मन री दोगाचींती अर आकळ नैं लियां आज म्हैं आपरै साम्हीं आई हूं, व्है सकै कै आपरै वास्तै आ कोई नूवीं बात नीं है। अेड़ै नूंवैपण लारै फांफळा खावण री आपनैं फुरसत पण नीं कैला! म्हैं फगत इत्ती-सी बात कैवणी चावूं कै म्हैं जिण घर-परिवार में पैदा व्हैय’र थां सायबां री सिस्टी में आई हूं, उणमें जद म्हारी कोई निरणाऊ भूमिका कदैई मानीजी ई नीं, तौ उणरै आगोतर माथै म्हारै असर री अणूंती चिंता क्यूं करीजै? म्हैं इण घर-परिवार कै जात-बिरादरी रा नेम-कायदां सागै रैवणौ जीवणौ वाजिब मांनूं कै नीं मांनूं, जद म्हनैं इणरै चुणाव री छूट कदैई मिळी ई नीं, तौ कोई कीकर इण बात रौ ओळमौं म्हारै नांव मांड सकै कै म्हैं वां रै आपौ अर आगोतर सुधारण-संवारण सारू कीं हाथ-पग हिलाऊं क्यूं कोनी? वां री आछी-माड़ी औस्था में म्हारी भागीदारी तौ वियां ई नीं बरोबर जांणीजै। अेक बात आप निस्चै जांण लीजौ कै म्हनैं अेक सैज मांणस रै रूप में जिकौ कीं करणौ जरूरी लागै वौ तौ म्हैं करती आई हूं अर आगै पण करती रैवूंली, बिनां किणी सूं कीं उम्मीद राख्यां, पण किण म्हारै सूं कद-कांई उम्मीद बांध राखी है अर उण माथै म्हैं खरी पण ऊतरी कै नीं, इण बात रौ म्यांनौ आप म्हारै सूं ई क्यूं मांगणी चावौ? दीखती बात है कै जे मिनख रूप में कोई सो’रौ-सुखी अर राजी रैवणौ चावै तौ उणरै वास्तै पूगतौ बंदोबस्त तौ उणनैं खुद ई राखणौ पड़ै—सोराई अर सीरप नीं कठैई मांगी मिळै, नीं कोई आयनै हाथां सूपै अर नीं किणी रौ हक मार नै हासल करीजै।
गावण-बजावण रै जरियै आपरी रोजी कमायण वाळै परिवार में औलाद, अर वा ई भळै छोरी, आपरी छोरीपणै री औस्था में पूग्यां घर-परिवार अर माईतां सूं सेवट कांई उम्मीद राख सकै? वै उणनैं इण औस्था तांई लावण में उण सूं जिकौ कीं चावता-करावता रैया, उणने लेय’र वां सूं कीं पूछण कै उण माथै अैतराज उठावण री तौ गुंजायस ई कठै? आपौ-आपरै इधकार अर फरज रै इण आंधै खेल में कुण-कद आपरै इधकार कै फरज री मरजाद लांघ देवै, इण रौ कुण कित्तौ’क लेखौ राख सकै? दीखती बात है कै ऊपर हाथ तौ हमेस माईतां रौ मांनीजै, सो औ निवेड़ौ करण रौ कुदरती हक पण वां रै ई पख में जावतौ दीसै। आ तौ दीखती बात है कै माईत अैड़ा मौकां माथै अमूमन आपरौ सुभीतौ पैली देखै अर होळै-होळै वो ई वैवार वां री आदत बण जावै!
उण घर में जलम लियां पछै म्हां पांच भाई-बैनां नैं, जिण में च्यार तौ म्हे बैनां ई ही, कद कांई करणौ हौ, आ बात नीं कदैई कोई नैं बतावणी-समझायणी पड़ी अर नीं किणी इण बाबत कीं पूछ्यौ। बाप आपरी जवांनी रै दिनां आछा सारंगी वादक अर गायबी गिणीजता, जिण री वजै सूं केई बरस ठाकर परिवारां अर भागवांनां रै बुलावै माथै ब्यावां में सारंगी माथै रजवाड़ी गीत गावण नै जावता रैया, पण लारला कीं बरसां सूं अैड़ा बुलावा गिणती रा ई रैयग्या, सो वां आपरी सारंगी नैं उतार ओरै री लटांण माथै मेल दीवी अर पीवण री बधती आदत रै कारण सुर में ई वो सुरीलौपण नीं रैयौ। आं ई बरसां में आम घरां में ब्याव-सगाई रै मौकां माथै मां रै गीतां री मांग अवस अगोलग बधती रैयी अर बडोड़ी दोन्यूं बैनां जसोदा अर गवरी तौ आपरौ सुर संभाळतां ई मां रै साथै संभगी। तीजै पेट आयौ भाई गणपत। टाबरपणै सूं ई कीं न्यारी रूण राखी अर इण खांनदांनी पेसै में उण रौ मन माड़ौ ई रमतौ, पण आपरी मन-रळी में ढोल अवस आछौ बजाय लेवतौ।
म्हनैं तो लागै कै अेक रै लारै अेक जिण भांत म्हे सगळा टाबर इण घर में आवता रैया अर आपरौ आपौ संभाता रैया, इण बाबत म्हारा मां-बाप नैं आ सोचण री फुरसत कदैई मिळी ई कोनी कै म्हांरी जिनगाणी किण आकार में ढळणी चाईजै। जे हुई व्हैती तौ वै इत्तौ तौ अवस ध्यांन राखता कै म्हांनैं अेक मानवी रूप में जीवावण सारू वां आपरै कनै कीं गुंजायसां अर हूंस तौ जरूर अंवेर नै राखी व्हैती। सगळां सारू रैवण जोगौ घर, दोन्यूं टंक पूगती रोटी, पैरण-ओढण नैं पूरसल गाभा अर देवण नैं कोई आछौ आगोतर, कांई कदैई आं जरूरी बातां माथै वां ठैर नै विचार कर्यौ व्हैला? म्हनैं तो नीं लागै। जांणै मां अेक निरपेख मानवी-मसीन ही अर म्हे उण सांचै में मत्तैई घड़ीजता सासता सुर-साज, जिका आकार लेवतां ई आपरै सुर-ताळ में बाजण लागता। म्हैं इण बिखरती सरगम रौ चौथौ सुर-साज ही—वाधू! स्यात् लोगां रै सुझाव माथै माईतां म्हारौ औ ई नांव