म्हैं बोरड परीक्षा मांय वीक्षक री ड्यूटी सळटा’र परीक्षा आळै कमरै सूं बारै आयो ही हो कै म्हनैं बरांडै मांय म्हारै ब्योपारी दोस्त रो मुनीम निगै आयो। म्हैं बीं कन्नैं जा’र हां कैई तो बण म्हनैं कागद रो अेक पुरजो झला दियो। कागज मांय दोस्त री भैण रो नाम लिख्योड़ो हो, जकी तीसे’क साल पैली इण स्कूल मांय भणीजी ही। बां आपरी इण भैण रो जलम-तिथि साटीफिकट स्कूल कांनी सूं चायो हो। म्हैं खासा थकेड़ो हो। दिनूंगै सात बजी सूं ले’र अबै ग्यारा बजणै आळा हा। इण बीच चा-पाणी कीं नीं होयो हो। दिनूंगै चावड़ी रो अेक कप सुरड़’र घर सूं निकलेड़ो हो। सिंझ्यां नैं दूजी पारी मांय ड्यूटी भळै ही। बाबू अर प्रीसिपल भी कापी आद सळटाणै मांय घणां बिजी हा। म्हैं आ सोच’र घरै आयग्यो कै सिंझ्या नैं मितर सूं मिल’र सावळ बातचीत कर’र आगलै दिन साटीफिकट बणा लेस्यां।
परीक्षा री दूजी पारी रो काम सळटाय’र सिंझ्या नैं म्हैं दोस्त री दुकान माथै पूग्यो। मितर आप रै काम रो खुलासो करता थकां बतायो कै भैण विदेश जा’री है। बीजो आद बणाणै सारू बानैं जलम-तिथि साटीफिकट चाइजै। बींनै म्हैं बतायो कै ईं वास्तै थानैं अेक अरजी लिखणी पड़सी। इत्तो पुराणो रिकार्ड ढूंढणो कोई सोरो कोनी। फेरूं भी म्हैं कोसिस करस्यूं। म्हनैं ठाह हो कै बाबू री दिलचस्पी न लेवणै सूं कई बारी पुराणो रिकार्ड देखणै री खेचळ लोग आप ई करे करै। खैर, म्हैं दोस्त सूं बां री भैण रो स्कूल मांय दाखल होणै रो साल आद आछी तरियां पूछ-ताछ लियो अर अरजी माथै मांड लियो। म्हैं मितर सूं ओ भी पूछ्यो कै साटीफिकट कद तांईं चाइजै? बण म्हनैं उतावळी सूं उतावळी बणा’र ल्याणै री बात कैई अर बतायो कै भैण घड़ी-घड़ी फोन करै है।
दूजै दिन स्कूल मांय बियां तो छुट्टी ही, पण बोरड री परीक्षा चालतां थकां अर इकतीस मारच नेड़ै हुवण सूं दफ्तर मांय काम चालै हो। म्हनैं ठाह हो कै बाबू अर प्रिंसीपल दोनूं थ्या जासी। छुट्टी री सोच’र म्हैं स्कूल जाणै मांय थोड़ी ताळ लगा दी। ईं रो खामयाजो भुगतणो पड़्यो। बाबू स्कूल मांय नीं मिल्यो। चपड़ासी सूं ठाह लाग्यो कै बो सिंझ्या पांच बजी तांई आयसी।
म्हैं सिंझ्या पांच बज्यां फेरूं पूंच्यो। बाबू जी बैठ्या कीं लिखणै लाग रैया हा। म्हैं अरजी दिखाई तो आछी तरियां बांच’र लारै ‘कक्षा अध्यापक’ ‘खेलकूद प्रभारी’, ‘पुस्तकालयाध्यक्ष’ आद सबद मांड दिया अर म्हनैं कैयो जावो आं-आंरा ‘साइन’ करवा ल्याओ।
म्हैं कैयो – “उण टैम रा अध्यापक किस्या जीवता बैठ्या है?”
