पाणी कठे वताइ दे?

हेंणाजी हमझाइ दे॥

जाण आपणी आण ने—

ईं पे प्राण लुटाइ दे।

हडूमान री पूंछड़ी—

लंका लाइ लगाइ दे।

छतां—छतां ने बेचण्या—

कम्पलेस चुणवाइ दे।

पॉप—सोंग रे आळके—

लोक—लाज लुटवाइ दे।

वेदां—वरणी वाणियां—

घर—घर में पूगाइ दे।

स्रोत
  • पोथी : फूंक दे, फूंक ,
  • सिरजक : पुष्कर ‘गुप्तेश्वर’ ,
  • प्रकाशक : बोधि प्रकाशन ,
  • संस्करण : प्रथम संस्करण