़ा कर ओळै-दोळै दौड़्या, पछै भुसण लाग्या। अेक कुत्तै नैं देख बीजौ कुत्तौ भुस्यौ अर जद तईं माराज चौतड़ै रै चौक तक नीं पूगग्या, अेक-बीजै नैं आगै सूं आगै भुसणौ संभळावता आप-आपरी गळी पाछा आय अठी-उठी सूंघण लागग्या। पण मलजी माराज री चोटी हेठली हांडी में तौ दूजी बातां रौ खीचड़ौ पकतौ हौ। वांनैं चांद सूं मतळब हौ चांदणी रै इमरत सूं, हवा री महक लखावती तंदूरै रा लहरका भला लागता। टाबरां रौ किलक'र दौड़णौ सुहावतौ इण सांत रात में रेड़ियै में बाजतौ लता रौ ऊंडौ मधरौ गीत। वै तौ आपरा पगां रै घोड़ां नैं दिमाग रै साथै-साथै दड़गड़ां-दड़गड़ां दौड़ावता पूगग्या चौतड़ै रै चौक।

गांव रै बीचलौ चौतड़ै रौ चौक गांव री छाती। छाती सूं निकळी अलेखूं भुजावां व्है ज्यूं गळियां। अर सगळौ गांव इण भुजावां बिचाळै कसियोड़ौ बसियोड़ौ। चौक गांव नैं दो भागां में जठै बांटतौ हौ बठै इज इणरै मांय आयोड़ौ चौतड़ौ सगळै गांव नैं अेक ठौड़ भेळौ करतौ हौ। आखै गांव री मवेसी इणी चौक में रात रा बैठती। सगळै गांव रा टाबर इणी चौक में रमता। इणी चौक में होळी रौ ढोल मंडतौ, पांणी रौ कड़ाव भरीजतौ। इणी चौक मांय दिन रै तीसरै पौर सै'र सूं बस आवती, रुकती। लोगां नैं उतारती-चाढती अर आगै निकळ जावती। चौक गांव री छाती, जिणमें गांव रौ हियौ धड़कतौ, गांव री आत्मा रैवती।

इणी चौक रै बिचाळै अेक चौतड़ौ हौ। जुंझार चौतड़ौ। किणी नैं जुझार रै नांव रौ पतौ उणरै कांम रौ। बस भोळा मिनख पीढी-दर-पीढी उणनैं पूजता आवता। रात रा अठै वांणी-वारता होवती। सगळौ गांव अठै इज भेळौ होवतौ। सुख-दुख री बातां होवती। जीव-जगत री बातां होवती। सगळौ गांव अठै छोटौ टाबर व्है ज्यूं अेक सुख सुखी अर अेकै दुख दुखी होवतौ। कदै अचरज सूं आंख्यां फाड़तौ तौ कदै अेक दूजै सूं चिड़तौ-चिड़ातौ।

पण लारलै दिनां बस-स्टैंड रै मुसाफिरखानै वास्तै पंचायत समिति सूं पइसा आया। सरपंच ठाकर हीरजी चौतड़ै सूं लागती लांबी पटियाळ बणायी। नूंवी हवा नैं देख वां रै मन में आयी कै क्यूं नीं चौतड़ै आळी ठौड़ माथै रामजी रौ मिंदर बणा लियौ जावै। ठाकर सा तौ ठाकर सा। उणां रै मन री क्यूं नीं व्है। चौतड़ै रै जुंझार नैं दोड़ाय दियौ अर छोटै देवता माथै मोटौ देवता बिठाय दियौ। पटियाळ सूं अड़तौ डीगौ डीगौ मिंदर बणाय लियौ। काले इज मूरतियां री थरपणा होई ही। माळावां तौ टाबरिया खेंच तोड़ लेयग्या पण डोरा हाल तांई लटकता हा। इण मिंदर सूं चौक अणूतौ सोड़ौ लागै। मिंदर पार फैल्योड़ौ धोरौ अर उणरै माथै दूर-दूर तांई रमती चांदणी अबै आपरै पूरै फैलाव सूं दीसै कोनी। मिंदर छाती माथै आयोड़ै होड़ै ज्यूं लागै। चौतड़ै नैं गिट'र ऊभौ मिंदर रै मांयलौ अंधारौ अणूंतौ काळौ लागतौ।

मलजी माराज तठ खड़कावता सीधा मिंदर रै बरामदै रै मांय पूगा। हळकै उजास में आंख्यां आसै नैं सोधण लागी। मूंढै सूं हुकम री झाळ निकळी, “बंद करौ तंदूरौ! आसा, थनैं ठा कोनी रामजी रौ मिंदर है, जुंझार रौ चौतड़ौ कोनी।”

