सूरज री करतूतां काळी

अंधारै री करै रुखाळी।

कांई करां ऊजळै अंबर

पगां हेठली धरती काळी।

म्है दाझां होळी री झळ में

बांनैं दीसै चिलक दीवाळी।

बस्ती पूरा मिनखां री

मूंडै मुळक आंतड़यां गाळी।

जद जद मांग्यौ रो’र कलेवौ

बै पुरसी सुपनां री थाळी।

कदै निबेड़ी आं भरमां सूं

नहीं गिणी जै डील रुंआळी।

स्रोत
  • पोथी : मोती-मणिया ,
  • सिरजक : सवाईसिंह शेखावत ,
  • संपादक : कृष्ण बिहारी सहल ,
  • प्रकाशक : चिन्मय प्रकाशन
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