“जीवता होवो भलाई मर्योड़ा। कागजी कारवाई तो करणी पड़सी।”
कन्नै बैठ्या अेक-दो साथियां सा’रो लगायो कै बाबूजी आं खाना-पूरत्यां नैं जाण द्यो अर गुरुजी रो काम कर द्यो। म्हैं जाणग्यो कै बाबू के चावै। ईं वास्तै म्हैं दस-बीस देवणै री हामी भी भर ली। पण बाबू फेरूं भी कैयो कै अबार तो म्हैं सरकारी काम करूं। पैलां सरकारी काम होसी पछै प्राइवेट काम देखस्यां। म्हैं चुप होय’र अेक कानी बैठग्यो। आधै’क घण्टै बाद बाबू म्हनैं कैयो कै आज तो म्हारै कनै अलमारी री चाबी भी कोनी। थारो काम काल होसी। थे काल आओ।
म्हैं अगलै दिन फेरूं गयो। बाबू अजै तांई स्कूल नीं आयो हो। पण थोड़ी ताळ मांय आयग्यो। बिन्नै सूं प्रिंसीपल सा’ब भी आयग्या। बां छुट्टी आळै दिन स्कूल आणै रो कारण जाणणो चायो। म्हैं बता दियो। बां मुंडै सूं तो कैयो कै के मुसकल है? मिल ज्यासी। पण हिवड़ै सूं बै कित्तो’क चावै हा, ओ म्हैं नीं जाण सक्यो। बां सागै म्हारा संबंध मीठा नीं हा।
बै बारै सूं आया हा अर थक्योड़ा हा। ईं वास्तै बां बाबूजी नैं चाय मंगवाणै रो कैयो। बाबू चपड़ासी भेजण लाग्यो तो बां पचास रो नोट बाबू नैं झलाणो चायो। पण बाबू आप कन्नै सूं पीसा दे’र चपड़ासी नैं भेज दियो। ईं पर सा’ब कैयो – “तेरै इत्ती कित्ती’क ऊपर सूं कमाई होवती होसी?”
चाय पीवतां ई सा’ब प्रयोगशाला कानी चल्या गया। बठै बां आजकल आपरो बिस्तर लगा राख्यो हो। बोरड री परीक्षा खातर बांनैं रात-दिन स्कूल मांय ई रैणों पड़तो। बां बठै जा’र बाबू नैं भी बुलाय लियो। बाबू बठै कई ताळ लगाई तो म्हारै मन मांय गादड़ो बड़ग्यो – “जे सा’ब बाबू नैं कीं ऊंदी पाटी पढा दी तो?”
स्यात आईज गल्ल होई कै बाबू आवतां ई अलमारी कनै आय’र बोल्यो – “इत्तो पुराणो रिकार्ड ईं अलमारी मांय नीं है। बो तो स्टोर मांय चल्यो गयो। म्हैं सिंझ्या नैं स्टोर री चाबी ल्यास्यूं। थे पांच बजे आ ज्याइयो। थारो काम त्यार पड़्यो लाधसी।” म्हैं टुळक’र घरै आग्यो।
म्हैं गेलै मांय सोचतो आयो कै जे इयां काम न बण्यो तो मितर नैं कैस्यूं के बै आप आवै अर का कीं राजनेता सूं टेलीफोन करावै। राजनेतावां सूं अै भौत डरै। जद ई तो बानै छब्बीस जनवरी अर पन्दरा अगस्त माथै अध्यक्षता करणै सारू बुलावै। झण्डो आप नीं फैरा’र बां सूं फैरावै।
दुपारै मांय मितर रो टेलीफोन आयो। पूछ्यो, काम री के प्राग्रेस है। म्हैं कैयो – “थूं ओ जाण’र म्हनैं ओ काम सूंप्यो हो कै ईं स्कूल मांय म्हैं मास्टर हूं। पण थूं आ नीं जाणै कै ईं स्कूल मांय प्रशासन रै सागै म्हारा किस्या’क सम्बन्ध है। ईं सूं तो जे थे आप आय’र साटीफिकट मांगता तो थानैं उतावळी मिल ज्यावती। थां अणसैंदा लोगां सूं तो अै डरै भी है। म्हे तो आं रो कीं बिगाड़ नीं सकां। कठैई सिकायत नीं कर सकां। सागै रैवणों है। फेरूं म्हारी तो सर्विस बुक आंरै हाथां मांय रैवै। अै ई म्हारा वेतन-भत्ता उठावै। म्हारै हाथ बस तो कीं नीं है।”
