ढोल बाजरिया, मारवाड़ रा कोळू गांव में मिनख हरख्या फिररिया। केसरिया कसूमल पागां बांध्यां, आयांगियां री अमल री मनवारां चालरी। पाबूजी रे सात सुवागण्यां मिल पीठी कररी, लारै लारै मीठा मीठा गळा सूं पीठी रा गीत गावती जायरी।
पाबूजी री जांन अमरकोट चढ़री है। पाबूजी उमंग में भरिया मूंछां पै घड़ी घड़ी रा हाथ फेररिया।
परणेतू पोसाक त्यार व्हेगी, कलंगी सिरपेच कस्यो टांगणों वो निस्चै व्हैग्यो, तरवार सोना री ना’र मुखी मूंठ री छांट लीधी, ढाल गैंडा री आछी सी देख’र टाळी। भाला ने ओप देवा ने सिकळीगर ने दीधो। अबै घोड़ा री बात सोचै। घोड़ो पाबूजी री जोड़ रो व्है, अमरकोट रा सोढ़ा घोड़ा ने देखतां ही थूथकारो न्हाकवा लाग जावै जद तो बात ही है। जस्या पाबूजी बांका वीर है वस्यो ही वांरी रानां नीचै घोड़ो व्हेणो चावै। पाबूजी रै एक घोड़ो दाय नीं आवै। वांरों जीव जावै’ न एक घोड़ी पै आय अटकै। केसर काळमी री तीखी कनौती! कूकड़ा री नांई खिच्योड़ी गाबड़! झींणी झींणी हींस! केसर काळमी घोड़ी है तो बस वा एक पाबूजी रे लायक। देवळ चारणी, आपरी घोड़ी ने पाबूजी ने देवेला के नीं? गायां रो दूध पाय पायनै मोटी करी थकी केसर ने, देवळ चारणी आपरा जीव सूं बत्ती राखै। पाबूजी सोची चावै जो व्हो तोरण मारणो तो ई केसर घोड़ी री पूठ पै चढनै हीज। चांदा ने कह्यो, “भाई, मानो मत मानो, म्हूं परणावनै जावूंला तो केसर काळमी माथै हीज चढनै।”
चांदे जाय देवळ ने कह्यो, “पाबूजी रो ब्याव है, देवळ देवी! थां केसर ने चार दिनां सारुं दे दो, पाबूजी परणनै आवै जतरे।”
देवळ चमकी, “केसर ने दीधां, म्हारे नीं सरै। केसर बिना म्हारी गायां री रुखाळी कुण करै? खोची तो गायां घेरवा ने ताखड़ो बैठ्यो है।”
“देवळ! कांई बात करो, थांरी गायां रा रुखाळा म्हे, थांरी केसर कूदणी पै भालाळो पाबू चढैला, थांरी केसर जांन रे बीचै चालैला, केसर जसी तो अलल बछेरी नै बांकड़ली मूंछो रो पाबूजी। केसर काळमी ने पाबूजी जस्यो सवार नीं मिलेला, नीं पाबूजी ने केसर जसी घोड़ी मिलै। देवळ बाई! नटो मती। केसर झींणी झींणी हींसती, धीमी धीमी नाचती अमरकोट रा सहर में चालैला, पाबूजी भालो भळकातो घोड़ी ने कुदातो तोरण मारैला जद सोढा थांरी केसर री कूद देखता रैजावेला। रणबंका राठौड़ां रा घोड़ां री अर मरदां री जो तारीफ है सोढां ने आंख्यां देखवा दो।
घोड़ो, जोड़ो पागड़ी, मूंछां तणीं मरोड़।
ये पांचूं ही राखली, रजपूती राठौड़॥
देवळ चारणी राजी व्हेगी घोड़ी देवानै। पाबूजी बींद बण्या, बागो पैरय्यो छोगा कलंगो टांक्या, ढाल बांधी। केसर ने सिणगारी, में’ दी राच्योड़ा च्यारुं ही सूमां में घूघरा बाध्या, केसवाळी ने लच्छा घाल घाल गूंथी, गळा में सोना रो हालरो घाल्यो। पाबूजी रो सारो भायपो भेळो व्हीयो, लुगायां मंगळगीत गावा लागी, ढोल बाजवा लाग्यो, माथै सेवरो बांध्यां, केसर री लगांम पकडयां पाबूजी ऊभा।
जोसी घोड़ी रीं पूजा कीघी, काकी हरिया मूंगां रो दुकड़यो भर केसर रै मूंडागै राख्यो, मां कांचळी सूं बोबो काढ नै पाबूजी रे होठां रे लगायो “ई दूध ने उबाळजे।” भौजाई आंख में काजळ घाल्यो। पाबूजी झट पागड़ा में पग दे केसर रो पृठ पे चढ्या। लुगायां झट घोड़ी उगेरी, “बछेरी म्हारी ए रमझम करती जाय।”
पाबूजी री बेनां घोड़ी री लगाम झाल वींद री घोड़ी आगै, मुळकती मुळकती नाची, पाबूजी मूठी भर रिपिया बेनां पै निछरावळ करनै फेंक्या। सगळां रे होठां पै आणंद री लैरां दौड़री पण साम्ही ऊभी देवळ डसूका भर रोवा लागी।
“यो कांई। बारेठणी जी यो कांई थांरो भूंडो सुभाव है। सुगण रा असुगण कररिया हो, वींद तो घोड़ी चढ़यो है नै थां साम्हा ऊभा रोयरिया हो।”
देवळ तो आय लगाम पकड़ लीधी “थां तो परणवा जायरिया हो म्हारी गायां रो रुखाळो कुण? थांरा भाइयां ने छोड़ जावो।”
“देवळ देवी, भाइयां ने छोड्यां जान री सोभा काई? भाइयां बिनां आगे सोढ़ां रै लारै कुण जीमैला? कुण सोढ़ां रे साथै मनवारां लेवैला? कुण सगा परसंगियां सू रोळ करेला? म्हारा भाई साथै नीं व्हेला तो सोढियां गाळियां किण ने गावैला?
