अेक नैनोसीक गामड़ो। नीठ सौ-सवा सौ घरां री बस्ती। रेल्वाई ठेसण आठ सूं बारै कोस पड़ै। बस कठै ई आघी-नैड़ी ई नीं चालै। गाम दुसाखियो होवण सूं गाम वाळां नैं फगत लूण मोल लेवणो पड़ै। बाकी सगळी चीजां तो उठै इज पाक जावै। गाम में घणो दूध, घणो घी, कोठियां-कणारां में ऊन्हो-ठाडो धान, राजा राज नै प्रजा चैन। नीं कोई दुख अर नीं कोई दुआळ। लोगड़ा प्रभु छानां दिन काढ़ै।
पण उण गाम में अेक नवी बात बणी। उठै राज री स्कूल खूली। जांणै भरिया तळाव में किणैई भाठो नांख दियो अर पाणी हिलोळै चढ़ग्यो। टीपरिया जितरो गाम बात फैलतां कांई जेज लागै।
“...रामा बापू रै नोहरा में स्कूल खूलैला…इसकोल नीं स्कूल! …राज रो मास्तर आयो है, सरकारी अेलकार…पटिया पाड़ियोड़ा…धारीदार ढीलो-ढीलो जांघियो नै कुड़तो, आंख्यां माथै चस्मो…! डोळा जाणै मारकणी भैंस…ध्यान नीं राख्यो तो अबार सींगड़ो घुसेड़ दे ला, अळगा रहीजो…राज रो बेली है भाई…।”
राजा जोगी अगन जळ, यां री उलटी रीत
डरता रहीजै फरसराम, थोड़ी पाळै प्रीत…
चिलम भरै जितरी जेज में गाम रा सगळा छोकरा भेळा व्हैग्या। पाणी जाती पणिहारियां रा पग ठमग्या अर चिलमां पीवता अमलियां री चिलमां हाथ में इज रैयगी। देखतां-देखतां रामा बापू रो नोहरो थबोथब भरीजग्यो। काणा घूंघटा में नूरिया पिंजारा री बीबी चिसूड़ी बोली –
“अे मा..! मास्तर रै तो डाढ़ी मूंछ ई कोनी, सफा टाबर इज दीसै।” खनैं ऊभी बरजू भूआ नैं आ बात जची कोनी। बा फाटोड़ा बांस री गळाई भरड़ा सूर में बोली – “कोई मरतंग व्हियो व्हैला बापड़ा रै, जिण सूं भद्दर व्हियोड़ो है। बाकी नैनो कैण रो, घणोई मातो-मणगो है। गामसाऊ पाडो व्है जिसो।”
मास्तर मलूकदास तीसरी पास अर चौथी फेल हो। बाप नैनपण में इज मरग्यो अर मा अणूतो लाड राख्यो जिण सूं पूत परवारग्या। घणा बरस तांई तो कीरतणियां री मंडळी में भरती होयनै – “झट जावो चंदणहार ल्यावो,” “घूंघट नहीं खोलूंगी” गावतो अर घूघरा बजावतो गाम-गाम फिरतो रह्यो। पण भलो व्हैजो भारत सरकार रो सो मुलक में पंचसाला योजनावां सरू व्हैगी जिणसूं मलूकदास नैं ई बी० डी० ओ० ऑफिस में चपरासी री नौकरी मिळगी। मलूकदास, चपरासी मलूकदास बणग्यो।
भाग सूं उणरी ड्यूटी बी० डी० ओ० सा’ब रै घरै इज लागी। वो जितरो नाचण-गावण में हुंसियार हो, उतरोई हाज़री साजण में पण पाटक हो। सा’ब रै पग दबावण सूं लगायनै बीबीजी रै पेट मसळणो, अर टाबरां रै ढूंगा धोवण तक रो सगळो चार्ज उण आपरै हाथ में ले लियो। अर साल-भर में तो बी० डी० ओ० सा’ब नैं गाळ नैं पाणी-पाणी कर दिया। अेस० डी० आई० सा’ब री सलाह सूं तिकड़मबाजी सूं बंबई हिन्दी विद्यापीठ रो सर्टीफिकेट कबाड़ नै देखतां-देखतां चपरासी सूं मास्टर बणग्यो।
इण भांत पैली तकदीर खुल्यो मलूकदास रो अर अबै इण गाम रो।
