भंवर पान वाळै री दुकान आंवता आत्रेय री साइकल रा ब्रेक मतोमत लागग्या। वै साइकल स्टेण्ड माथै खड़ी करी अर दुकान मांय सामीं लाग्योड़ै काच में आपरो मुंहडो निरखण लागग्या। थोड़ी देर पछै बोल्या, “लै भंवर भाई, म्हारो पान दे दे...”

“अरे थे?” पान माथै डांडी चलांवतो वींरो हाथ अेक खिण ठैरग्यो अर सामीं देखनै वो अचूंभै सूं पूछ्यो, “हूँ केवूं...घणा दिना पछै दीख्या नीं...बारै गयोड़ा हा कांई सा?”

“बारै? नीं भाई। टाइफाईड हुयग्यो हो। पूरो डेढ़ महीनो लागग्यो बारै निकळणै में!”

“जद ई। अेकर तो मैं ओळख्या नीं, पछै बोल्या जद ठा पड़ी। थे तो साव माड़ा हुयग्या...मुंहडो नीसरग्यो।” अंगूठै घर आंगळ्यो बिचै झालोड़ी डांडी अर जीभ इकसार चालै ही। अेक-दो और ग्राहक आयग्या हा; वै डबल जीरो, पिपरमेंट तेज अर चूनो कम री ताकीदां करै हा।

आत्रेय आपरो पान गलाक में धरनै दुकान रै अेकै पासी लटकतै अंगोछै सूं’ हाथ पूंछ्या अर जीवणो हाथ भंवर आगै कर दियो वीं दो-चार काठिया सुपारी रा टुकड़ा हथेळी माथै मेल दिया।

टुकड़ा मुहडै में घालनै आत्रेय भंवर नै पूछ्यो, “यार भंवर...तू पक्को पनवाड़ी है...इत्ता दिनां पछै भी पान भूल्यो कोनी...”

“हूँ केवूं...म्हारौ धंधो इसो है सा, ग्राहक रो होलियो देखतां वींरो पान चेतै आय जावै, थे विश्वास नीं करोला अेकर री बात है कै अेक सेठजी पांच बरस पछै कलकत्तै सूं पधार्‌या”

“अर तूं वांनै देखतां ईं वांरो पान लगाय दियो।” आत्रेय कनै इण किस्सै नै विगतवार सुणन सारू टैम नीं हो वो बात काटतो पूछ्यो, “दो पान बांध दिया नीं?”

“सा त्यार है” भंवर पान झलांवतां पूछ्यो, “हूँ केवूं, थांनै कियां ठा पड़ी कै.?”

आत्रेय मुळक्या, “ओ किस्सो में थारै मुंहडैं च्यार-पांच दफै सुण राख्यो है?”

दूजा हेंसण लागग्या भंवर सागै हेंसनै झेंप मेटी।

आत्रेय बंध्योड़ा पान साइकल रै हेण्डल में अटकाया, मुंहडो नीचो करनै ब्रेक लाम्बो पीक थूक्यो अर चाल बईर हुयो।

घड़ी पर निजर न्हाली नव बजनै पचास मिनट हुया पूग जावांला दफ्तर... जै रेल रो फाटक बंद नीं लाध्यो वियां डेढ़ महीनै सूं दफ्तर जांवता, थोड़ी देरी हुयां चलै किसो अफसर खावै?