देवळ बोली, “भाइयां ने नी छोड़ो तो चांदा ने छोड़ जावो।”
“चांदो अर डामो तो म्हारा भायला भाई है, भाईयां सूं ही सवाया। यांने तो देवळ भवानी, म्हूं कणी तरै छोडूं। ये तो म्हारा डावल्या जीमणां हाथ है। बीचै बीचै तो केसर चालैला, डावे जीमणै चांदा डामा रा अबलक घोड़ा।”
“अठी ने पाबूजी, थांरी जांन चढ़ी नै वठी नै खीची म्हारी गायां घेरैला, थां सांची मानो, थांरे जातां ही खीची म्हारी गायां तांण ले जा’य”।
पाबूजी भरोसो दीधो, “म्हूं तीन दिन अमरकोट रैवूंला, चौथो दिन वठै नीं लगावूं थां भरोसो राखो।”
“थां सासरे जाय, वीनणी में रम जावोला, साळा साळियां री रोळ में विलम जावोला। थां वठै सोढ़ीजी री सेजां में पोढ़ोला, देवळ चारणी री गायां किणने याद आवैला।” देवळ रोवती जावै नै पाबूजी ने करड़ा करड़ा बोल सुणाती जावै।
“देवळ, अै म्हूं थांने बचन देवूं जो थांरी गायां ने खीची घेर ले तो थां थांरा गुवाळ ने अमरकोट दौड़ाय दीजो। म्हूं जीमतो व्हूंला तो चळू अठै आयनै करूंला। गायां धेरवा री खबर सुणतां पांण केसर घोड़ी पै काठी मेल दूला, और तो और चंवरी पै चढयौ फेरा खावतो व्हूंला तो फेरा रे अधबीचै ऊठ जावूंला। बारेठणीजी, बारेठणीजी, थें रोवो मती, राजी राजी सीख दो, परणूंला जीं रात सिवा दूजी रात सासरै नीं रुकूंला। म्हारी बात रो भरोसो राखो।”
देवळ पाबूजी कना सूं सोगन लेवाई।
जांन चढ़ी, ऊंट आगै बध्या, पांच सात कोस चाल्या, मंगरी आई देखै तो एक नोहत्थी ना’ रड़ी मंगरी मांथा सूं उतरनै केस बिखेरियां घाटी रोकनै गैला में ऊभी रैगी।
डामै धनुष पै तीर चढायो, पाबूजी रोक्यो, “या वन रा राजा री अस्त्री है, आंपां धरती रा ना’र हां, मरद अस्त्री पै हाथ नीं उठावै।”
डामै तो ना’री रे साम्हें घोड़ा री बाग खैंची, रान दबाई, ना’री पूंछ दबाय, मंगरा पै पाछी चढगी। पाछी चढ़ती ना’रड़ी पै डामै कांकरी फैंकी “हत् थारी! ना’री व्हेयन पाछी फिरगी थूं।’
कांकरा री लागतां ई ना’री पूठी फिरी। दाकळ करने हाथळ उठाय लपकी, सूधी डामा रा माथा पै आई। डामो बोल्यो, “पै’लां थूं वार करलै, मरद पै’लां नारी पै ससतर नीं उठावै।”
ना’री री हाथळ डामा रा माथा पै आई, जीने डामो आपरी ढाल पै झेल नै पाछी फिरती ना’री रे तरवार री मारी जो नारी रा दो ढोल व्हेग्या। जांणै सावण री काकड़ी कटी व्हे।
जांन रे साथै सुगनी हो आय पाबूजी ने अरज कीधी “सुगन अस्या खोटा व्हेता आयरिया है, पै’लां हो काळो नाग फण कर नै जांन रो गैलो रोक्यो, पछै ना’रड़ी घाटो रोकनै जावा ने मना कीधो। सुगन देखतां तो आप पाछा फिरजावो, खांडो भेज ने ब्याव करलो।”
पाबूजी बोल्या, “अबै जांन ने पाछी मोड़यां म्हारी हंसी व्हेला। अमरकोट रा सोढ़ा हंसेला, एक ना’रड़ी सूं डरनै पाबू पाछो फिरगियो, कठै पाबू रो भालो गियो अ’र कठै गिया चांदा डामा रा तीर कामठा। ई वगत तो पाछे फिरियां राठोड़ां री मरदानगी पै काळो दागो लागै, म्हारी मां कंवळादे रो दूध लाजै अमरकोट में आंपणी कांई आछी लागैला? वठे सोढ़ा सरदार कमरबन्धा बांध्यां आंपणी अगवाणी करवानै कांकड़ पै आय ऊभा व्हेला, साळा साम्हा आवा री त्यारी कररिया व्हेला। साळयां डागळै ऊभी कामण गायरी व्हेला। सोढी सहेल्यां सूं बैठी पीठी करायरी व्हेला, नीम पै बैठा कागला ने उड़ाय, केसरवरणी सोढी म्हनें उड़ीकरी व्हेला, म्हूं पाछो फिर जावूं तो वे सहेल्यां सोढ़ी ने चिढ़ावेला, “थू तो कै’ती म्हारो पाबूजी वन रो ना’र है, वो तो एक ना’रड़ी सूं डरप पाछो फिरग्यो। देख्यो थारा वीर पाबूजी ने जो खांडो परणनै लेजायरियो है।”
सुगनियां कहयो, “आपरो मन व्हे ज्यूं करो, सुगन तो अस्या है के काळ साम्हो आयरियो है।”
“वीरां ने नाम प्यारो व्हे। धड़ अ’र माथा तो कटता जुड़ता ही रै। कायरां रा माथा धड़ पै व्हेतां लगां ही मरयोड़ा है, वीर माथा कटायनै ही जीवता है।
धूंसा पै डंको पटकाय, बाजतां ढोलां जांन आगै चाली।
चांदा, डामा आपरा घोड़ा ने आगै कीधा, पाबूजी केसर काळमी ने हकाळी।
देखै छै भुरजाळो पाबू निजर पसार
कोई चांदै ने डामै ने बूझै पाबू मुलक कीं