तंदूरै रै तारां नैं नचावती आंगळियां थमगी। सगळै गांव में बिखरती सुरां री लड़ियां माथै मलजी रै हाकै रौ हथोड़ौ पड़्यौ अर सुरां रा मोती रतळीजग्या। “थूं अछूत है। थूं मिंदर में कोनी आय सकै। समझ्यौ!” हिवड़ै कांनी मुड़्योड़ी पलकां अेक-दूजै सूं अळघी होई तौ आसै माराज री आंख्यां मांय धूंधळा चितरांम ताकळा ज्यूं बड़ग्या। उणनैं माराज री बात किंयां समझ में आवती, वो तौ इण दुनियां में हो कठै!

नवलै पडूत्तर दियौ, “पण माराज, अबार तांई अठै इज तौ बजावता रैया हां। वांणी-वारता रौ तौ रामजी ना कोनी देवै।”

मलजी माराज उणरी सकल तौ नीं देख सक्या पण आवाज सूं पिछांण लियौ।

“कालै जद सूं मिंदर बण'र प्राण-प्रतिस्ठा होई है, कोई मेघवाळ, भील-मुसळमान इणरै मांय नीं जाय सकौ। बारै निकळौ! उठो, बेगा वहीर व्हौ!” माराज रौ लठ बैठोड़ै मिनखां दोळौ होयनै खटकण लाग्यौ।

“आ तौ पटियाळ है, मिंदर तौ साम्हीं पड़्यौ है। उणरै मांय तौ कोई बड़ियौ कोनी। पछै आपनैं कांई तकलीफ है।” नवलै फेर पडूत्तर दियौ।

थिर बैठा सत्संगियां रै मूंढा आगळ मिंदर रै दियै री लौ धूजण लागी। आसै रौ पोतियौ लिलाड़ अर धोळी दाड़ी, दाकलां अर पडूत्तरां सूं पार भींत रै चितरांम ज्यूं जोवती। पण इण सगळां सूं नचींतौ अर अेन तंदूरै सूं चिपक्योड़ौ उणरौ हियौ रामजी रै आवेग सूं बारै आयनै चितरांम किंयां हो सकै हौ? नीं तौ हियौ रामजी सूं अळघौ हो सकै, नीं तंदूरै सूं। वो तौ तंदूरै री झणकारां चढ रामजी कनै पूगणौ चावतौ।

पण किंयां? अठै तौ नीम अंधारै में धोळा कपड़ा पैरियोड़ा मलजी माराज डाकी व्है ज्यूं लागता, ऊभा चोटी रै बट देवता हा। लोग तंदूरै रै साथै-साथै माथा ऊंचाय उणनैं देख रैया हा। माराज रौ लठ घुत्ता देवण लागौ।

“यूं क्यूं छिता होवौ हौ माराज! रांम रौ घर है। वांणी-वारता सूं कांई फरक पड़ै है।” ढोलकियौ अमरत सुथार बोल्यौ।

“थूं भलां बैठौ रै भाया! म्हैं तौ मेघवाळां अर भीलां रै वास्तै कैवूं हूं। अै लोग मिंदर सूं बारै बैठ'र बजावै-गावै।” माराज री रीस बधण लागी।

उणी टेम ठाकर सा रौ रौबीलौ खंखारौ सुणीज्यौ। “कांई बात है माराज! नाराज क्यूं होय रैया हौ?” ठाकर सा मांय आवता थका बोल्या।

माराज वा इज बात वांनैं बताई। गुरु री बात किंयां टळ सकै! हजारां बरसां सूं बांमण अर गुरूआं री बातां राजा-महाराजा मानता आया है, तौ हीरजी ठाकर किस्या नयी खांण रा आयोड़ा हा! अंधारै में उणरौ पांणी काटती तलवार व्है ज्यूं मुळकणौ नीं दीस्यौ किणनैं ई।

“माराज बात तौ आपरी धरम री है। अै मेघवाळ-भील मिंदर में नीं जाय सकै।” हीरजी ठाकर जद जागता घोरावण लाग्या तौ आसै रै बात समझ में आयगी। चमरख नाई ठाकर सा री बात में बात भेळी तौ पेमौ कुम्हार, अजीतौ सुथार, बीरमौ जाट हुंकारा भरण ढूका। ढोलकियौ अमरत अर बाजौ बजावणियौ मंगळौ दरजी बोल नीं सक्या।

