रात काळी पहाड़ सी लागै
जूण सूनी उजाड़ सी लागै
टसक उठ री है काळजै कै मां
सांस सिलगेड़ी भाड़ सी लागै
बैम जद पसरज्या हियै मांय
तिल जिती बात, ताड़ सी लागै
मनस्या मरगी, गुमेज सो गुमग्यो
खुसी बन्द पड्या किंवाड़ सी लागै
जात अर पात स्वारथी बाता
प्रेम के बीच बाड़ सी लागै।