किण रा तो दीखै छै ये भूरा भूरा कोट
किण रा तो दीखै छै ये धूंधा धूंधा माळिया
चांदो बोल्यो,
आग्यां छां ओ पाबू आपां धोळी घाट रे मांय
कांकड़ तो बड़ग्यां छां आंपां अमरकोट रा
धोळा धोळा दीसै सोढ़ां रा गढ कोट
धूंधा धूंधा दीसै सोढी रा माळिया
अमरकोट में सूरजमल सोढ़ा रै घरै नौबत घुड़री, सरणायां में मीठा सुर बाजरिया। लुगायां छाजां पै ऊभी जांन देखवानै उड़ीकरी, सोढा पोसाकां कीधां, जांन रे साम्हा जावानै अमल पान री मनवारां करता त्यार व्हेयरिया, सोढ़ीजी री मां बांस री कामड़यां बांधती सासू आरती जोड़वा में आपरी सारी कारीगरी लगायरी। सोढ़ीजी ने वांरी साथण्यां सिणगाररी, ललाट पै केसर री खोळ काढयां, हाथ में कांकण डोरड़ा बांध्योड़ी ऊजळ दन्ती सोढी साथण्यां में यूं लागरी जांणै तारामंडळ में चांद।
सोढी फूलमदे रे हिया में उथळ पुथळ व्हेयरी जयूं ज्यूं जांन आवा री वेळां व्हे ज्यूं ज्यूं आणंद नै भय रा वेग सूं छाती धड़धड़ कररी। साथण्या रे लारै डागळा पै जांन देखवा ने चढै अर सरमाय पाछी नीची उतर जावै।
ऊंची चढूं नीची उतरुं ए
सइयां जोवूं ए भालेळा री वाट
सहेल्यां ए आंबो मोड़ियो
जांन रा नगारा सुण्या, सूरज री किरणां में भाला भळक्या, घोड़ां री टापां अर हींस सुणी, लुगायां देखण ने आगती एक दूजी रे माथै पड़ती, गोखड़ां में, छाजां पै जाय चढ़ी।
आगै आगै पाबूजी रा भाई भतीजा नै परवार, छोगा कलंगी लगायां, अलल बछेरा नचावता, बांका मूंडा रा सुरंग, कुमैत अबलक घोड़ा ने एकी बेकी कराता आया।
“जांन तो रुपाळी है। घोड़ा, बीचै केसर काळमी पै पाबूजी सवार, केसर रमझम रमझम करती चालरी, ढोल री ताळ माथै केसर रा नेवर झणक झणक वाजरिया। कनौती उठायां, छाती फुलायां, मरोड़ मरोड़ बांकी करती गाबड़ पै केसवाळी री गूंथ्योड़ी लट्यां हालती जायरी, देखवा वाळा केसर री चाल न देखता रैग्या। सेवरो बांध्योड़ा पाबूजी जांणै दूजो सूरज उग्यो व्है। चौड़ी छाती ने ऊंची कीधां, एक हाथ सूं वाग पकड़यां दूजां सूं मुजरों झेलता पाबूजी केसर री रास धीरै धीरै हिलावता चालरिया जांणै फौजां रो मांझी घूमतो जायरियो। मोटी मोटी आंख्यां, तेज सूं दमदम करतो ललाट, कुन्दन री नांई दपदप करतो रंग! लांबी लांबी भुजा सेल ने थांम्योड़ी। पसवाड़े लटकती तरवार। सोढां री नजर वींद पै जमी री जमी रैगी। अमराणा रा मिनख पाबूजी रो रुप देखता रा देखता रैग्या। सोढियां छाजां पर सूं थूथकारा न्हांकण लागी, सोढी री मां री छाती वींद रा बखाण सुण सवा हाथ चौड़ी व्हेगी, साथण्यां सोढ़ी ने छाती रे लगाय लीधी “कसी भागवान है थूं” डावड़्यां दौड़ी दौड़ी बधाई दीधी “बाईसा, बाईसा, सूरज री किरण नै वींद री किरण अेकसी है।”
फूलमदे रो हिवड़ो हिलोळा लेवा लाग्यो। सोढ़ां रो साथ आंपणां जवानां रो नै जांन रा जवानां रो मन ही मन मुकाबलो करण लाग्यो। बाथ में बाथ घाल नै सोढा अर राठौड़ मिल्या, अमलां री गैरी गैरी मनवारां खोबा भर भर एक दूजा ने देवा लाग्या। डामो बोल्यो “आपरा खोबा सूं तो म्हारो कान ही तातो नीं व्हे, यो कटोरो ही झेलाय दो।” एक घूंट में कसूंबा रो कटोरो खाली कर डामो, सोढ़ां रे हाथ में पाछो झेलायो। डोढ़ी आंख् सूं डामा ने जीं वगत तो सोढ़ा देखनै रैग्या।
बाग में जांन रा डेरा लाग्या। चंपा री हरी डाळ रे बंधी केसर उगाळी कर री, तंबू में पाबूजी साथीड़ा लारै बैठ्या बातां कररिया। रंगीला सोढा आप आप रा घोड़ा ने पलाणं बाग में राठौड़ां सूं मनरळी करवा ने आयग्या। आडी डोढी लाले पीळी जाजमां ढाळदी धी। राठौड़ां रे, सोढ़ां रे हंसी मसकरी री वाता व्हेवा लागी। बातां रा फटकारा लागरिया। “केसर रो नाम तो कानां सुण राख्यो हो, जस्यो नाम सुण्यो वसी वींने आंख्यां सूं देखी पण वींरी दौड़ देखां जद पतो लागे।” एक सोढे सरदार कहयो।
“म्हारी केसर तो कोस पचास चालनै आई है, आपरा घोड़ा तो ठांणां सूं खुलनै आया है, अबार दौड़ रो मुकाबलो कस्यो?” पाबूजी जबाब दीधो। पण सोढा तो जिद पकड़ लीधी, “थांरा म्हारा घोड़ां री दोड़ तो व्हेला हीज, सोढ़ां रा नै राठौड़ां रा जवानां रो जोहर पतवाणणों है।”