बाड़ा में भीड़ घणी होवती देख नै रामो बापू खैंखारो करतां छोकरां री पलटण कानी देख नै बोल्या – “घणा दिन व्हिया है डीकरां उद्धम फिरतां नैं अबै कांबड़िया उडैला जरै ठा पड़ैला। भणैतर घणी दोरी ह्वै। कह्यो है – “धी दोईलौ सासरो अर पूत दोईली पोसाळ।”
इतरो सुणतां इज दो अेक बीकण छोरा तो हिरण्यां रै ज्यूं कान ऊंचा करनै पड़ भागा। अर लारली नागी-तड़ंग पलटण पण लटपट-लटपट करती वाडै बूटी थारा कान। जाणै चिड़ियां में ढळ पड़्यो।
चिमूड़ी ही…ही…ही…करनै हंसण लागी – “ही…ही…ही…ही!” मास्तर चस्मो उतार नै खरी मींट सूं उण कानी देखण लाग्यो। जितरै तो बरजू भुआ चिमूड़ी कानी देखनै बोली – “कोई छोटो गिणै न कोई मोटो अर आखो दिन घोड़ी री गळाई ओ कांई ‘ही हो’ करणो। लुगाई री जात है, थोड़ी-घणी तो लाज-सरम राखणी चाहिजै।
इतरो सुणतां इज चिमूड़ी छाती ताणी घूंघटो तांण लियो अर दूजी लुगायां पण लचकाणी पड़नै तळाब कानी रवानै व्हैगी। मलूकदास ई पाछो चस्मो पै’र लियो।
दूजोड़ै दिन इज स्कूल रो सिरीगणेस ह्वियो। सुरसत माता रो मिंदर है, खाली हाथ कियां जाईजै। टाबर टोळी सवा रुपियो रोकड़ी अर नारेळ लेय-लेय नै हाजर ह्विया। देखतां-देखतां नारेळां रो ढिगलो लागग्यो अर पीसां सूं टेबल रो खानो भरीजग्यो।
गाम वाळां मिळनै विचार कियो – “मास्तर परदेसी पंछी, आपणै गाम में आयो है, कुण तो इणरै पीसैला अर कुण इणरै पोवैला। अेकलो जीव है – सो पांचां री लकड़ी अर अेकण रो बोझ। टाबर जितरा पढ़ण नैं आवै, बां रै हिसाब सूं बारी बांध दी जावै। मास्तर घर-घर जाय नै जीम लेसी अर सांझ-सवार बारी-सर दूध री लोटी पण मंगाय लेसी।”
इण भांत मलूकदास रै तो मास्तरी फाचरै आई पण आई। कठै तो वै बी० डी० ओ० रा अेंठा-चूंठा बासण मांजनै लूखा-सूखा टुकड़ा खावणा अर कठै आ सायबी भोगणी। रोज टेमसर जीमण नै नूंतो आय जावतो अर वो बान बैठ्योड़ा बींद रै ज्यूं बण-ठण नै नित नवै घर जीमण नैं पूग जावतो। टाबरां रा माईत सोचता महीणै में अेकर बारी आवै, मास्तर नै चोखी रोटी घालणी चाहिजै। खावै मूंडो अर लाजै आंख। आपणै टाबर माथै पूरी मैणत करैला, इणांरै पढ़ायोड़ा इज मुंसी अर थाणादार बणै। कुण जाणै आपणै छोकरा रा ई तकदीर खुल जावै। इण वास्तै जिकी मावां पोता रा टाबरां नैं तो बिलोवणा बारी रै दिन पण अेक टीपरिया सूं बेसी घी मांगणै पर ठोला ठरकावती, वै इज बारी वाळै दिन मलूकदास नै ताजा घी में धपटमा गळगच्च चूरमा करावती। घर में तो टाबर दूध री खुरचण वास्तै ई कूटीजता पण मास्तर रै वास्तै निवाणिया दूध री लोटी जळोजळ भरीज नै टेमसर पूग जावती। थोड़ा दिनां में इज मलूकदास रै डील माथै पसम आयगी। कपड़ां-लत्तां में ई फरक आयग्यो अर आदतां ई खासी बदळगी। धीरै-धीरै देसाई बीड़ी छोड़नै पनामा सिगरेट पीवणी सरू कर दी। वो मन में सोचतो- उमर रा पाछला दिन तो फोगट इज गमाया।