मुकर कियौ। जद तांई म्हनैं इण रौ बोध व्हियौ, म्हैं आखै गांव अर जांण रै दायरै में इणी नांव सूं चावी व्हैगी ही। आज सोचूं, जे दूजी बैनां दांई लुक्योड़ी-दब्योड़ी जी लेवती, तौ नीं यूं चावी व्हैती अर नीं किणी नैं उम्मीद व्हैती कै सिकायत नांव है सैनरूप असैंधी वाधू ई रह जावती। यूं म्हारै सूं छोटी बैन बीना रै लारै ई अेक जिनगाणी रै आवण री उम्मीद औरूं जागी ही, पण वा अधबिच्चै ई बिलायगी अर उणरौ जांणै-अणजांणै ओळमौं पण बीना माथै ई मांडीज्यौ कै वा आवतै भाई नैं खायगी! ओळाव औ कै वा भाई रै गरभ में आयां तांई मां रा हांचळ छोड्या ई कोनी, उणरौ सगळौ कस तौ वाई पीयगी। भाई तौ गयौ सो गयौ ई, पांचेक महीणां में लारै मां ई सिधायगी। यूं बीना रौ नांव ई सरू में तौ आयचुकी सुझाईज्यौ, पण मां अड़गी कै छोर्यां रौ नांव नीं बिगाड़ीजै, जिकौ नखतरां रै लेखै आवै, वो ई राख लियौ जावै अर इण भांत उणनैं बीना नांव नसीब व्हैग्यौ। म्हां छोटी बैनां मांय तौ स्यात् इण बात री सोझी कदैई वापरी ई कोनी कै मां रौ व्हैणौ कै नीं व्हैणौ कांई अरथ राखै। म्हारै वास्तै तौ बडी बैन जसोदा ई मां समांन ही। जे खोळै अर खूंवै रौ कोई मांण-मोल व्है, तौ वां दिनां वा ई म्हां छोटी बैनां अर भाई रौ मोटौ आसरौ ही। वा जित्तै तांई ब्याव व्हैय’र आगलै घर नीं पूगी, हरमेस म्हांरी ढाल बण्योड़ी रैयी।
जसोदा आपरै टाबरपणै सूं ई मां रै साथै रैवतां वै सगळा कांम आपरै जिम्मै संभाळ लिया हा, जिका घर चलावण वास्तै जरूरी है। वा लुगायां रै बिच्चै बैठ ढोल माथै अेकली आछी गायबी कर लेवती। रातीजोगै अर ब्याव री सगळी रीतां जांणती। म्हां बैनां नैं ई वा आपरै साथै जोड़ लेवती। अेक ब्याव में म्हां बैनां नै साथै गावती देख’र इस्कूल रा मास्टरजी जसोदा नैं जांणै क्यूं आ भोळावण देयग्या कै वा छोटी बैनां नैं भणाई सारू इस्कूल जरूर भेज देवै। वा आप तौ बाप, भाई अर गवरी रै साथै आखौ दिन घर में अर गांव में विरत रौ कांम करती रैवती, पण म्हां छोटकी बैनां नै मास्टरजी रै कैयां मुजब उण गांव री इस्कूल में अवस भोळाय दीवी। सरू में तौ आ उण री परेसांनी ई रही व्हैला कै वा आखै दिन घर में म्हां छोटा भाई-बैनां रौ तसियौ झेलती, अैड़ै में उणनैं मास्टरजी री इण सलाह में आप सारू औ सुभीतौ ई दीख्यौ व्हैला कै इस्कूल में टाबर दो आंक सीख लेवैला अर उणनैं ई घर सांभण में जरूर कीं आराम रैवैला। म्हारै साथै गणपत अर बीना ई इस्कूल तौ अवस जावता, पण वां रौ पढाई में जीव कम ई लागतौ।
इस्कूल मास्टर गिरजासंकर म्हारै वास्तै आखी स्रिस्टी में अेक ई आलै दरजै रा इनसान बण’र साम्हीं आया। नांव रै सैनरूप ई नेक अर संगीत रा आछा जांणीकार। ऊमर कोई पैंताळीस रै अेड़ै-गेड़ै। हारमोनियम बजावण में तौ वांरी जोड़ रौ नेड़ौ-नेड़ौ कोई लाधणौ ई ओखौ हौ। गांव में किणी रै रात्रि-जागरण व्हैतौ तौ वां नैं घणै आव-आदर सूं बुलाईजता। जित्तौ मुधरौ सुर, उत्तौ ई आछौ बांणी रौ अरथाव। वै इस्कूल में टाबरां नैं आखर तौ सिखावता ई, जिण टाबर में सुरता दीखती, उणनैं घंटां संगीत रौ अभ्यास पण करावता। म्हनैं वां सरू सूं ई आपरी देखरेख में राख लीवी ही। पैली वार जद वां म्हनैं आपरै कनै बुलाय’र कोई गीत गावण रौ कैयौ, तौ म्हैं इसी घबरायगी के अेकर तौ म्हारौ जांणै सुर ई बंद व्हैग्यौ, पण वां होळै-होळै म्हारौ हौसलौ बधायौ अर कांई ठाह वां नैं म्हारै सुर में कांई लाधग्यौ कै वां तौ इस्कूल में गावण वाळा टाबरां में म्हनैं सदा सारू न्यारी ई टाळ लीवी। घंटां म्हनैं अभ्यास में लगायोड़ी राखता। गावणौ ई जांणै म्हारी भणाई ही। म्हनैं ई सूकी भणाई करतां इण में घणौ आणंद आवतौ अर गैली व्है ज्यूं रागोळ्यां करती रैवती। गीत तौ म्हैं टाबरपणै में सिंझ्या-सवार गाया ई करती अर ब्याव-संगायां में बाई जसोदा रै स्सारौ ई लगाया करती, पण गांव री दूजी छोरियां री देखादेखी थोड़ा-घणा हाथ-पग फोरणा औरूं सीखगी, तौ सगाई-ब्याव रा न्यूंतां में घोळ री आछी उंवारगी औरूं मिलण लागगी। म्हैं इस्कूल में पांचवीं पास करी, जित्तै तौ आखै गांव में अर चोखळै में हाकौ फूटग्यौ कै वाधूड़ी रै जोड़ री कोई गावण अर नाचण वाळी छोरी आखै जिलै में लाधणी ओखी है। पांचवीं पास कर्यां सूं पैली मास्टरजी म्हारै माथै अेक औसांण औरूं कर्यौ, वां इस्कूल रिकार्ड में म्हारौ नांव वाधू सूं फोराय वसुधा करवाय दियौ ‘वसुधा पंवार’, अर इण नांव सूं केई आछा कार्यक्रम ई करवाय दिया। जळसां में इनांम-इकरार ई मिलण लागग्या। इण सूं निस्चै ई म्हारै हौसले में अपूरब बधोतरी व्ही।