तै व्ही जो हारे वींरो घोड़ो चारणां ने बगसीस। सोढ़ा आपरा तेज घोड़ा पै जीण मांडयो, पाबूजी केसर री पूठ पै थाप दें, “बाप बाप” कैवता चढ़या। दोई साळा बैनोई होड़ मार घोड़ा फैंक्या।
उमा तो देखै छै सगळा अमराणै रा लोग।
कोई मे’लां पै निरखै छै सोढ़ां रे घर री कामणी॥
पाबूजी केसर ने ललकारी। केसर तो उड़ी जांणै आसमान में उड़री व्है। दौड़ती घोड़ी यूं दीखै जांणै जमीन रे मांयनें मिलगी व्हैं।
घर घर में घुड़ दौड़ री बात व्हेगी, रंगीला सोढ़ा हारग्या, पाबूजी राठौड़ जीत्या।
सोढ़ा ने मन में घणी रीस आई,
“तोरण री बेळां पाबूजी ने अर केसर ने खबर पटकांला।” घणी ऊंची जगां पै लेजाय तोरण बांध्यो।
“अबे पाबूजी अर केसर कांई करैला?”
बनड़ा बण्यां पाबूजी तोरण पै आया, देखे तो गढ़ रे कांगरे आसमान पै जातो तोरण बांध राख्यो। पाबूजी रे मन में सोच आयो अबै केसर कांई करैला। मन ही मन केसर ने कैवै,
मत नां दीजै ए केसर थारो म्हारो पोत।
मत नां तो लजाये ए राठोड़ां री जातड़ी॥
पाबूजी केसर री पीठ पै थापी दीधी, केसर तोरण साम्ही झांक हींसी, जाणे केयरी व्हे, ‘यो कतरोक ऊंचो हे कैवो तो चांद सूरज रा कांगरा ने जाय पूगूं।’
पाबूजी तंग ने कस लीधो, पागड़ी रे अलिबंध लगायो, रान जमाय काठा पूठ पै बैठया।
ढोली रा छोरा थूं मधरो ढोल बजाय।
ढोलां के ढमाकै रे म्हारी केसर घोड़ी नाचसी॥
मधरो मधरो ढोल बाजवा लाग्यो, रमक झमक केसर नाचवा लागी। नाचती नाचती घोड़ी रे पाबूजी थापी दीधी, थापी रे थपाकै केसर उछळी।
उछळती गिराई छै सोढां रे गढ री भींत।
खुरिया तो रोप्या छै असमानी गढ़ रै कांगरै॥
तोरण कनैं जाय केसर आगला पग रोप्या, पाबूजी तोरण मारनै नीचै उतरया तो घोड़ी गढ़ रा कांगरा खुरा रै लारै लेती आई। चांदे अर डामे मूंछां पै हाथ मेल्यो, राठौड़ां री छाती फूलगी रिसाळू सोढ़ा नीचा माथा घाललीघा।
पाबूजी री मलफ देख सोढ़ी आंख्यां में आंजस भरयां साथण्यां साम्ही झांकी तो साथण्यां बळगी, सोढी फूलगी। वीर पति रे लारै एक घड़ी रैवा में जतरो सुख है वो कायर रे लारै आखी उमर रैवा में ही नीं।
चंवरी मंडी, पाबूजी मांढ़ा में सोढी सूं हथळेवो जोड़यां आया। वेदी रचगी, जोसी वेदी रो पाट पूररियो, सूरजमल जोड़ा सूं गठजोड़ो बांध्यो, लुगायां मंगळगीत उगेरया, सोढ़ां रो सारो परवार भेळो व्हीयो बैठ्यो। बींद बींदणी पाटा पै हथळेवो जोड़या बैठया। लाल पोसाक पैरयां सोढ़ी रे हाथी दांत रो नवो नवी चीरयोड़ो चूड़ों, कंकुवरणी कळायां में ओपरियो, फेरा फिरवा ने उठया, आगै आगै हाथ जुड़योड़ी सोढी धीमा धीमा पगल्या भरती, लारै लारै पाबूजी सोढी रो हाथ पकड़या पै’लो फेरो फिरया।
लुगायां गायो,
पै’लै फेरै जुडग्या छे बनड़ा बनड़ी रा जीव।
राठोड़ां अर सोढ़ां रा व्हाला सगपण जुड़ग्या॥
एक फेरो व्हीयो, दूजो फेरो फिरवा लाग्या, लुगायां गायो,
दूजै फेरै दूध नीर ज्यूं मिल्या दोयनड़ा रा जीव।
सोढ़ां अर राठौड़ा रा गाढ़ा सगपण जुड़ग्या॥
सोढ़ी री मां रा नैणां में आणंद रा नै मोह रा आंसू छळछळायग्या। “बेटी पराई व्हेगी, परी जावैला” ई बिचार सूं मां रो काळजो हालगियो। तीजो फेरो फिररिया, केसर टापा पटकै नै माथो धूणनै हींसी, पाबूजी रा कान वठी ने लाग्या, डामो ऊठनै गियो। घोड़ी रस्सी तुड़ाय दीधी, टापां पटकरी, आंख्यां में आंसू भर राख्या, माथो झंझोड़री। ये कांई अपसुगण? घोड़ी ने थापी दे जतरै तो देखे, देवळ चारणी, केस खिंड़ायोड़ा रोवती जायरी नै आय हाको कीधो “म्हारी गायां लेग्या।” डामो पूछै जतरै तो देवळ, पाबूजी फेरा खाता जठै जाय पूगी, केस तांणती रोवा लागी, “पाबूजी, थां तो अठै सोढ़ी रा हथळेवा में रीझ्यां बैठया हो वठीनै म्हारी गायां खींची ताण नै लेग्या।”
सुणतांई पाबूजी बागो झड़काय उठया, हथळेवो बंध्यो लगो जीने खोलतां नजर आया। खळभळाटो मचग्यो। एक पल पै’लां अगनी ने साक्षी दे पाबूजी जीं हाथ ने आपरै हाथ में झेल्यो हो वींने छोड़ ऊभा व्हेग्या। सोढी मूरती ज्यूं बैठी रैगी। सोढा आंख्यां फाड़ देखता रैग्या। पाबूजी केसर साम्हा चाल्या, सोढी ने चेतो आयो वा लाज सरम भूलगी, भूलगी वींरा पीयर रो सारो परवार बैठयो है, जाता थका पाबूजी रा वागा री चाळ पकड़ लीधी, आंख्यां में आंसू भरग्या। कुमळायोड़ा फूल री नांई होठ सूखग्या।
