तम्हारी भीतरी गांठै जरा कापी नै तो जोवो

ऊंडियाती दरारै खेमां नी ढांपी नै तो जोवौ

या विचारो तम्हारी पण जरूरत कैनै कई वेरै

कणां नी भूख मई आपड़ी भी रोटी वांटी तो जोवौ

कदी जिमणै कदी डाबै या कैवी टांगड़ी खैंची

कदी बे छोड़ावी टांग आपड़ी मरजी तौ जोवौ

तम्हनै पण वदेसी नी भलाई कैम भली लागै

कदी अशफाक नौ जिगरी यौ धूळौ फांकी तौ जोवौ

इयं होळी दिवाळी राखड़ी है रोज घर घर मईं

कदी मीठी सिवइयै ईद नी चाखी नै तौ जोवौ

कठे मंदर कठै मसजिद गुरुद्वारं मईं हमला है

कदी आपडूस मोटू नाकुरू कापी नै तौ जोवौ

कदी तौ झूठ ना खोळा मां पण सूती है सांचाई

कणा मजबूर नी गलती नै आपड़ावी नै तौ जोवौ

कदी मीठौ कदी खाटौ कदी नमकीन सरबत है

कदी 'जय' टापरी नी राबड़ी चाटी नै तौ जोवौ

कड़कड़ाता ताप मईं आव्यो है छांइलौ

जाणै भरो गलास मईं लाव्यो है छांइलौ

म्हारै कुंवारै आंगणै आसा पड़ी रोवै

पामणो बणी नै तो आव्यो है छांइलौ

ठाडू हेम पाणी लावी है कामणी

प्रीत नो पुजारी फाव्यो है छांइलौ

पैला नै खावा मोकली रखवारू करै

खोंबौ भरी नै फूलडं लाव्यो है छोइलौ

म्हारा करम नी करतबै ओळखी लिधी हैं म्हैं

लालच वताडी आज बकाव्यो है छांइलो

ईतराई रयो हतो म्हुं तो मेळा मईं अेखलो

छमछमाती विन्दणी लाव्यो है छांयलौ

अुजवाळु हतु के 'जय' विजळी नौ झापको

समझी उजास अंधारूं धाव्यो है छांइलो

स्रोत
  • पोथी : अंवेर ,
  • सिरजक : ज्योतिपुंज ,
  • संपादक : पारस अरोड़ा ,
  • प्रकाशक : राजस्थानी भाषा, साहित्य एवं संस्कृति अकादमी
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