इस्कूल अर बारला जळसां में भलांई म्हारै गावणै री सरावणा व्हैती व्हौ, घर में बापू री मनगत माथै इण रौ घणौ असर नीं पड़्यौ। आछी उवांरगी अर नेग रै लालच में वां री पूरी कोसीस आई रैवती कै म्हारै इस्कूल पूगण में भलां ई विघन पड़ जावै, पण गांव अर बारै सूं ब्याव-सगायां में गावण-नाचण सारू आवण वाळा बुलावां में बधोतरी व्हैणी चाईजै, जिण सूं कै वां नैं व्हैण वाळी कमाई में ई बधोतरी व्है। म्हनैं अैड़ा बुलावां में जावणौ कदैई आछौ नीं लागतौ, जिका म्हारै इस्कूल पुगण में विघन बणता व्है। केई दफै तौ अैड़ा बुलावां माथै बापू रै हामळ भर्यां उपरांत ई म्हैं जावणौ टाळ देवती, जिण रौ नतीजौ औ व्हैतौ कै बापू आगलै दिन म्हनैं गाळ्यां काढता अर कदैई-कदैई तौ म्हनैं वां री मार पण झेलणी पड़ती। वां रौ मांनणौ हौ कै म्हैं ब्याव-सगायां रै बुलावां में म्हारै गावण अर निरत-कळा में जित्तौ निखार लाय सकूं, उत्तौ इस्कूल में नीं। इस्कूल तौ वां री निजर में म्हां पेसैवर कलाकारां रौ अेक तरै सूं बगत ई खराब करैं अर भणाई रै नांव माथै फालतू री चीजां सिखावै, जिणां रौ म्हां लोगां रै जीवण में कोई उपयोग नीं व्है। जदकै म्हैं जांणती कै आज म्हैं जिकौ कीं सीखी-समझी हूं, वो सगळौ इणीं इस्कूल री वजै सूं सीखी हूं। म्हैं केई दफै म्हारा गुरुजी नैं ई म्हारी परेसांनी बताई, पण वै म्हारा घरू मामलां में घणौ दखल देवण री हालत में नीं हा। म्हारी परेसांनी नैं देखतां वां म्हारी इत्ती मदद अवस कर दी कै पांचवीं री परीक्षा रै दरम्यांन ई वां म्हारै वास्तै नवोदय विद्यालय रौ फारम मंगवाय दियौ अर उणनैं भरवाय’र नवोदय पुगवाय दियौ।
औ वां री सीख अर सनेव रौ ई सुफळ रैयौ कै छठी में पूगतां ई म्हारौ नवोदय विद्यालय सारू चयन व्हेग्यौ, जठै गांव रा टाळयां जरूरतमंद टाबरां नैं सरकार री तरफ सूं सगळी सुविधावां रै साथ इस्कूल रै हॉस्टल में ई राख नै पढाया जावै, ऊपर सूं सरकार वजीफौ औरूं देवै। म्हारै वास्तै तौ आ व्यवस्था वरदांन ई साबित व्ही, पण म्हारा बापू नैं आ अंगेई दाय नीं आई, वै तो अेक तरै सूं अड़ नै बैठग्या कै वै म्हनैं घर सूं बारै कठैई नीं जावण दै। गिरजासंकरजी वां नैं घणा ई समझाया कै इण सूं टाबर री भविस्य सुधरै, पण वां रै तौ मगज में बात बैठी ई नीं। सेवट म्हनैं बाई जसोदा रौ स्सारौ लेवणौ पड़्यौ। वा ई सरू में तौ बाप दांई थोड़ी कठ-मठी ई रैयी, पण पछै मांनगी। असल में बापू अर जसोदा री सगळां सूं बड़ी चिंता आई ही कै म्हारै घर सूं अळगी जावतां ई जिण ब्याव-सगायां रै बुलावां में म्हारै जावण सूं वां नैं आछी उवांरगी अर नेगचार मिळ जावतौ, वां माथै निस्चै ई फरक पड़णौ लाजमी हौ, क्यूंकै दूजी किणी बैन कनै औ हुनर नीं हौ। लारला दो-तीन बरसां में अैड़ा आयोजनां में वां नैं आछी-भली कमाई व्हैण लागी ही अर म्हारै अळगै जावण री बात सूं वां रै काळजै में औ डर बैठग्यौ हौ कै वां री कमाई में अबै कमी व्है सकै। म्हारै अळगै जावण री बात सूं वां रै काळजै में औ डर बैठग्यौ हौ कै वां री कमाई में अबै कमी व्है सकै। पण बड़ी बैन व्हैण रै नातै जसोदा आ कदैई नीं चावती कै म्हां छोटी बैनां साथै कोई जोरामरदी करै। जद म्हैं उणनैं म्हारौ पक्कौ इरादौ बताय दियौ कै जे म्हारै नवोदय जावण रौ घणौ विरोध करौला तौ म्हैं सगळां नैं है जठै ई छोडनै कठैई निकळ जावूंली अर पछै भलां ई देखता ई रैया, तौ म्हारी आ धमकी कांम आयगी अर उण रात नै बापू सूं बात कर नै अेकर तौ वां नैं राजी कर लिया। दूजै ई दिन वा खुद गणपत नैं साथै लेय’र म्हनैं पावटै रै नवोदय विद्यालय पुगाय आई।
