जेठ-असाढ़ रो काळो ऊनाळो। लूआं रा ळपळका नै तपत रो पार नहीं। सांप-बिछुआं रो तो बूझणो ही कंई? खेतां में, झूपड़ां में, हवेलियां में, मारग मे-जठै जोवो उठै ही तयार लाधै। बीछूआं रो तो इत्तो सुगाळ, कै घर रै खूणै-खोचरै, रसोई-पणींढै, अटाळै-कुटाळै जठै जोवो उठै ही जाणै हाथ धरियोड़ा सासता। कोई चींपिया सूं पकड़नै बारै फेंक रयो है, कोई डंक री मूंघी मनवार सूं रोवतो-पीटतो उणनै याद करै है, तो कोई झाड़ा-झपटा सूं उणरा जहर री बळतर दूर करै है। बीछूआं री रोळ-डपट रो पार नहीं।
सेठ सांवळराम जी इण डर सूं दुकान बधायनै सूझाका, थकां ब्याळू, करण सारू घरे आवण नै उतावळ तो मोकळी करता, पिण सांभतां-सांभतां ही झालर-वेळा हो ही जाती नै घरे आवता जिते काठो अंधारो हो जातो।
एक दिन इणीज टैम सांवळरामजी घरे आया। हाथ पग धोय नै, बाजोट ढाळ नै ज्यूं ही जीमण नै बिराजिया, बाजोट रै हेठै सूं एक बीछू जावतो देखियो। सांवळरामजी थाळी छोड़’र आघा कूद गया नै बोलिया-अरे! म्होटो बीछू, पकड़ो झट!
सेठ जी नै हवा घालती थकी सेठाणी झठ हाथ सूं पंखी नीचै मेल, चीपिया सूं बीछू नै पकड़ रसोड़ै में पड़ी एक कुलड़ी में में घाल दियो नै माथै ढकणी देदी। सेठाणी पाछी सेठ जी नै हवा घालणी सरू कर दी। सेठ जी निरांत सूं जीमण लाग्या।
उणीज रात ऊपरवाड़ै सूं घर में एक चोर बड़ गयो। धणी-धणियाणी देखियो आज टापरो सफा है। सूतां-सूतां रामजी नै याद किया नै जुगती सोची।
सांवळरामजी—आज बींटी अडाणीं धरी जिकी सावळ जापता सूं धरी है क?
सेठाणी—क्यूं अैड़ी कंई बात है? सूतां-सूतां ही ओझको हो।
सांवळरामजी—बींटी हीरां जड़ी, दस हजार रै मोल री है। रुपिया एक हजार माथै दिया है। आपै ही औझकणो आवै।
सेठाणी—मैं तो उणनै चूला री आगड़ में पड़ी कुलड़ी में घाल नै धरी ही, उठै हीज पड़ी है। दिन-उगै थे थांरी पाछी ले लीजो। क्यूं सोच करो हो? उठे पड़ी नै कुण खावै!
सांवळरामजी—जरै वा। थोड़ा हवळै हीज बोलो नीं।
सेठाणी—घर में बात करां हां। अठै कुण सुणै है?
सांवळरामजी—बड़ी आदमण। भींत रै ही कान हुवै है। धीमै बोलियां सुणीजै तो हाका क्यूं करणा? हमैं नींद लो, सोजाओ।
ओ’ळै ऊभै चोर देखियो, आज तो जाणै गांधेड़े में ही’ज सुगन काढिया है। घणो राजी हुओ। भोमियाजी बापजी नै सवा रुपिया री बोलवां बोली नै हीरा रो उम्हायोड़ो रसोई में बड़ गयो।
घणी जेझ नहीं हुई। जोर सूं एक आवाज आई।
‘अरररर। आ कैड़ी बींटी हाथ आई रे राम।
दूजी कानी सूं आवाज आई-
कंई आंगळी में काठी घणी है रे भाई?