पाणीबायरा बारला गांवां में, खासकर भूखी भंडाण रै सूखै इलाकै में जैमत रै झोलै, मिनख कुतै री मोत मरै! बठै बैद डाकटर। मांदगी रै मोकै ऊंट चढ़कर रोगी नै कनलै कसबै ले जावणो पड़ै, जाणै गांवां में तो सै पसु बसै, मिनख तो सैरां में जामै! पण कसबां में राज ओजूं स्याणा-पुराणा डाकटर मेलै कठै? कालेज सूं कढ़्योड़ा नूंवा नकोर छिछोर छोरा मेलै जिका गांवां री छियां छिपै नईं! काईं हुवै? राज रो रुख है। कसबां रा अस्पताळां खातर इसो कायदो चालै। मेडिकल कालेज सूं जिका छात्र डाकटरी पास कर’र कढ़ै बांनैं पैलपोत पांच बरस गावां में रैय’र नोकरी करणी पड़ै। कींरै सारै? कानून है; पड़्या मर्‌योड़ां नैं मारै।

कूवो छोड’र आयो, हीड़ै चाकरी में लाग्यो, ऊंट रो आथर उतार’र छूछो चारो नीर दियो। ऊंट फरफरो चारो चरै, धणी रुळका’र आगै करै। ऊंट आपरी सार नैं समझै— “कै मेरो बडो भाग है सो धणी रात रो भूखो तिसो मेरी चेस्टा में जुट रयो है।” रातभर ऊंट साथै कूवो चलाय’र आयोड़ो धणी सोचै— “बापड़ो पसु है, किसो बोल’र कैवै? अैकर रै सारै नाड़ी लागगी दीसै? खासी जगां चामड़ी लोई झराण हो रयी है। अेक मोटो चिगदो चिलकै। दुवाई लगा देवूं। पछै जीम जूठ’र निरवाळो सोस्यूं। ओड़ रै दिन कूवो बावणो डाढ़ो दोरो है। तणी टूटती बगै! सारी रात दो-दो जूंटां तूंडी सूं मोरणै अर मोरणै सूं तूंडी भाजी आवै-जावै ही, जद जाय’र पाणी पूरो पड़्यो। कूवा है; ऊंटां री खाल नीसरै, मिनखां रो चेतो जावै; आज तो मनैं सागीड़ी गैळ रैयी है। ऊंट रै दवाई लगा’र बेगो जाय’र पड़ूं जद पार पड़ै। भूख तीस री जी में नीं है।”

इसी बात माथै ऊंट कान काढ़’र धणी रो आपो परखै अर मस्ती सूं बो उगाळी काढ़तो थको कैवतो सो करकै— “म्हारै किसी दुवाई करणी है? पेट नीचै लाव री लागगी, जिकी आपे आछी करसी। तकड़ै रै काम में लागण रो किसो ठा पडै। आखै दिन सूं तिसा बैठ्या डिडावता गांव रा सैंग पसु छिकाय’र पा दिया जद म्हारै तो लाग्योड़ी आपे आछी हुगी। चिरमराई तक नईं, क्यांरी दुवाई है! रोटी खाय’र आराम करो नीं! आठ पोर सूं भाज्या फिरो। मिनख होय’र म्हां पसुवां री इत्ती निगैदास्ती राखण रो थारो धरम पूरो है। जावो अर जीमो जूठो। थे-म्हे जीव-जिनावरां री सेवा तो करी है। तो फोड़ां रा किसा सरफा है।”

गावो घी, फाकाळी दुवाई, मोकळी कळकळा’र ऊंट री चांदी पर लगाई। अठपोरै कूवै रै करड़ै काम सूं मारेल हुयोड़ो ऊंट रो धणी (बदरी) हाथ धोय’र सफै में जा सूत्यो। नींद आई तो इसी कै पोरां-पोर उठ्यो नईं। मा बतळायो, लुगाई तकायो अर बाप हेलो मार्‌यो— “बदरी, बदरी! उठ’र मूंडो धो बेटा! आज भले आपणी स्यारी है, आथण कूवो जोड़नो है।”