“थे सगळा अेकै साथै बोलण लागग्या। अै रामजी माराज कांई थांरा अेकलां रा है? म्हारा कोनी कांई? जुंझार चौतड़ौ कांई सगळां रौ कोनी हौ? उणीं रै माथै इज तौ ठाकर सा मिंदर बणायौ है। जद आपां सगळा उण ठौड़ बैठ वांणी-वारता करता हा, सुख-दुख बांटता हा, तौ इण जगै कांई होयग्यौ। जुंझार आपणै गांव रौ देवता हौ। रामजी माराज तौ आखी दुनिया रा देवता है...।” नवलै नैं रीस आवण लागी।

“उण जुंझार रौ तौ आपांनैं नांव पतौ कोनी। तो आपां उणरी भगती करता हा। मीठी बातां करता हा। रामजी री महिमा तौ आपां सगळा जांणां हां। पछै अठै बैठ'र क्यूं नीं वांणी-वारता कर सकां?” झांझण आपरी बात घणी नरमाई सूं कही पण अठै किणरै असर व्है।

“आज सूं अमरत अर मंगळौ मांय बैठ'र बजासी। आसौ अर हडू बारै। झांझण, नवला! थे बारै बैठौ। कीं ऊंच-नीच व्है। कांण-कायदौ व्हिया करै है। हाल तांई माखण डूबौ कोनी।” ठाकर सा हुकम देवता, फैसलौ करता बोल्या।

अणूंतौ हाकौ सुण टाबरां भीड़ लगा दी। वै छापल्योड़ा कबूतर व्है ज्यूं जोवण लाग्या। वां रा खेल अधूरा रैयग्या। दड़ी री सुध दौड़ री। पिदण री ठा दोटां री। वां रै वास्तै अेक नूंवी बात इण गांव में आज हुई ही। अेक बी बिल्ली व्है ज्यूं सरकण लाग्यौ। कठै उण लोगां नैं तौ खेलण सूं नीं रोक लै? मेघवाळां अर भीलां रा टाबर उण लोगां रै साथै खेल्या करै है।

ठाकर री मूंछां में बट, कुण झालै ठाकर री झट। माराज री चोटी में आंटा, माराज री बातां में आंटा। आंटां रै आंटै में फसियोड़ी बातां रा चांटा। नीं जे आवै पूगण रौ पौर, तौ क्यूं जोवां थाकण री बाटां। मिंदर में कळकळाटौ बधण लाग्यौ। अळघा कठै जोर-जोर सूं भुसता कुत्ता सूं डर'र भागती रात आधेरै रै दोळै पूगण लागी। छाती माथै खिरियोड़ौ तंदूरौ भारी लागण लाग्यौ। आपां नैं रामजी रौ नांव लेणौ। कांई मांय, कांई बारै। क्यूं बातां में बगत गमावां हां।

आसै तंदूरौ हाथां में लियौ। ऊंचौ उठ्यौ। हाथ जोड़तौ थकौ बोल्यौ, “रामजी भला दिन देवै हुकम! यूं तौ सगळी धरती रामजी रौ मिंदर है। आप तौ फरमावौ कै म्हैं इण मिंदर सूं कितरौ अळगौ बैठ'र वांणी-वारता कर सकूं।”

“अठा सूं पचास पांवडा!” मलजी माराज, “वोऽऽ बठै!” अळगौ इसारौ करता बीच में बोल्या।

आसै आपरौ तंदूरौ उठायौ, रामजी रै मिंदर साम्हीं झुक'र हाथ जोड़्या। मिंदर सूं बारै आयग्यौ। उणरै मूंढै माथै नीं दुख हौ, नीं सुख, नी अपमांन री रीस, नीं बदळै री बळत। निरविकार संत ज्यूं तंदूरौ पकड़्यां-पकड़्यां बारै निकळग्यौ। उणरै लारै हडू, नवलौ, झांझण बारै आयग्या।

“कांई है रे छोरां? कांई जोवौ हौ? परै जावौ अठै सूं! अमरत, मंगळा, थे वांणी गावौ, गिया जिकौ गिया, थे तौ गाऔ!” ठाकर सा दाकल देवता बोल्या।

“म्हे भगवांन री भगती करां हां। म्हारौ गावणौ म्हारी मौज रौ है, किणी रै हुकम रौ नीं है। म्हे सगळा भेळा इज गावता-बजावता हा अर भेळा इज बजास्यां-गास्यां। थे घणी दाकलां देवौ जिण सूं कीं नीं व्है।” अमरत सूं बरदास्त नीं हुयौ तौ उठतौ थकी बोल्यौ। उणनैं उठतौ देख मंगळौ उठग्यौ। धीरै-धीरै सगळा उठग्या।

