रात काळी पहाड़ सी लागै

जूण सूनी उजाड़ सी लागै

टसक उठ री है काळजै कै मां

सांस सिलगेड़ी भाड़ सी लागै

बैम जद पसरज्या हियै मांय

तिल जिती बात, ताड़ सी लागै

मनस्या मरगी, गुमेज सो गुमग्यो

खुसी बन्द पड्या किंवाड़ सी लागै

जात अर पात स्वारथी बाता

प्रेम के बीच बाड़ सी लागै।

स्रोत
  • पोथी : राजस्थली गजल विशेषांक ,
  • सिरजक : सुरेन्द्र पारीक ‘रोहित’ ,
  • संपादक : श्याम महर्षि ,
  • प्रकाशक : राजस्थानी साहित्य संस्कृति पीठ
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