बदरी को हाल्यो डोल्यो, टसक्यो बोल्यो, लोथ हुयो पड़्यो रयो। बाप ऊंट नीरण नैं गयो, मा कनैं आई। बेटै री माटी पड़ी देख’र गरळाई। रोवा-कूको सुण’र लोग भेळा हुया अर थ्यावस बंधावता थका अैरू कांटो, सांप-सळीटो लड़णै रो बैम कर्‌यो अर सासा कुपाळी चढ़णै री बात थावटी। नाड़ तैकती बताई। लोगां अस्पताळ ले जावण रो बेगो कयो। ऊंट जोड़’र गाडै में ल्याया, गूदड़-गाभा बिछा’र सुवाण्यो। आसै-पासै मा, लुगाई अर पास-पड़ोस रा अेक दो दाना दाढ़ीक आदमी बैठ्या। दड़ाछंट बीख में पूग्या अर ठुरियै जाय’र सांवतसर रै मोटै अस्पताळ आगै ठैर्‌या। डाकटर आगै हाथ जोड़्या अर रोवतो-गिड़गिड़ावतो चटाचट बाप, दांत दिखाळतो बोल्यो— “डाकधरजी! डाकधरजी! म्हारो बेटो बेहोस हुग्यो, कुपाळी में सासा चढ़गी, आप बेगो देख’र कोई दुवाई देवो जिकै सूं सांस बावड़ै अर बेटो जिनड़ी पावै, दूसरा भगवान हो, भगवान थारी मोटी ऊमर करै।”

डाकटर बदरी री खोड़ नैं टटोळी, नबज टोही, छाती देखी अर आंख्यां री पलक उठाई; पर राम नांव सत्त है। सागाळां नैं पूछयो— “क्या हो गया?”

अेक आदमी बोल्यो— “सा! रात नैं कूवो बाय’र आयो, ऊंट रै दुवाई लगाई अर हाथ धोय’र सूत्यो। सासा कपाळी चढ़गी”

डाकटर समझग्यो— “क्या दुवाई थी?”

बाप— “ऊंट री दुवाई ही सा!”

बीच में मा कैय दियो— “फाकाळो जैर हो सा! बेगो कोई उपाव लगावो।”

डाकटर— “जहर!! कौन सा जहर?”

सागाळा— “फाको-टिड्डी मारणाळो हो! ग्रामसेवकजी कनैं सूं ऊंट लगावण खातर मांग’र ल्ययोड़ो हो सा! म्हे तो म्हारा टोगड़ियां-पाडियां री जूं-लीख अर रई-चींचड़ फाकळी दुवाई लगा’र मारां।

डाकटर कड़क’र— “तुम्हारी अक्कल खराब है? रोगी मरा हुआ है। मैं तुम्हारी थाने में रिपोर्ट करूंगा, इसको किसी ने जहर देकर मारा है। सारे शरीर में पोईजन फैल गया है। सामने झूठा बहाना बनाते हो ऊंट की दवाई का? केस से बचने के लिए मरे हुए को अस्पताल के जिम्मे लाये हो।” डाकटर झट कुर्सी माथै बैठ’र मेज पर हाथ मार्‌यो। घंटी गरणाई अर हाथ जोड़े चपरासी आयो। डाकटर कयो— “बिस्साजी को बुलाओ, एक पुलिस रिपोर्ट तैयार करवानी है!”

चपरासी डरग्यो, बोल्यो— “पुलिस! बिस्साजी! कुणसा?”

डाकटर कड़क’र— “अरे अपने अस्पताल के बाबूजी! समझे? बुलावो जल्दी; रिपोर्ट लिखनी है।”

बदरी रो बाप अर साथाळा आदमी अस्पताळ रै फरस पर पड़ी बदरी री ल्हास नैं धीरै सी उठावण लाग्या। अेक आदमी बांरै साथैवाळो खड़्यो होय’र ऊंट रै गाडो जोतण बारै गयो।

डाकटर बोल्यो— “अरे यह क्या करते हो? ल्हास को अब तुम नहीं ले जा सकते, इसकी चीरफाड़ (पोस्टमार्टिम) होगी। इसके बाप का क्या नाम है! नाम गांव बताओ।”

बाप— “ईं रो नांव बदरी है सा! जाळपसर परण्योड़ो है। म्हारो मोटो बेटो है। पन्दरै बरसां री लारै लुगाई, बामण रो जमारो, खाठ नै साठ आवणा दोरा है। इस्पताळां में तो चीर-फाड़ सुणां सा, काईं कारी लगावो।

