प्रेम परख जतलाणो पड़सी

घोर अंधारा जाणो पड़सी

हेत हथाई मगसी लागै

अपणायत नै आणो पड़सी

अपणो दुख दरसाय बिना

गीत हरख रो गाणो पड़सी

बिक जावै कद मोटी कोठी

झूंपा नै अपणाणो पड़सी

खुसियां रा दिन भी आवैला

बीत्यो बगत भुलाणो पड़सी

स्रोत
  • पोथी : राजस्थली लोकचेतना री राजस्थानी तिमाही ,
  • सिरजक : अब्दुल समद राही ,
  • संपादक : श्याम महर्षि ,
  • प्रकाशक : राजस्थानी साहित्य-संस्कृति पीठ