रस्तो भागतो हो, सैंग उतावळा सैर सूं बारै जावणै री होड माच री ही जाणै किणी जोतकी भविष्यवाणी कर दी हुवै कै सैर माथै कोई भारी विपदा आवण वाळी है सैंग जाणै कोई ठिकाणो सोधणनै भागै हा-साइकल पर, स्कूटर-मोपेड पर, कार में या पैदल सिरकारु दफ्तर घण-करा सैर रै बारलै इलाकै में पड़ै अै हालतां रोज दिनुंगै हुवै अर सिंझ्या नै सैंग थाक्योड़ा-हार्‌योड़ा बावड़ै-विपदा सूं मुगती रो नीं, आज सारु टळणै रो भाव लेवनै।

इस सोचणै सूं आत्रेय रै मुंहडै माथै अेक मुळक दौड़गी वै पैडल उतावळा चलावण लागग्या साइकल चलावणै में आज नुंवो मजो आवै हो, इत्ता दिनां पछै वै जाणै हवा में हिलोरा लेवै हा।

“आत्रेय भाईऽऽ”

लारै सूं आंवती आवाज स्पीड कम कर दीवी मुड़नै देख्यो-दलपति! झट ब्रेक लगा दिया।

“दिनां सूं दर्शन हुया है अर तो भाग्या जावो कांई बात है, किणी फुटरापै नै नावड़ण सारु भागो कांई?”

“अरे नीं भाई...” दलपति री मसखरी पर वै हेंसग्या, “ध्यान नीं रैयो सुणावो कियां हो?”

“हूं तो ठीक हूं” थै इत्ता दिन कठै हा? दिख्या नीं।

“हां” यार, टाईफाइड में झलग्यो..।”

“ठीक है, जणा आज दफ्तर जावण रो मतो कर लियो।”

आज रो समूचो दिन इण पूछा—ताछै में बतीत हुवैला आत्रेय सोचता जावै हा, पान वाळो भंवर पूछ्यो पछै दलपति बतळावण करी कै इत्ता दिन कठै हो? दफ्तर में तो पूछणवाळा भक नीं लेवण देवैला, बतांवतां-बतांवतां गळो सूख जावैला काई बीमारी हुयी? दवाई-पाणी कांई लीवी? अस्पताळ में भरती रैया कांई? कोई दिक्कत तो नीं हुई? आत्रेय छोड यार पेंडिंग-वेंडिग आराम कर फैर बीमार हुवणो है कांई? अणूना सवाल हुवैला पण उत्तर सागी सवाला रा उत्तर देवणै सूं तो चोखो रैवेला, जै अेक तख्ती माथे लिखनै गळै में लटका लेवै; कै इण तारीख सूं इण तारीख तक बोमार रैयो चटर्जी कनै सूं दवाई लीवी...कै पैली सिर्फ जुकाम हुयो, बिगड़नै टाईफाईड बणग्यो कि।”

दफ्तर रो माहौल सागी चांकै हो अफसर पूगग्या हा अर कर्मचारी गोळमेज सम्मेलन पर बैठ्या हा।

आत्रेय अेक खुल्ली-सी मुळक सागै सैंग सामीं देख्यो कोई-कोई जणै ध्यान दियो अर नाड़ हिलायनै अर हवळै सीक ‘हैलो’ केयनै पडुत्तर दियो अर पाछा आपरी चर्चा में मशगूल हुयग्या।

हाजिरी रजिस्टर में दस्तखत मांडनै आत्रेय अेक कुर्सी खींच ली अर वी संगत में जमग्या।

हैड-क्लर्क नलिनीनाथ जी बोलै हा अर बाकी सैंग वांरै घेरियो दियां बैठ्या हा। कोई बीड़ी रा सुट्टा लगावै हो, तो कोई सिगरेट सा’रै हो।

“आपाणी प्रधानमंत्री केवै कै समूची दुनिया में भ्रष्टाचार फैल्योड़ो है, जद आपणो देश इण सूं अछुतो कियां रैय सकै? बात म्हारै हेटै नीं उतरै दुनिया रै मारो गोळी आपणै देश री बात करो मैं पूछूं कै कठै है भ्रष्टाचार बता देवै तो वींनै अेक सौ अेक ईनाम।” केयनै नलिनी बाबू ठैर्‌या आपरी सवालिया निजर हवळै-हवळै चौफेर घुमाई वांनै किणी में ईनाव जीतणै री औकात निजर नीं आई।