तीजोड़ा फेरा में जी पाबू किस विध चाल्या छोड़।
आधी तो कुंवारी जी म्हांने आधी ब्यायोड़ी छोड़ दी।
पाबूजी पल्लो छुडाणों चावै पण छुडावणी नीं आयो। एक पल सोढी साम्हा झांक्या दूजे पल कूकावती देवळ ने देखी।
गुनो तो भरियां छां ए सोढी जी म्हे खास।
वचनां रा बांध्योड़ा तीजै फेरै उठ चाल्या॥
आंसूड़ा रळकावती सोढी रा आंसू आपरा रुमाल सूं पूंछता पाबूजी कह्यो, “सोढी, म्हंने सीख दो, देवळ ने म्हारा वचन दियोड़ा है। म्हने जावा दो, नीं जावूंला तो म्हारा नाम पै काळग लागैला।”
सोढी रोवती रोवती बोली,
भेजूं जी पाबूजी बाबोसा री फोज,
पकड़ तो मंगवादूं तड़कै जायळ जींद को।
जीमो जी पाबूजी बैठया जिनवा रा भात,
चोपड़ पासा खेलो जी म्हारे सूं रंग मे’ल में॥
देवळ करळाई, “पाबूजी म्हें पै’लां ही कह्यो हो, थां सोढी रा रंग में’लां में रम जावोला। चारणी री गायां कुण याद करै। नीं चालता व्हो तो नट जावो। म्हंनै म्हारी केसर सूंपो। पाबूजी, बचन देणो सोरो है, निभावणो धणो दोरो।” देवळ जबान रा तीर पै तीर छोड़या।
पाबूजी ने रीस आयगी, नेहभीणां नैणां में रोस भळकवा लाग्यो, हथळेवा री मेंदी सूं भरयोड़ा हाथ तरवार री मूठ पै जाय पड़या। गठजोड़ा री गांठ खोलनै पाबूजी आगै पग दीधा। सोढी गैलो रोकनै आड़ी ऊभी व्हेगी। आंख्यां सूं आंसूड़ा कायर मोरड़ी नांई ढळकायरी। हथळेवा री आधी रची में ‘दी रा भरिया हाथां, बंध्या मोड़, संजोग सूं पै’ला विजोगणी व्ही सोढी, आधा फेरां में सूं ऊठया भुरजाळा पाबू रो गैलो रोकनै ऊभी रैगी। सारो परवार सण्णाटा में आयो चुप ऊभो। बाजता ढोल रुकग्या। मनार जोसी रा मूंडा में अधूरा रैग्या। वेदी री पावन अगनी बुझगी। सूरजमल सोढ़ा रो मूंडो स्याह पड़ग्यो। सोढ़ी री कांचळी आंसूड़ा सूं आली व्हेगी। साळियां डसूका भरवा लागी।
पाबूजी री नजर सोढी साम्ही, पग देवळ आड़ी नै।
बारे केसर टापां मारेनै हींस री देवळ ऊभी माथा रा केस खैंचरी। पाबूजी उठी नै, करुणां करती सोढी साम्हा झांकै तो काळजो कटनै रैजावै, वठी नै चारणा देवी रो रौद्ररुप देखने रोस सूं वांरो रगत उकळबा लागै।
“सोढी, ये आंसूड़ा पूंछलो, रोयनै सीख मत दो, एक रजपूताणी, रजपूत ने सीख दे ज्यूं म्हंने हंसनै विदा करो। थांरा आंसूड़ा में म्हूं अटक जावूंला तो जुग में म्हारी मूंछां नीचा व्हेजावैला, लोग कैवैला पाबू सासरिया में मौजां करै, दियोड़ा वचन भूलग्यो, थां कायर री अस्त्री वाजोला। थां भुरजाळा पाबू रो हाथ पकड़ियो है, म्हंने म्हारा प्रण पूरा करवा दो, केसर पै काठी मांडवा दो, देवळ री गायां पूठी धेर लावा दो। सोढी, राजी व्हे म्हांने सीख दो।”
सोढी, परणेतू छापल सूं आंसूं पूंछ लीधा, होठां पै मांडाणी हंसी लीयाई, काळजा पै भाटो मेलनै वा रजपूताणी ज्यूं बोली “पधारो।” होठां पै हंसी ही, पण नैणां में दरद रो दरियाव उलळरियो। जीभ “जावो” केयरी ही, पण हिवड़ो फाटरियो,
चढ़ोजी पाबू रणबंका भल गायां री वार।
सैनाणी तो दे जावो जी म्हांने थांरे हाथ री।
सैनाणी? कांई चीज असी है जो देता जावै? हथळेवा री दाझी मुगधा ने, फेरां बीचै उठनै झूंझवा ने जातो वीर पति कांई सैनाणी में देवे? रंग री रात ने रण री रात में बदल देण्यो, परणेतू में ‘दी रा रंग ने रगत रा रंग में घोळण्यो रंग दूल्हो आपरी तीन फेरा खायोड़ी लाडी ने सैनाणी में कांई देवै? पाबूजी बोल्या,
जीवांला तो फेर मिलांगा थां सूं सोढी आया।
मर जावांला तो लादैला ओठी म्हारा मेंमद मोळिया॥
“जीवतो रह्यो तो थां सूं आय मिलूंला। मर गियो तो सवार म्हारी पाग लाय थांने सूंपदेला। या सैनाणी है।”
पाबूजी वागो झड़काता चाल्या। सोढी तड़ाछ खाय नीचै पड़गी। पाबूजी री सासू साळियां आय विलूंमगी।
पाबूजी, म्हारा बाई में ओगुण कांई देख्यो जो थां यूं छोड़ चाल्या?