मितर म्हनैं कैयो कै कीं सैंदै आदमी रो कीं संस्था मांय हुवण सूं हूंसलो तो होवै ही है। म्हनैं तो म्हारै जीजाजी भी कैयो कै थानै साटीफिकट बणावण मांय कोई मुसकल नीं आ’सी, क्यूं कै बीं स्कूल मांय थारो बेली मास्टर है। आगै इकतीस मारच आ री है। म्हारै कनै टेम नीं है। थे जियां कियां ई बणै बणा द्यो।
म्हैं बीं नैं बतायो कै बाबू कीं न कीं चावै। बण कैयो – “दे दिरा’र बाळो परनै। आपणो तो काम हुवणो चाइजै।” सिंझ्या नैं म्हैं पांच बजे री जिग्यां साढे च्यार ई पूगग्यो। पण बाबूजी नीं मिल्या। चपड़ासी बतायो कै वै तो डी. ओ. दफ्तर गया है अर रात पड़े तांई आ’सी।
दूजै दिन दिनूगै आठ बजी म्हैं बाबू जी रै घरै गयो। बै त्यार बैठ्या हा। म्हारै साथै स्कूल कानी व्हीर होग्या। स्कूल मांय जा’र बां म्हनैं बरांडै मांय ई खड़्यो रैवणै रो कैयो अर आप सागी अलमारी कानी चल्या गया। थोड़ी ताळ नीं आया तो म्हैं बठैई उठग्यो। अलमारी खुली पड़ी ही। बाबू दाखला रजिस्टर रो सागी पानो खोल राख्यो हो। बां म्हनैं कैयो-ल्याओ, साटीफिकट री फीस ल्याओ। पचास रिपिया।
“दे देस्यां, पीसा ई दे देस्यां। सा’ब रा साइन तो कराओ।”
बाबू बाई नैं बुलाई। बा सा’ब रा साइन करवा ल्याई। म्हैं साटीफिकट रो पानो लियो अर पचास रो नोट पकड़ा दियो। नोट देवतां म्हारो जीव दोरो नीं होयो, क्यूं कै अेक तो म्हनैं ठाह हो कै अै पीसा दोस्त सूं मिल ज्यासी अर दूजो ओ भी कै बाबू बिच्यारो घणो गरीब है अर कदे-कदे सा’ब नैं चाय भी प्यावै।
कहाणी अठै खत्म हो ज्याणी चाइजै ही। पण हुई नीं। कहाणी आगै बधी। दोस्त जलम-तिथि रो प्रमाण-पत्र आप री भैण कनै भेज्यो। पण बीं सूं बां रो काम नीं सर्यो। बीजा आद बणावण आळां बांनैं कैयो कै म्हानै सिर्फ जलम तिथि प्रमाण-पत्र ई नीं चाइजै, स्कूल छोडणै रो साटीफिकट भी चाइजै। म्हैं समझग्यो कै बांनैं टी. सी. चाइजै। म्हैं दोस्त सूं टी.सी. वास्तै अर्जी लिखवाई। सागी बाबू कनै गयो। पैलां सूं कीं ढीलो हो, पण तुरत-फुरत काम करण री लैण पर नीं आयो। दो-तीन दिन री टाळ-मटोळ पछै सागी रजिस्टर काढ्यो। देख’र कैण लाग्यो कै टी. सी. तो जारी हुयोड़ी है। डुप्लीकेट वास्तै दस रीपियां रै स्टाम्प पेपर माथै हलफनामो लि’र देवणों पड़सी। थे तहसील चल्या जावो। बठै अरजीनिवेस सो-कीं लिख-लिखा देसी। म्हैं मितर नैं हलफनामो ल्या’र देणै री बात बताई। मितर बोल्यो, ल्या देस्यां। तहसील हैड क्वाटर माथै बैठ्या हां, ईं वास्तै हलफनामों बणाणै मांय कोई दिक्कत नीं आ’सी। बां हलफनामों बणा’र ल्या दियो। म्हैं हलफनामों लेय ज्या’र बाबू नैं झलायो। बाबू टी.सी. बणा’र, हलफनामै साथै नत्थी कर’र, दाखला रजिस्टर मांय दाब’र, सा’ब रा दसखत कराणै सारू म्हनैं झला दियो। म्हें सा’ब कनै गयो। बै कीं काम लागर्या हा।