रामा बापू रा वाड़ा में जठै स्कूल खुली ही, दो मोटा-मोटा झूंपा हा। वांमें सूं अेक में स्कूल चालती अर दूजोड़ै में मास्तर रैवतो। वाड़ा में चौगान मोकळो हो, इण वास्तै अेक खूणा में गाम रा फाटक खातर डीगो-डीगो बाड़ रो अेक बाड़ोटियो बणायोड़ो हो, जिणरै आगै अेक जंगी नींबड़ो ऊभो हो। वाड़ा में मास्तर रैवण सूं रामा बापू रै फाटक री दैण मिटगी ही। वारडपंच होवतां थकांई बापू ठोट हा। इण वास्तै फाटक में आयोड़ा रुळियार ढांडां री रसीदां काटण में वानैं पूरी दिक्कत रैवती। मास्तर रै कारण वांरी आ दिक्कत मिटगी। मास्तर नैं रसीद बुक सूंप नै बापू तो छुटा व्हैग्या अर मास्तर निहाल व्हैग्यो।
मलूकदास घाट-घाट रो पाणी पियोड़ो अेक छंटमी रकम ही। उण देख्यो कै गाम में तीन-च्यारेक आसामियां इसी है कै बानै ‘फेवर’ में राखणी घणी जरूरी है। वो आ बात पण आछी तरै सूं जाणै हो कै माखियां गुड़ सूं राजी रैवै। उण नींबड़ा रै नीचै चूल्हो बणाय नै चाय रो इंतजाम कर दियो अर खनै ठाठियो भरनै जरदो पण धर दियो। माखां नैं दूजो चाहिजै ई कांई? दिन उगतां ई जाजम जम जावती। हांडी भरनै चाय ऊकळती, अमलां री मनवारां व्हैती अर चिलमां सूं धूआं रा गोट उठता। गाम री भली-भूंडी बातां व्हैती अर आप-सी टंटां री पंचायतां बैठती, डंड-मूळ घलीजता अर डंड रो गामसाऊ हिसाब मास्तर नैं सूंपीजतो।
चाय री चुस्कियां अर चिलमां री फूंकां रै बिचाळै माखा मलूकदास री तारीफां रा पुळ बांधता – “वाह रै मास्तर वाह! है पूरो खानदानी आदमी!” दूजोड़ो कैवतो – “बस्ती रा भाग है जरै इसो हीरो मिळ्यो है, नीं तो इण जमाना में इसा आदमी सोध्यां ई को लाधै नीं।” तीजोड़ो टेको राखतो – “दो अेक बरस अै अठै रैयग्या तो गाम रा सगळा छोकरा ‘फिरंट’ व्है जायला। म्हारो पोतो तो अबै सूं इज इंगरेजी बोलण लागग्यो है, म्हनै कैवै – यू डेम फूल! म्हूं कैवूं रै बचिया, फूल तो थूं है, म्हे तो पाका पान हां।” मोटोड़ो माखो ई नाक में गुणगुणावतो – “क्यूं नीं सा इंगरेजी बोलणो कांई बड़ी बात है, मास्तर बड़ा विदमान है। कितरा तो इणां नै फलमी गाणा आवै अर कितरा इणांनैं नाच आवै। मूंडा सूं बाजो बजावै जाणै सागो साग इंगरेजी बाजो बाजण लाग्यो।” म्हारै रामूड़ो ई थोड़ो-थोड़ो बजावणो सीखग्यो है। होठां आडी ऊभी हथाळी राखनै यूं बजावै माटो – “तूऊऽऽऽ तूऊऽऽऽ छड़मऽऽऽ तूऊऽऽऽ! छड़मऽऽऽ!” सगळा माखा अेक साथै इज हंसग लागता – “हा…हा…हा…? हू…हू…हू…!” अर नीबड़ा पर बैठ्योड़ा सगळा पंखेरू अेक साथै इज उड़ जावता।
वांरी बातां अर हा-हू सुणनै मास्तर झूंपा सूं बारै आय जातो अर कैवता – “काना बापू, हाल थे देख्यौ ई कांई है? थानै असली फल्मी गाणा अर इंगरेजी वाजा सुणणा व्है तो म्हारी अेक बात मानो। सगळाई गाम वाळा मिळनै अेक गामसाऊ रेडियो अर लौडस्पैकर लेय आवो। उणनैं संभाळण री माथाफोड़ रैवैला, पण खैर आ ई गाम री सेवा है, सो म्हूं संभाळ लेवूंला। नीबड़ा री ऊंची डाळी माथै लौडस्पैकर बांध दांला, पछै देखजो धमचक उडै जिणरा मजा। पूंगी माथै सांप लैरां लेवै ज्यूं पूरो गाम मस्त नीं व्है जावै तो म्हारी मूंछ मुंडाय दूं। चोखळा रा दूजा गाम देखता इज रैय जावैला। इण जमाना में रेडियो गाम रो रूपक है।