नवोदय में जद म्हैं आई तौ म्हारी ऊमर बारै-तेरै’क बरस रै बिच्चै रही व्हैला, पण कद-काठी सावळ व्हैण सूं म्हैं खासा लूंठी लागती। पैर्यां-ओढ्यां तौ जांणै पूरी लुगाई। रंग-रूप में ई दिनो-दिन निखार आवतौ जावै हौ। नवोदय रै पैलै बरस में जद दो-च्यार इस्कूली आयोजनां में म्हनैं ई गावण रौ मौकौ मिल्यौ तौ म्हारै मुधरै सुर अर आधी अदायगी रै कारण तुरंत ई म्हारी गिणती आछा गावण वाळा टाबरां में व्हैण लागगी अर इस्कूल रा अध्यापकां री निजर ई म्हारै माथै जमगी। संगीत री अध्यापक अनीताजी यूं तौ म्हनैं पैलै कार्यक्रम सूं ई पसंद करण लागगी ही, पण अेकर जयपुर में गिरजासंकरजी सूं हुई अेक मुलाकात रै दरम्यांन जद वां नैं आ जांणकारी मिळी कै लोकगायन अर निरत में म्हैं आछी त्यारी राखूं, तौ वां जयपुर सूं बावड़तां ई म्हनैं आपरी संगत में लेय ली। वै खुद ई कत्थक रै जयपुर घरांणै री चावी नर्तक ही। नाच रै साथै शास्त्रीय गायन रौ ई वां नैं आछौ ग्यांन हौ, जदकै म्हारौ तौ पारंपरिक लोकगायन अर लोकनिरत में ई थोड़ौ-घणौ अभ्यास हौ। लोग कैवता, म्हारी देह में गजब री लोच ही। साथण्यां रै साथै लूहर लेवण में तौ म्हैं स्टेज माथै फिरकी री भांत घूमण लागती। उण सूं केई दफै नाचण वाळी साथण्यां संतुलण बिगड़ जावण रै डर सूं घबराय जावती। आवता पांच-छव बरसां में म्हैं अनीताजी री संगत अर देखरेख में इण कळा में जिकौ कीं सीख्यौ उण में लोगां नैं लोक-शैली अर कत्थक रौ अेक नूंवौ तालमेल देखण नैं मिळयौ, जिणनैं च्यारूंमेर आछी सरावणा ई मिळी।
आं पांच-छय बरसां में म्हनैं पढ़ण अर आपरी कळा दरसावण रा जिका ई औसर मिळया, वां में अैड़ी मगन व्हैगी कै कद म्हैं हाई-इस्कूल अर सीनियर सैकेंडरी पास कर ली अर कद अेक नूंवी कलाकार रै रूप में चावी व्हैगी, इण बात री गिनार खुद म्हनैं कमती ई रैयी। आं बरसां में म्हारी कळा सूं इस्कूल रौ नांव अर रूतबौ तौ बध्यौ ई, प्रदेस अर देस रा बारला मंचां माथै ई महारी लोकगायकी अर निरतकळा नैं ई आछी इमदाद मिळी। जद म्हैं सीनियर सैकेंडरी में पढ़ती ही, वां ई दिनां ऑल इंडिया रेडियो सूं सुर-परीक्षा सारू बुलावौ आयां म्हैं उण में ई सामिल व्ही अर उण रौ नतीजौ आयां म्हनैं घणौ इचरज व्हियौ कै वां म्हनैं सीधी बी-हाई ग्रेड रै दरजै में पास करी। औ महारै वास्तै अेक नूंवौ तुजरबो रैयौ अर रेडियौ, टी.वी., पर्यटन विभाग रा आयोजनां अर बारला कार्यक्रमां में म्हनैं अगोलग बुलावा आवण लागग्या। इणीं सुर-परीक्षा रै पछै कीं अरसै बाद जय दिल्ली रै कमानी ऑडिटोरियम में आकाशवांणी रै सालाना जळसै में म्हनैं अेकल निरत सारू बुलावौ आयौ, तौ म्हैं इण मौकै सारू घणी मैनत सूं त्यारी करी, म्हैं थोड़ी संकीजै पण ही, पण अनीताजी रै बधावै अर वां रै लूंठै साथ सूं म्हैं उण आयोजन में आपरै लोकनिरत अर भवाई रा न्यारा-न्यारा रूपां में वै करतब दिखाया कै लोगां री आंख्यां खुली-री-खुली रैयगी। दूजै ई दिन दिल्ली रा सगळा रास्ट्रीय अखबारां में म्हारी निरत मुद्रावां में अैड़ी रंगीन तस्वीरां छपी कै म्हैं तौ रातूं-रात जांणै आखै मुलक में चावी व्हैगी। म्हैं अनीताजी रौ घणौ औसांण मानूं कै अैड़ी तमाम जिग्यावां माथै वै म्हारी संरक्षक व्है ज्यूं हर बगत साथै ऊभी रैयी अर म्हारी हरेक प्रस्तुति नैं वां खुद आपरी देखरेख में त्यार करवाई अर संवारी।
सरू में म्हैं आ नीं जांणती कै कांमयाबी अर आछी जिनगांणी में कांई फरक व्है। आपरा गरुजी अर अनीताजी सूं इत्तौ जरूर जांणगी ही कै आपरै कांनी उठण वाळी निजरां सूं खुद नैं किण भांत बचाय नै राखीज सकै। अनीताजी तौ अैड़ी निजरां रै बारीक फरक नैं ई समझायौ। वां आ बात पण समझाई कै म्हारै सिरखी लड़की नैं खुद रै पगां माथै ऊभी रैवण नैं आछी पढाई पण करणी घणी जरूरी व्है अर हाल-फिलहाल म्हनैं खुद री पढाई अर निरत-गायन सारू नेमसर अभ्यास रै अलावा दूजौ किणी तरफ ध्यांन नीं भटकण देवणौ चाईजै। म्हनैं वां री बातां में गैरौ अपणापौ लागतौ अर खुद सारू अेक मांयली चिंता ई।
नवोदय सूं सीनियर सैकेंडरी पास कर्यां तांई म्हारै कनै इत्ती गुंजायस अवस बणगी ही कै म्हैं जयपुर में कॉलेज री पढाई सारू खुद रै बूतै फैसलौ लेय सकै ही। खुद अनीताजी म्हारै साथै जयपुर आय’र कॉलेज में दाखिलौ दिरवायौ अर लड़कियां रै हॉस्टल में म्हारै रैवण रौ पूरौ बंदोबस्त करवाय दियौ। यूं जयपुर में वां रौ खुद रौ घर हौ, जिण में वां री मां अर बड़ै भाई रौ परिवार रैवतौ। पढाई रै साथै-साथै अेक पेसैवर कलाकार रै रूप में म्हारौ जुड़ाव संस्कृति मंत्रालय, पर्यटन विभाग अर संगीत नाटक अकादमी अर रेडियो-टी.वी. सूं पैली ई व्हैग्यौ हौ, जिण री वजै सूं वां रा कार्यक्रमां में म्हारी भागीदारी अगोलग बधती रैयी। आं आयोजनां री वजै सूं म्हारी आरथिक जरूरतां ई आरांम सूं पूरी व्है जावती। यूं पं. गिरजासंकरजी, अनीताजी, संगीत नाटक अकादमी री अध्यक्ष सुधाजी अर केई बडा कलाकारां री सलाह अर वां रौ सनेव तौ म्हारौ लूंठौ आधार हौ ई।