सा’ब रो काम खत्म हुवणै री जाण’र म्हैं रजिस्टर पेस कर्यो। पण बां बिनां कीं देखे भाळे रजिस्टर आप रै कनै राख लियो अर म्हनैं कैयो कै थे ग्यारवीं कलास रा आंकड़ा त्यार कर’र ल्याओ। म्हैं आंकड़ा त्यार कर’र ल्या दिया, पण बांनै फेरूं बिजी जाण’र टी.सी. पर साईन करणै सारू नीं बतळाया। सोच्यो, स्कूल सूं जावती बरियां कह देस्यां। और तो सगळो काम हुयोड़ो है ई। बस साईन-साईन ई बाकी है। बोरड परीक्षा खतम हुवणै रै पछै क्लासां लाग री ही, ईं वास्तै म्हैं क्लास मांय चल्यो गयो। म्हैं क्लास मांय सोचै हो कै आज तो मितर रो काम हो ज्यासी। बीं टेम ई बाबू म्हारै कनै आयो। म्हैं क्लास सूं बारै आयो तो बो कैवण लाग्यो – “गुरुजी, दो दिनां वास्तै पांच सौ रिपिया द्यो। म्हैं थांनै सोमवार नै जरूर-जरूर पाछा दे देस्यूं। म्हैं जाणै हो कै ओ बाबू लेण देण रै मामलै मांय भौत माड़ो है। पण अबै म्हैं के करतो? अेक तो बण म्हारो त्यारी-त्यारी काम कर्यो हो। म्हनैं बीं री गरीबी माथै भी तरस आवै हो। पण फेरूं भी म्हैं कैयो कै अबकाळै तो मेरी भी पोजिसन बड़ी टाइट है। अेक और जाणकार री बेटी रो ब्याव है। पांच हजार तो बण ले लिया। दूध आळै नैं ई देणा है। टेलीफोन, बिजळी आद रा बिल अळगा भरणा है। पण बण खेड़ो नीं छोड्यो। हार’र म्हनैं हां करणी पड़ी। बियां म्हैं बींनैं कैवणो चावै हो कै तूं पांच सौ उधार न लेय’र पचास रिपिया इयां ई लेय ले। पण कह नीं सक्यो। उल्टो मन नैं समझायो कै इस्या चार-पांच सौ से के मार्या मरां हां।
छुट्टी होवतां पाण म्हैं सा’ब कनै पूंच्यो। कागज-पाना दाब्योड़ो रजिस्टर खोल’र पेस कर्यो। बां टी. सी. देख’र कैयो हलफनामो कठै? फैरूं आप ई टी. सी. साथै नत्थी होयड़ो हलफनामों देख लियो। हलफनामों देख’र कैयो ओ तो रजिस्टरड होयोडो नीं है। म्हैं नोटेरी वकील री मोहर अर स्टाम्प पेपर खरीदणै री तारीख आद सो-कीं दिखाई। पण बै नीं मान्या। कैयो – “हलफनामों रजिस्टरड होवै। बो करा’र ल्याओ।”
म्हैं चुपचाप घरै आयग्यो। मेरै लारै बाबू भी पीसा लेण नैं आयग्यो। म्हैं बाबू नैं कैयो-हाल तांई म्हारो काम तो सिरै नीं चढ्यो। बाबू कैयो – “ओ सा’ब ई खराब है। लो’ नैं पिंघळेड़ो जाण’र म्हैं चोट मारी – “बाबूजी, पैली अेक दिन जद म्हैं जलम-तिथि साटीफिकट बणावै हो, उण दिन थे कई ताळ लेब मांय ईं कनै रैया हा, जद इण थानैं कीं कैयो हो के?”
“हां, कैयो हो। बां म्हनैं कैयो कै आनैं जल्दी-सी साटीफिकट ना द्यो। गेड़ा कटाओ।”
म्हनैं जद डी.ओ. कनै भेज्यो, कैयो – “भाड़ो बां साटीफिकट लेणै आळां कनै सूं ले लेइयो।” जद ई तो म्हें थां सूं पचास रिपिया लिया हा। नीं तो म्हैं कीं कनै सूं भी पचास रिपिया नीं ल्यूं। दस-बीस ई ल्यूं।
सुण’र मजो-सो आयग्यो। अेक तो ईं बात रो कै म्हारी रीडिंग कित्ती सही ही। दूजी आ जाण’र कै इत्ती ठाडी पदवी रो आदमी ई देखो! कित्ती ओछी हरकतां करै। बाबू नैं पीसा देणै रो कतैई दुःख नीं होयो। बाबू म्हारै घरै सूं व्हीर होवतो खुस हो। कीं गरीब आदमी नैं खुस देख्यां म्हें भी राजी हो।