पाबूजी हाथ जोड़ता बोल्या,
दूधां सरीसी ऊजळी थांरी बाई जुग जुग रे मांय
कोई ओगणियो नहीं थांरी बाइ में गुण मोकळा।
ओगण तो कहीजै जी सासूजी म्हारे मांय
देवळ तो चारण ने मस्तक बेच्या आंपणां॥
“चांदा, डामा, घोड़ां चढ़ो, देवळ देवी री गायां री वा’र चालो।”
पाबूजी रो भालो उठयो, सोढां री अस्त्रियां पाबू रा ई रुप ने एकटक देखती रैगी “अस्यो वींद सोढां री पोळ नी तो कदे ही आयो नीं कदे ही आवै, लावो कागज लावो यांरो चितर उतारलां, अस्यो रुप फेरुं देखण ने नीं मिलेला।”
पाबूजी सोढ़ां सूं मुजरा जुहार करिया,
“जीवांगा तो आवांगा म्हे ओजूं सुरंगै सासरै”
केसर री पूठ पै थापी दे सवार व्हीया। सोढी रा गंठजोड़ा री गांठ खोल, बचनां री गांठ में बंध, गायां छुड़ावा चाल्या। साळा साळियां रा प्यालां री मनवारां छोड़ तरवारां री मनवारां लेवा चाल्या, रंगभीनो पाबू रोसभीनो व्हैग्यो। जीं केसरिया बागा सूं राजकंवरी ने परणी वींज बागा सूं सत्रु री कुंवारी सेना ने परणवा चाल्या। कंवरी ने चंवरी में छोड़ भंवरी री पूठ पै चढ़या।
प्रथम नेह भीनो महा क्रोध भीनो पछै
लाभ चमरी समर झोक लागै,
रायकंवरी वरी जैण वागै रसिक,
वरी धड़ कंवारी तैण वागै।
चोईस बरसां रा पाबू सोढी री सुखसेज माथै नीं, रण सेज में पौढ गिया। गोगाजी ने खबर लागी, खीचियां रा हाथ सूं पाबूजी वांरा बड़ा भाई बूढ़ाजी खेत रैग्या। चांदो अर डामो ही धणी रे लारै कट मरया।
गोगाजी भाग्या, आय न देखैं लोहिया सूं राता व्हीया रणखेत में लोधां रो ढिगलो पड़्यो है। गायां री रक्षा सारु कटकटनै पड़या झूझारां रे आगै वांरो माथौ झुकग्यो “धन है या खारी खावड़ री धारती जठै अस्या वचनां साटै माथा देण्यां रतन नीपजै। धन कंवळादे माता ने, पाबू जस्यो पूत जायो जो हथळेवो छोड़नै रण में झूंझवा ने दौड़यो।” गोगाजी, पाबूजी ने हेरै, अंग अंग कटयोड़ो पाबू कठै? लोथां पै लोथां रो ढिगलो पड़यो, जांरे गळडब्बै तरवारां लटक री, गैंडा री ढालां रुळती फिर री लोहियां सूं भरयोड़ा भाला घूळा में पड़या। घोड़ा असवारां कने पड़या, चारुं पग पसारयोड़ा, मूंडा में धूळ भर री। खाबड़ री रेत लोहियां सूं लाल व्हेय री। गिरजां रो डार रो डार बैठयो, वां मूंछाळां री आंख्यां काढकाढ खाय रियो। एवड़ छेवड़ डामो चांदो पड़यो बीच में खाबड़ से सूरमो पाबू पौढ़ रियो।
परणेत री किलंगी पड़ी चमक री। गोगैजी किलंगी देखतां ही पाबूजी ने ओळख्या। सात परकम्मा दे वांरी माथा री पागड़ी संभाळी, गंठजोड़ो नै कलंगी उठाई। बियाव रा कांकणडोरडा खोलवा ने हाथ आगो कीधो तो गोगाजी री आंख्या सूं आंसुवां रा चोसर छूटग्या। चुगचुगनै पाबूजी रा सैनाण भेळा कर गांठड़ी बांधी। गोगाजी भाटा री सी छाती कीधां बूड़ाजी री पचरंग पाग उतारी। आंगळी में सूं बींटी काढी। राईका ने बुलाय कह्यो “कोळू भाग जा। अठा रा समाचार दे, ये सैनाण यांरी राणियां ने जाय सूंप।”
राईके भूरो टोडियो पलाण्यो। कसकसनै टोरड़ा रै कामड़यां री मारै॥ टोडियो भाग्यो जावै, मूढां सूं झाग पड़ रिया। टोरड़ियो दौड़े जो राती भूरी रेत रो भतूळियो उड़तो जावै, रेत रा रंग जिसो ऊट रो रंग, रंग में रंग मिलग्यो। राईके ऊंट ने अस्यो दबायो के वींने बोझा उड़ता लागै, पग नीचली धरती भागती दीखैं।
बूड़ाजी री गैलीराणी गोखड़ा में बैठी देखै तो ओठी ऊंट भगायां आय रियो। गैलीराणी जांणगी व्हे न व्हे आंपणै ही घरै कोई करड़ै काम आयो है।
अतराक में तो आय बूड़ाजी री पोळ आगै कुरिया नें जैंकायो। गैलीराणी डावड़ी ने कह्यो, “हीड़ागर! ओठी ने पूछ कठा सूं आयो, कांई कांम आयो।”
हीड़ागर झट नीचे ऊतरी।
“ओठी! मन री बात कै! कठा सूं आयो? काम कांई है बता।
राईको बोल्यो “मन री वातां दासियां सूं थोड़ी कहीजै, राणी ने नीचै भेजो।”
आडो पड़दो तंणाय गैलीराणी नीचै ऊतरी।
“ओठी! बोलो, कांई समाचार लाया? कठा सूं आया?”