कॉलेज रा आं बरसां में घर सूं म्हारौ सम्पर्क बौत कमती रैयग्यौ हौ। जयपुर आयां बाद दो-तीन दफै बीना रै बुलावै माथै जावणी पड़्यौ। यूं नवोदय में दाखिलै रै दो बरस बाद जसोदा अर गवरी रै ब्याव रै मौकै तौ गांव जावणौ व्हियौ ई, उण सूं आगलै ई बरस गणपत री सगाई रै मौकै औरूं आयगी, पण जित्ती वार आई, बापू री अेक ई राग रैवती कै म्हैं पढाई पूरी कर नै तुरत पाछी घरां आय जावूं, वै म्हारौ अर बीना रौ बेगौ-सौ ब्याव कर देवणी चावता। म्हनैं अेक तरै सूं वां सूं चिढ़-सी व्हैण लागगी। अजीब माईत है, आं नैं इण बात सूं कीं सरोकार नीं हौ कै म्हैं अेक आछै कॉलेज में वां रै माथै बिना कोई बोझ राख्यां पढाई करण में लाग्योड़ी हूं, कै प्रदेस में अेक नूंवी कलाकार रै रूप में म्हारौ नांव कमा रैयी हूं। अेक सिकायत वां नैं आ पण ही कै आं बरसां में म्हैं कलाकार रै रूप में जिकौ पईसौ कमायौ है, वो वां नैं क्यूं नीं सूंप्यौ। आ सही है कै म्हनैं बारला आयोजनां में कीं आरथिक लाभ जरूर व्हैतौ अर आ सगळी बचत म्हैं अेक बैंक खातै में खुद री भावी जरूरतां सारू संतण में लाग्योड़ी ही। म्हैं आ बात आछी तरै जांणती कै आवतां दिनां में कॉलेज अर युनिवर्सिटी री पढाई री बगत म्हनैं इण बचत री घणी जरूत रैवैला।
बापू अर भाई रै अपरोखै वैवार रै कारण घर सूं म्हारौ आंतरौ तर-तर बधतौ जावै हौ। आं बरसां में म्हारौ घर में आवणौ-जावणौ खासा कमती व्हैग्यौ हौ। जसोदा अर गवरी रै ब्याव पछै तौ घर री हालत औरूं बीगड़गी ही। छोटी वैन बीना बाप अर भाई नैं दो टंक रोटी तौ बणाय’र जीमाय देवती, पण घर री बीगड़ती हालत माथै उण रौ कोई जोर नीं चालतौ। जसोदा बडी व्हैण रै कारण भाई अर बाप नैं जरूत पड़्यां वां री निकमाई माथै खरी-खोटी सुणाय पण देवती, पण उणरै साथै ई गणपत रै ओपरै वैवार रै कारण उण अब पीर आवणौ कम कर दियौ हौ। बीना तौ विंयां ई म्हां सगळां सूं छोटी ही, सो उण री परवा भला कुण करतौ।
घर में सरू सूं ई दो ओरा, रसोई अर अेक बारै खुलती तिबारी ही, जिण में बापू अर बारला आया-गया लोग बैठता। ओरां रै आगै लांबौ बरामदौ हौ, जिणरै अेक खूंणै में टिमची माथै घर रा गूदड़ा पड़्या रैवता, जिका अबै लीरा-लीर व्हैग्या हा। जे गाभौ फाट जावतौ कै ऊधड़ जावतौ तौ कोई टांकौ देवणियौ ई नीं हौ। आ बरसां में नीपाई-पुताई नीं व्हैण सूं भीतां रा लेवड़ा उतरंण लागग्या हा अर आंगणै री हालत तौ औरूं माड़ी व्हैगी ही। बारलै फळसै रौ दरवाजौ ई टूटग्यौ हौ, पण उणनैं ठीक करावण री जांणै इंछा ई खतम व्हैगी ही।
लारली दफै म्हैं गणपत रै ब्याव में घर सूं बुलावौ आवण रै कारण गई ही। वां दिनां म्हारी बी. अे. री परीक्षा माथै ऊपर ही, इण वास्तै फगत ब्याव रै खास आयोजन में भेळी व्हैय’र दो दिन बाद ई पाछी आयगी ही। बडोड़ी बैनां अर बाकी रिस्तैदार ई आया हा अर सगळा म्हारै पैरवास नैं देख’र यूं आंख्यां गडोय’र देखै हा, जांणै म्हैं कोई अजूबौ होवूं। दब्योड़ै सुर में केई लोगां म्हनैं आपरै कब्जै में लेवण सारू बापू नैं ललचावण वाळा प्रस्ताव ई दिया बतावै, अैड़ी हालत में म्हारौ बैगौ ई वठै सूं मन उचाट खायग्यौ अर ब्याव री रस्म पूरी व्हैण रै दूजै ई दिन म्हैं परीक्षा रौ ओळाव लेय’र जयपुर आयगी। पण आं दो दिनां में ई घर री माड़ी हालत म्हारै सूं अछांनी नीं रैयी।
गणपत रै ब्याव रै डेढ बरस बाद अबकै म्हैं फगत बीना री चिंता नैं लेय’र गांव आई हूं अर वा ई बिना बुलायां। जदकै इणी डेढ बरस में बापू केई दफै बुलावौ भिजवायौ हौ, अेक दफै तो गणपत खुद लेवण नै आयौ, पण म्हारी घरां आवण री कोई इंछा नीं रैयगी ही। म्हैं उण नैं पढाई रौ ओळाव लेय’र खाली हाथ पाछौ भेज दियौ हौ अर वो म्हारै माथै खासी नाराज ई व्हियौ। म्हैं जांणती ही कै म्हनैं गांव क्यूं बुलाईज रैयौ है, जदकै बापू रा प्रस्तावां अर उण माहौल में म्हारी कोई रुचि नीं रैयगी ही। पण वां ई दिनां म्हनैं बीना रै साथै व्हियै हादसै री कीं उडती-सी जांणकारी मिळी तौ म्हनैं लाग्यौ कै उणरी मदद सारू म्हनैं जरूर जावणौ चाईजै। म्हनैं दो बातां जांण’र घणी तकलीफ व्ही—पैली तौ आ कै बापूजी जरूत सूं ज्यादा पीवण लागग्या