पुराणी कचैड़ी मांय खूणै खानी जठै आजकल ट्रेजरी रौ दफतर है, सायजी रामधनजी बैठता हा। अन्दाता री सिरकार रा पुराणा चाकर हा अर कीं ऊमर’ई आयोड़ी ही जिणसूं सायजी नै खजानै रा सिगळा नौकर जीकारौ देयर बतळावता। सायजी रौ मिजाज कीं तातौ हो, बात सिगळां नै निगै ही।

जद कदै सायजी गुस्सै होवता, तौ केय देवता—

‘अबार अन्दाता नै अरज करूँ।’

पिण सिगळां गुमास्तां नै ठा ही कै सायजी री पूँच अन्दाता छोड़ अन्दाता री थरकण तांई कोयनी। पिण फेर’ई उंवांरी उमर रौ ल्हाज कर’र उँवारै सामै कोई कीं नीं कैवतो; पिण कमरै सूँ बारै आय’र सिगळा’ई गुमास्ता खिल्ल-खिल्ल हँसता।

सायजी बात बात माथै—‘अबार अन्दाता नै अरज करूँ’ रौ पूँछड़लौ तौ लगावता ‘ई हा।

सायजी रै रूप रो बखाण करूँ तौ राजघराणै’ रै जूनै कारिन्दै रौ रूप, जिकौ इण बदलियौड़ै जमानै मां नीं मिलै अर जिणनै देख’र आज रा जिनमियोड़ा छोरा तौ गैऽलौ जाणै अर कुतिया भूसण लागै।

फीडी पगरखी, गोडा सूघी धोतड़ी, ऊपर लाम्बी कसूंबल अचकन, केसरिया फैंट, अर खिड़किया पगड़ी बाँध, कान रै ऊपर कलम खसोड़’र सायजी बरामदै माथै सरर सरर चालता आवता, उण बेळा दफ्तर रै दरूँजै माथै बैठ्योड़ौ चपड़ासी चौकन्नौ होय जावतौ अर हुसियार होय’र चावै हंसीकरण तांई सरी, पण बोल पड़तो—‘सायजी पगै लागूँ।’

सायजी दड़ै दाई फूल’र कुप्पा होय जावता। फैर झट आपरी आंट मां खुरचियोडै बटवै नै काढ़, डोरो सरकाय’र एक चोखीसीक सुपारी काढ़ चपड़ासी रै हाथ माथै राख देवता, केवता—‘लै रै देवला, किरचौ खा। बड़ा खजानचीजी पधारिया के नई? अर जी सा’ब तौ आयग्या होसी? मांयनै जावै तो कैय दीये कै सायजी आयग्या है।’

चपड़ासीड़ौ जाणतौ हौ कै सायजी रै बड़ा खजानचीजी अर ए.जी. सा’ब कन्नै जावण रौ कदेई काम को पड़ैनी, पिण इबारत तौ वै रोजई बाँचता।

चपड़ासी कै देवतो—‘ठीक है सायजी अबार जासूँ तो अरज कराय देसूँ।’

बात असल ही कै सायजी इयूँ तौ खानदानी आदमी हा। जूनै बजार में मण्डी कन्नै आपरी टूट्योड़ी-फूट्‌यौड़ी हवेली ही। सायजी रा दादा साय लिछमीरामजी म’राज सिरदारसिंघजी री बखत तोसेखानै रा बड़ा गुमास्ता हा अर राजाजी रै घणा मूण्डै लाग्योड़ा हा। जिण सूँ सायजी नै अन्दाता री मैरवानी सूँ चाकरी बेई गूजारै री खातर मगरैखानी एक छोटैसेक गाँव में भूंगौ उघावण रो इखत्यार मिल्योड़ौ हो। जिण माथै सायजी रै घर रौ गुजारौ होय जावतौ हो। सुंघाई रा दिन हा। अढ़ाई सेर रौ घी, रिपियै रा आठ पायली मोठ अर इत्तीई बाजरी आय जावती। सायजी रै दादै अर बाप री तौ सांगोपांग निभगी, पिण जद सायजी रामधनजी जिनमिया उण टैम विकटूरिया रौ राज हो। सायजी लिछमीरामजी रा पोता हा, इण वास्त उणांनै पढ़ण-लिखण री तो छूट मिळगी, कारण कै राजबरगी हा, गुजारौ तो चाल’ई जासी, भणन नै क्यूँ जावता। तौ सायजी आपरी पचास बरसगांठाँ तांई तौ ‘ठठै मिण्डी ठोठ’ई रैया।

जमानौ आगै बधग्यो, सायजी उठै’ई खड्या रैया। लड़ाई रै दिनां सूँ पैला’ई सायजी एक दिन लालगढ़ जाय अन्दाता नै अरज कराई कै साय लिछमीराम पोता साय रामधन अन्दाता रै मुजरै सारूं हाजर हुयौ है, अर अन्दाता रा दरसण चावै। मांयनै सूँ हुकम हुयौ कै जिकी बात अरज करणी होवै, बा बात दरबारीजी नै कैय देवै, अन्दाता नै अरज करदेसी। सायजी उधारौ मूण्डौ लेयर लालगढ़ री ड्योढ़ी सूँ पूठा आयग्या। फेर जूनैगढ़ में घुसग्या अर माजीसा नै सन्देसौ अरज करवायौ ‘कै आपरो चाकर साय लिछमीराम रौ पोतो आपरै गुजारै री खातर अरज करै है। मुँगाई रै बखत में गाँव रै भूंगै सूँ काम चालै कोयनी। इण वास्तै कोई चाकरी रौ हुकम हुय जावै तौ गरीब बांणियै रा टाबर पळजासी नईतर गळ्यौं में जग्यां जग्यां रुळता फिरसी।’