माखा घांटी हिलावता बोलता – “बात तो आप लाख रुपियां री बताई-सा, पण रामो बापू मानै जद है। उणांनैं मनावणो आपरै हाथ री बात है। बाकी तो सगळो गाम म्हांरी मुट्ठी में है, धारां जियां कराय सका। अर आगै जायनै बापड़ा रेडिया री जिनात ई काई? अेक बळद रो मोल! गाम रै वास्तै भार ई कांई है। गामसाऊ रुपिया आपरै खनैं इज है। आप जोधपुर जाय नै रेडियो लेय पधारो। अठै विराजो जितरै खूब धूंधावो अर बदळी व्हैनै पधारो जद रेडियो आपरो नै आपरै बाप रो। गाम री तरफ सूं आपनै भेंट। आप म्हांरै ऊपर इतरी मेहरबानी राखो, म्हारै टाबरां नैं जिनावरां सूं मिनख बणावो तो म्हे कोई नुगरा थोड़ा इज हां।
अर महीना भर में स्कूल में साचांणी रेडियो आयग्यो। असली फलीप्स रेडियो लौडस्पैकर समेत। पूरा गाम में खळबळी मचगी। अेक अनोखी चीज गाम में आई – “जो चाबी फेरियां मिनख रै ज्यूं बोलै।”
अबै रोज दिन उगै अर नींबड़ा पर सूं पूरा गाम में आवाज आवै – “ये रेडियो सीलोन का व्यापार विभाग है – अब सुनिये मोहम्मद रफी को – दिल तेरा दीवाना में – लाल-लाल-गाल..! लाल-लाल-गाल! …और अब सुनिये एक बेहतरीन और दिलक़श तस्वीर प्यार की रात में लता मंगेशकर को –
बिछिया मोरा छम-छम बाजै..!
बिछिया मोरा छम-छम बाजै!”
अर मांचा पर बैठ्यो सिगरेट री फूंक खांचतो मास्तर, नीचै बैठ्या चाय री चुस्कियां लेवता माखा, स्कूल रै पिछवाड़ै घर रो काम-काज करती चिमूड़ी, पणघट पर पाणी भरती पणिहारियां, खेतां कानी जावता मोट्यार अर पोठा थापती छोरियां। सगळो गाम अेक साथै इज माथा हिलाय नै गुणगुणावण लाग जावै –
“बिछिया मोरा छम-छम बाजै..!
बिछिया मोरा छम-छम बाजै!
अर उठी नैं जिनावर सूं मिनख बणण री कोसिस करता छोरा आपस में बातां करै –-
“अे वरगू, थैं बाळ यूं कांई ओसिया रै।”
‘कीकर..?’ – पाटी रै थूक लगावतो दूजो बोलै।
“अठीनैं म्हारै कानी देख..! दोन्यूं कानी गुफावां बीच में फूल अर लारै भमरिया।
किसाक फूटरा दीसै?” “माटसा’ब रै ज्यू है के नी..?”
“हूं..! बाळां में गुफावां है तो कांई व्हियो –
“बुसट्ट कठै..? फाटोड़ो तो अंगरखियो अर बाळ सिणगार नै पधार्या है।” “म्हारै बुसट्ट नैं देख, माथै फलमी आदमियां रा फोटू है। माट सा’ब रै टी-सट्ट माथै ई इसा रा इसा फोटू है।”
“जावै नीं बाघड़ आघो। मोड़ी घणी आई बुसट्ट वाळी। अेक झींगरो कराय लियो सो मिजाज बतावै। म्हारै काको अैमदाबाद जासी जद म्हूं ई मंगाय लेसूं। थारै तो इण झींगरा माथै फलमी आदमियां रा फोटू है अर म्हारै बुसट्ट माथै फल्मी लुगायां रा फोटू व्हैला। पण बेटा थनैं तो आज माटसा’ब मार नांखैला।
“क्यूं।”
“कालै सांझ रा थारी बारी ही अर थूं माटसा’ब रा पग दबावण नैं क्यूं नीं आयो…? म्हे तो सगळा आया हा।”
“अरै यार माटसा’ब नैं याद मत दिराईजै यार, आपां दोस्त हां नीं यार…!”
