भाटीपा में जैसलमेर कानी एक लालजी भाटी रैवै! वे चोरी री कळा में घणां हुस्यार! आपरी जवानी रा दिनां में वां घणी हाथं री चतराई कीधी! अबै बूढ़ा व्हेग्या पण मन में उछाह घणों, काम पड़ै तो अबै ही पांचसो कोस री मुसाफरी कर आपरी कळा ने बतावा ने त्यार। लाल-जी ने एक सोच घणो, आपरी दांई रा डोकरां साथै बैठया, निसासा भर कैबो करै,
“आजकाल रा छोरां में कांई तन्त नीं। कोई हुंस्यारी नीं, फुरती नीं, चतराई नीं। कोई ई कळा ने सीखवा री हूंस ही नीं राखै। सिखावां तो कीने सिखावां? म्हारे बेटो व्हेतो दुनियां देखती अस्यो सिखातो।”
घरवाळी डोकरी समझावै “पार रे दुख थें दूबळा क्यूं? आखी ऊमर घणा ही धंधा कीधा, अबै तो रामजी रामजी करो।”
पण लालजी तो ई दुख में ही घुळ्या जावै के या विद्या तो लुपत व्हेती जाय री है। म्हारीं विद्या कोई सुपातर मिळै तो वीने सिखावूं पण यां पाछला छोरां में तो कोई ऊरमा वाव्ये दीखै ही नीं। अठीने वठीने नींगै करता रैवै। वारा कान में पेमजी सेखावत रे नाम रो भणकारो पड़्यो। सुणी, पेमजी जुवान छोरो है, हुस्यार है अर पांच सात जगां आछी चतराई रा हाथ बताया है। डोकरा रो जीव थोड़ो ठंडो पड़यो चालो कोई बण्यो तो है। धरती माता कसी बांझड़ी थोड़ी ही व्ही। लालजी रे मन में पेमजी ने देखणै री, वीरी हुंस्यांरी पतवाणवा री खांत घणी।
डोकरी रे नटतां एक दिन आपरो काळो ऊंट पलाण ही लीधो। अमल रा ठामड़ा खड़िया में घाल सेखावाटी रा मारग में ऊंट रे एड लगाई।
तिरकाल दुपैरी तप री। नीचै रेत तपै, ऊंचै आकास में सूरज तपै। गैला रे माथै, एक रुंखड़ा री छाया में लालजी बैठया दुपैरी गाळ रिया। कनें ही ऊंट छाया में बैठयो चर रियो। आप जाजम बिछायां बैठयां, हुक्का री नेज ने पकड़यां, धीरै धीरे पी रिया, विसराम ले रिया। अमल रो गाळमो व्है रियो। नीचै चांदी री प्याली पड़ी जीं में एक एक टोपो नितर नितर अमल रो पाणीं टपक रियो।
मारग में एक ऊंट खड़यो आवै। ऊंट कनैं आयो। आवा वाळो छाया री जगां देख झेंखायो, नीचे उतर्यो। आपस में जैमाताजी री व्ही।
“पधारो पधारो, कठै विराजणो है?”
“सेखावाटी कानी रैवूं। आपरो विराजणो?”
“भाटीपा में?”
“भाटीपा में? घणी आछी बात म्हूं ही वठीने ही जाय रियो हूं। लालजी रो नाम घणों सुण्यो। वांरी तारीफ सुण सुण मिलणै री धणी इच्छा व्ही। देखां तो सरी कस्याक है।”
“लालजी तो मिनख म्हंने ही कैवै है” डोकरो मुळक्यो। “आपरो नाम?”
“पेमजी”
“भली बात म्हूं तो आपसूं ही मिलण ने आय रियो हो!” उठ बाथ में बाथ घाल मिल्या। हुक्का री मनवारां व्ही। अमल पाणी कीधा। बातांचीता व्हेवा लागी। दोवां रे ही एक दूसरा ने परखवा री अर आपरी चतराई बतांवा री मन में।
“चालो तो कठै ही चालां।”
“पधारो, और आया कीं सारु हां।”
“थां जुवान हो, थां कांई चतराई बताओ।”
“आप दानां हो पै’लां आप ही बताओ।’
“पेमजी, आपां चालां तो हां पण पै’लां सुगन तो लेलां।’
“देखो ई रुंख रे माथै, वा कुड़दांतळी बोलै, वा अंडा सेय री है। बोलवा रो टूकांरो मारै जीरे सागै एक पल सारुं या ऊंची व्हे झट पाछी अंडां माथै बैठ जावै थे जाओ, चतराई सूं ई पंछी रा अंडा काढ लायो।”
पेमजी उठ्या, ऊंट रा चार मींगणा ले रुंख माथै चढ़या। धीरै धीरै पंछी रे कनें गिया। ज्यूं ही वा टूंकारो मारवा रे सागै ऊंची व्है ज्यूं ही अंडो तो उठाय ले अर मींगणों वीरे नीचै राख दे।
पेमजी ने ऊपरै जावा देय, लालजी धीरै धीरै लारै रा लारै चढ़या। ज्यूं पेमजी, मींगणों मेल अंडा ने आपरी जेब में घालै ज्यूं लालजी पेमजी री जेब में सूं अंडो तो काढले अर मींगणों घालदे।
एक! दो!! तीन!!! चार!!!!