डाकटर राजपूत सिरदार, नोजवान, भलो माणस। बामण सब्द सुण’र सूखो बांठ बणग्यो। घराणै रो आदमी अर पाड़ोसी गांव रै ठाकरां रो कुंवर। काठ मारग्यो। कीं सोच नीं सक्यो। कर्तव्य अर दया री दुतरफी डोर-तण्यां माथै झोटा खावण लागग्यो। अेक तरफ जैर सूं मर्‌योड़ो मिनख, खून रो मामलो। दूजी तरफ बामण री जात अर गांवां रै गरीब मानखै रो ब्योवार, डाक्टर रै मन नैं भंगूळियै ज्यूं भुंवावण लागग्यो।

स्याणां री कैयी साच है— “लोभ-लगाव, स्वारथ अर दया-भाव मिनख नैं सागी मारण सूं डिगा देवै। पण डाकटर भावुकता रै बहाव में खूंटो सो अड़्यो-खड़्यो रयो। ल्हास नैं अटकाय’र पुलिस रिपोट लिखवाय दी। बाप नैं बैठा दियो। सागै आयोड़ां लोग बदरी री रोवती मा अर लुगाई नैं अस्पताल सूं गाडै चढ़ाय’र सांवतसर गांव रै बिचाळै मुखिया लोगां कनैं आया। बोल्या— “बीस बरस रो जुवान बेटो हो, रोग ऊपड़ग्यो जद हाथ पाधरा कर’र अस्पताळ ल्याया। गैलै में देखता रैया सासा कपाळी चढ्योड़ी ही। अस्पताळ पूग्या, जद छोरै प्राण दे दिया। हमैं डाकधर कैवै— “दाग देवण नईं देवूं। थाणो बुलायसूं। थे इण नैं जैर दियो है।” म्हे माईत अर या बैंरी जुवान लुगाई, कोई आप रै बेटै, मोट्यार नैं जैर देवै? पण! डाकधर इन्याव करै! म्हे गरीब बामण हां, थारै सैर रै नेड़ै बसां! बस्ती रो धरम है, म्हारी मदद करो।”

पंच, सरपंच अर बूढ़ा मोटर ठेकैदार दयालजी, दूजै गांव रै बामणां री मदद में डाक्टर कनैं गया अर कैयो— “डाक्टर साब, थे थाणो मती बुलाबो। म्हां सगळां री ल्हाज राखो अर ल्हास नैं दाग देवण सारू पाछी सभळावो। जैर दियोड़ो हुवै तो म्हारी जामनी म्हे सगळा जिम्मैवार हां। अंगूठा-दस्सखत ले लेवो अर इण काम नैं रोको ना, फोड़ा मती घालो। हूणी तो हूणी रै ताबै हुवै, हूणी रै हजार हाथ है, लोह रै पींजरै में बड्यां नीं बच सकै, मेहरवानी करावो। म्हे सैंग कैवां। गांव री तरफ सूं आपनैं कोई आंच नईं आवैली!”

डाक्टर— “आप सब अस्पताल पधारै, मेरे सिर माथे! मगर केस खतरनाक है। मैं टेमप्रेरी हूं इसको दबा नहीं सकता, आदमी के खून का केस है। मैं यहां नया आया हुआ आदमी हूं। चार दिन आये हुए हैं। पहले वाला डाक्टर यहीं रहने के लिए जयपुर तक पहुंच गया है। बिरादरी विरोध है। सरकार बदली कर देती है, पर लोगों की पार्टी होती है। मैं बेदाग वापिस चला जाना चाहता हूं। पोस्टमार्टम की रसम अदा करके लास का दाग करवा दूंगा। मैं ऐसा रिश्वत के लिए नहीं, अपने बचाव के वास्ते ही कर रहा हूं। सो आप पूर्ण विश्वास के साथ मुझे माफ करें। रिपोर्ट चली गई है”।

लोगां मूंडो जोयो— डाक्टर घूस सारू तो नईं पण गांव माथै आपरो पैलड़ो रोब गांठणै खातर जरूर जोगतो हो।