“थूं तो थारै बुसट्ट रो मिजाज बतावै हो नीं रै। खैर, अबै पक्को दोस्त बणणो व्है तो अेक काम कर।”
“कांई…?”
“थारा घर सूं अेक रुपियो लायनै म्हनैं दे।”
“रुपियो कठा सूं लावूं यार…! घर सूं म्हनैं कुण लावण दे। ठा’ पड़ जावै तो काको म्हारी टाट पोली नीं कर दे यार!”
“धीरै बोल स्साळा…!”
“थूं रुपिया रो कांई करसी यार…?”
“बीड़ी नै माचिस लावूंला।”
“थूं बीड़ी पीवै..?”
“हां, हां, पीवू, करलै जोर।”
“छोरां, पावड़ा जोर-जोर सूं बोलनै लिखो रै, अे चौथिया, सिट डौन-सिटडौन..!”
“...अेक दू दू… दो दूना च्यार… दो दूना च्यार..!”
“बीड़ी में थनैं कांई मजो आवै यार…?”
“थूं बाघड़ कांई समझै इण बातां नैं। बीड़ी पीवण में कई गुण है, देख – अेक तो बीड़ी पीवण सूं मूंछां बेगी आवै। दूजो बीड़ी पीवण सूं ताकत बधै अर तीजो ठाट कितरो रैवै – अपटूडेट बण्योड़ा व्हां, यूं दोन्यूं आंगळियां रै बीच में बीड़ी पकड़्योड़ी व्है, पैली लांबी फूंक खांच नै धीरै-धीरै नाक सूं धूंओ काढां, पछै मूंडो ऊंचो अर होट भेळा करनै तलवार कट मूंछां रै नीचै सूं –
फु ऊ ऊ ऊ ऊ! जांणै अंजण आयौ।
बुसट्ट वाळो छोरो हंसतो थको बोल्यो – “तलवारकट मूंछां कैड़ी व्है यार..?”
“आपणै मलूकिया माट सा’ब रै कैड़ी है, दिखै कोनी। पण म्हूं मोटो होस्यूं जद बंदूककट राखस्यूं – देख यूं-पछै फु ऊ ऊ ऊ ऊ…!” बुसट्ट वाळो छोरो पाटी में माथो घालनै फेर हंसण लाग्यो।
“हंसै कांई रै डोफा..! बीड़ी में गुण नीं व्हैता तो अै मोटा-मोटा आदमी क्यूं पीवता?”
“आपणै माट सा’ब तो धोळी बीड़ी पीवै यार..!”
“अरै देखली मलूकिया मास्टरिया री धोळी बीड़ी, आपां काळी पीवांला। थूं रुपियो तो लाव दोस्त, पछै देख थनैं फिरंट बणावूं। बोल लासीक..?”
“लावूंला…!”
“पिता री…?”
“किसम…!”
“मिळावो हाथ माई डियर – यू डेमफूल…!”
“अरै आज हाल तांई दूध री लोटी क्यूं नीं आई रै…? किण री बारी है?”
“आज राजिया री बारी है सा।”
“स्साळा राजियै का बच्चा…! दूध क्यूं नीं लायो रे?”