हा अर दूजी उण सूं ई बड़ी चिंता री बात आ कै बीना रौ चाल-चलण गांव वाळां सारू चरचा रौ विसय बणतौ जावै हौ। घरां पूग’र जद म्हैं उण नैं अेकली नैं कनै बिठाय’र हक्की-नक्की जांणणी चाही, तौ पैली तौ वा इणी बात सूं बींमरगी कै म्हैं ई गांव वाळां री सुणी-सुणाई बातां माथै विस्वास कर नै उण सूं बात करण आई हूं अर जे उण रै साथै कीं बुरी व्हियौ ई व्है तौ म्हैं उण री कांई मदद कर सकूं? जद म्हैं बौत जोर देय’र कैयौ कै म्हैं किणी रै कीं कैयां हूं आगूंच कोई धारणा नीं बणाऊं, म्हैं तौ खुद उणीं रै मुंढै सूं उण री अबखाई अर दोराई जांणणी चावूं, मदद कांई कर सकूंली, इण रौ फैसलौ तौ सगळी बातां जांण्यां पछै ई कर्यौ जा सकै। म्हारी हमदरदी सूं सेवट उण रौ करड़ौ चेहरौ कीं नरम पड़्यौ अर कीं पलां में ई उण री आंख्यां में आंसू बैवण लागग्या। उण री सिकायत ही कै घर में कोई उण री गिनार नीं करै, घर में जे खावण-पीवण रौ सामांन नीवड़ जावै तौ उण नैं ई भाग-दौड़ कर नै कोई इंतजाम करणौ पड़ै, बाप अर भाई दोन्यूं दारू पीवै अर कदैई-कदैई तौ उण माथै हाथ ई उठाय लेवै। अैड़ी हालत में उण नैं पाड़ोस में काकी कनै जाय’र रातवासौ लेवणौ पडै।
उण नैं औरूं अखराय नै पूछ्यां सेवट वो वाकियौ ई बतायौ, जिण सूं उण री आपरै गांव अर घर नांव री जिग्यां सूं सगळी उम्मीदां ई खतम व्हैगी ही। उण बतायौ कै लारलै दिनां अेक जांण-पिछांण वाळै सेठ रै घरां उण रै बेटै रै ब्याव मौकै अेक रात वा काकी साथै रातीजोगै माथै गीत गावण नैं गई ही, वठै रात नै किणी चाय कै सरबत सागै कांई ठाह कांई पाय दियौ कै उण नैं भुंवाळी-सी आवण लागगी। जद उण रौ जी-दो’रौ व्हैण लाग्यौ अर उण घरां जावण री इंछा दरसाई तौ सेठां रौ बेटौ उण नैं आ कैय’र उठै सूं बारै लेय आयौ कै वो उण नैं घरां छोड देवैला। बारै आय उण रै साथै गाडी बैठतां ई वा चेतौ बीसरगी। दो-ढाई घंटां बाद जद पाछी होस में आई तौ वा किणी असैंधी जिग्यां सूती ही। ओरियै में लैंप री निमधी रोसणी में जद उण री निजर बिछावणै माथै बरोबर सूतै अेक अजांण छोरै माथै पड़ी। उण बेसरमी सूं दांत काढ दिया। खुल्योड़ा गाभां अर सरीर री दुरदसा सूं आ बात साफ व्हैगी ही कै उणरै साथै जकौ अकाज व्हैणौ हौ, वो व्है चुक्यौ हौ। सगळी बात जांण’र उण री आंख्यां अर डील में लाय-सी लागगी। वा उण नैं परियां धकेल’र पिलंग सूं ऊभी व्हैगी। पैली उण जिग्यां नैं पिछांणण री कोसीस करी। ज्यूं ई उण छोरै उण सूं बात करण सारू मूंढौ खोल्यौ, उण पाछी फुरतां अेक उळाथ उणरै गाल माथै चेप दी। उळाथ इत्ती जोर सूं पड़ी कै खुद उण रै हाथ में झणझणाटी-सी दौड़गी। वो संभळ’र उण सूं औरूं कोई कमीणी हरकत करतौ उण सूं पैली वा उण नैं गाळ्यां काढती आडौ खोल’र बारै आयगी। बारै आवतां ई वा जिग्यां नैं पिछांणगी ही। औ उणीं सेठ रौ फारम-हाउस हौ, जिकौ गांव रै सारै ई अेकलवांणै बण्योड़ौ हौ। खुद सेठ रौ छोरौ बारै ई ऊभौ हौ। छोरै उण नैं राजी करण री घणी ई कोसीस करी, उण नैं भांत-भांत रा लालच दिरीज्या। फेर औ न्होरौ ई कर्यौ कै वो उण नैं घर तांई पुगाय देवैला, पण वा वां नैं हिकारत सूं देखती अर गाळ्यां काढ़ती उभांणी-उप्पाळी आधी रात नैं ई आपरै घरां आयगी। उण री रीस नैं देखतां वां छोरां री तौ हीयांणी ई नीं पड़ी कै वै पाछी उण नैं बतळावै। दो’री-सो’री घरां पूगी तौ उठै किण रै आगै किरियावर करती, बाप अर भाई तौ विंयां ई दारू रै नसै में बेचेत पड़्या हा अर काकी रा कठैई अता-पता नीं हा। दूजै दिन वां रै आगै किणी बात कर दी तौ वै कुण जांणै छोरै रै बाप साथै कांई बात कर नै आया कै पाछा आय नै उल्टा उण रै ई गळै पड़ग्या। कोई कैवै हौ कै सेठियै वां नैं पैली ई कीं प्रलोभन देय’र आपरै कब्जै कर लिया हा अर तद सूं उलटी उणीं नैं बदनांम करण री जी-तोड़ कोसीसां चाल रैयी है। अैड़ी हालत में उण रौ गांव में रैवणौ दूभर व्हैग्यौ है।
“अब थूं ई बता, म्हैं किण रै आगै पुकार करूं? अर अठै कुण है म्हारौ धणी-धोरी? म्हैं तौ लाठी अर भींत बिच्चै आयोड़ी हूं, जीवण सारू जिकौ जरूरी लागै वो कर लेवूं, जाणूं इण जीवणै में कांई सार नीं है, पण थूं विस्वास राख, म्हैं म्हारी जांण में कोई ऊंधौ कांम नीं करूं, जिण सूं खुद नैं ई सरम आवण लागै। लोगां नैं तौ अचूंकी बातां करण रौ मौकौ मिळणौ चाईजै...! यूं म्हनैं घर में कोई खावै कोनी, पण आं बाप-भाई रै तौ नांव सूं ई म्हनैं चिढ़ व्हैगी। घणी भली काकी पण कोनी, वा ई आपरी सगळी बेगारां कढायां पछै लारौ छोडै, पण आं करतां सावळ है, उण रै कनै रात-सरणै डर तौ कोनी।”