“क्यूं इंयां रै लारै व्हौ हौ। भलै जमारै आया हौ, भली विचारौ।” माराज कैवता रैयग्या पण कोई नीं सुणी अर हेड़ाहड़ सगळा बारै निकळग्या। रामजी रै मिंदर में ठाकर सा अर मलजी माराज रैयग्या।

मिंदर सूं पचासेक पांवडा अळगौ जाय आसौ ऊभौ हुयौ। मिंदर रौ गुंबद चांदणी में चिळक रैयौ हौ। आसै मिंदर साम्हीं हाथ जोड़्या अर हेठो बैठग्यौ। हवा थिर होय आसै नैं जोवण लागी। आसै आपरी आंख्यां बंद कर तंदूरै रा तार छेड़ दिया। हवा में फुरफुरी व्यापगी। अलाप रै साथै गावणौ सरू कर्‌यौ-

दुनियादारी औगणगारी, ज्यांनैं भेद मत देइजै अे

हेली म्हारी निरभै, रइजै अे।

चौक में बैठ्योड़ा मवेसी औगाळ सारणौ बंद कर दियौ। वां रा कांन खड़ा होयग्या। छोरां रमणौ छोड दियौ। चंदरमा आपरी चांदणी रौ कळस आसै माथै ऊंधाय दियौ। तंदूरै रा सुर तेज सूं तेज होवण लाग्या। मोरिया बोल भूलग्या। दरखत झूलणौ बिसर अेकै सांस ऊभा रैयग्या। मिंदर रै माथली झंडी डंडी सूं लिपट अेक टक जोवण लागी। आभौ झुक आयौ। तारा नेड़ा आय सुणण लाग्या। हवा थमगी, जांणै परकत री सांसां थमगी। कनै बैठ्योड़ै मिनखां री आंख्यां मूंदली। वां रौ सरीर हळकौ व्हैग्यौ अर आत्मा तंदूरै रै सुरां रै लहरकां साथै हींडण लागी। सारै गांव में सुरां रौ जादू चढग्यौ। आसै माराज नैं आज कांई व्हैग्यौ। अैड़ौ तौ पैली कदैई नीं बजायौ। बरतन धोवती घरवाळियां रा बरतन हाथ में रैयग्या। राली माथै सूतोड़ी लुगायां ओढणौ भूलगी। ओढण वाळी दीयौ बुझाणौ बिसरगी। चूंघता टाबर दूध पीवणौ भूलग्या अर मां चुंघाणौ। टाबर रै होठां कनै सूं दूध सगळी जगती रै वास्तै बैवण लागौ। कैड़ौ जादू, अै कैड़ा कांमण। आज आसै माराज नैं कांई व्हैग्यौ।

ठाकर सा खासी देर तांई ऊभा रैयग्या। पछै मलजी माराज साम्हीं जोयौ। माराज बघना व्हैग्या। पटियाळ रै अंधारै नैं दीयै री लपरका करती रोसनी पूरै नीं पड़ रैयी ही। माराज देख्यौ, ठाकर सा रै चेहरै माथै रोसनी अर अंधेरौ मन रै भावां ज्यूं बदळ-बदळ जावतौ। सुरां रै हबोळै ठाकर सा रा जमियोड़ा पग उखड़ण लागा। ठाकर सा कदै मिंदर साम्हीं जोवता, कदै बारै, जठै आसौ लीन होयोड़ौ तंदूरौ बजावतौ गावतौ हौ। कोई महात्मा आभै सूं उतर धरती माथै परगट होयौ हौ। किस्यौ लोक है! कैड़ौ दरसाव है! ठाकर सा रामजी रै साम्हीं हाथ जोड़्या, माथौ नवायौ अर होळै-होळै पग धरता बारै निकळग्या। मंत्र-मुग्ध होयोड़ा वांरा पग आसै कांनी मुड़ग्या। माराज ठाकर सा नैं जायता देख जाग्या अर तुरंत वां रै लारै होयग्या।

स्रोत
  • पोथी : साखीणी कथावां ,
  • सिरजक : ओमप्रकाश भाटिया ,
  • संपादक : मालचन्द तिवाड़ी/भरत ओळा ,
  • प्रकाशक : साहित्य अकादेमी ,
  • संस्करण : प्रथम संस्करण
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