दयालजी ठेकैदार बोल्या— “डाक्टर साहब आपरो घराणो भलाई में ऊजळो अर नामूनदार है। दादोसा ताऊं रा तारीफोपकार आंख्यां देख्या है। म्हे तो राज री नौकरी करी। बीसां बरसां महाराजा गंगासिंघजी री मोटर चलाई। मोटा-मोटा राव-उमरावां री मुलाकात सूं अैड़ा अनेक काम पूरा कराया है। आप इण गरीब री ल्हास नैं छोड देवो तो दूजो कुण पूछण हाळा है? धणी रो धणी कुण? गजेटेड अफसर हो। पैलड़ै डाक्टर साब नैं गाव में पाछो म्हे आवण देवां नईं, अबकाळै तुहे कर’र काढ़ां। छप्पन कबाड़ा करतो। पण चतर जात हो, ठा नीं घालतो। हमैं बैं रा परवाड़ा चोड़ै चिलकै।”

थाणैदार आयो, ल्हास दूर रै फिल्ड में पोंचाई। डाकटर काळजो चीरण लाग्यो, जैर सूं लीलो हुयोड़ो फेफड़ो लाध्यो। बो कांच रै भांड में भर परा’र राज रै सिपाही—चपरासी नैं सोंपतां गाडी चढ़ाय दियो। सागै मेडिकल अधिकारी नैं जांच करावण खातर दोनुवां रै दसखतां सूं रिपोट कर दी। चपरासी भांड थैलै में घाल’र मोटर पर जा बैठ्यो, टी.ए.—डी.ए. रो डाक्टर नैं पैल्यां पूछ लियो।

चपरासी कुजात, थोथी लोद घालै अर बैठ्यो असंधै मुसाफरां सूं सैंध-मैंध काढ़ै। बस उडी बगै अर गांवों-गांव उतारै चाढ़ै। घणा चढ़्या घणा उतर्‌या अर घणो भार-बोझ मोटर में लाद्यो। पण, भांडवाळो चपरासी रो थैथो हेठो सफा दबग्यो, लोग ऊपरोथळी कीचरीज-कीचरीज मरै; भीड़ में सामान माथै फिरै-घिरै। सीट रै सारै थैलै में फेफड़ाळो भांड फूटर मसळीजग्यो। मिनखां रा लूंठां बूंटां सूं किरची-किरची हुग्यो। सूंवै दिन आये गाड़ी स्टेशन कनलै स्टैन्ड पूगी। कुळी अर गाडाळां, मुसाफिर मिनखां रो सामान उतार्‌यो। चपरासी आपरो थैलो जोयो पण गीलो अर मसळीज्योड़ो देख’र माथै हाथ दियां रोयो। गफलत रो बोझ झाल्यो अर डरतो-डरतो चाल्यो।

दस दासीन, अेक चपरासी! उथळो सोच’र मेडिकल आफिसर आगै जा ऊभ्यो। खूंजै सूं रिपोट काढ़’र भलाई अर धूजण रो सांग बणाय’र हाथ जोड़्या। अधिकारी कागज बांच’र फेफड़ाळी बोतल मांगी जद चपड़ासी थैलै सूं टूटेड़ी सीसी रा टुकड़ा काढ’र सामां मेल दीना। बोल्यो— “हजूर, आमनै सामनै दो मोटरां आपस में टकरागी। चीजां बस्तां पड़ी अर माथा भिड़्या। कई मिनखां रै चोट गैरी आई। मरता-मरता बंच्या। मरेड़ै मिनख रो जैरीलो काळजो ल्यावणो सोरो थोड़ी है। ठा नीं, बापड़ै डलेवर जैर सूं बावळो हुयां मोटर चलाई! पौंच रो परवानो दिरावो, पाछो जावणो है।”

मेडिकल अधिकारी कैयो— “सिपाही! जाओ, कागज डाक से भिजवा दूंगा। केन्द्र के डॉक्टर को कहना— “आइन्दा ऐसा केस यहाँ नहीं भेजे। मरडर केस नहीं, यह फूटी हुई सीसी है” (मिनख री दे)।

स्रोत
  • पोथी : आज रा कहाणीकार ,
  • सिरजक : नानूराम संस्कर्ता ,
  • संपादक : रावत सारस्वत ,
  • प्रकाशक : राजस्थान भासा प्रचार सभा ,
  • संस्करण : प्रथम संस्करण
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