सिरजन री औगत राखिजे

मिनखपणै रो पत राखिजे

बोझ उठा लेई जिनगी रो

जिवड़ै मांयनै सत राखिजे

मन खिंड जावैलो रिस्तां में

खुद नै पण साबत राखिजै

ठंडी ताती फेर बताई

पैलां आप भुगत राखिजे

आभै ऊपर चढ़ जाई पण

धरती सूं सोबत राखिजे

होणी आप रै बल चालैली

दूण धणी तूं मत राखिजे

धीरां रा तो गांव बसै है

बडकां री कहबत राखिजे

हरख घणो बांटी सगळां नै

सुख मांय छीजत राखिजे

पोत उघाड़ दिखाई मतना

तीस-पचास पुड़त राखिजे

‘तूं ‘खामोश’ बुढ़ापै ताणी

पढ़णै री लत राखिजे

स्रोत
  • पोथी : राजस्थली गजल विशेषांक ,
  • सिरजक : बनवारी ‘खामोश’ ,
  • संपादक : श्याम महर्षि ,
  • प्रकाशक : राजस्थानी साहित्य संस्कृति पीठ