“आज भैंस गुमगी सा, म्हारी मा ढूंढण नैं गई है।”
“भैंस पड़ी कुआ में अर ऊपर पड़ी थारी मा। दूध टेमसर आवणो चाहिजै। नीं तो मार-मार नै टाट पोली कर दूंला।”
रोज री अेक लोटी तो महना री तीस लोटी। बरस रा महीना व्है बारै, अर तीन बरस रा छत्तीस। दिन जावतां कांई जेज लागै। हांकरतां तीन बरस बीतग्या। मूलकदास रै पेट में गाम रो मणांबंध दूध अर घी पूगग्यो। पण मलूकदास ई नुगरो नीं हो। उण गाम सूं जितरो लियो उणसूं ई बेसी पाछो देय दियो। लियो जिणरी कीमत तो उणरै पोतांरै पिड तांईंज ही, पण दियो जिणरो थाग पीढियां लग हो। स्कूल में छोरा दो दूणी च्यार सूं आगै तीन दूणी छः भलांई नीं सीख्या व्हो, पण बीड़ी पीवणी, चोरी करणी, कूड़ बोलणो अर आगा-पाछी करणी आछी तरियां सीखग्या। घरटी फेरतां हरजस तो बंद व्हैग्या अर फिल्मी गीत गूंजण लाग्या… “अंखियां मिलाके…जिया भरमाके…चले नहीं जाना, हो हो चले नहीं जाना।” गाम में दो-च्यार मुकदमा ई चालू व्हैग्या, जिणसूं लोग-बाग कई दफां रा जाणकार व्हैग्या। कैवण रो मतळब ओ के गाम रो मोकळो सांस्कृतिक विकास व्हैग्यो।
पण इतरो लियां पछैई गामवाळां नैं संतोख नीं हो। नुगरापणा सूं लोग मांयनै रा मांयनै चख-चख करण लाग्या। …मास्तर आयै वरसाळै सालोसाल खेती करावै, टको अेक खरच नीं करै अर मणांबंद धान मुफ्त में कबाड़ लेवै।
…मास्तर पाउडर रो दूध बेच नाखै अर टाबरिया टापता रैय जावै। मास्तर एस० डी० आई० नै घी रा पाविया पुगावै अर बी० डी० ओ० आवै जद दारू री बोतल तैयार राखै। …मास्तर अेलकारां सूं मिळ नै गाम रै नाम सूं सिमंट अर पतरां रा झूठा परमट कटावै अर ऊपर रा ऊपर पईसा खाय जावै।
मास्तर पनरै दिन रोवतो फिरै अर छोरां नैं आखर अेक नीं पढावै। …मास्तर गाम में घोंदा घलावै अर मुकदमाबाजी करावै। …मास्तर नूरिया पिंजारा रै अठै रात-बिरात जावतो रैवै अर आधी-आधी रात तांई बैठकां करै। नागड़ी रांड चिमूड़ी ही ही करनै हंसती रैवै अर बो सिगरेटां फूंकतो रैवै।
रामा बापू रै जीव नैं गिरै व्हैगी। ओ सगै हाथां गाम में कैड़ो दुख घालियो। सूती बैठी डोकरी नै घर में घाल्यो घोड़ो। इसी ठा’ व्हैती तो स्कूल रै लारै पावड़ै-पावड़ै धूड़ बाळता। इसी पढ़ाई पांत तो गाम रा छोकरा ठोट रैय जावता तो कोई खोटी बात नीं ही। “गाडर पाळी ऊन नैं अर ऊभी चरै कपास।” “पगरखी सुख नै पेरीजै।” माथा फोड़ी करनै स्कूल खुलवाई तो इण वास्तै ही कै गाम रा टाबर पढ़ लिख नै हुंसियार बणैला अर गाम रो सुधारो व्हेला। पण ओ तो जबरो सुधारो व्हियो। अबै करणो तो कांई करणो…? अब तो जबरी दैण व्ही…?
तीन बरसां में स्कूल में टाबरां री संख्या घटती-घटती च्यार-पांचेक व्हैगी। वै ई मरजी पड़ै जद आवता अर मरजी पड़ै जद छुट्टी मनाय लेवता। स्कूल तिकड़म बाजी रो अड्डो बणग्यो। गाम में नेखम दो पार्टियां पड़गी। व्हैतां-हैतां अेक दिन इसो आयो कै आपसरी में भिड़ंत व्हैगी। लाठियां बाजी अर दो-तीनेक रा माथा फाटग्या। कहावत है कै – “घर घांचियां रा बळै जद ऊंदरा पण भेळा इज सिकै।” सो मास्तर मलूकदास पण लपेटा में आयग्यो अर बळदां रै खांधै चढ़ नै सफाखानै पूग्यो।
रात बीत्यां दिन उग्यो। आज स्कूल रो झूंपो सूनो पड़्यो हो अर लगातार तीन बरस सूं बोलतो लौडस्पैकर मूंडो लटकायां नींबड़ा माथै चुपचाप पड़यो हो। नींबड़ा री टींग माथै अेक भूंडो गिरजड़ो आंख्यां मींच्यां अर नाड़ नीची कियां बैठ्यो हो। नींबड़ा रै नीचै चाय वाळी हांडी ऊंधी पड़ी ही अर चूल्हा री राख में अेक पांवरियो कुत्तो सूतो हो।