थोड़ी देर पछै वै मुळक्या, निचलै होठ अर मसुड़ां बिचाळ पड़्यै जर्दे पर इण ढ़ब जीभ फिरायी कै जर्दो जीभ रै आगै चिपनै रैयग्यो अर वै जीभ नै इण हालत में केई देर बार राखी।

आत्रेय नै उबकी आवण ठूकी वै दरवाजै रै पार, बारै देखण लागग्या।

“साची तो है कै भ्रष्टाचार कठै नीं है” नलिनी बाबु रो सुर पाछो चालू हुयग्यो, “काम रा पइसा लेवां तो वा घूंस कियां बाजै? नीं है वै तो क्विक सर्विस रा पइसा है अेकदम फीक्स्ड अर रोजनेबल फैर भ्रष्टाचार सबद आयो कठै सूं? है तो साच में शिष्टाचार।”

इण नुंवी व्याख्या पर नलिनी बाबु आपो-आप में अणुता हरखीज-ग्या विश्लेषण कांई ठा और कित्ती देर चालतो कै सक्सेनाजी बीच में बोलग्या—

“वा कांई केवणां हैड सा’ब रा...” केयनै सक्सेनाजी ताळयां बजाई अर फैर बोल्या, “थे तो भ्रष्टाचार री समस्या नै जड़ा-मूळ सूं मिटा दीवी दुनिया रो कल्याण हुयग्यो थांरै हाथ सूं अबै लगतै हाथ व्यभिचार व्याख्या कर न्हाखो जियां बलात्कार सबद फालतू है, सब राजी-रजा सूं हुवै लोगां री लुगायां भगावणी नैतिक है अर सड़क चालती छोर्‌यां नै टिल्ला देवणा वीरता!”

“जचै ज्यो हुवै, हैड सा’ब री कथणी करणी अेक है, सक्सेनाजी” केशियर विनोद चूंठियो बोढ़्यो, “अै साळी नै आधी घरवाळी मानै अर घरवाळी घरै नीं हुवै तो आधो सबद हटा देवै अबाद आंरै सागै हालत है जाणकारी सारु अरज है कै आंरी घरवाळी पीरै गयोड़ी है अर साळी घरै है।”

“अच्छ्या, जद चैरो पळकै”

“बिदाम रो सीरो खाया करो हैड सा’ब... थाकैलो घणो आवै...”

“दोनू कांई, तीनूं’ पगां रो दर्द मिट जावैला।”

नलिनी बाबू रो मिजाज उखड़ग्यो नीचा हुयनै डावै पग रै मोजै मांय सूं जर्‌दे री डबड़ी काढ़ी, जर्‌‌‌‌‌दो हथाळी में न्हाख्यो, थापी मारी अर होठ नीचै दाब लियो डबड़ी आपरै थान-मुकान पूगगी। 

वै इण व्यारी रै बाद कोई बात कैंवणनै मुंहडो खोल्यो, कै तद चपरासी बायनै बोल्यो, “हैंड सा’ब थांने सा’ब याद करै!”

इग्यारै सूं ऊपर हुयगी। ‘स्टैमिना’ बणावरण सारू च्यार-पांच जणा कैण्टीन कानी बईर हुया। कोई-कोई फाइलां संभाळण में लागग्या। बाकी ओजूं कुर्सी रै पीठ ठिकायां सोचै हा कै कांई कर्‌यो जावै!

आत्रेय अबोल बैठ्या हा।

स्टोर कीपर दीनबन्धु अचाणचक सामीं झाक्यो अर पूछ्यो, “घणा दिनां सूं मुंहडो दिख्यो नीं...बारै गया हा कांई?”

“नीं, मेडिकल लीव पर हो। टाईफाईड बणग्यो हो।”

“साची? मैं तो सोच राखी कै तफरी रै मूड में मेडिकल ली हुवैला... थां कनै तो छुट्टयां रो थोक बैलेंस है...”