“राणीजी! गोगाजी रो भेज्योड़ो आयो हूं। राठोड़ां रा नै खीचियां रा झगड़ा रा समाचार लायो हूँ।”
“ओठी! कै कै झट कै, दोई दळां रा समाचार सुणां। कुण हारया, कुण जीत्या?
“खांडा री जीत तो खीचियां री व्ही। जस री जीत थांरा देवर पाबूजी री व्हीं। झूंझारा री देवळी बन में व्हेगी।”
या कैतां ही झट वींटा री डोर खोल, बूड़ाजी री पचरंग पाग गैलीराणी रै मूंड़ागै मेली। वींटा में हाथ घालतां ई पाबूजी री कलंगी, कांकण डोरड़ा गैलीराणी ने हाथ में झेलाया।
सैनाण ओळखतां ही गैलीराणी तो पांखड़ा कटी मोरडी री नांई कुरळाई।
“ओठीड़ा! थूं म्हारो धरम रो भाई है। अमरकोट जा। सोढी आपरे बाप री पोळ में बैठी बाट न्हाळ री व्हेला। ओठी, एक पलक देर मत कर। ये सैनाण जाय सोढ़ी ने दे।”
राणाजी! ई ऊंट रे मूंडा में झाग आय रिया है। अमरकोट रो मारग ई सूं नीं कटै। यो गैला में मर जावेला। थां थांरा ओठी ने अठा सूं भेजो।”
गैलीराणी बोली, “म्हारे कस्या ओठी है अबै? म्हारा सवार ने ओठी तो सायब रे लारै, पाबूजी रे लारै गिया। म्हारो तो ओठी एक जीवतो नीं रियो। भाया! थूं धरम रो भाई है। बेन रा अटकिया कारज ने कदे ही भाई नटै कैं?”
राईको झट अमरकोट जावा ने त्यार व्हेग्यो। गैलीराणी सोढ़ी रे कागद लिख्यो। आगती आगती रोवती गी, चार ओळां मांडी,
“थांरा अर म्हारा सूरज चांद छिपग्या। दिनड़ो छिपग्यो अंधारी रात आयगी। करमां में बेमाता आंक लिख्या जो टकै नीं। म्हूं सती व्हेयरी हूं। थां ही सती व्हेता व्हो तो झट आयजावो। नीं तो बाप रे घरै बैठया माळा फेरजो।”
सूरज ऊगतां ऊंगता राईको अमरकोट पूग्यो।
फूलमदे सोढ़ी ऊंट दौड़तो लगो आवतो देख्यो। सोढ़ी रो काळजो धूजग्यो।
ओठी तो आवतां ही सोढ़ां री पोळ उतरयो। जुहार मुजरा कीधा।
“आओ, पगरखी खोलो। जाजम पै बैठो। कठा सूं आय रिया हो?”
“कौळू सूं आय रियो हूं, सोढ़ी जी रे करें आयो हूं।”
“दळां रा समाचार?”
“जस तो पाबूजी जीत्या, खांडे खीची जीत्या।”
सोढ़ां रो सगळो साथ फीको पड़ग्यो। माथा पै सोढां चाळ ओढ़ लीधी। दासी नै बुलाय नै कह्यो, “ओठी ने फूलमदे कने लेजा॥”
ओठी जायनै देखै, साथण्यां रे बीचै सोढ़ी यूं बैठी जांणै कूंजा री डार रे बीचै कुंज बच्ची बैठी व्हे। भोळो भोळो मूंडों, हाथां रे कांकण डोरड़ा बंध्योड़ा फेरां में पैरयोड़ी पोसाक पैर राखी, हाथां पगां रे बियाव री में’ दी मंडयोड़ी।
ओठी आगै पग देवै नै पाछा पड़ै। काळजो बळ रियो, सोढ़ी ने जायनै कांई कैवूलां।
ओठी तो बजर री छाती कर गैलीराणी रो कागद नै पाबूजी रा सैनाण सोढी रे आगै कीधा। पाबूजी री पाग देखी, सीस री कळंगी ओळखी। कांकण डोरड़ा ने सोढ़ी उठाय छाती रे लगावा लागी नै तिवाळो खाय नीचै जाय पड़ी।
एक घड़ी सूं सोढ़ी चेत करयो तो थरथर डील कांप रियो। डसूका भर डाड मारी। आंख्यां सावण भादवो व्हेगी। काठी छाती कर जेठाणी रो कागद बांचतां ही बोली रथ जुड़ावो। गैलीराणी बाट देख री है। झट करो। पाबूजी कनें झट जाय पूंगूं।
मां रा गळा में बाथ घाल सोढी रोवा लागी। मां री सारी कांचळी आंसुवां सूं भींजगी। मां, बेटी रे माथा पै हाथ फेरै नै दोई कुरळावै। बेटी सासरिये जाय री है। कसी आंख्यां सूं बेटी रो वो रुप देखै? कांई कैयनै आसीस देवै? सासरा री सीख बेटी ने कांई देवै?