माजीसा हुकम फरमायौ ‘कै खजानै रै खजानचीजी नै जाय’र म्हारै नांव सूँ कै देवौ। कोई इन्तजंम कर देसी।’

राज घराणै रौ हुकम। सायजी नौकर होयग्या, पिण नाम मातर रा। मईनै रै मईनै तीस रिपिया ले आवता।

पिण सायजी नै तै’सीलदार हुवण री बड़ी चायना ही। कचैड़ी रा उकील, अरजीनवीस जिकौ मिळतौ बौई सायजी नै खबर सुणावण सूँ तौ को चूकतौ नीं कै सायजी फलाणी जागां री तै’सीलदारी खाली हुई है।

सायजी झट खूंजै सूँ सुपारी काढ’र दे देवता अर कैवता—‘हाँ साँची कांई रे! काल’ई लै, अन्दाता नै अरज करूँ।’

बखत फुर्‌यो। म’राज गंगासिंहजी परलोक सिधाया अर म’राज सादूलसिंघजी राज सम्माळियौ। नौकर चाकरां मांय फेर-बदळ आई अर सायजी री वरणी नैं आँच को आई नीं अर उणां नै एक मुजव री पिंसळ सीक मिळन लागी।

सायजी रोज’ई एक बेरी फीड़ी पगरखी चटकावता कचैड़ी आवता अर गुमास्तां नै मूण्डौ दिखाय’र हाईकोरट रै उकीलां रै कमरै में जाय बेठता। फेर तौ जिण उकील कन्ने कोई काम नीं होवतौ बोई वाईज पुराणी बात छेड़ देवतौ—‘सायजी, सुजाणगढ़ रौ तैसीलदार दो मईना री छुट्टी गयो है। थे कोसीस करौ तो जागा तो थानै मिळ जासी। तैसीलदार साळौ पंजाबी ढ़ग्गौ है; इण नै तो ढ़ोकळी दौ।

सायजी झट तण जावता—‘हाँ, काल’ई लौ, अन्दाता नै अरज करूँ।’ चालाक उकीलजी कैवता—तो पछै इण बात माथै तौ दुपारी होवणी चाइजै। किसी’क चोखी खबर लाय’र दी है।

सायजी छोड़ देवता हुकम खूंमचै वाळै माथै। रिपियै दो रिपियै री चिपड़ी चिप जावती। सायजी अंटी ढीली कर देवता। कचैड़ी उठ जावती। सायजी पगरखी चटकावता घरै आय जावता।

सायजी रौ नेम’ई हो कै घर सूँ निकळती बेळा रुपयौ दो रुपयौ लेयर बारै निकळता जिणरौ चूरमौ कर’र घर में पूठा घुसता। सायजी रा सातरिया कई ठीक हा, इण सूं घर रो खरचौ चाल जावतौ हो। नई तो सायजी खानी तौ सफा फूट्योज हा।

जमानो फेर बदळियौ। अंग्रेजां रौ राज गयौ, फेर राजाओं रो ई। ए.जी. रै दफ्तर में छंटणी होवण लागी। पुराणा नौकरां नै पिंसळ मिळगी। खजानै रा नुवां अफसर आयग्या। एक-एक गुमास्तै रै काम री जांच होण लागी।

सायजी रौ नांव आयौ, पेशी हुई, पूछ्यो ग्यो—‘आप क्या काम करते हैं?’ ‘सायजी कोई काम करता होवता तौ बतावता। चुप खड़ा रैया। अफसर कैयो—‘आप जा सकते हैं।’ सायजी चल्या आया।

दूसरै दिन हुकम हुयो—‘श्री रामधन पुराना गुमास्ता है और बुड्ढा आदमी। अकाउन्ट्स का कोई काम नहीं जानता। इसलिए इनका हक हकूक दिलाया जाकर रिटायर किया जाय।’

आगले मईनै सायजी आपरी तनखा खातर रपट पेश करी तौ एक पुराणै गुमास्तै पुराणै मुजब रै मुताबिक रपट की ‘कै माह अप्रेल 1949 से सरू सेलेरी रिजिस्टर कूँ देखणै सूं पाया गया कि साय रामधन का नांव रजिस्टर में दरज नई है, तनखा रा रुपया तें सूं टाळ्या। पुराणौ गुमास्तौ इत्तोईज भण्योड़ौ हो अर जमानै भर ओईज काम करतो रैयौ।

सायजी री तिनखा बन्द होयगी। पिण बै फीड़ी पगरखी चटकावता कचैड़ी रोज’ई आवता, तैसीलदारी री खातर नई पिण पिंसल रै केस री खातर।

स्रोत
  • पोथी : राजस्थान के कहानीकार ,
  • सिरजक : भगवानदत्त गोस्वामी ,
  • संपादक : दीनदयाल ओझा ,
  • प्रकाशक : राजस्थानी साहित्य संस्थान, जोधपुर ,
  • संस्करण : द्वितीय संस्करण
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