“पण थारी तौ सगाई व्हियोड़ी ही नीं, पछै ब्याव रौ कांई व्हियौ? गणपत रै साळै सूं ई तौ व्हैणौ है?” उण री इण हालत माथै म्हनैं औ ई अेक उपाय सूझै हौ।
“छोरौ तौ लाई त्यार है, पण उण रा बापूजी नैं रोकड़ा भावै। वां री बेटी परणीजगी, सो वा गरज तौ अबै मिटगी। बाप-भाई री हालत थूं देखै ई है। जे किणी रै ब्याव-सगाई में गा-बजाय’र कीं बचाय लेवूं तौ अै म्हारै दोळा लटूम जावै। बीरै रै लारै जिकी भाभी आई है, वा उण सूं ई आगली, उण नैं तो म्हैं फूटी आंख ई नीं सुहावूं। ब्याव-सगायां में आजकलै सगळा कैसटां सूं कांम चलावै, रीत-भांत री गायबी रौ बगत नीं रैयौ। बुलावा आवणा तौ विंयां ई कमती व्हैग्या, महीणै में दो-च्यार आवै तौ म्हैं अबै इण बात री गिनार ई करणी छोड दी। कोई बुलावै तौ टाळौ ई कर देवूं, कांई फायदौ कठैई जायां सूं।” उण हीयौ हारती-सी पडूत्तर दियौ।
घर में पैली बार म्हनैं लाग्यौ कै बीना नैं म्हारी मदद री जरूत है। म्हैं घर वास्तै दूजौ कीं करूं कै नीं कर पावूं, बीना री मदद तौ म्हनैं करणी ई पड़ैला। म्हैं उणी दिन म्हारा गुरु गिरजासंकरजी नैं वां रै घरां जाय पूरी परेसांनी बताई। वां आगलै दिन दिनूगै ई म्हारै साथै रामगढ चाल’र उण रै सुसरै सूं बात करण रौ धीजौ बंधायौ अर म्हनैं पाछी घरां भेज दीवी। रात रा घर में बापू अर भाई म्हारै सूं कोई बात नीं करी। आगलै दिन दिनूगै ई म्हैं गरुजी नैं साथै लेय’र रामगढ उठगी। संजोग सूं बाप-बेटौ दोन्यूं घरां ई लाधग्या। यूं गिरजासंकरजी रौ तौ इण हलकै में सगळा ई घणौ मांण राखै। बीना रै व्हैण वाळै धणी नैं ई वां आपरी इस्कूल में आठवीं तांई पढा राख्यौ हौ अर वो अेक बैंड-बाजै री पारटी में ट्रंपेट बजाया करतौ। दीखण में वो ई बीना रै दांई सीधौ अर सोवणौ लागतौ। म्हैं खुद उण सूं बात करी ही। आछी बात आ पण लागी कै वो बीना नैं पसंद करतौ। म्हारै कनै पंदरै-बीस हजार तांई खरच करण री गुंजायस ही, वा म्हैं गरुजी नैं आगूंच ई बताय दीवी ही। वां लड़कै रै बाप सूं बात कर नै आगलै महीणै ई ब्याव री तारीख पक्की करवाय ली, क्यूंकै म्हारै कनै बीना वास्तै दूजौ कोई रस्तौ नीं हौ। वां सूं बात पक्की कर म्हे उणीं सिंझ्या फतहपुर पाछा आयग्या।
सिंझ्या घर रै ओरै में बैठ बाप, भाई अर भोजाई नैं जद आ खबर दीवी कै म्हैं बीना रै ब्याय री तारीख पक्की कर आई हूं, तौ बाप तौ कीं नीं बोल्या, पण भाई गणपत बुरै ढाळै झुंझळायग्यौ। भोजाई ई मूंढौ मचकोळ’र अपूठी फुर नै बैठगी। अैतराज औ कै वां सूं बिना सलाह कर्यां म्हैं तारीख पक्की करण वाळी कुण? औ रवैयौ देखतां वां नैं आ बात अखरावणी बिरथा ही कै म्हैं बीना री सगी बैन हूं अर उण रौ भलौ-बुरौ देखण रौ म्हनैं उत्तौ ई हक है, जित्तौ वां नैं। पण आ बात म्हारै मूंढै आवण सूं पैली ई गणपत आपरै आपै सूं बारै आयग्यौ। वो चिढ़तौ-सो बोल्यौ, “थूं जद घर सूं तल्लौ-मल्लौ राखणौ ई छोड दियौ, तौ औ फैसलौ लेवण रौ इधकार थनैं कुण दियौ कै थूं बीना रै मामलै में कोई पंचायती करै?”
“क्यूं भई, म्हैं अैड़ौ कांई गुनाह कर दियौ? बीना री सगाई तौ थांरी ई कर्योड़ी ही नीं। पछै म्हैं जे ब्याईजी नैं ब्याव सारू राजी कर लिया, तौ थांरै कठै दो’राई व्हैगी?” म्हैं ठाडै सुर में भाई नैं पडूत्तर दियौ।
“थूं तौ यूं ई बिरादरी में म्हांरौ जीवणौ हरांम कर राख्यौ है, जणौ-जणौ म्हांनैं भूंडतौ फिरै कै थांरी बैन तौ आखी दुनिया में मंचां माथै नाचती-गावती फिरै, नीं कोई लाज-सरम अर नीं घर-परिवार री चिंता।” उण रीस में आवतां म्हारै माथै पैलौ आरोप उबांक्यौ।
म्हैं उण रौ ई नेठाव सूं उथळौ दियौ, “लोगां रै कैवणै अर घर-परिवार री चिंता नैं तौ अेकर अळगी राख, वा तौ थूं ई जांणै कै कुण कित्ती’क चिंता राखै, म्हनैं तौ आ ई समझाय दै कै मंचां माथै गावणौ कै नाचणौ थांरै वास्तै लाज-सरम री बात कद सूं व्हैगी। आपणा बाप-दादां रौ तौ औ खांनदांनी पेसौ रैयौ है, जदकै म्हैं तौ घणी इज्जत रै साथै आ कळा अपणाई है अर इणरै जरियै सभ्य समाज में आछी इज्जत अर इमदाद ई पाई है, पछै थांरै वास्तै आ लाज-सरम री बात कीकर व्हैगी!”