चार ही अंडा पेम जी री जेब सूं काढ, मींगणां घाल झट नीचै उतर आपरी सागी जगां, हुक्का री नेज ने मूंडा में घाल बैठग्या। जांणै कठै ही गिया ही नीं। पेमजी राजी राजी आया।
“ले आया?”
“हां” गरब सूं माथो ऊंचो करता पेमजी बोल्या।
“अ लौ” जेब में हाथ घाल साम्हो कीधो।
लालजी हंस्या हाथ में मींगण। पेमजी चकराग्या, “ओ कांई व्हीयो।”
हंसता हंसता लालजी आपरी जेब सूं अंडा काढ़या।
पेमजी सुगन बिगाड़ न्हांक्या, “खैर माल तो आवैला पण एक’र हाथ सूं निकळ्यां पछै।’
ठै, ठै, ठै, ज्यूं घड़ियाल रे माथै डंको पड़ै जींरै लारै खीलां माथै लालजी ने पेमजी हथोड़ा री मारै। रात रो वगत, बारा बजी, घड़ियाल पै बारा डंका पड़या अर बारा ही साख्या लाग्या। बारा’र बारा चोईस डंका रे लारै रा लारै चोईस खीला गाड़ता अमदबाद रा किला री भींत पै लालजी पेमजी चढ़ग्या। बठै घुमटा पै सोना रा कळसा काटै।
आधी रात रो वगत, सारी दुनियां सोय री। किला रे कने सुनार रो घर। “सुनारी, सुण, कठै ही सोना माथै करोत चाल री है, म्हूं जावूं नींगै करूं।”
सुनार वांरै पाछै लाग्यो, मसाणां में आया। सुनार मुरदां रे बीचै जाय सोयग्यो।
“पेमजी, यां चारुं ही कळसां ने जमीं में गाडां जीसूं पै’लां थां देखतो लो यां मुरदा में कोई जीवतो आदमी तो नीं सूतौ है।’
पेमजी रे हाथ में भालो। एक एक मुरदा कनें जावै अर जांघ में भाला री मारै। देखले, लोही तो लाग्यो नी। मुरदां रा लोही कठा सूं लागै। ज्यूं ही सुनार रे भालो मार्यो लोही सूं भालो लाल व्हेणो ही हो पण सुनार बारै निकळता निकळता भाला रा फळ ने आपरा सूं पूंछ लीधो। लोही लाग्योड़ो दीखै कठा सूं।
“सारा मुरदा है, कोई सोच नी, गाडो कळसां ने। कालै आय कळस काढ ले जावांला।”
पेमजी लालजी तो गाड रवाना व्हीया। सुनार उठ्यो जो कळसां ने खोद आपरे घरै ले आयो।
“कळस तो कोई लेग्यो, खाडो पड़यो है”
“गजब व्ही। जरुर कोई मुरदां भेळे सूतो देख रियो हो।”
दिन ऊंगतां ही जाय कचैरी में ठेको भर्यो, सिवाय म्हांके, म्हारी दुकान रे नगरी में कोई कांदो हळदी बेच नीं सकै।
सुनार धावां री बळत सूं तड़फै। अतरी देर व्हेगी, सुनारी हाल तांही पाछी आई नीं, कांई गैला में ही रैगी, अस्या कांदा हळदी समंदा पार परा गिया के।
“यो कांई रे, कांदा हळददी रो ही ठेको, फिरती फिरती थाक गी।”
सुनारी बड़ बड़ करती आई।
“हैं! कांदा हळदी रो ठेको? गजब व्हेगी, मार्या जा दोड़ आपां रा घर रे बारै देख कोई नवो निसाण तो नीं है, देख।”
“पेमजी, घर रे निसाण कर आया?”
