सूरज पर बादळ री छाया

उजियारा है आज पराया

पकड़ीजी चोरी थांरी जद

सीनाजोरी कर भरमाया

सुणता नाहरां रै ज्यूं गरजो

उण मूंडै सूं क्यूं मिमियाया

कितरी हुसियारी करलो

साच सदा सामी आया

इतरो भोपाडफ क्यूं राखो

समझ गया सब थांरी माया।

स्रोत
  • पोथी : राजस्थली गजल विशेषांक ,
  • सिरजक : दलपत परिहार ,
  • प्रकाशक : राजस्थानी साहित्य संस्कृति पीठ
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