“नीं भाई... मैं तो बीमार हो। अबै जायनै आराम आयो है...।” आत्रेय आपरी बीमारी से पतियारो देवण री चेष्टा करी।

“आत्रेयजी...” इस बाताचीतै सूं साव अजाण-सा अॅकाउंटेंट सा’ब बोल्या, “हैड आफिस सूं रिमाइण्डर आय रैया है। रिटर्‌न लारलै महीनै जावणी जरुरी ही, पण थे छुट्टी पर हा। इण सूं भोत देर हुयगी। अबै नीं हुवणी चाइजै।”

“अबार बैठूं सा’ब... केयनै आत्रेय आपरी सीट पर आयग्या।” कागज देख्या, तो निगै पड़ी कै लारै सूं कोई इण सीट रो काम नीं कर्‌यो हो। अणथाग पेंडिंग काम हुयोड़ो हो।

आत्रेय कागज जचाया। अर्जेन्ट घर आडिनरी नै बांछनै निरवाळा कर्‌या। काम शुरू करण सारु पेन खोल्यो कै याद आयो—पैली लारलै महीनैं री तणखा ले लेवूं।

कैशियर कनै जायां ठा पड़ी कै वांरी लारलै महीनै री तनखा नीं बणी है। डाक्टर रो फिटनेस सर्टिफिकेट लायां वांरी छुट्टी मंजूर हुवैला अर तद तणखा बरौला।

यात्रेय आपरी सीट पर पाछा आयग्या।

वांनै आयां नै पांच मिनट नीं हुया, कै हैड क्लर्क नलिनी बाबू रीसां बळता वां कनै पूग्या, “थे कांई कर्‌यो, आत्रेय जी?”

“क्यूं? कांई हुयो?”

“थे रजिस्टर में दस्तखत कियां मांड दिया?”

“क्यूं, मैं हाजिर नीं हूँ कांई?”

“आ बात नीं है... इत्ता दिन आप किरण बैसिस पर घर रैया?

“मेडिकल पर…”

तो डाक्टरी सर्टिफिकेट लाया हो कै नीं?”

“आज डाक्टर मिल्यो कोनी काल लावूंला।”

“इत्तो केयां काम नीं चालै। फिटनेस सर्टिफिकेट लायां बिनां दस्तखत कियां कर्‌या थे?” सिरकारू दफ्तर है, कोई काण-कायदा तो हुवैला?”

हैड-क्लर्क पाछा वां पगां गया परा।

पंद्रै-बीस मिनटों में पाछा आया अर आत्रेय नै अेक कागज पकड़ायनै बोल्या, “सॉरी, सा’ब मीमो इश्यु करनै उत्तर चावै है?”

आत्रेय मीमो लेयनै सोचता रैयग्या। इत्ती देर में केई जरणा वांरै चौफेर घेरियो देय लियो। छैवट अेक जणो हिम्मत करनै मोमो वांरे हाथ मांय सूं लेय लियो अर ऊंची आवाज में बाचण लागग्यो:

“थे बीमारी री छुट्टी पर चालै हा। इण हालत में, पाछा हाजिर हुँवती टैम थांनै निरोग हुवणै रो प्रमाण-पत्र पेश करणो जरूरी हो, जद कै थे इण रे बिना हाजिरी रजिस्टर में दस्तखत मांडनैं नियम तोड़ दियो है। दो दिनां में आपरो पख राखो कै क्यूं नीं आपरै खिलाफ सिरकारू सेवा-नियमां रैं अधीन कारवाई करी जावैं?”

आत्रेय जाणै गूंगा हुयग्या हा।

स्रोत
  • पोथी : सूरज उगाळी ,
  • सिरजक : बुलाकी शर्मा ,
  • संपादक : श्याम महर्षि ,
  • प्रकाशक : राजस्थानी विभाग राष्ट्रभाषा हिन्दी प्रचार समिति श्रीडूंगरगढ़ (राजस्थान)
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