“कर आयो चालो।”
दोई जणां आया। देखै तो वसी ही चोकड़ी रो सैनाण सारी गळी रे घरां पै लाग रियो।
“ईंज हुंस्यारी पै घमंड खाता के? देख ली थांरी चतराई। थां जाओ घरै, म्हू देख लूंला।” लालजी लाल लाल आंख्या काढ़ी।
पेमजी नीचो माथो घाल ऊभो।
घर घर रे पछवाड़ै कान लगायो। सुनार रे बळत, नींद नीं आवै पड़यो पड़यो कुरणावै।
“यो घर अर यो मिनख। म्हारी परीक्षा कदे ही गलत नीं निकळै। लगावां सांतो “माल काढ़ां।”
गैला फंटै, एक सेखावाटी कानी दूजो भाटीपा री दिसा में। लालजी पेमजी माल री पांती करै। दो कळस पांती रा लीधा। अब सुनार रा माल री पांती करवा लाग्या। बराबर आधी आधी कीधी। सुनांर बादसा री बेटी रा रमझोळ घड़या, घणां सुवावणां, सोना। घूघरा लाग्योड़ा।
“या जोड़ी, फूटरी घणी, पांती करयां जोड़ खंडत व्हे जावेला, थां पूरी जोड़ ले लेलो, पेमजी।”
“या कदी व्है, पांती में तो एक एक ही आवेला, म्हूं अस्यो धरम हार नीं।”
“मान जाओ पेमजी, घर में कळेस व्हेला एक रमझोळ लेग्यां। म्हारी घरवाळी तो डोकरी है। कंई पैरै, थां लेजाओ।”
“म्हारी लुगाई असी नीं जो म्हंने कांई कैवै। एक थांरो एक म्हारो।”
सोना रो ढेर देख, पेमजी री लुगाई हरखी नीं मावै। सारो गैणो, पांती में आयो जीने झट पैरयो। पग ऊंचो कीधो पैरवा ने तो एक रमझोळ।
“दूजो रमझोळ कठै?”
“वो तो पांती में दूजा रे गियो।”
“क्यूं झूठ बोलो, कोई रांड ने देनै आया हो। म्हंने भोळावो मत।”
घर में कळेस व्हेवा लाग्यो। लुगाई तो अणखण ले सोयगी।
दूजो रमझोळ नीं आवै जतरै अन्न नीं खावूं।
पेमजी ने लालजी रा बोल याद आया। “अबै मांगूं तो म्हारो कांई माजनो जांणै। छानै ले आवूं, म्हारा पै वैम थोड़ी ही करै।”
डोकरी पोसाक कर एक पग में रमझोळ पैर सूती जो जाय खोल ले आयो।
दिन उग्यां देखै तो एक पग में रमझोळ नीं। लालजी ने रीस आई। म्हारी लुगाई रा पग में सूं काढ़नै लेग्यो। म्हारे ही साथै चोट? मांगतो तो म्हूं यूं ही दे देतो। म्हें तो पे’लां ही कह्यो थूं लेजा।
लाल जी रीस भरया बिदा व्हीया। पेमजी री बहू राजी व्हे दोई पगां में रमझोळ पैर सूती। खेत सूं कपास आयो जो मेड़ी में पड़यो। लालजी कपास में वासदी मेली, पेमजी री बहू ने उठाय ऊंट पै लाद आपरे घरै ले आया।
“वासदी लागी, वासदी लागी” गांव रा मिनख भेळा व्हे बुझाई। पेमजी री बहू तो बळग्या। पेमजी घणां रोया, बिलख्या। किरया करम सारो करायो।
मींना छैः बीत्या। पेमजी दूसरा ब्याव री सोची, आछी लड़की देखण ने नीसरया।
भाटीपा कानी गिया। लाल जी जाण्यां, वांने आपरे घरै बुलाया, ठेराया, बहू मरगी, समाचार पूछया। पेमजी रोय रोय, वासदी में बळ मर जावा री हकीकत सुणाई।
लालजी ने हंसी आयगी, बोल्या, “थांने कह्यो हो पेमजी, रमझोळ ले लो पिछतावोला। वा ही बात व्ही? लो संभाळो थांरी लुगाई ने। थां परणवा आया हो, या म्हारी बेटी है, लो परणो।”
पेमजी ने वांरी लुगाई सूंपी अर घणो ही गैणो गावो दे बेटी ज्यूं बिदा कीधी।