“म्हनैं थारै सूं धणी हूजत कोनी करणी... म्हनैं तौ आ ई कैवणी है कै थूं जद वा वाधू रैयी ई नीं, थूं तौ कोई वसुधा बणगी... खुद इत्ती आपमत्तें व्हैगी कै बाप-भाई नैं तौ कीं गिणै ई कोनीं, तौ पछै रा कांमां में पंचायती किण नांव री करणी चावै... थूं थारौ भलौ-बुरौ देख नीं... बीना रौ ब्याव कद-कीकर व्हैणौ है, इण सूं थनैं कांई लेवणौ है...या म्है जांणां अर आ जांणै...”
म्हैं गणपत रा इसा रूखा अर चिट्टा बोल सुण’र अेकर तौ इचरज में अबोली रैयगी... मन में रीस पण आवै ही, पण उण सूं ई बेसी चिंता इण बात री व्है ही कै कठैई बण्योड़ी बात बीगड़ नीं जावै... म्हैं इण दोगाचींती में बैठी कीं जवाब सोचै ई ही कै जित्तै तौ रीस में भर्योड़ी बीना फुंफकारी, “तौ अबै थूं रैयग्यौ म्हारौ भलौ-बुरौ देखणियौ...., आ म्हारी मां-जाई बैन है अर कीं करण जोगी है, इण रै कियां सूं तौ थांरी इज्जत ऊतरै... जिकी बैनां रै थारै जैड़ौ भाई अर वैड़ौ ई लारै बाप व्है, वां नैं तौ बैगौ ई कोई कूवौ-खाड देख लेवणौ चाईजै... आयौ घणौ ई म्हारौ भलौ सोचणियौ... आं लारलां बरसां में देखी कोनी कांई थांरी भलाई... घर में दो टंक रोटी तौ घणी मोटी बात, इज्जत सूं दो घड़ी आंगणै में ऊभी रैय जाऊं तौ ई घणी... थे म्हारी कित्ती’क साय करणिया हौ, वा म्हैं आछी तरै जांणूं... म्हारी जबांन मत खुलवाऔ... मूंढौ लुकोवण नैं गळी नीं लाधैला...!” रीस अर अवसाद में बीना री सांस धौंकणी ज्यूं बाजण लागी ही अर आंख्यां डबडबायगी, उण रौ गळौ रूंधीजग्यौ। म्हैं कीं बात नैं संभाळणी चावै ही, उण सूं पैलां ई गणपत रीस में उठ्यौ अर पग पटकतौ घर सूं बारै नीसरग्यौ। बापूजी विंयां ई नसै में सिंग्याहीण-सा कनै बैठा हा अर भौजाई ऊठ’र दूजोड़ै ओरै में बड़गी ही।
यूं बात नैं बिच्चै ई छोड’र ऊठ्यां पछै आ तौ साफ व्हैगी ही कै भाई सूं अबै इण तळ माथै कोई बात करणी बिरथा ही। बापूजी री हालत नैं देखतां घणौ-कीं सोचण री गुंजायस बची पण कोनी। ओरै री लटांण माथै खंख सूं भर्योड़ी वां री सारंगी में अबै कोई साबतौ तार-सुर तौ स्यात् सोध्यां ई नीं लाधै, ब्याव-सगायां में जिण ढोल माथै मां अर बाई जसोदा रा सुर परवांण चढता, उण री मंढियोड़ी खाल अबै जिग्यां-जिग्यां सूं चीरीजगी ही अर बीना रै सुर रौ थाकेलौ अर उण रौ उफांण घर रा अंधारा खूंणां में ओजूं तांई गूंजै हौ... म्हैं जांणती कै इण बीखर्योड़ी सरगम रौ सैमूळ बदळ जावणौ लाजमी व्हैग्यौ है, उण रा सुर-ताल वां तूट्योड़ा साजां सूं साधणा अबै संभव नीं हा...।
म्हैं आ ई जांणती कै भाई री आ अणूंती रीस फगत आपरी अणूतायां अर सोलियत नैं ढकण रौ कूड़ौ ओळाव बणगी ही—नीं वो मुकर व्हियोड़ी तारीख में कोई विघन न्हांख सकै अर नीं व्हैतै कांम में कोई स्सारौ ई लगाय सकै। म्हैं पैली तौ बीना नैं ई थ्यावस बंधाई। उण नैं आ बात ई समझाई कै जिकी छोरियां रै माईतां अर भायां में आपरी जिम्मेवारी ऊंचावण री ऊरजा नीं व्है, वां माथै घणी निरभरता कै रीस दरसायां कीं नीं व्है। वां नैं आपरौ आपौ खुद सांभणौ चाईजै अर जे कोई अणूंतौ दबाव पड़तौ व्है तौ हिम्मत सूं उण रौ आंमनौ करणौ चाईजै। यूं बात-बात छेड़ै कूवै-खाड री बात सोचणी तौ अेक तरै सूं आपरी कमजोरी ई दरसावणी है...!
बस, इणीं दोगाचींती अर आकळ में बीती रात सूं म्हारौ काळजौ मांय-ई-मांय चूंटीजै हौ कै आज खुद रै ई घर अर परिवार में इत्ती कमजोरी अर किरियावरी किण भांत ऊंडी बैठगी कै बात करण री गुंजायस ई नीं रैयी? आ कित्ती दुखदाई बात है कै वा आपसरी रा रिस्तां री इत्ती-सी मरजाद ई बचाय नैं नीं राख सकै। आपरै घर-परिवार में ई जे मिनख इत्तौ अेकलौ अर अणखावणौ व्है जावै तौ फेरूं किण भांत रै आगोतर री उम्मीद राख सकां...!