मां रे मूंडा में तो जीभ सूखगी। पखाण री मूरती व्हे ज्यूं ऊभी। सोढ़ी रा मूंडा रो दूध ही नीं सूख्यो। बेमाता ये आंक मांडवा लागी जद वींरी दवात क्यूं नीं फूटी।
सोढ़ी रोय री, “मां सांवण रे मी’ने थां कसी बेटी ने बुलावोला?”
कुण थां सूं अब गळां में गळों घाल मिलेला? मां कींने अबै था हंस हंस छाती रे लगावोला? कसी बेटी ने सासरा रा समाचार पूछोला? कीने लाड कर घी घाल चूरमो जिमावोला औरां रा घर तीजणियां सूं रुपाळा लागैला, मां थांरा आंगण में कुण लैरियो ओढ फिरैला?
सोढी ने यूं रोती देखी तो सूरजमल सोढा री करड़ी छाती मेंण री नांई पिघळगी। बेटी ने छाती रे लगाय डसूका भरवा लाग्या।
सोढी रोय रोय कैवा लागी, “बाबाजी, म्हूं तो चाली यो थांरो डायजो म्हारे करम में लिख्यो। ये ढोलिया, निवार अठै ही धरया रैगिया। म्हनैं था घणा लाड़ लड़ाया, रुस जाती तो हाथ सूं गिरास दे दे जिमाता, गोद में लैनै खेलावता। थांरी गोद री चिड़ी तो उड़ री है। थां हाथ सूं म्हनैं सत रो नारेळ दो। म्हूं जानूं।”
बाप आखरी बगत माथा पै हाथ मेल्यो, नारेळ झेलायो।
सोढी बाथ घाल भाई सूं मिली।
भोजाई सूं मिली, “आखरी मिलणा है अब अबै ई जनम में तो मिलांला नीं।”
एक-एक साथणा सूं भुजा परसार मिली, “अबकै बिछड़यां फेर नी मिलांला, थां म्हारे आंगणै रमवा ने मत आवजो, नीं तो म्हारी मां याद करकर ऊभी रोवैला।” सगळा सूं मिल राम राम कर सोंढी रथ पै चढ़ी।
डायजा में देवा ने रथ बणायो जीरी लाल झूल बैलियां ऊपर सूं उतार धोळी झूल घाली। बळदां री लाल रंग री सींगोटी पर उतारी, गळा रा घूघरा खोल लीधा।
पूरी बीनणी नीं बणी जठा पै’ली सती व्हेवा ने सोढीजी सासरै चाल्या! कोळू में आया। दोई देराणी जेठाणी गळा में गळो घाल रोई जांणे काचो माट फूटियो। गैलीराणी रोवा लागी, “आज घरै बीनणी आई। करम फूटिया नी व्हेता तो सोढी रा कोड करती, चांवळ भात रांध दोई देराणी जेठाणी भेळै जींमती। बधायनै घर में लेवती। आज म्हारा घर में जगाजोत लागगी व्हेती।”
सोढी बोली, “म्हंने पाबूजी रा मे’ल तो दिखावो।”
गैलीराणी, सोढी ने ले पाबूजी रा सूनां माळिया में आया।
“सोढीजी, अठै थांरा स्याम रैवता या वांरी बैठवा री जगां, अठे चांदो अर डामो बैठता। यो कमधजिया रो भालो पड़यो। वांरा हाथ में भालो रियो जतरै कोई चूंकारो नीं कीधो। यो गोखड़ो अठै पाबूजी बैठता।”
सोढी बैठक री रज लेनै माथा रे लगाई। गोखड़ा ने सलाम कीधी। भाला ने उठाय छाती रे लगायो।
“भाला, थारो खोटो भाग थनैं बावणिया अठै खूणा में छोड़ परा गिया। ई गोखड़ा में अबै कबूतर घूंवाळा घालेला।”
“भाला, थारो खोटो भाग थनैं बावणिया अठै खूणा में छोड़ परा गिया। ई गोखड़ा में अबै कबूतर घूंवाळा घालेला।”
सोढी डसूका भर पाबूजी री एक एक चीज देखवा लागी, यां में’लां री शोभा म्हारा मन ने बाळ दांगी, अबै तन ने अगनी बाळेला। पोळया, रंग रो डावो झंट ला। पोळ पै छापो लगावां। पोळियो संदूर में रंग घोळनै लायो। सोढी संदूर में हाथ भर पोळ रे माथै हाथ रा छापा लगाया। सती व्हेवा ने त्यार व्हेगिया। देराणी जेठाणी, नखचख सूं सिणगार कर लीला घोड़ा पै सवार व्ही।
आगै आगै ढोल बाजता जाय रिया। पाछै बसती रा लोगां रा “हर हर” जैकारा सूं गगन गूंज गियो। घोड़ा रोक सतियां नीचै ऊतरी। रेसम डोर लगाय कुआं सूं पाणी खैच्यों। कपड़ा पैरियां सूधां ही खळखळ पाणी कूढनै सतियां सनान कीधो। सतियां माथा पै गंगाजळ री झारी रा मूंडा खोल दीधा। जो धन माल हो सगळो बामणा ने पुन्न कर दीधो। चारण पाबूजी री वीरता रो बखाण कीधो, जांने धोबा भर भर सोना रो गहणो देय दीधो।
चन्नण नै नारेळां री चिण्योड़ी चिता में दोई सतियां बैठगी।